बुधवार, 24 अप्रैल 2013

sundrasi-Dancho to hadsar सुन्दरासी से धन्छो होकर हड़सर जाकर ट्रेकिंग का समापन

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-17                                                                        SANDEEP PANWAR

बरसात के पानी वाले सीधे शार्टकट से उतरते ही सुन्दरासी दिखायी देने लगता है। सुन्दरासी पहुँचते-पहुँचते आसमान में सूरज देवता ने अपना गर्म रुप दिखाना आरम्भ कर दिया था। ऊपर नहाते समय शरीर का हर अंग ठन्ड़ के कारण तबला-वादन/कथक कली और ना जाने क्या-क्या करने लगा था। जब सूर्य महाराज की शरण में अपुन का शरीर आया तो शरीर को गर्म करने के लिये ओढ़ी गयी गर्म चददर भी उतार कर कंधे पर ड़ाल दी गयी। धन्छो पहुँचने तक यह गर्म चददर बैग के अन्दर पहुँच चुकी थी। सुन्दरासी आने के बाद मार्ग में लगातार तेज ढ़लान मिलनी शुरु हो जाती है। तेज ढ़लान का लाभ यह है कि शरीर तेजी के साथ नीचे की ओर भागने को तैयार रहता है लेकिन लगातार तीखी ढ़लान ही उतराई में पैरों के पंजे में दर्द उत्पन्न होने से सबसे बड़ी दुश्मन भी बन जाती है। सुन्दरासी पहुँचकर लगभग आधे साथियों ने दस मिनट का विश्राम लिया। कई साथी यहाँ बिना विश्राम किये धन्छो के लिये प्रस्थान कर गये थे। मैने बड़े वाला शार्टकट मार कर अपना काफ़ी समय और मार्ग बचा लिया था उसका लाभ यहाँ कुछ मिनट विश्राम कर उठाया गया। विश्राम करने के बाद यहाँ से चलने की बारी थी। सिर्फ़ दिल्ली वाले राजेश जी की टीम सबसे पीछे चल रही थी, बाकि अन्य सभी आगे जा चुके थे।


सुन्दरासी से धन्छो तक के पद यात्रा पथ पर बीच-बीच में काफ़ी दूर तक का मार्ग निर्माण प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा था। जिस कारण उस पर ड़ाले गये पत्थर हिल-डुल रहे थे। इन पत्थरों पर काफ़ी सम्भल कर चलना पड़ा। यहाँ एक जगह ऐसी आती है जहाँ से नदी पार करके नदी पार वाले उस मार्ग पर जाया जा सकता है। जिससे होकर हम ऊपर पहुँचे थे। विधान के साथी ने यहाँ हमारे मार्ग से अलग होकर नदी पार वाले मार्ग से नदी का पुल पार करके नदी के दूसरी ओर पहुँचकर अपनी यात्रा जारी रखी। धन्छो के करीब पहुँचने तक मार्ग में कही भी ज्यादा मुश्किल नहीं आती है। असली समस्या तो धन्छो के ठीक ऊपर आती है जहाँ से धन्छो एकदम खड़ी गहरी खाई में दिखायी देता है। यहाँ पर लगभग एक किमी की Zig-Zag वाली आड़ी-तिरछी ढ़लान पर उतरते समय बेहद ही सावधानी से उतरना पड़ता है। ऊपर से धन्छो ऐसा दिखायी देता है जैसे हम किसी हैलीकाप्टर में बैठकर उड रहे हो।

धन्छो तक पहुँचते-पहुँचते पैरो के पंजे में दर्द की शुरुआत होने लग जाती है। यहाँ एक जगह बैठकर अपने बैग में रखे बिस्कुट के पैकेट निकाल कर खाने की तैयारी होने लगी। हमारे साथ धन्छो से एक कुतिया कल से ही साथ-साथ ऊपर तक गयी थी, आज वापसी में वह हमारे साथ ही वापस आ रही थी। बीच में हमने उसे खाने के लिये बिस्कुट भी दिये थे। अपने पास बिस्कुट के बड़े वाले पैकेट थे आधा पैकेट खुद खाया बाकि का आधा बिस्कुट का पैकेट उस बेजुबान जानवर को देकर हमने अपनी आगे की यात्रा जारी रखी। अभी हम उस जगह तक ही पहुंच पाये थे जहाँ हड़सर से धन्छो की ओर ऊपर आते समय सबसे पहली दुकान मिली थी। यहाँ आकर देखा तो अपने आगे वाले सभी साथी यही ड़ेरा जमाये हुए थे। मैंने इन्हे धीरे-धीर चलते रहने को कहा था। जब हम इनके पास पहुँचे तो यह उठकर आगे चलने की तैयारी में थे। मैंने कहा क्या हुआ? हमारे आते ही क्यों चल दिये। मनु ने कहा संदीप भाई हमने गर्मा-गर्म परांठे खा लिये है अंत: हम तो चले। अब आपको भी अपनी भूख शांत करनी है तो बैठिये नहीं तो हमारे साथ चलते रहिये। 

दिल्ली वाली पार्टी थकान मानने लगी थी। दिल्ली वालों ने फ़ैसला किया कि हम भी परांठे खाये बिना आगे नहीं जायेंगे। इस दुकान पर बाहर भी पेड़ों की छाव में लकड़ी के फ़टटे ड़ालकर बैठने का प्रबन्ध किया गया था। मैंने फ़टाफ़ट दो परांठे खाकर बाहर धूप में बैठने के लिये एक पत्थर पर जाकर विश्राम करने लगा। दिल्ली वाले दिल से परांठे खाने में लगे थे। लगभग आधा घन्टे का समय परांठे खाने में लग गया। धूप में बैठे-बैठे शरीर ढीला पड़ चुका था। जब सभी वहाँ से चलने लगे तो मैंने कहा आप लोग जाओ मैं आधे घन्टे बाद आऊँगा। मुझे यह मालूम ही था कि यहाँ से आगे जाते ही पुल पार करना पड़ेगा उसके बाद आगे के चार किमी काफ़ी तेज ढ़्लान वाले है जिस पर चलते हुए इनकी हालत पतली हो जानी है। मैं वहाँ धूप का मजा लेता रहा, जब सभी को गये आधे घन्टे से ऊपर होने को आया तो मैंने भी वहाँ से चलने में ही अपनी भलाई समझी। समय देखा तो दोपहर के11 बजने वाले थे।

मैं वहाँ अकेला जानबूझ कर रुका था। सुबह से सबके साथ टुलक-टुलक चलते हुए मुझे गुस्सा आने लगा था। मन कर रहा था कि दो-चार किमी तो अपनी वाली गति से पार किये जाये। उसका सिर्फ़ एक ही तरीका था या तो सबसे आगे जाया जाये, अथवा सबसे पीछे रहकर सबको पकड़ा जाये। मैंने अपना बैग उठाकर वहाँ से नीचे की ओर तेजी से चलना शुरु किया। पुल से थोड़ा ही आगे पहुँचा था कि वहाँ पर दिल्ली वाले दिलवाले जाते हुए दिखायी देने लगे। मैंने चलते समय ही सोच लिया था कि अभी कम से कम तीन किमी तक कही नहीं रुकना है इसलिये मैं अपनी गति से आगे बढ़्ता रहा। आगे जाकर विधान व उसके दोस्त भी आगे जाते हुए मिल गये। मैं इन्हे भी पीछे छोड़कर आगे बढता रहा। मैं काफ़ी तेज गति से चलते हुए तीन किमी की दूरी पार गया था मुझे मराठे वाली पार्टी व मनु कही दिखायी नहीं दे रहे थे। उनकी गति देखकर मैं हैरान था कि चढ़ाई में उनकी हालत देखने लायक थी और अब देखो उतराई में वे इस गति से भागे जा रहे है कि मुझे बीच में कही दिखायी भी नहीं दिये थे। एक जगह जाकर इनकी दूर से झलक दिखायी थी, लेकिन वे मुझे मिले नहीं।

जहाँ दोनों मार्ग एक जगह मिलते है। उससे थोड़ा पहले एक जगह मुझे एक काला साँप दिखायी दिया। उस समय विधान थोड़ा पीछे ही चल रहा था उसका कैमरा उसी के पास था। मैंने कुछ दूर वापिस जाकर विधान को जोर से आवाज लगाकर उसे साँप के बारे में बताया। जब तक विधान भी साँप तक पहुँचता साँप झाड़ियों की ओर बढ़ चुका था। किसी तरह विधान की सहायता से मैंने अपने आपको ऊपर एक पत्थर पर पहुँचवाकर साँप के फ़ोटो लिये थे। जहाँ दोनों मार्ग मिलते है उसके ठीक पहले एक जगह ऐसी आती है जहाँ से नीचे खाई में लगातार तीन पगड़न्ड़ी दिखायी देने लगती है। यहाँ मैंने विधान को सबसे पहले भेजा, उसके बाद विधान के दोस्त को आगे भेजा। जब विधान दिखायी नहीं दिया तो मैंने विधान के दोस्त का फ़ोटो लेकर नीचे उतरना शुरु किया। 

दोनों मार्गों के मिलन स्थल पर हम काफ़ी देर तक बैठे रहे। यहाँ काफ़ी देर बाद जाकर दिल्ली वाले तीनों प्राणी आते दिखायी दिये। जैसे ही तीनों यहाँ पहुँचे तो वे भी हमारे साथ कुछ देर बैठे रहे। उसके बाद हमने हड़सर तक की शेष एक किमी की यात्रा पूरी करने के लिये पगड़ंड़ी वाला मार्ग छोड़कर पक्की सड़क वाले मार्ग पर चलना शुरु कर दिया। पक्की सड़क पर चलने में थोड़ा सुकून मिल रहा था। कच्ची पगड़ंड़ी वाली तेज और तीखी ढ़लान यहाँ दिखायी नहीं दे रही थी। आगे जाकर हमें एक पुल दिखायी दिया। मैंने पहले भी यह पुल देखा हुआ था अबकी बार इस मार्ग से यहाँ तक पहुँचना अच्छा लग रहा था। पुल के फ़ोटो लेकर आगे बढ़े ही थे कि एक हिमाचली बुजुर्ग हमें पहाड़ों के फ़ोटो लेते देख वह महिला कुछ इस तरह हमारे पास खड़ी हो गयी जैसे वह अपना फ़ोटो खिचवाने के लिये हमारे कैमरे के सामने खड़ी हो। हमने उन महिला का फ़ोटो भी ले लिया। इसके बाद हम सीधे अपने कमरे पर पहुँच गये यहाँ हमारे साथी पहले ही आकर ड़ेरा जमा चुके थे। सबने अपना सामान लिया और अपनी-अपनी सवारी पर सवार होकर भरमौर के 84 मन्दिर को देखने के चल दिये। (क्रमश:)

हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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विपिन की मस्ती



ऊपर दुकान के सामान ले जाते हुए।






धन्छो के ठीक ऊपर वाला मार्ग


यह वही झरना है जहाँ शंकर जी अपनी जान बचाने के लिय छिपे थे?



तेज ढ़लान पर तेजी से उतरकर समझाते हुए

जय हो नाग देवता की

लगातार तीन मोड़ एक ही फ़ोटो में


हड़सर से आगे जाती हुई सड़क


माई की जय हो।

इस ट्रेकिंग का पहला और आखिरी फ़ोटों लगभग एक जैसे है, या अलग अन्तर बताओ।

4 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया फ़ोटोग्राफ़ी

संजय तिवारी ने कहा…

यादगार यात्रा व यादगार यात्रा विवरण।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

बार बार पढ़ने वाली सीरिज़ हैं ये।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

और भला कहाँ मिलेंगे ये नजारे..

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