सुन्दर नगर बस अडड़े पर जब हमें करसोग की बस मिलने की उम्मीद समाप्त होती दिखी तो हमने वहाँ बैठकर आगे की बात सोचनी शुरु की ही थी कि हिमाचल रोड़वेज की मनाली से रिकांगपियो तक जाने वाली बस आकर खड़ी हो गयी। हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह बस करसोग से होकर जायेगी। हमने अनमने मन से बस कंड़क्टर से पूछा कि यह करसोग के आसपास से होकर जायेगी कि नहीं। जब कंड़क्टर ने कहा कि यह करसोग के बस अड़ड़े पर उतारने के बाद वापिस मुख्य सड़क पर आयेगी, उसके बाद सैंज-रामपुर वाले रुट के लिये चली जायेगी। हमने यह भी पता किया था कि यह बस रिकांगपियो सुबह 5 बजे के आसपास पहुँचा देती है। हमने बस में घुसकर देखा तो सबसे आखिरी की सीट पर तीन सवारी लायक स्थान बचा हुआ था। हमने समय ना गवाते हुए, अपने बैग उन सीट पर रख सीट आरक्षित कर ली। चूंकि बस में गर्मी लग रही थी इसलिये हम बस के बाहर खड़े होकर बस चलने की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ आधे घन्टे बाद बस वहाँ से चल पड़ी। सुन्दर नगर से हमारी बस मन्ड़ी की ओर चलने लगी। लेकिन एक-दो किमी बाद ही हमारी बस दाँए हाथ की ओर मुड़ गयी।
करसोग बस अडड़े पर लगा सूचना पट |
हमारी बस में बस अड़ड़े से चलते समय ही काफ़ी भीड़ हो गयी थी लेकिन आगे चलकर इस बस में इतनी ज्यादा भीड़ हो गयी थी कि बीच में काफ़ी सवारियाँ बस में चढ़ने में असफ़ल रही। ड़ेली पैसैंजर बता रहे थे कि आज काफ़ी देर बाद बस आयी है जिस कारण इतनी मारामारी मची हुई है। यह मारामारी अगले 20-25 किमी तक लगातार बनी रही। बस लगातार जोरदार चढ़ाई पर चढ़ती जा रही थी। धीरे-धीरे अंधेरा होता जा रहा था जिससे बाहर के नजारे भी दिखाये देने बन्द हो रहे थे। अब बस में सिर्फ़ अन्दर सवारियाँ को देखकर समय पास करना पड़ रहा था। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ती रही, लोकल सवारियां बस से उतरती जा रही थी। अब चढ़ने वाली सवारियाँ कम ही आ रही थी जिससे बस में काफ़ी राहत दिख रही थी। सुन्दरनगर से करसोग की कुल दूरी 95 किमी ही है लेकिन जोरदार चढ़ाई वाला मार्ग होने के कारण यह दूरी तय होने में तीन घन्टे भी ज्यादा का समय लग जाता है।
इस मार्ग पर चलते हुए रोहान्ड़ा नाम की जगह आती है यहाँ से कमरुनाग नाम मन्दिर तक जाने का मार्ग आरम्भ होता है। यहां से मन्दिर ज्यादा दूर नहीं है यहाँ से मुश्किल से 7-8 किमी की दूरी पर यह मन्दिर है। अगर हम दिन में यहाँ गये होते तो इस मन्दिर की ट्रेकिंग अव्शय करते, लेकिन पता चला कि विपिन यहाँ जा चुका है इसलिये उसे अपने साथ दुबारा वहाँ तक लेकर जाना उसके साथ अन्याय होगा। मैंने बाद में इस मन्दिर के लिये फ़िर कभी आने का फ़ैसला किया। यह मन्दिर और शिकारी देवी मन्दिर दोनों एक साथ बीते सप्ताह में हो चुके है। यह मार्ग आगे जाकर शिमला से करसोग वाले मार्ग पर चिन्दी नामक सुन्दर सी जगह मिलता है। चिन्दी से दिन में करसोग घाटी नीचे दिखायी देती है। चिन्दी के बाद तेज ढ़लान उतरते हुए हमारी बस करसोग के बस अड़ड़े पहुंचती है। करसोग से कोई 5-6 किमी पहले एक मोड़ आता है वहाँ सनारली नाम गाँव से करसोग का मार्ग अलग हो जाता है। बस ने हमें करसोग में रात के नौ बजे के बाद छोड़ा था।
बस से उतरकर हमारा सबसे पहला काम एक कमरा तलाश करना था। पहले बस अडड़े के पास ही एक कमरा मात्र 250 रुपये में ही मिल गया। इसके बाद हमारा अगला लक्ष्य सोने से पहले भोजन तलाशने का था। मैंने बस के अन्दर से करसोग के अडड़े पर आते समय लगभग 100-200 मीटर पहले ही एक ढ़ाबा देखा था। लेकिन रात में करसोग में काफ़ी अंधेरा था जिस कारण यह अंदाजा लगाने में गड़बड़ हो गयी कि हमारी बस किस ओर से आयी थी। हम अंदाजे से दूसरी ओ चले, लेकिन आधे किमी जाने पर भी कोई ढ़ाबा नहीं मिला तो खोपड़ी में एक घन्टा बजा कि जाट देवता गलत दिशा में जा रहे हो। इतनी छोटी जगह से हमारी बस होकर नहीं आयी थी। वापिस बस अड़ड़े पहुँचे, और अबकी बार दुसरी दिशा में चलने लगे तो जल्दी ही हमें वह ढ़ाबा मिल गया जो मैंने बस के अन्दर से देखा था। हमने ढ़ाबे पर जाकर खाने के लिये कहा तो एक नई आफ़त आ गयी कि होटल वाली (कोई महिला थी) बोली कि आटा समाप्त हो गया है रोटी बनने में कुछ समय लगेगा। हमें भूखे मरने से अच्छा था कि वहां आटा गूथने का इन्तजार करे। खैर थोड़ी देर में आटा गूथने के बाद हमारे लिये रोटी बनकर आ गयी। उस भोजन का स्वाद साधारण ही था। खाना खाकर अपने कमरे पर वापिस पहुँच गये।
वहां ठन्ड़ नहीं थी इसलिये दिन भर की भगमभाग के कारण जो बुरा हाल हमारा हुआ था उससे पीछा छुड़ाने के लिये नहाना जरुरी था। नहा-धोकर सोने की तैयारी करने लगे। वहां उस कमरे में एक पंखा था जिसे चलाने के लिये कुछ जुगाड़ करने लगे तो उस कमरे की सारी बिजली गायब हो गयी। मोमबती जलाकर उसे ठीक किया। उसके बाद आराम से सोये। सुबह ठीक 5 बजे सोकर उठकर गये। नहाधोकर आज की अपनी मंजिल कामाख्या देवी के मन्दिर के लिये प्रस्थान कर गये। करसोग बस अडड़े से कामाख्या देवी मन्दिर 6-7 किमी दूरी पर था। पहले सोचा कि चलो बस में जायेंगे बस अड़ड़े पर कामाख्या जाने वाली बस का पता किया, एक घन्टे बाद बस आने की जानकारी मिली। हमने बस का इरादा छोड़ कर पैदल चलना शुरु कर दिया। आरम्भ में आधा किमी करसोग की आबादी से होकर चलते रहे उसके बाद आबादी छोड़कर खेतों वाला मार्ग पकड़ लिया। आगे चलकर यह पगड़न्ड़ी एक कच्ची सड़क में मिल जाती है।
इस कच्ची सड़क पर दो किमी जाने के बाद एक गाँव आ गया। वहाँ एक बार मन्दिर के मार्ग की जानकारी ली। उनके बताये पक्की पगड़न्ड़ी पर हमें बाँये हाथ मुड़ना था लेकिन आधे किमी जाने पर जब पगड़न्ड़ी नहीं मिली तो एक बार फ़िर एक ग्रामीण से कामाख्या मन्दिर का मार्ग पता किया। जिसने बताया कि आप आगे चले आये है मन्दिर जाने वाली पगड़न्ड़ी पीछे रह गयी है। हम वापिस आये और उस पक्की पगड़न्ड़ी पर आगे बढ़्ते गये। आगे जाकर हम खेतो से होकर बढ़ते रहे। खेत में काम करते हुए कुछ लोग भी मिले। यहाँ हमें नदी पर बने एक लकड़ी के पुल को पार कर आगे बढ़ना पड़ा। इस पुल को देखकर मुझे गंगौत्री में केदार गंगा पर बने पुल की याद आ गयी। पुल पार करने के बाद थोड़ी सी चढ़ाई आती है जहाँ से हमें करसोग से कामाख्या आने वाली सड़क मिल जाती है। करसोग से आने वाली बस इसी सड़क से होकर आती-जाती है। आगे सीधे हाथ चलते हुए एक और गाँव से होकर हम बढ़ रहे थे। हमने सोचा कि इसी गाँव में वह मन्दिर होगा लेकिन गाँव वालों ने बताया कि मन्दिर अगले गांव में है जिस कारण हम आगे चलते रहे।
आगे जाकर हमें एक गांव और दिखायी देने लगा इस गांव के मुख्य मोड़ पर जाते ही मन्दिर दिखायी दे गया। पहले जाकर तसल्ली से मन्दिर देखा उसके बाद वहाँ के पुजारी के पास बैठ गये। यहां के पुजारी मुझे अन्य पुजारियों से अलग लगे। जहां ज्यादातर पुजारी भिखारी की नीयत रखते है यहाँ के पुजारी में ऐसी कोई इच्छा नहीं थी। यहां के पुजारी के व्यवहार ने हमें बहुत प्रभावित किया अगर इसी प्रकार के अच्छे पुजारी मुझे मिलते रहे तो मेरी पुजारियों के प्रति भिखारी वाले रुप की भावना में बदालाव आ सकता है लेकिन एक-दो अपवाद स्वरुप मिलने से समस्या का हल नहीं हो पाता है। यहाँ के पुजारी ने बताया कि यहाँ आखिरी नवरात्र को एक भैसे की बलि भी दी जाती है। भैसे की बलि मन्दिर की सीढियों के सामने ही दी जाती है। हद है इन कुरुतियों की जो अंधविश्वास के चलते ना जाने कितने जीव जन्तुओं की जान ले लेती है। यहाँ हमारे पुजारी से विचार-विमर्श करते समय तीन-चार साधुओं की संगत में भी आधे घन्टे तक बैठने का मौका लगा। जो साधु यहां देवी कामाख्या के दर्सन करने आये थे उन्होंने बताया था कि आसाम/असम/असोम की कामाख्या देवी के दर्शन करने वाले को इस मन्दिर में दर्शन करने के लिये अवश्य आना चाहिए। (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।
करसोग घाटी, सामने गहराई में कामाख्या देवी मन्दिर है। |
बीच में एक गाँव का घर |
वाह कुदरत के खेल निराले |
पक्की वाली पगड़्न्ड़ी |
उसी मार्ग पर एक पत्थर का कमल |
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर चित्र..पाँव के जैसा पत्ता..
very silent and calm temple
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