गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Manimahesh trekking Hadsar/Harsar to Dhancho हड़सर से धनछो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-12                                                                        SANDEEP PANWAR

रात में हमने मणिमहेश की यात्रा के आरम्भ स्थल हड़सर में तीन कमरे 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय कर लिये। यहाँ हमें सिर्फ़ एक रात्रि ही हडसर में रुकना था, दूसरी रात्रि तो हमने ऊपर पहाड पर मणिमहेश झील के किनारे ही रुकने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। रात का खाना खाने के लिये हमें अपने कमरे से लगभग 300 मीटर पीछे  जाकर रात्रि भोजन करने के जाना पड़ा था। जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ पर सिर्फ़ काम चलाऊ कमरे थे। रात का खाना खाकर सोने के लिये कमरे में पहुँचे तो वहाँ पर हमने कमरे वाले से पीने के लिये पानी माँगा तो उसके नौकर ने दूसरे कमरे के शौचालय से ही बोतले भरनी शुरु कर दी थी उसे शौचालय से पीने का पानी भरता देख खोपड़ी खराब हो गयी। पहले तो उसे जमकर सुनाया उसके बाद उन बोतलों को वही फ़ैंक कर अपनी बोतले लेकर बाहर सड़क पर आ गये। खाना खाकर आते समय मैने एक नल से पानी बहता हुआ देखा था। उस नल से रात्रि में पीने के लिये काम आने लायक जल भरकर कमरे में पहुँचे। हमारे कमरे के बराबर से नीचे बहती नदी के पानी की जोरदार आवाज पूरी रात आती रही। सुबह पहाड़ पर 15000 फ़ुट की ऊँचाई 14-15 किमी में  चढ़नी थी। अपना नियम सुबह जल्दी चलने का रहता है इस बात को सबको बता दिया गया था। साथ ही चेतावनी भी दे दी गयी थी कि सुबह जो देर करेगा वो बाद में आता रहेगा। सुबह ठीक 6 बजे हड़्सर छोड़ देने का फ़ैसला रात में ही बना लिया था।

मानचित्र


यह भी

सामने ऊपर जाने वाला द्धार

सुबह चार बजे का अलार्म लगाकर सो गये। अलार्म किसी एक मोबाइल में तो लगाया नहीं था, इसलिये सुबह बारी-बारी से सभी के मोबाइल बजने लग गये। जो उठना नहीं चाह रहा था उसे रात वाली बात बता दी कि हम छोड़कर चले जायेंगे। फ़िर अकेले आते रहना। इसलिये अकेले चलने वाली बात सुनकर सभी जल्दी ही तैयार होकर कमरे से बाहर आ गये। आज की रात ऊपर झील पर ही रुकना था इसलिये सबने अपना सभी सामान एक कमरे में रखकर उसका ताला लगा दिया। यहाँ पर मुझे लग रहा था कि मणिमहेश की भयंकर चढ़ाई से हमारे 12 में से 2-3 बन्दे बीच में से ही वापिस लौट आयेंगे। इसलिये चाबी मैंने उस बन्दे को लेने को कहा जो सबसे आखिर में चलेगा। सबसे आखिर में मैंने चलने का फ़ैसला किया। चूंकि पहाड़ पर चढ़ने में अपुन को मजा आता है। इसलिये मैंने सबको कहा कि तुम लोग आगे निकल जाओ मैं तुम्हे पकड़ लूँगा। मेरे साथ विपिन व विधान रह गये बाकि सभी 9 बन्दे (बन्दी कोई नहीं थी) हमने अपने से लगभग आधे घन्टे पहले ही पद यात्रा के लिये रवाना कर दिये। इस यात्रा में मुझे मराठे में संतोष तिड़के व गाड़ी वालों में राजेश जी कमजोर कड़ी लग रहे थे। इन लोगों के बारे में मैंने सोचा हुआ था कि ये दोनों रात ऊपर झील पर तो नहीं हड़सर में बिताने जरुर वापिस आ जायेंगे। 


प्रवेश द्धार का घन्टा

नीलकंठ की जय


हमें हड़सर से आगे अगले दो दिनों तक किसी भी तरह के नेटवर्क की पहुँच से दूर रहना था इस लिये सबको रात में ही अपने-अपने घर फ़ोन करने के लिये कह दिया गया था। साथ ही यह भी बताने को कहा था कि अगले दो दिन तक हमारे मोबाइल काम नहीं करेगे। यहाँ सभी मोबाईल नेट्वर्क वैसे भी काम नहीं करते है सिर्फ़ रिलायंस, BSNL, व आईडिया ही इस समय कार्य कर रहे थे। कमरे में कभी कभार ही नेट्वर्क आ रहा था इसलिये बात करने के लिये बाहर सड़क पर आना पड रहा था। सुबह एक दुकान जल्दी खुल गयी थी उस दुकान से सभी ने दिन भर की पद यात्रा के खाने-पीने की व अन्य जरुरी सामान लेकर अपने बैग में ड़ाल दिया था। पहाड़ों में चढ़ने का हमारी इस छोटी सी मंड़ली में केवल चार लोगों का ही अनुभव था। इसलिये चार में से तीन सबसे बाद में चले थे बाकि आधा घन्टा पहले ही जा चुके थे। अखिरकार हमने भी जयकारा लगा कर अपनी पद यात्रा आरम्भ कर दी। सड़क किनारे ही यहाँ पर एक प्रवेश द्धार बनाया गया है जिसे पार करते ही चढ़ाई शुरु हो जाती है। शुरु में एक किमी तक चढ़ाई थोड़ी आसान ही थी जिस कारण ज्यादा मुश्किल नहीं आती है। जहाँ यह पगड़न्ड़ी खच्चर वाली सड़क में मिलती है वहाँ से आगे जो चढ़ाई आरम्भ होती है वो अकल्पनीय है।







ओये ऐसा क्यों किया?
बर्फ़ से आच्छादित पर्वत की एक झलक






दूध का झरना






शुरु के एक किमी के बाद खच्चर वाला मार्ग भी इसी पैदल वाले मार्ग मे मिल जाता है यहाँ से आगे दोनों मार्ग एक ही बन जाते है। हम तीनों अपनी मस्त (हाथी वाली) चाल से चढ़े जा रहे थे। विपिन की पहाड़ पर चढ़ते समय बढ़िया चाल रहती है जिसे मैंने पहले भी श्रीखण्ड़ कैलाश यात्रा में देखा हुआ है। विपिन उतराई में मुझसे भी ज्यादा सावधानी से उतरता है। चढ़ाई के मामले में विपिन मेरी बराबरी का है। मुझे अब तक कई बन्दे ऐसे मिले है जो चढ़ाई में मुझसे बेहतर थे। ऐसा ही एक बन्दा मेरे साथ गुजरात में जूनागढ़ में गिरनार के पर्वत पर गया था। उसे बन्दे को देख मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ था। वह अलग बात है कि उसका वजन मुझसे 30 किलो कम था। विधान यहाँ हमारे साथ पहली बार किसी यात्रा पर आया था। इससे पहले विधान नीरज के साथ कई यात्रा कर आया है। बकौल नीरज के वृतांत मैंने समझा था कि विधान भी नीरज की तरह चढ़ाई के मामले में काफ़ी ढ़ीला-ढ़ाला किस्म का इन्सान होगा। लेकिन मेरा यह भ्रम शुरु के चार किमी की जोरदार चढ़ाई में ही टूट गया था। अपनी इस टोली में विधान को मैंने अपने जैसा हँसमुख, मोटा, मस्त, इन्सान पाया। विधान जैसे मस्त लोग मुझे कम ही मिले है। नीरज भी कुछ हद तक हँसमुख है लेकिन वह दूसरों की बेइज्जती करने पर जल्द ही आमादा हो जाता है इसलिये मैं पहले विधान को भी वैसा ही समझता रहा, लेकिन साथ जाने पर पता लगा कि विधान तो एक हीरा है। विपिन हीरे का साथी मोती सरीखा है। मनु की गिनती भी मोती में की जाती है। रही बात मेरी, तो जाट तो सबकी खड़ी कर दे खाट, जहाँ जाट वही ठाट। जाट तो कोई भी हो (केवल मैं ही नहीं) मनमौजी व लड़ाकू होते है। अत: जाटों के नाम से अच्छों-अच्छों की खोपड़ी सुलग जाती है। हा हा हा। जाट उस बला का नाम है जिससे दुनिया ड़रती है। जिसे मेरी बात पर संदेह हो वो मुगलों का लिखा इतिहास एक बार पूरा पढ़ ले उसके बाद बात करे।

नदी है या दूध की धार, कोई दिख रहा है?

पीछे बलवान को देखो बीड़ी पीने में लगा है आगे उसकी सारी हवा निकलेगी

थक गये, तो कुछ पल विश्राम करो

यह आलसी की नकल है।

अब यात्रा पर आगे बढ़ते है। हम तीनों ऊपर लगातार बिना रुके चले जा रहे थे। कोई 2 किमी जाने के बाद हमें गाड़ी वाले तीनों प्राणी दिखाये देने लगे। दूर से देखने पर लग रहा था जैसे कोई वापिस आ रहा हो। यहाँ मणिमहेश पर्वत से आने वाली यह नदी देखने में दूध की नदी जैसे लग रही थी। ऐसी ही दूध की नदी मैंने फ़ूलों की घाटी व हेमकुंठ साहिब जाने वाले मार्ग पर देखी थी। हम चलते हुए फ़ोटो लेते जा रहे थे। एक जगह नदी झरने जैसी दिखाई दे रही थी यहाँ रुककर फ़ोटो लिये गये। इसके बाद ऊपर की ओर चल दिये। बीच-बीच में मस्ती की पाठशाला भी चालू थी। जब सारे मुस्टन्ड़े हो तो थोड़ी बहुत सेक्सी मजाक भी चलती रहती है हमारी ट्रेकिंग भी उसका अपवाद नहीं रहती है। जब दिल्ली वाले बोले तो गाड़ी वाले तीन प्राणी स्पष्ट दिखायी दिये तो हम जल्दी ही उनके पास पहुँच गये। अब आगे की दो किमी से ज्यादा की यात्रा हमने उनके साथ आरम्भ की। गाड़ी वाले राजेश जी चढ़ाई में काफ़ी परेशानी महसूस करने लगे थे। उनका नवजवान फ़ुटबालर लड़का भी इस चढ़ाई में बेहाल हुआ जा रहा था। विपिन को हमने आगे भेज दिया, मैं और विधान इनके साथ चलते रहे। काफ़ी देर तक साथ चलने के बाद लगने लगा कि यह तीनों ऊपर पहुँचने में रात कर ही ड़ालेंगे। आगे जाकर नदी का पुल पार करना होता है इस पुल के बाद एक जोरदार चढ़ाई आती है जिसके बाद धन्छो नामक जगह आ जाती है। गाड़ी वाले शुरु के 4-5 किमी चढ़ने में ही बेहाल हो गये थे। वे हर थोड़ी देर बाद बैठकर सुस्ताने लगते थे। गाड़ी वालों ने यहाँ आने से पहले किसी किस्म की कोई शारीरिक व मानसिक तैयारी इस यात्रा के लिये नहीं की थी। लेकिन बिना तैयारी के इतनी ऊँचाई तक पहुँचना भी अपने आपमें एक उपलब्धि थी। मैंने इस पुल को पार करने के बाद विधान के हवाले गाड़ी वालों को कर दिया। विधान व गाड़ी वालों को वही छोड़कर मैंने धनछों की ओर अपना टॉप गियर लगा ड़ाला। बाकि यात्रा अगले लेख में बतायी जा रही है। (क्रमश:)


यह सरदार जी बहुत बड़े घुमक्कड़ है।
मोहित पापा से कह रहा है, पापा संदीप जी चक्कर में कहाँ आन फ़ँसे?


हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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6 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

आज तो सारे गुदड़े विधान पै ही लाद दिए :)

संजय तिवारी ने कहा…

अब आयेगा, मणिमहेश यात्रा का असली आनन्द तो आपकी टोली में देखते है कितने हिम्मत हार कर वापिस आते है?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ओस की बूँदें..बहती कलकल धार..वाह..

राजेश सहरावत ने कहा…

गाड़ी वालो की धुलाई चालू है

Yogi Saraswat ने कहा…

नदी सच में दूध जैसी सफ़ेद लग रही है !!

maratha ka safarnama ने कहा…

बहोतही बढीयॉ
छा गये संदीप भाऊ

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