रविवार, 14 अप्रैल 2013

kangra vally to Dalhousie कांगड़ा घाटी से ड़लहौजी मार्ग पर सड़क पर बिखरे मिले खूब सारे पके-पके आम।

हिमाचल की स्कार्पियो-बस वाली यात्रा-05                                                                 SANDEEP PANWAR
ज्वाला जी मन्दिर में जलती हुई ज्वाला रुपी ज्योत के दर्शन कर, वापिस उसी स्थान पर आ गये, जहाँ मराठों की बाइक पार्किंग में खड़ी थी। अब आगे की यात्रा लगभग साथ ही करनी थी इसलिये हम भी उनके साथ ही गाड़ी में चलते रहे। कुछ आगे जाने पर मनु-विधान-विपिन- व संदीप को बाइक पर यात्रा करने की सनक सवार हो गयी। आगे जाकर बाइक वालों को रुकवाकर गाड़ी में बैठाया गया। अब हम चारों ने बाइक पर कब्जा जमा लिया। दो दिन से गाड़ी में अन्दर घुसकर बैठे थे इसलिये घुटन सी महसूस होने लगी थी। बाइक चलाने के दो महारथी बाइक चलाने लगे, मेरे पीछे विपिन बाइक का लगभग अनाड़ी सवार था जबकि मनु के पीछे बाइक चालक विधान सवार हो चुका था। हमने लगभग 100 किमी की बाइक यात्रा उस दिन की होगी। बाइक चलाने के लिये यह पठानकोट-मंड़ी वाला हाईवे पहाड़ पर सर्वोत्तम मार्ग है। इस मार्ग के किनारे पर गहरी खाई कभी कभार ही आती है। इस सडक पर अंधे मोड़ भी मुश्किल से ही दिखाये देते है। ज्यादा ऊँचा नीचा भी नहीं होता कि अब चढ़ाई आयी अब उतराई। इतना कुछ होने के बाद भी हरियाली के मामले में यह किसी भी अन्य पहाड़ी मार्ग से कम सुन्दर दिखायी नहीं देता है। चूंकि मैंने इस मार्ग पर पहले भी अपनी बाइक से यात्रा की हुई है इसलिये मुझे इस मार्ग के बारे में काफ़ी मालूम था।

बाथू खड़ नामक स्थल पर पहली बार इतने नजदीक सड़क व रेल आती है।

लगता है रेल अभी नहीं आयेगी



बाइक मिलने के बाद चेहरे पर चमक

सड़क पुल से रेलवे पुल का फ़ोटो

यही स्थान है

कच्ची सुरंग, कई साल से ऐसी ही है

जर्जर पुल

पुल की हालत ड़ावाड़ोल थी
हम बाइक पर सवार होते ही तेजी से लेकिन सुरक्षित बाइक दौड़ाने लगे। आज बाइक पर नीरज जैसा ड़रपोक इन्सान नहीं बैठा था। इसलिये बाइक को खुली सड़क मिलते ही 70-80 की गति पर भी भगाया गया था। इस मार्ग पर हमें सड़क किनारे कुछ लोग पके हुए आम बेचते हुए मिल रहे थे। हमने पहले तो एक आम वाले से आम खरीद कर खाये गये थे। लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे आम के पेड़ व उनके नीचे गिरे हुए पके आम सुनसान सड़क पर मिलते जा रहे थे। शुरु में हमने सोचा कि यह आम के पेड़ किसी के होंगे लेकिन जब ध्यान दिया कि नहीं यह सड़क किनारे उगे हुए है यह सरकारी आम के पेड़ है। चूंकि इन आमों की नस्ल के आम बहुत ज्यादा बड़े नहीं हो पाते है इसलिये ये आम बाजार में बिक्री के उपलब्ध नहीं है। जब बाजार में बड़े-बड़े आम उपलब्ध हो तो छोटे-छोटे आम को कौन खरीदना चाहेगा? हमने आम शायद 10 रुपये किलो के हिसाब से लिये थे, लेकिन आगे जाने पर हमने खुद बाइक रोक-रोक कर सड़क किनारे आम के पेड़ के नीचे से अच्छे-अच्छे आम तलाश कर एकत्र कर लिये थे। ऐसे आम गाड़ी में बैठने वालों को कहाँ नसीब हो पाते होंगे? एक जगह नदी पर एक पुराना पुल दिखायी दिया, उसकी हालत बहुत दयनीय हो चुकी थी। यहाँ हमने एक दुकान पर रुककर ठन्ड़ा-चाय, जिसने जो पीना था उसने वो पिया था। अभी अंधेरा होने में लगभग घन्टा भर  का समय भी नहीं था, इसलिये आगे चले गाड़ी वालों बताया गया कि नूरपुर में रात्रि विश्राम किया जाये।

बीच में कही नया पुल बनाया जा रहा था

सायंकाल आकाश की चमक
हम रात में ठहरने के लिये नुरपुर एक होट्ल में रुक गये थे। होटल में रुकने से पहले यहाँ हमारे साथ एक घटना घटित हुई थी। चलिये आपको पहले उस घटना के बारे में ही बताता हूँ कि जब अंधेरा होने वाला था तो हम सभी नुरपुर तक ही पहुँच पाये थे, आज की कोशिश तो चम्बा पहुँचने की थी लेकिन दिन में दो मन्दिर देखने के कारण यहाँ पहुँचने में ही अंधेरा हो गया था। यहाँ कमरा तलाश करने के लिये हमने दो ग्रुप बनाये थे एक ग्रुप में संदीप, राजेश तो दूसरे ग्रुप में मनु और एक मराठा, हम दोनों पैदल ही आसपास के कमरे तलाश कर रहे थे जबकि मनु बाइक पर काफ़ी दूर तक चला गया था। यहाँ हमें चम्बा रोड़ पर ही दो-तीन होटल दिखायी दिये थे। हमने एक होटल में 500 रुपये प्रति बैड़ के हिसाब से तीन कमरे तय कर उसे पैसे भी दे दिये। मेरे ध्यान में यह बात नहीं आयी कि मनु भी कमरा तलाश कर रहा होगा। मनु को फ़ौजी निवास में मात्र 200 रुपये में ही बढ़िया कमरे मिल गये थे। अब मनु की बात सुनकर हमने होटल वाले से बात की, लेकिन होटल वाला हमें 100-200 कम करके तो क्या आधे रुपये भी लौटाने को तैयार नहीं हुआ। मजबूरन हमें उसी होटल में ठहरना पड़ा। नहाने व सोने के लिये तो होटल ठीक था लेकिन वहाँ बाद में पता लगा कि 500 रुपये में तो उससे भी शानदार कमरे पास वाले होटल में मिल सकते थे। खैर आगे के लिये एक सीख मिल चुकी थी। इसलिये अब मैं कही भी जाता हूँ तो पहले 5-7 जगह कमरे के दाम पता करके ही कमरा बुक करता हूँ।




रात को हम लोग जहाँ ठहरे थे वहाँ एक कमरे में गाड़ी वाले तीन लोग सो गये, एक कमरे में मराठे कब्जा जमा गये, अब बचा तीसरा कमरा, तीसरे कमरे में मनु, विधान, विपिन, विधान का दोस्त और मैं। एक ड़बल बैड़ के कमरे में चार लोग आसानी से सो सकते है। इसलिये हमें उस कमरे में सोने की कोई समस्या नहीं थी लेकिन यहाँ तो हम 5 हो गये थे। जबकि गाड़ी वालों के कमरे में तीन ही बन्द थे लेकिन उस कमरे में कोई जाने को तैयार नहीं हुआ। सबको ज्यादा दिक्कत ना हो इसलिये फ़ैसला हुआ कि एक बन्दा फ़र्श पर चददर बिछाकर सोयेगा। यहाँ फ़र्श पर सोने वाले भी कई तैयार बैठे थे, लेकिन मैंने बड़े होने का फ़ायदा उठाया और बैड़ से चददर लेकर उस फ़र्श भी बिछाकर आराम से पैर फ़ैला कर एक पंखे के नीचे अकेला सोया था जबकि अन्य सभी पंखे की हवा का बटवारा कर आनन्द उठा रहे थे। रात में मस्त नीन्द आयी थी इसलिये सुबह सही समय उठकर नहाने धोने के कार्य से निवृत हो गये थे। सुबह चलते समय मैंने सोचा कि अभी कुछ किमी तक तो बाइक मैं ही चलाऊँगा।

वाह जी इनकी भी लाईन लग गयी।



यह फ़ूल मार्ग में कही मिले थे।


सुबह का समय और बाइक की सवारी करने का लुत्फ़ ही निराला इस बात को बस या कार में यात्रा करने वाले भला कहाँ जान पायेंगे? मैंने संतोष की बाइक ली हुई थी, यह वही बाइक है जो संतोष लेह-लददाख लेकर गया था। इस बाइक से संतोष महाराष्ट्र के नान्देड़ से कई लम्बी यात्रा कर चुका है। मराठे दोस्त हर दो साल बाद बद्रीनाथ यात्रा पर जरुर आते है। ज्यादातर बाइक से ही आते है। सुबह कुछ दूर चलते ही कल की तरह आम के पेड़ दिखायी देने लगे। आज और कल में एक अन्तर था आज कोई आम बेचने वाला नहीं बैठा था, बल्कि आज तो सुबह का समय होने के कारण पके हुए आम सड़क के किनारे पर व बीच सड़क पर खुले आम बिखरे हुए थे। हमारे पास कोई पन्नी भी नहीं थी इसलिये पहले तो हमने उतने ही आम उठाये जितने हमारे हाथों में समा सकते थे, कुछ आगे चलते ही एक पन्नी दिखायी दी हमने उस पन्नी को पके हुए आमों से भर लिया था। अबकी बार गाड़ी में मराठे बैठे थे, गाड़ी हमसे पीछे ही थी जिस कारण हम मस्ती लेते हुए चले जा रहे थे। मेरे पीछे बैठा हुआ विपिन आम खाये जा रहा था, उसे आम का स्वाद लेते देख मैंने कुछ दूर चलने के बाद बाइक एक छोटे से मन्दिर के सामने रोक दी। यहाँ रुककर हमने पन्नी के लगभग सारे आम चूस ड़ाले थे। आम से सुलटने के बाद मैंने बाइक ड़लहौजी की ओर दौड़ा दी। कुछ आगे चलने पर (क्रमश:)




हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपके भ्रमण वृत्तान्तों से देश अधिक जाना पहचाना लगने लगा है।

Maheshwari kaneri ने कहा…

चलता चल राही राही यही जीवन है..

ASHWANI ने कहा…

हिमाचल को सही से देखना हो तो वंहा की शादी समारोह को देखना चाहिए

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