ड़लहौजी
से आगे लकड़मन्ड़ी में हमारी तीनों गाड़ी एक स्कारपियो व दो बाइक से वन विभाग ने अपना
टैक्स वसूल किया था, लेकिन उसके बिल्कुल पास में ही काला टोप जाने वाला मार्ग अलग
होता है यहाँ पर हमें एक बार फ़िर टैक्स जमा कराना पड़ा। पहले तो सोचा कि चलो 300 रुपये
बच जायेंगे, 3 किमी
ही तो है, पैदल ही चलते है। लेकिन फ़िर विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि यदि यहाँ पर 6 किमी
आने जाने में ही दो घन्टे से ज्यादा लग जायेंगे फ़िर तो आगे की यात्रा में आज भरमौर
तक पहुँचना सम्भव नहीं हो पायेगा। इसलिये वहाँ से काला टोप के लिये गाड़ी का शुल्क
अदा कर गाड़ी में ही काला टोप पहुँच गये।
काला टोप का बंगला |
कैसा लगा? |
इस कोण से |
नजदीक से |
यह
मार्ग एकदम कच्चा ही है यहाँ इस कच्चे मार्ग पर यात्रा करने का अलग ही सुकून है।
जंगल में हमारे अलावा कुछ तीन-चार लोग इस तीन किमी के कच्चे मार्ग में दिखाई दिये
थे। गाड़ी को कालाटोप के अंग्रेजी काल के समय में बने हुए बंगले के बाहर ही पार्क
कर हमने अन्दर प्रवेश किया। बंगला बाहर से देखने में ही बहुत भव्य दिखाई दे रहा
था। हम जैसे-जैसे बंगले की ओर बढ़ते जा रहे थे ठीक वैसे ही हमें वहाँ की प्राकृतिक
सुन्दरता अपने आगोश में समेटती हुई प्रतीत होती जा रही थी। बंगले के सामने पहुँचते
ही हमें वहाँ पर लकड़ी का बना हुआ एक बोर्ड़ दिखाया दिया, जिस पर इस बंगले के बनने
का वर्ष लिखा हुआ था। अप भी फ़ोटो में इस बंगले के बनने का वर्ष देखिये।
वाह |
शिवालिक की तितलियाँ |
1925 में बना, 8000 फ़ुट ऊँचाई पर स्थित |
बंगले
की लकड़ी की दीवार पर बहुत सारी तितलियों के चित्र लगे हुए थे। जिससे हमें जानकारी
मिली कि यहाँ कितने प्रकार की तितलियाँ देखने को मिल सकती है। बंगले का पहरेदार या
संरक्षक उस समय वहाँ नहीं था जिस कारण हमें बंगला बन्द मिला और हम बंगला अन्दर से
देखने से वंचित रह गये। बंगले के बाहर काफ़ी बड़ा खुला हुआ हरा भरा मैदान बनाया हुआ
है। इस मैदान के कारण इस बंगले की शान में चार नहीं कई चाँद लग जाते है। हरे भरे
मैदान में हमारी टीम काफ़ी देर तक टहलती रही। यहाँ इस मैदान में दो लोग कुछ बेच रहे
थे। पास जाकर पता लगा कि वे पलम व खुमानी बेक रहे है। हमने एक 1
किलों व दूसरी आधी किलो ले ली थी। इन ताजे पहाड़ी फ़लों के रस्सोवादन का आनन्द उठाते
हुए हमने वहाँ काफ़ी देर तक चहल कदमी करने में किसी किस्म की कोई ओर कसर नहीं छॊड़ी
थी।
बताओ कौन-कौन गायब है? |
जब
वहाँ घूम कर सब कुछ देख लिया गया तो फ़ोटो सेसन की बारी आयी। सबको एक जगह बुलाया
गया। राजेश सहरावत व उनके दोस्त खरगोश के साथ खेलने व फ़ोटो खिचवाने में मस्त थे।
उन्हे भी आवाज देकर समूह के फ़ोटो में शामिल होने के लिये बुला ही लिया। वैसे वे
फ़ोटॊ खिचवाते ही पुन: खरगोश के पास जा पहुँचे थे। यहाँ विधान-मनु-विपिन-संतोष के
पास कैमरे थे। जिस कारण मैं और विधान सबके फ़ोटो लेने के लिये एक तरह खड़े हो गये।
बाकि सारी टीम एक तरह सृरजमुखी के फ़ूलों के पास खड़ी हो गयी। मैंने सबके कैमरों से
बारी-बारी से सभी के फ़ोटो ले लिये थे। यहाँ मेरा फ़ोटो ही कोई नहीं ले पाया था या
मेरे पास ही मेरा ही फ़ोटो नहीं है। आखिरकार कुछ देर तक फ़ोटो सेसन चलता रहा।
वर्षा मापन यंत्र |
अपने
एक पुराने साथी, जो हमारी इस हमारी यात्रा में छुट्टी का तालमेल नहीं बैठने के
कारण साथ नहीं जा पाया था, उसने इस यात्रा की पूरी टीम को ही रेवड़ की संज्ञा दी थी।
जिसे पाठक को मालूम नहीं है कि रेवड़ किसे कहते है उसे बता देता हूँ कि रेवड़ भेड़
बकरियों के झुन्ड़ को कहा जाता है। अपने उस गड़रियाँ रुपी दोस्त का यहाँ नाम नहीं ले रहा हूँ
क्योंकि उस दोस्त की तो यह आदत सी बन चुकी है कि चाहे उसका दोस्त हो, खुद हो या
उसका परिवार उसे सिर्फ़ उनकी इज्जत की खिल्ली उड़ाने में ही चैन आता है? ऐसा कारनामा उसने कई
बार दोहराया भी है, लेकिन उस दोस्त ने हमारी मनमौजी टोली के जो शब्द चुना, उससे हमें उसकी मानसिक हालत समझने को जरुर मिली। मेरे अभी तक 22 साल
1991 से के घुमक्कड़ी भरी यात्रा जीवनकाल में कई प्राणी इसी मानसिकता के मिल चुके है। चलिये इस बात यही छोड़ कर अपनी मस्ती वाली घुमक्कड़ी पर आगे बढ़ते है।
मस्ती लिये जाओ |
काला टोप का वन |
नाग नहीं है |
यहाँ
पर लगभग दो घन्टे बिताकर हम वापिस चल दिये। वापिस चलते समय विपिन और मैं काफ़ी दूर
तक उस कच्चे मार्ग पर पैदल निकल आये थे हमने गाड़ी वालों को पहले ही बोल दिया था कि
हम तुम्हे लकड़ मन्ड़ी में मिलेंगे। इसलिये हम उनसे काफ़ी देर पहले ही पैदल निकल आये
थे। यहाँ विपिन मुझसे काफ़ी आगे चल रहा था। पैदल घनघोर जंगल में यात्रा करने में एक
अलग ही अनुभूति प्राप्त होती होती है। जंगल में पैदल चलते समय जंगली जानवरों व
वहाँ रहने वाले प्राणियों के जीवन के बारे में विचार मन में आते रहते है। जबकि
गाड़ी में बैठकर यात्रा करते समय सिर्फ़ नजारे देखने में व्यस्त रहते है। अगर हम
जंगल में यात्रा कर रहे है और जंगली वातावरण के बारे में कोई विचार ना करे तो जंगल
में जाना बेकार है। चलिये अब आगे चलते है। (क्रमश:)
फ़िर मत कहना कुछ बताया नहीं था |
साइकिल लिखी है मिलने की उम्मीद में ना रहे |
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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6 टिप्पणियां:
कालाटॉप में बड़ा आनन्द आया था हमें..
Beautiful Pictures....
बहुत ही खूबसूरत लेख व चित्र, मज़ा आ गया...
तसल्ली से घूमे हैं इधर। कालाटोप-खजियार-चंबा रूट के रास्ते सबसे अच्छे लगे थे, मन करता था सफ़र कभी खत्म ही न हो।
डायनकुंड\डायनाकुंड भी गये थे क्या?
Himachal Ki bhi saari post dekh rahaa hoon
वाह क्या प्राकृतिक सोंदर्य
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