सोमवार, 1 अप्रैल 2013

Hanuman cave and Jain cave हनुमान गुफ़ा व जैन गुफ़ा।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-07                                                                    SANDEEP PANWAR


वापसी की कहानी में काफ़ी मजेदार रही, चढ़ाई में जहाँ साँस फ़ूलने की समस्या आ रही थी। वापसी में ऐसी कोई बात नहीं थी लेकिन वापसी में ढ़लान में उतरना हमेशा जोखिम भरा होता है, कारण हमारा शरीर उतराई की ओर गतिमान होने के कारण यदि हल्का सा झटका भी नीचे की ओर लगता है तो वह काफ़ी खतरनाक साबित हो सकता है। शुरु की कुछ दूरी तो समतल सी भूमि पर ही है इस कारण वहाँ पर ज्यादा खतरा नहीं था। लेकिन जहाँ से उतराई शुरु हो रही थी वहाँ पर तेज ढ़लान होने के कारण सावधानी बरतने की नौबत आ गयी थी। यह तो शुक्र रहा कि इस जगह पर बारिश का मौसम नहीं था। नहीं तो ऐसी जगह बारिश के कारण यदि फ़िसलन भी हो जाये तो फ़िर नानी याद आने में ज्यादा देर नहीं लगती है। मैं सावधानी से नीचे वहाँ तक उतर आया जहाँ तक सीढ़ियाँ बनी हुई थी। मैंने सीढ़ियाँ समाप्त होते ही अपनी गति में अपनी स्टाईल वाला गियर लगाया ही था कि विशाल जैसा कोई बन्दा मुझे तालाब किनारे बैठा हुआ दिखाई दिया। मैंने रुककर देखना चाहा कि यह हरी कमीज में विशाल ही है या कोई और? मैं उस बन्दे के मुड़ने की प्रतीक्षा में कुछ पल वही खड़ा रहा। जैसे ही वो बन्दा मुड़ा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा। वह विशाल ही था।

हनुमान का नया अवतार। विशाल राठौर, बोम्बे वाला।



जोर लगाके हईसा।

गदा वाला कहाँ गया?

जय हो। जो भी हो।

गुफ़ा के अन्दर से बाहर का नजारा।

ध्यान रखना यही मार्ग है।
आश्रम में हमारा क्या काम?
इस यात्रा के सारे फ़ोटो विशाल ने ही खींचे है। जब मैंने विशाल को वहाँ देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। मैंने कहा अरे तुम यहाँ कैसे? मैं तो समझ बैठे था कि तुम वापिस लौट गये हो। विशाल ने मेरी बात का जवाब दिये बिना कहा कि पानी की बोतल में पानी बचा है कि नहीं! मैंने कहा हाँ अभी आधी बोतल बची हुई है। तो विशाल ने कहा कि पहले पानी पिलाओ। मैं प्यास से मरा जा रहा हूँ। मैंने अपने साथ ले जायी पन्नी से पानी की बोतल निकाल कर विशाल को दे दी। विशाल एक झटके में पानी की आधी बोतल गटक गया। इसके बाद विशाल बोला कि मुझे प्रेशर लगा है, मैं इस बोतल को इस तालाब के पानी से भरकर हल्का होने जा रहा हूँ। मैंने कहा देख भाई यहाँ वैसे ही पीने का पानी नीचे जाकर मिलेगा। तुम्हे प्रेशर लगा है तो अगर दूसरी बोतल नहीं मिली तो इसी बोतल को जरुरी काम के लिये ले जाना। विशाल ने कहा कि वह काफ़ी देर से झील के आसपास पानी की बोतल तलाश कर रहा है लेकिन उसे कोई पुरानी बोतल नहीं मिली। खैर मैंने उसे एक बोतल तलाश करके दे दी।


वापिस आ गये, झरोखों की दुनिया में।
एक फ़ोटो इस पेड़ पर भी होना था।
अब प्रेशर वाली बात से इस यात्रा की एक घटना और याद आयी कि जब हम मन्चर में होटल तलाश कर रहे थे तो वहाँ एक होटल से कमरे की हाँ-ना किये बिना विशाल ने अपने आपको हल्का कर लिया था। जव विशाल हल्का होकर आया तो होटल वाला कमरे के 700 रुपये माँग रहा था। हमने 500 बताये तो होटल वाला अड़ गया कि मैंने पहले 700 बताये थे अब तुम्हे अपना पेट साफ़ करना था यह बात पहले बतानी थी। अब तो तुम्हे 700 ही देने पड़ेंगे। मैंने होटल वाली की गंदी नीयत देखते हुए वहाँ से चलना बेहतर समझा। हमने वहाँ विशाले के पेट साफ़ करने के बदले 200 रुपये का भुगतान कर अपना पीछा छुड़ाया। बाद में हमने रात वहाँ से 80 किमी दूर जाकर बितायी थी। विशाल ने बताया कि इस होटल में प्रयोग किया टायलेट उसकी जिन्दगी का अब तक सबसे मंहगा टायलेट साबित हुआ है। इसी बात पर बाद में कई बार मैंने विशाल की टाँग खिचाई की थी। खैर यह तो पेट सफ़ाई वाली बात, अब चलते है नीचे अपनी मंजिल की ओर।

अच्छा भाऊ, मस्ती हो रही है।

आ गया मैदान भी।

यही से आये थे ना।

उतरते रहो।, सम्भल कर।

लो जी फ़िर से आ गी, सुरंग जैसी घाटी।
तालाब के पास से विशाल ऊपर की ओर बोतल लेकर चला गया था। इसके बाद मैंने अपनी खाली पन्नी उठायी और नीचे की ओर चल दिया। बीच में स्कूल के बच्चे एक बार फ़िर मुझे मिले थे लेकिन अबकी बार उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। यहाँ विशाल से अलग होने के बाद मैंने अंदाजा लगाया कि अभी विशाल आखिरी मन्दिर तक जाने में कम से कम पौना घन्टा लगायेगा। इसके बाद वापिस आने में नीचे तक डेढ़ घन्टा लग ही जायेगा। इसलिये अब मुझे भी नीचे जाने की कोई मारामारी नहीं मचानी थी। मैं आराम से नीचे उतर गया। एक जगह मुझे एक लड़का मिला उसने मुझे मराठी में कुछ कहा तो मैंने कहा हिन्दी में बोलो तो जवाब दे सकूँगा। आखिर कार उसने हिन्दी में कहा कि क्या आपने कुछ लड़को को आते हुए देखा है? मैंने कहा कि हाँ कुछ लड़के ऊपर जा रहे थे लेकिन इस बात को आधा घन्टा से ज्यादा हो गया है इसलिये वे अब नीचे आने लगे गये होंगे। लेकिन उन्हे यहाँ तक आने में अभी घन्टा भर लग जायेगा। उसने मेरी बात नीचे घाटी में सड़क किनारे बैठे अपनी बुजुर्ग माँ-बाप को जोर से आवाज जेकर बतायी तो उन्होंने कहा कि ठीक है तु भी यही आकर इन्तजार कर ले। वह लड़का भी मेरे साथ ही नीचे तक आ गया था।

यहाँ गुफ़ा में कुछ जरुर है।

यू ना होता तो समझन में दिक्कत आनी थी।
मैं नीचे आकर उस जगह बैठ गया जहाँ से इस जगह जाने के लिये सीढ़ियाँ आरम्भ होती है। यहाँ एक नीम्बू वाला बैठा हुआ था इसलिये मैंने उससे दो गिलास नीम्बू पानी बनवाकर पिया था। उसके बाद मैं दो घन्टे का समय मानकर अपने जूते निकाल कर आराम करने बैठ गया। वहाँ एक बकरी वाला अपनी बकरियों के झुन्ड़ को लेकर छाँव में बैठा हुआ था। उन दो घन्टे में मैंने पहली बार एक बकरी को एक बच्चे को जन्म देते हुए देखा था। उस समय कैमरा मेरे पास नहीं था नहीं तो बकरी के गर्भ से योनिमार्ग से बाहर आता बच्चे का वह फ़ोटो यादगार बन जाता। उन दो घन्टे में बकरी का बच्चा चलने भी लगा था। जब विशाल पूरे दो घन्टे बाद नीचे आया। नीचे आया तो उससे कुछ समय पहले एक ऑटो वाला वहाँ सवारियों के लालच में वहां आया था। लेकिन जब उसे कोई सवारी नहीं मिली तो वह वापिस जाने लगा तो मैंने उससे कहा कि नीचे हाइवे तक कितने रुपये सवारी ले रहे हो। उसने प्रति सवारी 50 रुपये बताये थे। वैसे मेरे लिये तो ज्यादा थे। लेकिन विशाल की हालत समझते हुए हमने उस ऑटो में नीचे हाईवे तक की 4 किमी की यात्रा तय की। बस स्थानक पहुँचकर हमने अपने-अपने बैग उठाकर बस की प्रतीक्षा करने लगे। लगभग 15 मिनट में ही त्रयम्बक जाने वाली बस आ गयी। इस बस में सवार होकर हम त्रयम्बक की ओर चल दिये। त्रयम्बक की कहानी आगामी लेखों में बतायी जायेगी।

किसने बनायी इतनी मूर्ती।

जैन गुफ़ा या किसी ओर की।

सुरंग नुमा घाटी में मार्ग किनारे ही यह गुफ़ा आती है।

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन। 
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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6 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सचित्र यात्रा चित्रण ...आभार... ..बहुत मजा आता है मुझे ऐसे संस्मरण पढने में ....लगता है जैसे हम भी घूमते चलते जा रहे है ...

Vaanbhatt ने कहा…

इस यात्रा का इतना आनंद शायद खुद घूम के न आये...जितना आपके पोस्ट से आया...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हनुमानजी से मिलने गये, थकना मना है।

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

कण कण में भगवान हैं, चाहे जैन, हो या बोद्ध हो या सनातन हो...येही हिंदू धर्म का विस्तृत रूप हाँ...

Vishal Rathod ने कहा…

यह वाली भी मजेदार रही .

संजय भास्‍कर ने कहा…

संदीप भाई मैं जब भी आपका ब्लॉग देखता उर पढता हूँ .......हमेशा यही सोचता हूँ आप किसी भी बड़े स्टार से कम नहीं है

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