नन्दा देवी
राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-05 लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02 वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03 रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04 शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05 वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06 मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07 रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08 अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09 सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10 रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11 धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
अपनी बाइक नीली परी के
पास चलते है। तीन दिन हो गये। उसके दर्शन नहीं हुए। बेचारी नीली परी नीचे सडक
किनारे सुनसान अकेली खडी होगी। बाइक जैसी छोडकर गया था ठीक वैसी ही खडी थी। पहाडों
में वैसे भी छेडछाड की घटना कम ही होती है। कुछ खुराफाती बाइकों से पैट्रोल निकाल
लेते है। इसलिये पहाड में ध्यान से देखोगे तो आपको पहाड की अधिकतर बाइकों में
पैट्रोल टंकी के नीचे ताला मिलेगा। टंकी के नीचे जहाँ से तेल रिजर्व लगता है या
बन्द किया जाता है उसी में ताले का प्रबन्ध किया जाता है। जिसके बाद चाबी से ही
तेल बन्द या रिजर्व लग पाता है। बाइक से चाबी निकालोगे तो तेल बन्द हो जाता है।
इसका लाभ यह होता है बाइक से तेल चोरी होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। आज मेरा इरादा मदमहेश्वर के आधार स्थल रांसी से आगे के गाँव
तक बाइक से पहुँचने का था। इसलिये अंदाजा लगाया कि सुबह 9 बजे भी वाण से चलूँगा तो आराम से अंधेरा होने से पहले रांसी पहुँच जाऊँगा।
ठीक 9 बजे वाण से नीली परी पर सवार हो गया। वाण से जब मैं बाइक
पर अपना मैट बांधकर चलने की तैयारी कर रहा था तो उस समय देहरादून के नम्बर वाली एक
बुलेट बाइक भी वाण से वापस चली थी। उस पर दो बन्दे सवार थे। जब वाण से करीब 9 किमी आगे पहुँचा तो देखा कि बुलेट वाले बुलेट को धक्का लगा
रहे है। मैंने पूछा क्या हुआ? उन्होंने कहा कि हम देहरादून से अपनी टंकी फुल कराकर
चले थे। अब यहाँ आकर पता लगा कि तेल समाप्त हो गया है। तेल समाप्त कैसे हुआ?
देहरादून से वाण 300 किमी के करीब है। बुलेट तेल जमकर पीती है। अगर
30 की औसत भी मान ले तो 10-11 लीटर तो कम से कम लग जाना चाहिए। कितना तेल डलवाया था। जब उन्होंने बताया कि
हमने 10 लीटर तेल डलवाया था। तो मैंने कहा कि अगर
तुम्हारे पास कोई पाइप है तो एक लीटर तेल मैं दे देता हूँ। उनके पास कोई पाईप नहीं
था। अब क्या करे। लोहाजंग अभी 1 किमी दूर है। अगर वहाँ तक पहुँच जाये तो पाईप
भी मिल जायेगा हो सका तो तेल भी मिल जायेंगा।
अब एक ही रास्ता था कि
बुलेट को धक्का लगाकर लोहाजंग तक ले जाया जाये। बुलॆट को पैदल खीचना भी किसी आफत
से कम नहीं होता है। थोडी दूरी चलने में ही उनकी नानी याद आ गयी। उनके पास पानी की
बोतल भी नहीं थी। पानी की खाली बोतल में अपनी बाइक से कुछ तेल बिना पाइप निकाल कर
डाल देता। सडक किनारे एक पन्नी देखकर जुगाड करने की सोची। बात नहीं बनी। किसी तरह
अपनी बाइक से उनको खींचकर लोहाजंग पहुँचाया। वहाँ पता लगा कि कोई तेल नहीं बेचता
है एक बेचता था उसे पुलिस ने पकड लिया था। अब सिर्फ एक उपाय था कि किसी दुकान से
पाइप व बोतल माँगी जाये जिसके सहारे बुलेट में तेल डाला जाये ताकि वे 26 किमी नीचे पैट्रोल पम्प तक पहुंच सके। एक दुकान से पाइप व
आधे लीटर की बोतल मिल गयी। उनकी बाइक में डेढ ली तेल डालने के बाद आगे बढ चले।
बुलेट वाले मुझे अनाडी कम
सयाने ज्यादा लग रहे थे। वे कुछ ज्यादा ही धीरे बाइक चला रहे थे। मैंने उन्हे कहा
कि आप लोग पीछे-पीछे आ जाओ मैं आपको पैट्रोल पम्प पर मिलूँगा। वहाँ मेरी बाइक में
तेल डलवा देना। मैं पैट्रोल पम्प पर घन्टा भर में पहुँच गया। अधिकतर सडक ढलान में
थी जिस कारण मैंने अपनी बाइक का इन्जन बन्द किया हुआ था। जहाँ चढायी आई मैंने बाइक
स्टार्ट की। पैट्रोल पम्प पर आधा घन्टा इन्तजार किया लेकिन बुलेट वाले नहीं आये।
मैंने हिसाब लगाया कि उनकी बाइक में मैंने लगभग 100 रु का तेल डाला होगा। अगर 100 रु के चक्कर में मेरा
यहाँ एक घन्टा खराब होता है तो रांसी पहुंचने में अंधेरा हो जायेगा। अंधेरे में
नजारे नहीं दिखायी देंगे। जो 100 रु के कही ज्यादा महंगे
पड जायेंगे। इसलिये मैं बुलेट वालों का इन्तजार छोड, मदमहेश्वर की ओर नीली परी
दौडा दी। करीब 11 बजे एक बोर्ड का फोटो लिया जहाँ से कर्ण
प्रयाग 50 किमी के करीब रह जाता है।
इसके बाद कर्ण प्रयाग से
थोडा सा पहले एक कस्बा सिमली आता है वहाँ सीधे हाथ बाइक की एक दुकान
देखकर अपनी बाइक की चैन टाइट करवायी। समय दिन के 01:45 हो चुके थे। बाइक इन्जन आइल ज्यादा खर्च कर रही थी। इसलिये 100 ग्राम इन्जन आयल भी ढलवाया। यहाँ बाइक की दुकान का
मिस्त्री बहुत ज्यादा बाते करने वाला बन्दा निकला। उसने अपनी लेह लद्धाख यात्रा के
बारे में बताया कि एक बार उसे बाइक वालों का एक पूरा ग्रुप अपने साथ लेह लेकर गया
था। मैंने उसे बताया कि यह बाइक सन 2010 में लेह जा चुकी है। तो
उसने कुछ कम बोलना शुरु किया। कर्णप्रयाग से रुद्रप्रयाग होते हुए शाम के करीब 4 बजे उस जगह पहुँचा जहाँ से एक मार्ग सीधे हाथ पुल पार करके
गुप्तकाशी होते हुए केदारनाथ के लिये कटता है तो दूसरा मार्ग सीधे चलते हुए उखीमठ
होते हुए चोपता तुंगनाथ गोपेश्वर चमोली के लिये निकल जाता है। ऊखीमठ वाले मार्ग से
ऊखीमठ बाजार से होते हुए 20 किमी आगे रांसी होते हुए
मदमहेश्वर के लिये जाना पडता है। ऊखीमठ तो मैं अभी चार महीने पहले भी आया था लेकिन
उस समय मदमहेश्वर के कपाट बन्द होने के कारण आगे नहीं जा पाया था। ऊखीमठ में मुख्य
सडक पर रांसी की ओर मुडने से ठीक पहले मोड के पास मैंने संतोष होटल वाले के यहाँ
रात्रि बितायी थी। तब उसे बताया था कि दुबारा अपनी बाइक लेकर आऊँगा। जब मैंने अपनी
नीली परी उसकी दुकान/होटल के आगे रोकी तो हेलमेट उतारते ही वो मुझे पहचान गया।
मैंने उसे एक मैंगी बनाने को कहा। मैंगी खाकर रांसी के लिए निकल पडा।
अंधेरा होने से पहले
रांसी पहुँच गया था। रांसी तक पक्की सडक बनी हुई है इसके बाद अगले गाँव तक उस समय
कच्ची सडक थी जो दो तीन किमी की ही थी। बाइक पर सीधा चलता रहा। जब आखिरी गाँव पार
हुआ तो सडक की हालत से पता लग गया कि अब आगे सडक नहीं मिलेगी। इसलिये वापिस लौट कर
उस गांव के आखिरी में एक घर की छत पर लगे बोर्ड से जाना कि ये रहने के लिये कमरा
देते है। 100 रु प्रति रात्रि कमरा तय किया। यहाँ मुझसे
पहले एक बंगाली परिवार ठहरा हुआ था। (continue)
4 टिप्पणियां:
सदीप जी राम राम, बहुत दिन बाद आज आपका ब्लॉग पढ़ा...बहुत बढ़िया, वही पुराना कलेवर, वही पुरानी आत्मा....वन्देमातरम...
एक यात्रा सम्पन्न हुई तो दूसरी शुरू। बढिया जाट देवता जी।
shaandar!!
बढिया यात्रा वर्णन। मुझे भी बाइक यात्रा करने का मन कर रहा है आपके अनुभव जानकर
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