नन्दा देवी
राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-06 लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02 वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03 रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04 शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05 वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06 मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07 रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08 अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09 सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10 रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11 धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02 वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03 रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04 शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05 वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06 मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07 रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08 अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09 सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10 रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11 धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
रांसी में जिस जगह मैंने रात बितायी थी। उनके
घर के सामने ही बस खडी होती है यहाँ से बस रुद्रप्रयाग, हरिद्वार व ऋषिकेश के लिये
चलती है। रांसी से मदमहेश्वर की दूरी करीब 16 किमी है रात में ही मैंने तय कर लिया था कि
सुबह उजाला होने से पहले चल दूंगा। ताकि अंधेरा होने तक वापसी आने की उम्मीद बन
सके। सुबह उजाला होने से पहले गोंडार के लिये चल दिया। रांसी से गोंडार तक, शुरु के एक किमी कच्ची सडक है। जिस पर जगह-जगह पत्थर पडे हुए
थे कही जगह भूस्खलन के कारण मार्ग बन्द जैसा दिखता था लेकिन पैदल यात्री के लिये
कोई समस्या नहीं थी। चौडी कच्ची सडक जहाँ समाप्त होती है वहाँ से कुछ आगे तक पहाड
काटा हुआ है। करीब दो किमी बाद एक जगह से अचानक पगडन्डी गायब हो जाती है। यहाँ एक
झोपडी बनी हुई है। अब पगडन्डी समानतर न होकर अचानक नीचे खाई में जाती हुई दिखायी
दी। यहाँ सीढियाँ बनी हुई है जिस पर करीब 50 फुट नीचे उतरना पडा। सीढियों के समाप्त होते
ही एक बार फिर समतल सी पगडन्डी आ गयी। सुबह जब से चला था तब से लगातार ढलान पर उतर
रहा था। यह ढलान वापसी में रुलायेगी। सीढियों के समाप्त होते ही घनघोर जंगल भी
शुरु हो जाता है। घनघोर जंगल में अकेले होने पर मन में डर सा बना रहता है कि कोई
भालू-वालू ना टकरा जाये।
पगडन्डी किनारे उल्टे हाथ एक जगह झरने जैसी जल
धारा देखकर मन प्रसन्न हो गया। पहाडों में आकर अगर ऐसे नजारे ना दिखे तो पहाड में
आने का उद्देश्य सफल नहीं हो पाता है। ठीक 8 बजे गौंडार गाँव पहुँच गया। अभी तक मुझे एक वयक्ति रांसी
की ओर जाता हुआ मिला। वो बन्दा मुझे एक मोड पर अचानक मिला तो घने जंगल में होने के
कारण एक बार तो डर सा गया था। यह देखकर की इन्सान है तो मैं सामान्य हुआ। अगर उस
समय सामने जंगली जानवर होता तो मेरी हालत कैसी होती? नहीं कह सकता। गौंडार में एक
दो दुकाने दिखायी दी। उन्होंने मुझे देखकर चाय के लिये बोला। लेकिन चाय मेरे लिये
बेकार थी इसलिये मैं आगे बढता रहा। गौंडार में रात्रि रुकने के लिये गाँव वालों के
प्रबंध किया हुआ है।
गौंडार से आगे दो नदियों का संगम होता है। पुल
को पार करते ही दो-तीन घर दिखायी देते है इस जगह को बनतोली कहते है। इन्होंने अपने घर के आगे बोर्ड लगाये हुए है। हमारे
यहाँ रहने व खाने का उचित प्रबध है। इनके बोर्ड देखकर किसी से पता नहीं करना पडा
कि यदि कोई रांसी से दोपहर 2-3 बजे भी यात्रा शुरु करे तो उसे रात्रि में रहने खाने की चिंता
न कर अपनी यात्रा आरम्भ कर देनी चाहिए। लोहे के पुल द्वारा उल्टे हाथ वाली नदी पार
आगे बढता रहा। लोहे के पुल को पार करते ही ठीक-ठाक चढाई आरम्भ हो जाती है।
घुमावदार पगडन्डी से होते हुए पहाड के ऊपर चढते
हुए, कब पहाड की चोटी पर पहुँच गया। पता ही नहीं लगता। ऊपर पहुँचकर, तीन चार मकान
दिखायी दिये। इस जगह को खटारा चट्टी कहते है। यहाँ वन विभाग की एक चौकी दिखायी दी। चौकी पर एक बोर्ड लगा हुआ था
जिस पर यहाँ आने वाले यात्रियों से शुल्क लेने की बात लिखी हुई थी। मुझसे किसी ने
शुल्क के लिये नहीं कहा। ना ही उस समय चौकी में कोई था। वहाँ ताला लगा हुआ था। पुल
से आगे की पगडन्डी 5 फुट चौडाई में बनायी गयी
है। पगडन्डी को ठीक करने के लिये कई जगह मजदूर लगे हुए थे। जो पत्थरों को तोडकर
पगडन्डी पर बिछा रहे थे। ऊपर का कई किमी तक का मार्ग पत्थर बिछा कर पक्का कर दिया
गया था। अब पेड की संख्या कम हो गयी थी। हर घास के पहाड ज्यादा दिखायी देने लगे
थे। पगडन्डी किनारे घास का इलाका कई किमी तक बना रहा। इसके बाद एक बार फिर घना
जंगल आरम्भ हुआ।
घने जंगल में आते ही बारिश शुरु हो गयी। मैं
अपने साथ पानी की बोतल व फोन्चू लाया था। फोन्चू न होता तो समस्या खडी हो जाती।
यहाँ एक परिवार के कई सदस्य ऊपर की ओर जाते हुए मिले। ये सुबह गौंडार से पुल के
पार वालो घरों से चले होंगे। घने जंगल में पगडन्डी पर पत्थर नहीं बिछाये गये थे। जिस
कारण कई जगह फिसलन हो गयी थी। इस फिसलन पर चढना तो आसान था। लेकिन उतरना कठिन था
जिसने मुझे वापसी में बहुत तंग किया था। ऐसी फिसलन को पार करने में छडी बहुत काम
आती है लेकिन मैं तो छडी का उपयोग करता ही नहीं हूँ। घना जंगल पार किया तो एक
बोर्ड दिखायी दिया। जिस पर मदमहेश्वर की दूरी डेढ किमी लिखी थी। इस जगह का नून या
नानू चट्टी लिखा हुआ था। अब चढाई लगभग समाप्त हो चुकी थी। समान्तर सा ही मार्ग था।
पगडन्डी में जो थोडी बहुत चढाई-उतराई थी। भी वो महसूस नहीं हो रही थी। आगे बढता जा
रहा था कि अचानक एक मैदान दिखायी दिया। थोडा और आगे बढा तो कई घर व झोपडे दिखायी
दिये। बारिश अभी जारी थी कुछ आगे बढने पर उतराई में इन घरों के पीछे मन्दिर दिखायी
दिया। दिखाई दे रहा मन्दिर मदमहेश्वर मन्दिर है। यह मन्दिर केदार नाथ व तुंगनाथ
जैसी निर्माण कला में बनाया गया है।
मन्दिर के ठीक सामने पहुँचा। दरवाजा बन्द था।
बाहर से ही भोलेनाथ को प्रणाम किया और वापिस चल पडा। मुझे वापिस लौटते देख, सामने
बद्री केदार निवास समिति के कमरे में बैठे एक कर्मचारी ने मुझे आवाज दी। वह बोला “क्या
आप वापिस जा रहे हो”, मैंने कहा, हाँ। वो बोला, “क्या रात को नहीं रुकोगे।“ नहीं,
अभी दोपहर के दो बजे है बारिश रुक नहीं रही है। एक घन्टे से बारिश में चल रहा हूँ।
रुकने का मन नहीं है। वो कर्मचारी बोला भगवान जी के दर्शन नहीं करोगे। मैंने कहा
मन्दिर तो बन्द है दर्शन तो शाम को हो पायेंगे। उस बन्दे ने एक पुजारी को आवाज
लगायी कि यात्री बिना दर्शन किये वापिस जा रहे है। मन्दिर खोलकर दर्शन करा दो। मैं
आश्चर्य चकित था। यात्री को बुलाकर दर्शन कराये जा रहे है। वैसे भी मैं हर जीवित
वस्तु में भगवान को मानने वाला बन्दा हूँ। यदि ये अपने आप दर्शन करा रहे है तो
स्वागत है नहीं तो मैं तो बाहर से ही हाजिरी बजाकर लौट आने वाला बन्दा ठहरा। मेरे
लिये मन्दिर के कपाट खोल दिये गये। भोले नाथ की कृपा।
मैं प्रत्येक मन्दिर व अन्य धर्म स्थलों पर
सिर्फ़ एक बात दोहराता हूँ कि हे परमात्मा तुमने जो दिया उसमें मैं खुश हूँ। यदि आप
मेरे यहाँ आने से खुश है मुझे फिर बुलाना। यदि खुश नहीं हो तो मत बुलाना। मैं
भगवान से कभी कुछ माँगने नहीं जाता हूँ। मैं माँगने में नहीं, मेहनत करने में
विश्वास करता हूँ। भगवान तो भाव का भूखा है, पूजा सामग्री का नहीं। हमारे द्वारा
भगवान को अर्पित किये गये पूजा सामान तो पुजारी व अन्य भक्तों के काम आते है। मैं
अब तक भारत के चार धाम व 11 ज्योतिर्लिंग (झारखन्ड का देवघर बचा है।) के अलावा बहुत कुछ देख चुका हूँ।
छोटे से छोटे मन्दिर में कई बार बहुत खुशी मिलती है तो बडे-बडे मन्दिरों में भी कई
बार मन दुखी हो जाता है कि क्यों भगवान तूने ऐसे लोग बनाये? लेकिन अच्छे लोग व बुरे
लोग हर जगह है जैसे हाथों की 5 अंगुलियाँ बराबर नहीं हो सकती। ठीक वैसे हर धर्म स्थल व वहाँ के भक्त व
कर्ता-धर्ता भी बराबर नहीं हो सकते। जब एक परिवार में सबके विचार नहीं मिल सकते तो
सामूहिक स्थल पर अपने जैसा सोचना बेमानी है। मैं घुमक्कड जरुर हूँ लेकिन फक्कड
पहले हूँ।
मैं अपनी बात भगवान भोले नाथ के मन्दिर के गर्भ
गृह में दोहराकर बाहर आ गया। जो पुजारी मुझे अन्दर लेकर गया था उसने वहाँ की कुछ
बाते बतायी। जिसे सुनकर अच्छा लगा। मन्दिर से बाहर आने के बाद फोटू खिचवाने के
लिये फोन्चू उतार लिया था। मैं करीब 15 मिनट मदमहेश्वर धाम में रहा। कार्यालय वालों ने कहा कि दुबारा सपरिवार यहाँ
आओ। एक दो दिन रुको। ऊपर बूढा मदमहेश्वर मन्दिर के दर्शन करके आना। मैंने कहा जैसी
बोले नाथ की इच्छा होगी। भोलेनाथ को मैंने बोल दिया अब आगे की वह जाने। मन्दिर
समिति के कार्यालय में छोटा सा दान कर वापिस अपनी राह पकड ली। वापसी में आते हुए
करीब दो किमी बाद वह परिवार आता हुआ मिला जो पीछे छूट गया था। मुझे वापसी आते देख
बोले क्या हुआ? दर्शन नहीं किये। मैंने दर्शन कर लिये है। अब रात होने तक रांसी
पहुँचना है। रात को कहाँ रुके थे? रांसी की बात सुनकर एक बार उन्हे विश्वास नहीं
हुआ। खैर उनके विश्वाश को मेरी ट्रेकिंग में नहीं भगवान में बने रहना ज्यादा जरुरी
था। अपनी ट्रेकिंग का मुझे विश्वास है। जिसमें ऊपर वाले का साथ है।(continue)
9 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-06-2016) को "पात्र बना परिहास का" (चर्चा अंक-2369) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
देवघर (झारखंड) वाला बैजनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल नहीं है। इसे रावणेश्वर कहते है, जो बैजनाथ शामिल है वो परली बैजनाथ महाराष्ट्र वाला है।
संदीप जी ,मंदिर बंद होने की बात पढ़कर आपकी ओरछा यात्रा आ गयी । अपने यहां रामराजा के भी दर्शन नही किये थे । खैर आपके साथ हमने भी मदमहेश्वर के दर्शन कर दर्शन कर लिए । लेकिन आपने मंदिर के बारे ज्यादा जानकारी नही दी ।
जय हो जाट देवता,
बहुत ही बढ़िया लिखा है , आपकी स्पीड तो गज़ब है .. सुबह रांसी ..दोहपर २ बजे मध्यमहेश्वर ..जय हो भोलेनाथ की ..जल्दी वापिस लौटिए रात होने वाली है ....
मैं प्रत्येक मन्दिर व अन्य धर्म स्थलों पर सिर्फ़ एक बात दोहराता हूँ कि हे परमात्मा तुमने जो दिया उसमें मैं खुश हूँ। यदि आप मेरे यहाँ आने से खुश है मुझे फिर बुलाना। यदि खुश नहीं हो तो मत बुलाना। मैं भगवान से कभी कुछ माँगने नहीं जाता हूँ। मैं माँगने में नहीं, मेहनत करने में विश्वास करता हूँ।
संदीप भाई उत्तम विचार। मजा आया पढ़ कर। आपने एक ही दिन में यह कर लिया यह सिर्फ आप जैसे जज्बे वाले इंसान ही कर सकते है। जय भोले नाथ।।
रोचक जानकारी
bhagwan bhav ke bhukhe hain thik kar lo
बढ़िया ट्रैकिंग देवता...32 किलोमीटर। बढ़िया स्पीड पकड़ी, वो भी बारिश में।
कल अपना भीं प्रवास है भईया
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