शुक्रवार, 3 जून 2016

Nanda Devi Rajjat Yatra 2014, Part-2 नन्दा देवी राज जात यात्रा सन 2014- भाग 2

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-02           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
इससे पहले मैं वाण से रुपकुन्ड की यात्रा का वर्णन करुँ। यह बताना आवश्यक है कि अब वाण तक पक्की सडक बन चुकी है इसका लाभ मैंने दोनों यात्राओं में उठाया था। दो साल पहले 2012 वाली यात्रा के समय लोहाजंग से वाण वाली सडक पक्की नहीं थी। अब राज जात यात्रा के समय यह सडक पक्की बना दी गयी है। पहले वाण गाँव तक बिजली भी नहीं थी अब बिजली के खम्बे भी दिखायी दे रहे थे। पहले वाले लेख में आपको बताया ही जा चुका है कि यह यात्रा कहाँ से आरम्भ होती है। नन्दा देवी राजजात लगभग 280 किमी की पद यात्रा होती है। यह उत्तराखण्ड की सबसे लम्बी पद यात्रा है। यह यात्रा वैसे तो 12 साल बाद होमकुन्ड तक जाती है लेकिन वाण आकर पता लगा कि इस यात्रा का एक छोटा रुप हर साल वेदनी कुन्ड तक आता है। 12 साल वाली राज जात यात्रा कहलाती है जो वेदनी बुग्याल व वेदनी कुन्ड से आगे रुपकुन्ड, शिलासमुन्द्र होकर होमकुन्ड तक जाती है। अब चलते है अपने यात्रा लेख पर.... बारिश रुकने के बाद मैं वाण से वेदनी की पैदल यात्रा शुरु कर पाया। वाण गाँव से ही जबरदस्त चढाई आरम्भ हो जाती है। शुरु के लगभग ढाई- तीन किमी की रणकाधार तक की चढाई आबादी के बीच से होकर चलती है। इसके बाद लगभग एक किमी हल्की हल्की उतराई है जो नील गंगा नाम की नदी के पुल तक बनी रहती है। इस पुल से आगे पीने का पानी एक दो जगह ही मिलता है इसलिये यदि बरसात के मौसम के बाद यहाँ जाना हो तो अपनी पानी की बोतले यहाँ नदी की छोटी सी जल धारा से भरना ना भूले।


नील गंगा नदी के पुल पार करने के बाद एक बार फिर जोरदार चढाई आरम्भ होती है। अभी नदी से पहले जो 1 किमी की उतराई उतर कर आये थे उससे जो थोडी सी राहत मिली थी जो पुल पार करते ही गायब हो जाती है। यहाँ से आगे अगले पडाव का नाम गैरोली पाताल है। घने जंगल के बीच होकर यह यात्रा जारी रहती है। गैरोली पाताल तक पहुँचने में तीन घन्टे लग गये। यहाँ पर रहने के लिये छत का प्रबन्ध है। यात्रा के अलावा खाने के लिये यहाँ कुछ नहीं मिलता है। यहाँ थोडी देर विश्राम के बाद एक बार फिर चढाई के लिये तैयार हो जाना पडता है। गैरोली पाताल के आगे लगभग एक घन्टे की जोरदार चढाई के बाद डौलियाधार नामक जगह आती है। अधिकारिक रुप से यह स्थल वेदनी बुग्याल का आरम्भ बिन्दु माना जाता है। वैसे वेदनी कुन्ड अभी यहाँ से करीब तीन किमी दूर है। चढाई अभी भी बाकि रहती है। ठीक 12:30 पर मैं वेदनी बुग्याल पहुँच गया। वेदनी पहुँच कर पता लगा कि राज जात यात्रा यहाँ से दो दिन पहले आगे जा चुकी है। वेदनी से आगे राज जात यात्रा पातर नाचनी में रुकी थी उसके बाद आज शिला समुन्द्र रुकेगी। मैं आज शिला समुन्द्र तक किसी भी हालत मॆं नहीं पहुँच सकता हूँ। यात्रा आगे जाने के बाद अब यहाँ लगे सैंकडों टैन्टों की उखाड का कार्य अंतिम चरण में दिख रहा था। जहाँ-जहाँ टैन्ट लगे हुए थे वहाँ-वहाँ की हरी घास का रंग बदला हुआ था। यहाँ की हालत देख कर लग रहा था कि यहाँ कम से कम 10 हजार टैन्ट लगाये गये होंगे। नीचे वाण में पता लगा था कि यात्रा में सवा लाख से ज्यादा यात्री वेदनी तक गये थे। वेदनी से आगे आठ-दस हजार यात्री ही आगे गये है। उनमें से अधिकतर रुपकुन्ड से वापिस लौट जायेंगे। आगे अंतिम छोर होमकुन्ड तक चार-पाँच हजार ही जा पायेंगे।

वेदनी में चारों तरफ उजाड व कबाड देख कर मन अजीब सा हो गया। दो साल पहले जब यहाँ आया था तो चारों और साफ-सफाई थी लेकिन अब चारों ओर गंदगी ही गदंगी दिख रही थी। पता नहीं कितने दिनों बाद यह गंदगी साफ हो पायेगी। कुछ जगह सफाई करने वाले लोग कूडा एकत्र करते दिख भी रहे है। लेकिन असली सफाई कुदरते ही करती है। यकीन नहीं हो तो केदारनाथ हादसे को याद कर लो। एक रात में बीसियों हजार का काम तमाम कर दिया था। इसे कहते है कुदरत की ताकत। जिसके आगे इन्सान की पार नहीं बसाती। चलते-अलते कहो या ऊपर चढते-चढते दोपहर हो गयी। रात से कुछ नहीं खाया था भूख लग रही थी। एक जगह खाने का जुगाड दिखायी दिया। उससे पूछा खाने के लिये क्या तैयार है? उस दुकान वाले ने बताया कि अभी तो दाल चावल ही बचे हुए है। रोटी बनने में एक घन्टा लग जायेगा। मेरे पास एक घन्टा रुकने का समय नहीं था। मैंने दाल चावल से काम चला लिया। आधे घन्टे में वेदनी से दोपहर का भोजन कर आगे बढ चला। जैसे-जैसे वेदनी कुन्ड की ओर बढ रहा था। वैसे वैसे गन्दगी कुछ कम दिख रही थी। वेदनी कुन्ड से आगे एक किमी की अच्छी खासी चढाई है, जो ऊपर जाती पगडन्डी पर जाकर समाप्त होती है। पगडन्डी अली बुग्याल से आती है। जो अली से आगे नीचे लोहाजंग के लिये उतरती है। अली बुग्याल से वेदनी बुग्याल व आगे पातर नचौनियाँ तक यह पगडन्डी लगभग समतल सी ही रहती है जिस कारण यात्री तेजी से यह दूरी तय कर डालते है। पगडन्डी तक पहुँचने के लिये मुझे थोडी सी मेहनत ज्यादा करनी पडी। बारिश के कारण इस चढाई वाले मार्ग में काफी फिसलन हो गयी थी जिस पर काफ़ी सावधानी से चढना पड रहा था। ऊपर से नीचे आने वाले दो बन्दे बहुत परेशान दिख रहे थे। वो इस चढान में उतराई पर होने के कारण कई बार फिसल गये थे जिससे उनके कपडे पिछवाडे से पूरी तरह मिटटी से सन चुके थे।

बचते-बचाते वेदनी बुग्याल के ऊपर वाली पगडन्डी पर पहुँचा तो जान में जान आयी। पीछे मुडकर देखा कोई आता नहीं दिख रहा था। पिछली यात्रा के समय वन विभाग के कर्मचारी ने वेदनी में 150 रु प्रति यात्री की शुल्क वाली पर्ची की बात बतायी थी इस बार राज जात यात्रा होने के कारण किसी की पर्ची नहीं बनायी जा रही थी। यहाँ से कलुवा विनायक से पहले शुरु होने वाली ठीक-ठाक चढाई शुरु होने तक तेजी से बढता गया। कलुवा विनायक को कालू विनायक भी बोलते है। यहाँ की चढाई करीब तीन किमी है जो आसान नहीं है। इस चढाई को चढते समय काफी सावधानी बरतनी होती है। इसमें दो तीन जगह खतरनाक बिन्दु आते है वहाँ फिसल सकते है। इस चढाई को आधा ही चढ पाया था कि बारिश शुरु हो गयी। अपना फोन्चू निकाल कर ओढ लिया। कालू विनायक तक पहुँचते पहुँचते कई यात्री पीछे छूटते गये। उनमें से दो छतरी लिये हुए थे तो तीन पन्नी से अपने आप को ढके हुए थे। दो तीन पत्थर की ओट में बैठे हुए बारिश से बचने में लगे हुए थे।

कलुवा विनायक पहुँच कर समय देखा। शाम के 5 बज चुके थे। अंधेरा होने में अभी एक घन्टा है तब तक भगुवा बासा तो पहुँच ही जाऊँगा। बारिश रुकी नहीं थी इसलिये कलुवा विनायक रुकना बेकार था। अब तो भगुवा बासा तक चढाई भी नहीं थी। साधारण पगडन्डी थी जिस पर तेजी से चलता हुआ भगुवा बासा पहुँच गया। बारिश अभी जारी थी। कुछ देर में अंधेरा हो जायेगा। यहाँ एक पन्नी की टैन्ट नुमा दुकान खुली थी उससे रात गुजारने लायक जगह के बारे में पूछा उसने बताया कि यदि आपके पास स्लिपिंग बैग व मैट है तो सामने जो काली पन्नी वाली झोपडी है उसमें चले जाओ। काली पन्नी वाली झोपडी में पहुँचा। उसकी ऊँचाई मुश्किल से तीन फुट ही होगी। उसमें किसी तरह घुसा। झोपडी में अंधेरा था। बैग से टार्च निकाली। वहाँ मेरे अलावा कोई नहीं था। टार्च की रोशनी में मैट बिचाने लायक जगह देखी।

उस झोपडी की आधी से ज्यादा जगह में बरसात के पानी घुसने के कारण गीला हुआ पडा था। एक कोने में अपना मैट बिछाया। अब तक शरीर को ठन्ड लगने लगी थी। मैं सिर्फ़ टी शर्ट में था। यहाँ की ऊँचाई लगभग 14100-14200 फुट के बीच तो होगी ही। ऊपर से बारिश। ठन्ड तो लगनी ही थी। फटाफट मैट बिछाकर स्लिपिंग बैग में घुस गया। रात को ठन्ड माइनस में पहुँचेगी वो नीन्द खराब करेगी। इसलिये अपनी विन्ड शीटर भी पहन ली। अपनी गर्म चददर जो मैं हमेशा साथ रखता हूँ उसे स्लिपिंग बैग ने अन्दर फैला कर ओढ लिया। समय देखा करीब 7 बज चुके थे। रात को भूख नीन्द खराब करेगी उसके लिये मेरे बैग में पहले से ही बिस्कुट के कई पैकेट भरे रहते है जो ऐसे आपातकाल में हमेशा काम आते है। बटरबाइट का 200 ग्राम वाला पैकट निकाल कर स्लिपिंग बैग के अन्दर ही डाल लिया। रात को जब मन होगा, खा डालूँगा। घन्टे भर तक नीन्द नहीं आयी। इस बीच मेरे बराबर में दो तीन बन्दे और पहुँच गये।


एक बन्दा तो केवल एक पन्नी नीचे बिछाकर लेटा हुआ था। मैंने उसको बोला “अरे भाई, ऐसे रात कैसे काटेगा?” वो बोला “जब तक सहन होगा तब तक यहाँ रुकूँगा। जब सहन होना मुश्किल हो जायेगा। रात को ही आगे बढ जाऊँगा।“ रात करीब 9 बजे मैंने बिस्कुट का पैकेट चट कर दिया। उसके बाद रात में कई बार आँख खुली तो समय देखता और सो जाता। किसी तरह दिन निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था। सुबह के 4 बज चुके थे। पन्नी पर लेटे बन्दे को देखा तो वहाँ नहीं मिला। बन्दा रात में ही चला गया या हो सकता है कुछ देर पहले गया हो। रात में मेरी आँखे कई बार खुली भी थी लेकिन मैंने स्लिपिंग बैग से बाहर झांककर नही देखा। वह बन्दा कब गया? नहीं जानता। सुबह के तीन बजे के बाद से तो बारिश हो रही थी। अगर वह गया होगा तो उसके पहले ही गया होगा। इस उधेडबुन में दिन निकल गया था। बारिश भी हल्की हो गयी थी। मैं अपना बैग पैक कर, तैयार हो गया। सुबह जैसे ही बारिश रुकी मैं रुपकुन्ड, जुनार गली, शिला समुन्द्र होमकुन्ड की यात्रा के लिये तैयार था। बारिश करीब 6:30 बजे रुकी तो मैं अपनी यात्रा पर चल पडा। रुपकुन्ड पहुँचकर समय देखा। सुबह के सवा आठ बज चुके थे। कुछ देर रुककर दुनिया भर में प्रसिद्ध रुपकुन्ड के नर कंकाल, खोपडी व अंजर-पंजर को निहारता रहा जो सामने पडे दिखायी दे रहे है। पहले इनके फोटो लेता हूँ। तब आपको दिखाऊँगा। पिछली यात्रा के समय यहाँ चारो ओर बर्फ़ ही बर्फ़ थी जिस कारण कुछ दिखायी न दिया था। अब सब कंकाल खोपडी फोटो खिचवाने के लिये तैयार है। (क्रमशJ)  














13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

भाईजी गज़ब का टेम्परामेंट।

Unknown ने कहा…

भाईजी गज़ब का टेम्परामेंट।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

सुन्दर वर्णन. सुन्दर चित्र

Sushil ने कहा…

बहुत सुंदर यात्रा वर्णन भाई। संदीप भाई फोटो कम लगा रहे हो।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

संदीप जी मन खुश हो गया आपकी ये यात्रा पढ़कर ।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

संदीप जी मन खुश हो गया आपकी ये यात्रा पढ़कर ।

Vishal Rathod ने कहा…

Superb Sandeep Bhai

Vishal Rathod ने कहा…

Superb Sandeep Bhai

संजय कौशिक ने कहा…

भाई भाग २ और भाग १ में फॉण्ट का फर्क है.
भाग १ का बढ़िया और पढने से आरामदायक है जबकि २ वाला कुछ फीका फीका लग रहा है, संभालिये जरा तब तक मैं भाग १ पढ़ कर आता हूँ..

Yogi Saraswat ने कहा…

संदीप भाई मैंने आपके दोनों यात्रा वृतांत पढ़े हैं , पहले जब आप गए तब और अब का भी ! अब ज्यादा बेहतर तरीके से मेन्टेन किया हुआ लग रहा है सब कुछ ! रास्ते और ऊंचाई बताते बोर्ड साफ़ सुथरे लग रहे हैं वैसे इतनी बड़ी यात्रा और इतने सारे लोगों की वजह से गन्दगी हो ही जाती है !

Sachin tyagi ने कहा…

संदीप भाई बहुत ही रोमांचक यात्रा लेख है यह, बारिश में चलना, रात भी बिस्कुट पर काटना। गजब आपकी ऐसी यात्रा से ही आपकी क्षमता का आभास होता है की आप कितने निडर इंसान है कैसे भी, कही भी, आप हर जगह पर अनुकुल हो जाते है।

विकास गुप्ता ने कहा…

रोचक यात्रा वर्णन। आपके ब्लाॅग पढ कर यह जाना मैेने कि खाने-पीने की व्यवस्था पुख्ता रखनी चाहिये पहाड़ों में।

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