शनिवार, 11 जून 2016

Anusuya Devi and Atri Muni Ashram अनुसूईया देवी, अत्रि मुनि मन्दिर

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-08           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
खैर रोमांचक जंगल सफारी भी समाप्त हुई। मंडल पहुँचने के बाद चाय की दुकन के आगे बाइक रोकी। उससे अनुसूईया देवी मन्दिर जाने वाले मार्ग के बारे में पूछा। चाय वाले ने (माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी नहीं समझ लेना) बताया कि यहाँ से थोडा सा पहले ऊपर की तरफ एक कच्चा मार्ग जाता हुआ दिखायी देगा। उस पर एक किमी तक बाइक चली जायेगी। एक किमी के बाद एक नदी आयेगी जहाँ से आगे की 5 किमी की यात्रा पैदल ही करनी होगी। 5 किमी में से चढाई वाले कितने किमी है। शुरु के आधे तो हल्के से ही है जबकि आखिरी का आधा भाग अच्छा खासा है। मैंने 10 किमी की ट्रेकिंग में आने जाने में 3-4 घन्टे का समय माना। बाइक का तो ताला लग जायेगा। लेकिन मेरा बैग व अन्य सामान कहाँ छोड कर जाऊँ? मैंने चाय वालो को एक गिलास दूध मीठा करने के लिये बोला। जब तक उसने दूध मीठा किया मैंने बाइक से सामान खोलकर उसकी दुकान में रख दिया। दुकान वाले ने बताया कि यदि रात को ऊपर रुकने का मन हो तो रुक जाना वहाँ रहने-खाने की कोई चिंता नहीं है सब इन्तजाम है। आपकी दुकान कब से कब तक खुलती है? उसने बताया कि अंधेरा होने पर मेरी दुकान बन्द होती है।



एक किमी की यात्रा तो बाइक से हो गयी। उसके बाद बाइक को किनारे खडा कर, पैदल यात्रा आरम्भ कर दी। नदी का पुल टूटा हुआ था जो नदी में आये एक विशाल पत्थर से टूटा होगा। वह विशाल पत्थर पुल के बीचों बीच रुक गया है जिस पर टूटा हुआ पुल भी अटका हुआ है उसी अटके हुए पुल से होकर यात्रा जारी है। पुल पार करते ही एक गाँव आता है। गाँव के बीच से होकर यह यात्रा चलती है। गाँव पार कर हल्की सी चढाई आरम्भ होती है। जो पुल पार वाली नदी के साथ-साथ चलती रहती है। करीब तीन किमी चलने के बाद एक पुल के जरिये एक बार फिर इसी नदी को पार करना पडा। अब तक तो हल्की-फुल्की चढायी थी लेकिन पुल पार करते ही चढायी अपने असली रुप में सामने थी। मरता क्या न करता? मैं अपनी मस्त चाल से चढता चला गया। अब तक मुझे कोई अन्य आता या जाता हुआ दिखायी न दिया था। इस चढायी पर  एक किमी चढने के बाद एक परिवार ऊपर जाता दिखाय़ी दिया। अब जैसे-जैसे चढायी ऊपर जा रही थी मंडल कस्बा नीचे दिखायी देना आरम्भ हो गया था। जितना ऊपर जा रहा था नीचे देखने में उतना ही रोमांच आ रहा था। दो किमी की अच्छी खासी चढायी का समापन मन्दिर आने की आहट के साथ हुआ। आखिरी का आधा किमी चढाई न के बराबर ही है। मुख्य मन्दिर तक थोडा सा घूमकर जाना पडता है जबकि मन्दिर सामने ही दिखायी देता है।

मन्दिर के प्रागंण में पहुँचकर पहले कुछ देर विश्राम किया। उसके बाद कुछ फोटो लिये। तब मन्दिर के भीतर प्रवेश किया। मन्दिर का बरामदा काफी बडा है जिसमें एक साथ काफी भक्त बैठ सकते है। मन्दिर के भीतर मुझे ज्यादा देर नहीं लगती है हमेशा की तरह, अपना हर जगह एक ही वाक्य होता है कि हे भगवान हो सके तो दुबारा बुलाना। मैं माँगने के लिये कभी मन्दिरों में नहीं जाता। मन्दिरों में जाकर एक अलग अनुभूति महसूस होती है उसी को अनुभव करने के लिये मन्दिरों में जाता हूँ। नहीं तो देखा जाये तो मैं नास्तिक किस्म का प्राणी ज्यादा हूँ। ढोंग ढकोसले पसन्द नहीं। ढोंगी बन्दों से कोई मेल जोल नहीं। मन्दिर से बाहर आया तो देखा कि एक बंगाली स्थानीय बन्दे के साथ कुछ विचार विमर्श कर रहा था। मेरे कानों में रुद्रनाथ जैसा शब्द सुनायी दिया तो मैंने दीवारों के कानों की तरह उनकी बातों को सुनने के लिये उनके पास पहुँच गया। वो मुझे देखकर अपनी बातों में लगे रहे। वो आपसी वार्तालाप से सलाह कर रहे थे कि रुद्रनाथ के लिये आज निकलना सही होगा या कल सुबह। मैंने कहा आप ऊपर से जा रहे हो या सगर होकर। उन्होंने बताया कि वे अनुसूईया से ऊपर-ऊपर होकर जायेंगे।

मैं अपना बैग नीचे मंडल छोड आया था नहीं तो मैं भी उनके साथ हो लेता। उस बंगाली के साथ जो  स्थानीय वयक्ति था वह देवरिया ताल की ट्रेकिंग शुरु होने वाले गाँव का निवासी था। मैं अपनी बाइक के पास मंडल लौट आया। बाइक लेकर चाय वाले के पास आया। वहाँ से अपना सामान उठाया और सगर गाँव के लिये चल दिया। मंडल से सगर गाँव पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगता है। सगर से कोई 3-4 किमी पहले एक मोड पर सीधे हाथ की तरफ मुडते समय पानी पर बाइक फिसल गयी। बाइक की गति मुश्किल से 20-22 की ही थी। मैंने घुटनों व कोहनी के सुरक्षा उपकरण धारण किये हुए थे। अगर मैं सडक पर लुढकता तो भी मुझे चोट नहीं आती लेकिन आश्चर्य यह रहा है बाइक फिसक गयी लेकिन मैं खडा ही रह गया। मैंने अपने आप को सम्भालते ही बाइक उठाने की कोशिश की।

चूंकि बाइक सीधे हाथ की तरफ मोडते हुए फिसली थी तो उठाते समय उल्टी दिशा हो गयी। जिससे हैंडिल पर ज्यादा जोर लगाना पडा। हैंडिल पर ज्यादा जोर लगाने का परिणाम यह हुआ कि हैंडिल मुड गया। बाइक उठाकर सडक किनारे खडी कर दी। जब तक मैंने बाइक खडी की एक स्थानीय बन्दा मेरे पास आ गया। उसने मेरी बाइक फिसलते हुए देख ली थी। अब तक मैं यह सोच रहा था कि यहाँ बाइक फिसली कैसे? बाइक खडी कर उसी जगह ध्यान से देखा तो जवाब मिल गया। यहाँ मोड पर पहाड के ऊपर से निरन्तर बहने वाली एक हल्की सी चोटी सी पानी की जलधारा के कारण सडक के नीचे कोई पाइप न दबाकर ऊपर ही सीमेंट का मात्र 10-12 फुट चौडाई व मात्र 6 इंच गहराई का रपटा बनाया हुआ था। रपटा सीमेंट का होने व लगातार पानी बहने के कारण उस रपटे पर काई जम गयी थी। उस काई के कारण बाइक हल्के से मोड पर ही फिसल गयी। जब उस स्थानीय बन्दे ने बताया कि यहाँ तो कई बार जीप व कार तक फिसल जाती है तो बाइक फिसलना कौन सी बडी बात है? बाइक स्टार्ट हो गयी लेकिन हैंडिल टेडा हो गया था। चलने से पहले हैंडिल को सीधा करना पडा। थोडी देर चलने के बाद सगर आ गया। सगर से रुद्रनाथ की कठिन पद यात्रा आरम्भ होती है जो कल सुबह की जायेगी। (continue)



















9 टिप्‍पणियां:

andy ghumo re ने कहा…

रोचक और रोमांचक ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-06-2016) को "चुनना नहीं आता" (चर्चा अंक-2371) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar ने कहा…

वाह आपका यात्रा विवरण बहुत अच्छा है। अनुसुया मंदिर के चित्र तथा रास्ते के चित्र भी सुंदर।
क्या इसे चित्रकूट और पंचवटी के आसपास नही होना चाहिये था ।
धार्मिक होने का अर्थ है अपने धर्म का अर्थात कर्तव्यों का चाहे वे एक पुत्र के हों पति के हों (पुत्री, पत्नी) या एक सामाजिक इकाई के हों भलीभांति पालन करना और यह करते हुए उस परम शक्ति में विश्वास रखना जो इस सृष्टि का नियम से संचालन करती है।

Sachin tyagi ने कहा…

आन्नद आ गया यात्रा लेख पढ कर।

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

यात्रा की अच्छी जानकारी

Romesh Sharma ने कहा…

foto me caption jaroor lagao. acchha lagega

रमता जोगी ने कहा…

आधा किलोमीटर आगे अत्रि मुनि गुफा भी हो आते।

Yogi Saraswat ने कहा…

उत्तराखंण्ड का हर क्षेत्र अपने आप में ऐतिहासिक और प्रकृति से भरपूर है ! एक एक जगह दर्शनीय

Sunil Kumar ने कहा…

Sandeep Ji,
Neeche se 6th line me thoda correction ker le

कारण सडक के नीचे कोई पाइप न दबाकर ऊपर ही सीमेंट का मात्र 10-12 फुट चौदाई व मात्र 6 इंच गहराई का रपटा

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