रविवार, 8 जनवरी 2017

Travel to Baratang via Jarawa tribal area पोर्ट ब्लेयर से जरावा आदिमानव क्षेत्र की यात्रा

ऐसी खूबसूरती पूरे अंडमान में बिखरी हुई है।


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर टापू की दक्षिण दिशा में चिडिया टापू एक सुन्दर स्थान है। जिसे आपने इससे पहले वाले लेख में देखा। आज चलते है नंग धडंग रहने वाले जारवा इंसान की ओर जो आज भी आदिमानव युग की याद दिलाते है। आज की यात्रा जारवा आदिमानव की ओर चलते है। यह आदि मानव युग के आदम और हव्वा की तरह ही अपना जीवन जीते है। इस यात्रा को शुरु से पढना चाहते हो तो यहाँ चटका लगाये और आनन्द ले।
अंडमान निकोबार का JARAWA TRIBAL RESERVE जारवा आदिमानव जनजाति-
आज जो यात्रा होने वाली है वो अन्डमान के सबसे खतरनाक इलाके से होकर जायेगी। अंडमान में एक ऐसी आदिमानव प्रजाति रहती है जो आज भी नंग-धडंग होकर अपना जीवन बिताती है। इस मानव प्रजाति में क्या बच्चा, क्या बडा, क्या लडकी, क्या बुढ्ढी, क्या जवान सबके सब बिन कपडों के रहते है। बिन कपडों के मतलब, तन पर एक भी कपडा धारण नहीं करते है। यहाँ तक की चडडी/निक्कर आदि भी नहीं पहनते है। चलो देखते है, आज इस प्रजाति के दो चार प्राणी हमें दर्शन देंगे या नहीं? इस जनजाति को जारवा (Jarawa) जनजाति के नाम से पुकारा जाता है। ये जिस क्षेत्र में पाये जाते है उसे “JARAWA TRIBAL RESERVE” कहते है। वहाँ बिना अनुमति आम नागरिकों का जाना मना है। हम सरकारी बस से इस इलाके की यात्रा कर रहे है अंडमान की जारवा जनजाति इलाके को पार करने वाली लम्बी दूरी की सरकारी बस के टिकट पहचान पत्र के बिना नहीं दिये जाते है। इसलिये सरकारी बस में यात्रा करने वालों को यह इलाका पार करने के लिये अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेनी की आवश्यकता भी नहीं होती है। यदि आप अपने या किराये के वाहन से यहाँ इस चैक पोस्ट से आगे जाओगे तो आपको फार्म पर अपनी पूरी जानकारी भरकर उसके साथ पहचान पत्र की प्रतिलिपि भी साथ लगानी पडेगी। तभी आपको इस इलाके से होकर आगे जाने दिया जा सकता है।

जारवा के इस इलाके को पार कराने के लिये पुलिस की एक गाडी में जवान वाहनों के काफिले के आगे-आगे चलते है किसी भी वाहन को बीच में कही रोकने की इजाजत नहीं होती है। हम तो सरकारी बस से आये थे। जब हमारी बस इस इलाके के प्रवेश वाले चैक पोस्ट पर पहुँची तो वहाँ गाडियों की लाईन लगी थी। हमारी बस से पहले 25-30 गाडियाँ वहाँ खडी थी। हमारी बस के अलावा वहाँ केवल तीन-चार ही बसे थे जो आगे रंगत, डिगलीपुर आदि की ओर सवारी ले जा रही थी। हमने अपनी टिकट वैसे तो 70 किमी आगे रंगत तक बुक करायी थी लेकिन हमें इस बस में इस टापू के आखिरी किनारे मिडिल स्ट्रैट आता है। यहाँ सभी सवारियाँ बस से उतर कर किनारे खडे पानी की बडी नाव में चढ जाती है। हमारी बस भी इसी बडी नाव में चढा दी जाती है। बडी नाव में बैठकर लगभग दो किमी की समुन्द्री यात्रा पार करने के बाद अगले टापू के जराटाँग नामक छोर पर जाकर उतर गये। अब हम अपनी इस बस में दुबारा नहीं बैंठेंगे। यहाँ से सीधे हाथ समुन्द्र में दस किमी की यात्रा एक स्पीड बोट से तय करके, एक गुफा देखने जायेंगे। चूने के टपकने से बनी गुफा की यात्रा अगले लेख में मिलेगी। अभी आप सिर्फ बस यात्रा व आदिमानव जनजाति के रोमांच का आनन्द उठाये।

पोर्टब्लेयर से 50 किमी के बाद जिरकाटांग नामक जगह यह चैक पोस्ट आता है जहाँ पर दिन में सिर्फ 4 बार वाहनों का काफिला छोडा जाता है। सुबह 6 बजे, सुबह 9 बजे, दोपहर 12 बजे व दिन के 02:30 बजे। यदि कोई दिन के तीन बजे भी यहाँ जाता है तो अगले दिन सुबह होने तक इन्तजार करना पडता है। जिरकाटांग से अगला चैक पोस्ट मिडिल स्ट्रैट आता है जो जरकाटाँग से 47 किमी आगे पडता है। इस तरह देखा जाये तो आदिमानव रुपी जारवा जनजाति के लोग 50 किमी क्षेत्र में फैले हुए है। यहाँ इस इलाके में किसी भी तरह के फोटो लेने पर सख्त मनाही है। यदि कोई देख ले या शक हो जाये तो आपके कैमरे चैक किये जा सकते है और कैमरे में कुछ भी आपत्तिजनक मिला तो आपका कैमरा जब्त किया जा सकता है। हमारी बस सुबह 08:30 पर जिरगाटाँग पहुँच गयी थी। बस चालक ने बस को सबसे आगे ले जाकर खडा कर दिया। इस कानवाई में सबसे आगे बसों को ही चलाया जाता है। बस से आगे सिर्फ पुलिस की बाइक या जीप ही होती है। बस का बडा साइज होने के कारण काफिले के आगे चलाना बढिया बात है। यदि बडी गाडी निकल जाये तो छोटी गाडियाँ निकलने में कोई परेशानी नहीं होती है।

हमारी बस अभी आधे घन्टे बाद आगे जायेगी। तब तक चैक पोस्ट के पास बनी मार्केट से कुछ खाने-पीने का जुगाड देखते है। सडक किनारे बनी ढाबे नुमा दुकानों में केवल खाने पीने की ही दुकाने थी। यहाँ एक चाय वाले को चाय के जग में बनाती लम्बी धार को देखने के लिये लोगों की भीड लग गयी थी। ऐसा लग रहा था जैसे यह चाय वाला चाय को कप में डालकर नहीं, बल्कि मीटर में नापकर देता हो। जिस सडक से होकर आज की यात्रा हो रही है इसे अन्डमान ट्रंक रोड कहा जाता है। अन्डमान का यह ट्रक रोड 318 किमी लम्बा है जिसमें बसों व अन्य वाहनों को दो बार पानी के जहाज में चढाकर समुन्द्र की दो किमी के करीब यात्रा भी करनी होती है। तब जाकर अगले किनारे की सडक आती है। यहाँ चैकपोस्ट के सामने सडक किनारे भोलेनाथ का एक छोटा सा मन्दिर भी है जहाँ त्रिशूल की नोक पर किसी ने एक नीम्बू लगाया हुआ था। ठीक 9 बजे माइक से गाडियाँ चलने की घोषणा हुई। जिसके बाद सभी अपनी-अपनी गाडियों में जाकर अपनी-अपनी सीट पर बैठ गये। 

बस यात्रा आरम्भ होने के बाद हर किसी की निगाहे सडक के दाये-बाये या जंगल पर लगी हुई थी। लोकल लोगों के साथ हमारे जैसे घुमक्कड प्राणी भी बस में थे। हमारे लिये तो जारवा जनजाति देखना ही दुर्लभ बात थी। पूरे 50 की जंगल यात्रा में सिर्फ़ एक बार दो जारवा लोग सडक किनारे दिखायी दिये। चूंकि बस या अन्य वाहन रोकने की मनाही थी तो उन्हे सिर्फ कुछ सैकन्ड ही देख पाये। आधी सवारियों को तो सडक किनारे जारवा खडे होने का तब पता चला, जब बस काफी आगे निकल गयी थी। मैं भी जाते समय उन दो जारवा को नहीं देख पाया था। शुक्र रहा कि वापसी वाली बस यात्रा में दो बडे व तीन छोटे जारवा देखने का मौका मिल गया था। अधिकतर लोग इन जारवा लोगों की एक झलक पाने के लिये ही इस इलाके की यात्रा करने आते है। जरकाटाँग से जिरकाटाँग के बीच की यात्रा से ही अधिकांश पर्यटक वापिस लौट जाते है।

अन्डमान निकोबार के पोर्टब्लेयर वाले भाग को दक्षिण अन्डमान कहा जाता है। हमारी बस दक्षिण अन्डमान के दूसरे छोर पर आ गयी थी। यहाँ से दक्षिणी अन्डमान की शुरुआत होती है। यहाँ पर अब समुन्द्र में दो किमी की यात्रा की जायेगी। पानी पार कराने वाला एक जहाज पहले से खडा था जो हमारी बस के आने से पहले ही भर चुका था। उसके जाने के कुछ देर बाद, एक दूसरा जहाज आया जिसमें हमारी बस चढा दी गयी। हमारी बस के अलावा उसमें दो बस और भी थी। इसमें बसों की जितनी भी सवारियाँ थी, उन्हे 6 रुपये प्रति सवारी का टिकट बस टिकट से अलग लेना पडता है। अन्डमान में आकर पहली समुन्द्री जहाज की यात्रा करने का मौका मिला। इस तरह के बडे जहाजों में इससे पहले उडीसा की चिल्का झील मेंयात्रा करने का मौका मिला था। मैं जिस जहाज में चिलका के एक टापू से घूम कर आया था उसमें वापसी के समय दो ट्रक भी चढकर आये थे। चिल्का टापू वाले जहाज से यह वाला जहाज बहुत बडा है। इसमें यात्रियों के बैठने के लिये ऊपर एक मंजिल भी बनी हुई है, जहाँ सौ से ज्यादा लोगों के बैठने के लिये कुर्सियाँ भी है।

हमारी बस पोर्टब्लेयर से रंगत नामक छोटे शहर के लिये जा रही थी। हम आज की रात रंगत शहर से कुछ किमी आगे ही रुकेंगे। रंगत हमें आज ही जाना भी है व रुकना भी है लेकिन इस बस में नहीं जा रहे है। रंगत तक टिकट भी हमने मजबूरी में लिया भी था। पानी का जहाज हमें दूसरे किनारे जे जायेगा। दो किमी की इस छोटी सी समुन्द्री यात्रा करने में अहसास हो गया कि समुन्द्र में चलने वाले पानी के जहाज कई दिनों की यात्रा में तो पका देते होंगे। दूसरे किनारे तक दो किमी की यात्रा पूरी करने में ही 15 मिनट लग गये। अब हम मध्य व उत्तरी अन्डमान में आ चुके है। हमारी बस रंगत जा रही है। यहाँ से रंगत शहर 71 किमी दूर है। माया बन्दर नाम का बडा शहर यहाँ से 141 किमी दूर है। इस सडक पर स्थित व अंडमान का इस दिशा में अंतिम शहर डिगलीपुर अभी 203 किमी दूर रह गया है। हमारी यात्रा डिगलीपुर से भी कुछ किमी आगे तक जायेगी। 

चलो भाई बाराटाँग आ गया है यहाँ इस बस से उतरते है। अब यहाँ से आगे लगभग 10 किमी की यात्रा स्पीड बोट में बैठकर करनी पडेगी। आज तक स्पीड बोट में बैठना नहीं हुआ। आज पानी के जहाज के साथ यह तमन्ना भी पूरी हो जायेगी। अब तक साधारण स्पीड से चलने वाली चप्पू की नाव में बैठा हूँ। स्पीड वाली नाव में बैठने से पहले हमारे गले में पानी में डूबने से बचाने वाली जैकेट पहना दी गयी। उन जैकेट को पहन कर मुन्डी भी इधर-उधर मोडने में परेशानी हो रही थी। स्पीड बोट यात्रा ने यात्रा आरम्भ होने से पहले एक फार्म भी भरवाया था। यहाँ की स्पीड बोट यात्रा के लिये किराया बहुत ज्यादा लिया गया। यह बहुत गलत है। यदि सरकार इस बात पर ध्यान दे तो इनका किराया आधा तक हो सकता है। अरे सिर्फ 10 किमी की पानी की यात्रा के लिये 700 रु भाडा लेना कहाँ का तुक बैठता है। आना-जाना मिलाकर कुल 20 किमी ही तो हुए। इस तरह देखा जाये तो 35 रु प्रति किमी किराये पर यह यात्रा हुई। यह स्पीड बोट यात्रा तो हवाई जहाज यात्रा से भी महँगी हो गयी।  (Continue)





मीटर वाली चाय पीनी है।

चैक पोस्ट वाले मन्दिर का त्रिशूल

यह फार्म चैक पोस्ट पर कार वालों को भरना आवश्यक है


मैं तो रंगत ही जावूँगा।

सख्त नियम

मैंग्रों ट्री के जडे

हमारी सवारी, व हमारी बस की भी सवारी

पानी के जहाज की पहली मंजिल

स्वागत है।

आ गये दूसरे टापू पर

लाध लो बेटा, जितना मन करे।

दोस्तों, लेख में कुछ अन्य जानकारी चाहते हो तो कमैंट में याद दिलाते रहा करो।

9 टिप्‍पणियां:

अनिल दीक्षित ने कहा…

जारवा जनजाति को हमसे खतरा है या हमे उनसे।कृप्या बतायें।

Satyapal Chahar ने कहा…

सुपर

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

बहुत ही बढ़िया यात्रा वृतांत

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

बहुत ही बढ़िया यात्रा वृतांत

SANDEEP PANWAR ने कहा…

उनकी सम्भयता के लिए हमारी आधुनिकता खतरनाक है।
वे सिर्फ भूख के लिये वस्तुएँ लेने आबादी में आते है।

pawan kaithwas ने कहा…

आदिमानव और आदिवासियो मे थोड़ा अंतर है। आपके द्वारा जरावा लोगो के लिए आदिमानव की जगह आदिवासी शब्द का प्रयोग ज्यादा अच्छा होता।आदिमानव का अर्थ पुराकाल के लोगो से होता है जिनकी कोई संस्कृति कला और समाज नही होता। जबकि जरावा लोगो की विशिस्ट पहचान और सांस्कृतिक विरासत है उसे ही संरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने उस क्षेत्र को रिजेर्व क्षेत्र घोषित किया है।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

आदिवासी जो आपको दिखाई दिए क्या वो सचमुच नग्न थे

SANDEEP PANWAR ने कहा…

जी पवन जी सही कहा आपने, मैं आगे इसका ध्यान रखूँगा।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

सिर्फ चढढी पहने थे।

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