शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

Portblair- Chidiya tapu पोर्ट ब्लेयर, चिडिया टापू

चिडिया टापू जाने वाला मार्ग


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर टापू पर स्थित चिडिया टापू एक सुन्दर स्थान है। चलिये आज उसी ओर चलते है। इस यात्रा को शुरु से यहाँ क्लिक करके ढना आरम्भ करे।

अंडमान निकोबार का चिडिया टापू व उसका सूर्यास्त
आज हमारे पास कई घन्टे का समय खाली है तब तक क्या करे। तीन घन्टे में चिडिया टापू नामक छोटी  लेकिन सुन्दर सी जगह देखी जा सकती है। आज चिडिया टापू का सूर्यास्त देखकर आते है। चिडिया टापू की हमारे होटल से 25 किमी की दूरी थी। जिस ऑटो में हम यहाँ आये थे उससे यह अंदाजा तो हो गया था कि अंडमान में लोकल में घूमना है तो आटो सबसे अच्छा रहेगा। हमने चिडिया टापू तक आने-जाने का आटो 600 रु में तय किया। एक घंटा वहाँ ठहरने का भी शामिल था। हमारा होटल पोर्ट ब्लेयर में था जबकि चिडिया टापू वहाँ से 25 किमी दूर दक्षिण दिशा में समुन्द्र किनारे पर है। हम तीनों आटो में बैठ समुन्द्र किनारे से होते हुए चिडिया टापू चलते है। चिडिया टापू तक पहुँचने वाला मार्ग दिल को खुश कर देता है। सडक ज्यादा चौडी नहीं थी। यदि सामने से एक बस भी आ जाये तो आटो को नीचे उतरना पडेगा। आटो नीचे उतारने की जरुरत ही नहीं पडती होगी। कारण, यहाँ की सडकों पर अपने दिल्ली व अन्य बडे शहरों वाली किच-किच मार धाड नहीं है। नारियल के पेड समुन्द्र किनारे की शोभा तो बढा ही रहे थे। समुन्द्र किनारे मार्ग होने से बम्बई जैसा मरीन ड्राइव जैसा अनुभव हो रहा था। समुन्द्र की लहरे सडक पर ना आये उसे रोकने के लिये एक दीवार भी बनायी गयी थी। जहाँ भी बढिया सा सीन दिखता वही आटो रुकवा दिया जाता। तीनों आटो से बाहर निकल कर कुछ देर टहलते उसके बाद आगे की यात्रा पर चल देते। यदि यहाँ बस में होते तो यह आनन्द उठाने से वंचित रहना पडता। बस अडडे से चिडिया टापू की सीधी बस सेवा है जो प्रत्येक एक घंटे के अंतराल पर चलती है।

चिडिया टापू पहुँचते ही इस सडक का समापन भी हो जाता है। यहाँ पर वन विभाग का विश्राम गृह भी बना हुआ है। यदि कोई दोस्त यहाँ ठहरना चाहे तो कोई समस्या नहीं है। रेस्ट हाऊस के ठीक सामने समुन्द्र फैला हुआ है। जहाँ से आप घन्टों बैठ समुन्द्री लहरों को जी भर निहार सकते है। हमें रेस्ट हाऊस में ठहरना नहीं था इसलिये हम तो उसके अन्दर घूमने भी नहीं गये। सडक जहाँ समाप्त होती है उसके बराबर में पैदल निकल कर पेडों के झुरमुट की ओर चल दिये। यहाँ बहुत सारे छोटे-बडे पेड-पौधे थे जिनकी पहचान के लिये उनपर नाम लिखी पटटी लगायी गयी थी। कुछ नाम तो हमने पहली बार सुने थे। कुछ ऐसे भी थे जो पहले भी देखे हुए थे। जैसे यूजी पेड, जिसका नाम भी पहली बार सुना व देखा। इसके ठीक बराबर में जायफल का पेड था। इसे गोवा में देखा भी था। कोको नाम का पेड पहली बार यही देखा। कोको का नाम पहले कई बार सुना हुआ था। 

थोडी देर पहले तक मौसम साफ था लेकिन अचानक से बादल आते दिखाई दिये। हम यहाँ सूर्यास्त देखने के लिये आये थे लेकिन लगता है बादलों के काफिले में सूरज महाराज कब छिप जायेंगे पता भी न लगेगा। सूरज ने हमारी सूर्यास्त देखने की योजना में खलल डाल दिया तो क्या हुआ? हम फोटो सैसन करके यहाँ आने का लुत्फ उठायेंगे। हम फोटो सैसन में लग गये। सूरज व बादलों की आँख मिचौली भी साथ-साथ चलती रही। जब हम फोटो ले रहे थे नीचे समुन्द्र में पानी के बीच खडे कुछ गिने चुने पेड पौधे पर नजर ठहर गयी। हम यह अनुमान लगाते रहे कि ये पेड समुन्द्र के खारे पानी में कैसे जिन्दा रह पा रहे होंगे। जहाँ तक मुझे पता है खारे पानी में पेड-पौधे बहुत मुश्किल से ही जिन्दा रह पाते है। मैदानों में भी खारा पानी मिलता है मैदानों का खारा पानी, समुन्द्र के खारे पानी के मुकाबले आधा भी कडुवा नहीं होता है। 

मैं और मनु सूर्यास्त नजदीक आते ही अपने-अपने कैमरे के साथ तैनात हो गये। लेकिन जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि बादलों के कारण हमारी प्रतीक्षा बेकार हो गयी। जब आसमान की रोशनी कम हुई तो अंदाजा हो गया कि सूर्यास्त तो हो गया है। अब हमारा यहाँ रुकना बेकार है। आटो वाला तो हमारी प्रतीक्षा में ही था कि कब वापस चले। चिडिया टापू तक निकोबार प्रशासन की ओर से सरकारी बस सेवा भी है। इसलिये यदि कोई अकेला आ रहा है तो उसे आटो या टैक्सी के ज्यादा भाडे से मुक्ति मिल जायेगी। वैसे भी अन्डमान होटल के मामले में महंगा हो सकता है लेकिन अन्य मामलों में नहीं।

जून के महीने में अन्डमान निकोबार में शाम को 6 बजे अंधेरा होने लग गया। हम अभी भी दिल्ली के हिसाब से शाम को 8 बजे अंधेरा मान कर चल रहे थे। शाम को 6 बजे अंधेरा कैसे हो गया। मैंने राजेश जी का मोबाइल देखा तो उनके मोबाइल में यही समय हुआ था। अचानक ध्यान आया कि हम दिल्ली से 3000 किमी दूरी पर है। अगर दिल्ली से सीधे कन्याकुमारी की रेखा माने तो इन्दौर के आसपास तो मध्य बिन्दु मान ले तो वहाँ से अन्डमान की सीधी दूरी 2000 हजार किमी के आसपास तो होगी। यह सीधी दूरी पूर्व दिशा में है इस कारण समय में दो-तीन घन्टे का अन्तर तो हो ही जायेगा। ऐसा ही कुछ झमेला भारत के पूर्वी भाग जिसे हम North east of India कहते है वहाँ भी होता है। जब वहाँ के लोग भारत के मध्य या पश्चिम भाग में आते है तो उन्हे भी ऐसा होना थोडा सा अचरज होता होगा।
वापसी में चलने के कुछ देर बाद अंधेरा होने लगा। अधिकतर मार्ग समुन्द्र किनारे या जंगल वाला था। रात को घुप अंधेरे में उस घनघोर जंगल के बीच हमारा अकेला आटो धडधडाते हुए चले जा रहा था। हमें रात में पता नहीं लग पा रहा था कि हम कहाँ आ गये है। जब अचानक से आटो वाले ने आटो रोककर कहा कि यही रुकोगे या बाजार भी जाओगे। हमें बाजार में कुछ काम नहीं था लेकिन याद आया कि अभी होटल में जाकर क्या करेंगे? अभी तो 8 भी नहीं बजे है। आटो वाले का हिसाब चुकता किया। 

उसके बाद टहलते हुए थोडा आगे चल दिये। दोपहर में होटल आते समय समय एक ढाबा देखा था। सोचा उस पर कुछ लोकल खाने को मिल जायेगा। जब ढाबे वाले ने बताया कि मेरे पास तो लच्छी परांठे ही मिलेंगे। हमने लच्छी परांठे देने के लिये कहा। लच्छी परांठा वैसे तो स्वादिष्ट था लेकिन उसके साथ पानी वाली सब्जी मिली थी। पानी वाली सब्जी ने सारा स्वाद बिगाड दिया। लच्छी परांठे को पानी वाली सब्जी के साथ खाना हम तीनों के लिये महाभारत हो गया। आखिरकार सब्जी में डुबो-डुबो कर काम चलाया। ढाबे वले के पास थोडी सख्त सब्जी होती तो उस परांठे का स्वाद कुछ और होता। ढाबे वाले को बताया भी था लेकिन वो बोला कि यहाँ इस परांठे को पानी वाली सब्जी के साथ ही खाया जाता है। हर जगह के अपने व्यंजन होते है तो उन्हे खान के तरीके भी अलग-अलग ही होते है।

परांठा खाने के बाद होटल की ओर बढे ही थे कि हरिद्वार वाले बाबा रामदेव के पतंजलि की एक दुकान देखकर रुक गये। पहले तो इस दुकान को देखकर हम चौंके थे। उस दुकान के अन्दर गये। वहाँ से पतंजलि के कुछ बिस्कुट के पैकेट लिये। मुझे शेविंग क्रीम लेनी थी। मुझे लगा कि यहाँ पर पतजंलि की शेविंग क्रीम नहीं होगी। लेकिन जब दुकान वाले ने कहा कि हमारे पास दो तरह की शेविंग क्रीम है आपको कौन सी चाहिए? मैंने कहा, “पहले दोनों दिखाओ। जो पसन्द आयेगी वो ले लूँगा।“ दुकान वाले ने दोनों क्रीम दिखाई। एक साधारण शेविंग क्रीम थी। जिसको मैं एक साल तक उपयोग करता आ रहा था। दूसरी वाली शेविंग क्रीम जैल में थी। मैंने जैल वाली क्रीम ले ली। इसके बाद होटल पहुँचे। होटल वाले ने काऊंटर पर ही पूछा कि खाना कितनी देर में लगाना है? रात का खाना तो खाकर ही आये थे इसलिये होटल वाले को मना कर दिया। इस होटल में सबसे आखिरी दिन भी ठहरने वाले है जब पूरा अन्डमान घूम-घाम कर वापिस दिल्ली के लिये जायेंगे तो यही से अपनी यात्रा का समापन भी करेंगे। तब इस होटल का भोजन भी चख लिया जायेगा।

अगले दिन सुबह 7 बजे बस अडडे से डिगलीपुर की हमारी बस थी जिसमें बैठने के लिये हमें होटल से 5-6 किमी आगे जाना था। सुबह 6 बजे तैयार होकर होटल छोडना पडेगा। रात के 10 बजने वाले है। आज होटल में AC कमरा लिया है। चलो वातानुकूलित नींद लेते है उसके बाद कल की बस यात्रा पर निकलेंगे। कल जो यात्रा होने वाली है वो अन्डमान के सबसे खतरनाक इलाके से होकर जायेगी। अंडमान में एक ऐसी आदिमानव प्रजाति रहती है जो आज भी नंग-धडंग होकर अपना जीवन बिताती है। इस मानव प्रजाति में क्या बच्चा, क्या बडा, क्या लडकी, क्या बुढ्ढी, क्या जवान सबके सब बिन कपडों के रहते है। कहते है कि यह प्रजाति सडक किनारे कभी कभार ही दिखती है। देखते है कल हमें इस प्रजाति के दो चार प्राणी दर्शन देंगे या नहीं? इस जनजाति को जारवा (Jarawa)  जनजाति के नाम से पुकारा जाता है। ये जिस क्षेत्र में पाये जाते है उसे “JARAWA TRIBAL RESERVE” कहते है। वहाँ बिना अनुमति आम नागरिकों का जाना मना है। आम नागरिक में भारतीय और विदेशी सभी शामिल है।  (Continue)




सडक किनारे ये नजारे

सडक और लहरे साथ-साथ चलती है

एक तरफ नारियल तो दूजी तरफ लहरे




पानी में बचे जीवित पेड


सूर्यास्त होने वाला है।

फोटो ग्राफर मनु, कैमरे में कैद हो गया।

हमारी शाही सवारी

6 टिप्‍पणियां:

travel ufo ने कहा…

badhiya bhai

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - हमारे बीच नहीं रहे बेहतरीन अभिनेता ~ ओम पुरी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-01-2017) को "पढ़ना-लिखना मजबूरी है" (चर्चा अंक-2577) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

सुन्दर वृत्तान्त और चित्र

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

मन नहीं भर रहा है बस यू लग रहा है जैसे मैं भी साथ हूँ

Unknown ने कहा…

सुन्दर

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