अंडमान
और निकोबार द्वीप समूह की इस यात्रा में हम डिगलीपुर जाते हुए बाराटाँग उतरकर चूने
की गुफा देखने चले दिये। अभी तक हमने मरीना पार्क, चिडिया टापू जैसे स्थल देख चुके
है। आदिमानव युग के कुछ मानव अभी भी धरती पर निवास करते है। उनका जारवा क्षेत्र
होते हुए यहाँ आये है। अब उससे आगे की कहानी, यदि आप इस यात्रा को शुरु से पढना
चाहते हो तो यहाँ चटका लगाये और आनन्द ले।
अंडमान निकोबार बाराटाँग की चूने पत्थर वाली गुफा, BARATANG’S LIME STONE CAVE
दोस्तों, बाराटाँग आ गया है यहाँ इस बस से
उतरते है। अब यहाँ से आगे की यात्रा 10 किमी की स्पीड बोट में बैठकर करनी पडेगी। आज
तक स्पीड बोट में बैठना नहीं हुआ। आज पानी के जहाज में तो बैठ ही लिये लगे हाथ यह
इच्छा भी पूरी हो जायेगी। LIME STONE CAVE पूरी बाराटाँग से चूने के
पत्थर तक पहुँचने का एकमात्र साधन स्पीड बोट ही है वही हमें उस गुफा तक लेकर
जायेगी। नीलाम्बर रेंज के अधीन यह गुफा है। पानी में डूबने से बचाने के लिये हमें
जो लाइफ जैकेट पहनायी गयी थी। वो आरामदायक बिल्कुल नहीं थी सच बोलू तो अत्यधिक
असुविधाजनक थी। यह जैकेट कमर व पेट पर बांधी जाये तो ज्यादा सही रहता है। अब तक
मैंने MANGROVE के पेड व उनकी जड के बारे
में केवल सुना ही था आज उन्हे पहली बार कई किमी तक देखना हो पाया है। अभी हम लाइम
स्टोन की जिन गुफा को देखने जा रहे है। वहाँ, उन गुफा तक पहुँचने के लिये हमारी
बोट मैग्रोव के घने जंगल के बीच एक छोटी सी जल की धारा से होते हुए जा रही है। पतली
धारा में करीब आधा किमी अन्दर जाकर बोट से उतरना होगा।
स्पीड बोट में हम तीनों को मिलाकर मात्र 7-8 सवारी थी। स्पीड बोट वाला
30-35 की गति से हमें लेकर चल
पडा। जब बोट सीधी चलती थी तो कुछ नहीं होता था लेकिन जैसे ही बोट थोडी भी मुडती तो दिल धक से करता था कि अब पल्ट ही
जायेगी। अंडमान यात्रा मैंने सन 2014 के जून माह में की थी। उस
समय तक मुझे तैरना भी नहीं आता था। आज की बात करे तो दो साल यमुना किनारे रहने से
अब मैंने तैरना भी सीख लिया है। अब कुछ मिनट पानी में तैरा जा सकता है। हमारी
स्पीड बोट करीब दस किमी मंग्रोव किनारे खुले समुन्द्र में लगभग सीधे चली। उसके बाद
उल्टे हाथ मैन्ग्रोव के घने जंगल में दिखायी देती जल की एक धार में घुस गयी। इस
धारा में करीब आधा किमी चलने के बाद इस बोट से उतर गये। अब यहाँ से एक सवा किमी की
पैदल यात्रा करते हुए गुफा की ओर जाना है। सीधा सा मार्ग है कोई चढाई-वढाई नहीं
है। कुछ दूर खेतों के बीच निकलना पडा। खेतों में किसान काम करते हुए दिखायी दे रहे
थे। सामने ही एक छोटा सा गाँव दिखायी दे रहा था। इतने घने मैंग्रोव जंगल के बीच एक
गाँव व खेत भी हो सकते है मैंने नहीं सोचा था।
गाँव में मुश्किल से 8-10 घर ही होंगे। खेतों से
आगे कुछ दूर घने जंगल के बीच से चलना पडा। इसके बाद गाँव के नजदीक पहुँच गये। गुफा
भी अब ज्यादा दूर नहीं थी। गुफा से थोडा सा पहले गाँव वालों ने यहाँ आने वालों के
लिये नीम्बू पानी की दो दुकान लगायी हुई थी। हमने भी इन नीम्बू पानी की दुकान से
नीम्बू पीकर अपने आपको तरोताजा किया। कुछ देर बैठने के उपरांत गुफा देखने पहुँच
गये। हमारी मोटर बोट वाला लडका अपने साथ एक बडी सी टार्च लेकर आया था। गुफा में
अन्धेरा होता है जब उसने टार्च से रोशनी की तो गुफा के अन्दर कुदरत की कारीगरी
दिखायी देने लगी। सच में कुदरत भी कैसे-कैसे करिश्मे कर देती है। चूने पत्थरों से
बनी ये चट्टाने देख कर हैरत-अंगेज कलाकृति बन जाती है जो ऐसा लगता है जैसे किसी
कारीगर ने वर्षों की मेहनत से बनायी हो। ऐसी ही चूने की गुफा मैंने आंध्रप्रदेश के
विशाखापटनम के पास अरकू वैली जाते समय वोरा गुफा
में भी देखी थी।
इन गुफाओं के बारे में वहाँ लगे सूचना पट से
कुछ जानकारी मिली, जो इस प्रकार है। इनकी दो श्रेणी है। पहली वाली है स्टैलक्टाइट
व दूसरी है स्टैलग्माइट। स्टैलक्टाइट की रचना गुफा की छत में टपकने से जमा होने
वाले चूने से बनती है। इस क्रिया के लगातार चलने के कारण इससे बनने वाली आकृति
धरती की ओर धीरे-धीरे खम्बे जैसा रुप धारण कर बढती रहती है। दूसरी में पानी की
बूंद धरती पर गिरने के कारण पानी में मिला चूने का छोटा सा अंश धरती पर जमा होता
रहता है। यह जमा होने वाला चूना आसमान की ओर खम्बे जैसा रुप धारण करता जाता है।
इसे स्टैलग्माइट कहते है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो ये ठीक उसी प्रकार है जैसे
किसी स्तम्भ को बीच में से काट कर गायब कर दे तो उसका एक भाग छत में रह जायेगा और
दूसरा भाग फर्श पर रहेगा।
कुछ देर गुफा में रुके। इस गुफा की ऊँचाई बहुत
है इसमें आसमान में एक छेद भी है ऐसा छेद वोरा गुफा में भी था लेकिन वोरा गुफा
वाला सुराख बहुत बडा था। वोरा वाली गुफा में एक गाय गिर गयी थी उस दुर्घटना के
कारण उस गुफा की खोज हो पायी थी। गुफा देखकर जब बाहर निकले तो पैदल मार्ग को पार
करते हुए एक हरे साँप को देखकर एक औरत जोर से चिल्लायी। मैं और मनु भागकर उस साँप
के फोटो लेने पहुँच गये। हरा साँप ज्यादा मोटा नहीं था लेकिन लम्बा 4-5 फुट का तो रहा होगा। हम
दोनों उस साँप के फोटो ले रहे थे तो कई लोगों ने हमें पीछे हटने को कहा, लेकिन हम
भी सावधान थे। साँप भीड देखकर डर गया था इसलिये वह झाडी में घुसा जा रहा था। कुछ
दूर तक साँप दिखाई दिया उसके बाद पेड-पौधों में ओझल हो गया।
सामने ही गाँव वालों की नीम्बू पानी की दुकान
थी। वापसी में भी कुछ देर वहाँ रुके। यहाँ एक मुर्गी घूम रही थी। अचानक देखा कि उस
मुर्गी के साथ 10-12 चूजे है। चूजों के साथ वाली फोटो साफ नहीं ले पाया। वापसी
के लिये चल दिये। जिस मार्ग से गये थे उसी पैदल मार्ग से होकर नाव के पास पहुँचे।
यहाँ आते समय नाव से लकडी का एक पुल देखा था। उस पुल को इस धारा के उस पार करने के
लिये ही बनाया था। जहाँ से नाव में बैठना था। वहाँ आये तो नाव वाला बोला, जिसे नाव
में बैठना हो वो नाव में बैठ जाये और जिसे लकडी वाले मार्ग से होकर समुन्द्र किनारे
तक आधा किमी की पद यात्रा मैंग्रोव के पौधों के बीच से करने की इच्छा हो वो पैदल आ
जाये। हम नाव में जितने भी आये थे सभी ने लकडी के बने फुटपाथ पर पैदल चलने का
निर्णय किया।
लकडी का मार्ग पैदल चलने के लिये ही बनाया था।
जवार भाटे के समय पानी कम या ज्यादा होता होगा तो यह यहाँ आने का सबसे अच्छा जरिया
है। मैंग्रोव के पेडों की जडे एक जाल सा बुनती है। जिसे देख कुदरत की वाह-वाह मुँह
से निकलती है। थोडी देर में हम समुन्द्र किनारे आ गये। यहाँ पर नाव में चढने व
उतरने के लिए एक अच्छा खासा प्लेटफार्म बनाया हुआ है। उस प्लेटफार्म पर खडे होकर
ऐसा लगा कि जैसे हम समुन्द्र के ऊपर ही खडे हो। एक बार फिर नाव में सवार होकर वापस
चल दिये। अबकी बार भी नाव वाले ने स्पीड बोट को लगभग उसी गति से भगाया। तेज गति में पानी के ऊपर यात्रा करने का अलग
रोमांच महसूस किया। वापसी में हमारे साथ एक अन्य बोट भी हमारे पीछे थोडे फासले से
आ रही थी। एक टापू नुमा जगह आकर वह बोट टापू के दूसरी ओर चली गयी। टापू पार होते
ही दूसरी बोट भी दिखायी देने लगी। करीब 10 किमी समुद्री लम्बाई को तेजी से पीछे छोडती स्पीड
बोट की यह यात्रा, कब समाप्त हुई पता ही न लगा।
बाराटाँग किनारे पहुंचकर रंगत की ओर जाने वाली
अगली बस की जानकारी ली। पता लगा कि आगे रंगत की ओर जाने वाली अगली बस करीब एक
घन्टे बाद आयेगी। गुफा तक आने-जाने में हमें दो घन्टे लग गये। जारवा लोगों के
इलाके वाला बैरियर तीन घन्टे बाद ही खुलता है। वहाँ से आने वाली बस पानी के जहाज
में चढ कर इस पार आयेगी तब आगे जायेगी। सडक किनारे यात्रियों के प्रतीक्षा करने के
लिये दो ठिकाने बनाये हुए है। यहाँ हम तीनों आपस में बात करने की जगह लोकल बन्दों
से बात करके वहाँ के बारे में जानकारी जुटाते रहे। बातों में कब घंटा बीता, पता ही
न लगा। दो-तीन बस पानी के जहाज से उतर रही है चलो, अपना आगे का सफर जारी रखते है। अब
हम आगे रंगत की ओर जायेंगे। हमें आज की रात रंगत से आगे करीब 18 किमी एक होटल में रुकना
है। आज हमारी बुकिंग वही पर है। रात को वहाँ रुकेंगे। अगले दिन वहाँ पर उससे कुछ
पहले व उसके कुछ किमी बाद सुन्दर-सुन्दर दो-तीन बीच देखने जायेंगे। आज अंधेरा होने
से पहले भी एक सुन्दर सा बीच देखने के लिये हमें धनीनाला के मैंग्रोव के घने जंगल के बीच से होकर जाना है।
धनीनाला मैंग्रोव की यात्रा अगले लेख में (क्रमश:) (Continue)
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मैंग्रोव के बीच जल की धारा में हमारी बोट आगे बढते हुए |
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लकडी वाला पुल |
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हरे-भरे खेतों के बीच से होकर |
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गुफा में आसमान से आती रोशनी |
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चूने और कुदरत का अनोखा संगम |
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गजब, कलाकृति |
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कमल की कली |
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गजब, इंसानी व जानवर की खोपडी जैसी आकृति |
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राजेश सहरावत जी के हाथ, कानून से भी लम्बे है गुफा की छत तक भी पहुँच गये। |
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गुफा |
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हट जा ताऊ, फोटो खिचवान दे। |
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भाग मत दोस्त, तुझ से ज्यादा जहरीले तो इंसान है। |
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मिल के बोझ उठाना, एक अकेला थक जायेगा। |
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गोल कक्ष |
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मैंग्रोव की जडे |
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मनु दा स्टाइल |
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लकडी का प्लेटफार्म |
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आओ लौट चले। |
दोस्तों, इस लेख में ऐसा कुछ छूट गया हो जो आप जानना चाहते हो, अपने कमैंट में अवश्य लिखना न भूले।
5 टिप्पणियां:
यात्रा बहुत ही बढ़िया चुने पत्थर की कलाकृति गजब
यात्रा बहुत ही बढ़िया चुने पत्थर की कलाकृति गजब
बहुत ही बढिया
गजब की कलाकारी है ।हरा सांफ जहरीला होता है ऐसा सुना है
ओ त्रि,ऐसा क्या? आगे सावधान रहना पडेगा।
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