KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-05
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
आज के लेख
में दिनांक 27-04-2014 की यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। खजुराहो की यात्रा के अन्तिम पडाव में बचे दो मन्दिर देखने जा रहा हूँ। इन्हे देखने के लिये जैन
मन्दिर देखकर वापसी में गाँधी चौक पर आना पडता है। यहाँ से वामन व ज्वारी मन्दिर के लिये जाना पडता है। इन दोनों मन्दिरों तक पहुँचने
के लिये खजुराहो के एक अति पिछडे आवासीय इलाके के मध्य से होकर जाना पडा। जब आटो वाला
इस इलाके से निकल रहा था तो मैंने सोचा था कि हो सकता है ऑटो वाले का घर यहाँ हो, या
किसी काम से यहाँ होकर निकल रहा हो लेकिन जब वह उस बस्ती से आगे निकल गया तो माजरा
समझ आ गया। बस्ती समाप्त होते ही सीधे हाथ एक तालाब दिखायी देने
लगा। मार्ग की हालत एकदम गयी गुजरी थी। पक्की सडक की बात ही
तो छोडो उसे तो कच्ची सडक भी कहना सही नहीं होगा।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
सडक किनारे
नीम का एक पेड टूटा हुआ पडा था। यह पेड जरुर आँधी में ही टूटा होगा। पेड काफ़ी बडा था। तना खोखला होने के कारण यह कमजोर हो गया था। पेड की वे टहनियाँ काटी जा चुकी थी जिससे मार्ग अवरुध होने की गुंजाइश थी। ऑटो के सामने कुछ बकरियाँ आ गयी जिससे ऑटो को कुछ देर रुकना पडा। जैसे
ही बकरियाँ हटी तो ऑटो आगे बढा। यहाँ सीधे हाथ मैदान के
आखिरी छोर पर एक मन्दिर दिखायी दे रहा है। ऑटो वाला उस मन्दिर की ओर ना मुडकर सीधा
चला जा रहा था तो मैंने सोचा कि यह कोई आलतू फ़ालतू मन्दिर
होगा तभी तो ऑटो वाला मुझे वहाँ लेकर नहीं जा रहा है।
सडक पर थोडा
आगे जाते ही उल्टे हाथ तालाब की ओर एक अन्य मन्दिर था जो देखने में ज्यादा पुराना
नहीं लग रहा था। यह मन्दिर सफ़ेद रंग का था इसके प्रांगण
में हनुमान जी की मूर्ती थी। जिससे देखकर आसानी से अनुमान लगा लिया
कि यह हनुमान मन्दिर ही होगा। जब उस मन्दिर के सामने पहुँचे तो अपना अंदाजा सही
निकला। इस मन्दिर में लाउडस्पीकर पर पूजा-पाठ/प्रवचन आदि की ध्वनि साफ़ सुनायी दे
रही थी। मन्दिर के प्रांगण में कुछ भक्त जन भी विराजमान थे। उनसे अपना कोई लेना
देना नहीं था अत: अपुन वहाँ नहीं रुके।
यहाँ से
करीब 400 सौ मीटर आगे जाते ही खजुराहो की पहचान बन
चुके मन्दिरों जैसा ही एक मन्दिर दिखायी दिया। एक ऑटो हमारे से थोडा सा आगे था जब
वह ऑटो उस मन्दिर के सामने जाकर रुक गया तो तय हो गया कि अब अन्तिम बचे दो
मन्दिरों में यह भी शामिल है। ऑटो वाले ने एक पेड की छांव में ऑटो खडा कर दिया।
मैंने अपाना बैग वही छोड कैमरा सम्भाला और इस मन्दिरों को देखने चल दिया।
सबसे पहला
फ़ोटो मन्दिर की चारदीवारी में लगे लोहे के ग्रिल वाले गेट से लिया गया। उसके बाद
मन्दिर परिसर में दाखिल हुआ तो सम्पूर्ण मन्दिर देख लिया। इस मन्दिर का मुख्य दवार
भी पूर्व की ओर ही बना हुआ है। यहाँ भी एक विशाल चबूतरे पर इस मन्दिर का निर्माण
किया गया है। चबूतरे की ऊँचाई लगभग दस फ़ुट ऊँची तो रही होगी। इस मन्दिर का नाम
वामन मन्दिर है जो वहाँ लगे एक बोर्ड से पता लगा। मन्दिर देखकर नीचे उतरा तो एक
फ़ोटो ग्राफ़र पीछे पड गया कि फ़ोटो खिचवा लो। ना भाई, मुझे अपने फ़ोटो खिचवाने का
ज्यादा शौंक नहीं है। उसने कुछ चित्र वाली पुस्तिका भी दिखायी लेकिन उसका मुझ पर
कोई प्रभाव नहीं पडा। मेरा कैमरा पीठ पीछे था जब मैंने अपना कैमरा आगे की ओर किया
तो वह चुपचाप खडा हो गया।
मन्दिर से
बाहर आते ही ऑटो वाले से कहा, अब आखिरी मन्दिर कहाँ है? उसने कहा वो देखो सामने 300-400 मी के फ़ासले पर मैदान के उस किनारे
पेडों के बीच जो मन्दिर दिख रहा है बस वही देखना बाकि रह गया है। ठीक है तुम ऑटो
को थोडी देर में लेकर आना तब तक मैं पैदल देख आता हूँ। पेडों के बीच से होते हुए
आगे बढने लगा तो गर्मी से बचने के लिये पेड की छांव में आराम करता एक खच्चर बैठा
दिखायी दिया। मुझे नजदीक आते देख वह उठ खडा हुआ। मेरी इरादा उसे तंग करने का नहीं
था। लेकिन जब वो खडा होकर मुझे घूरने लगा तो मैंने उसका फ़ोटो ले लिया। फ़ोटो लेने
के बाद भी उसने घूरना नहीं छोडा तो मैं उससे बचता हुआ आगे बढने लगा। आगे निकलकर
देखा कि वह गर्दन मोडकर भी घूर रहा है। कैमरे का जूम प्रयोग कर एक फ़ोटो और ले
लिया।
आगे चलकर तालाब से निकली
पानी की धार को पार करना था लेकिन उसके ठीक पहले आम का एक पेड था जिस पर छोटे-छोटे
व कच्चे आम लगे हुए थे। कुछ आम स्वयं टूट कर नीचे गिरे पडे थे। जो सूख कर खराब हो गये
थे। अगर आम अच्छी हालत में होते तो खाने पर विचार किया जा सकता था। चलो पानी की धार
पार कर आगे चलते है। पानी की धार सम्भल कर पार की उसके बाद ज्वारी मन्दिर ज्यादा दूर
नहीं बचा था। मन्दिर परिसर में दाखिल होने के बाद चबूतरे पर चढने का मार्ग तलाशते हुए
पूर्वी छोर पर जाना पडा। यह मन्दिर भी पूर्वी दिशा की ओर बना हुआ है। चबूतरे पर चढकर
मन्दिर देखा गया। इसका चबूतरा भी काफ़ी ऊँचाई पर जिससे आसपास का इलाका दूर तक दिखायी
दे रहा था।
इन दोनों मन्दिरों में मध्य
प्रदेश सरकार की ओर से कर्मचारी देखभाल के लिये तैनात मिले। जो इसकी साफ़-सफ़ाई के साथ
रखवाली भी करते होंगे। मन्दिरों को देखने का क्रम पूरा हो चुका है। अब खजुराहो छोडने
का समय आ गया है। ऑटो वाला अभी वही खडा है उसे मोबाइल पर कॉल कर बुलाया। जब तक ऑटो
वाला घूम कर मेरे पास आता तब तक मैं उसकी ओर चल दिया था। ऑटो वाला उसी सफ़ेद मन्दिर
के सामने मिला जहाँ लाउड स्पीकर पर प्रवचन चल रहे थे। यहाँ एक कुएँ पर दो महिलाएँ कपडे
धोने में व्यस्त थी। आज भी कुएँ के पानी के भरोसे जीवन क्रिया चलते देख आश्चर्य होता
है। ऑटो में बैठने से पहले तालाब के फ़ोटो लिये गये। आखिर में कुएँ
पर कपडे धोने में लगी महिलाओं के फ़ोटो लेकर बस अडडे की ओर बढ चले।
थोडी देर
में बस अडडे पहुँच गये। ऑटो वाले को 300 सौ रुपये देने थे लेकिन मेरे पास खुले नहीं थे। उसके पास 200 सौ खुले नहीं थे। 500 सौ खुले कराने के लिये एक
कोल्ड ड्रिंक ली गयी। हम दोनों ने आधी-आधी कोल्ड ड्रिंक पी। खुले रुपये मिलने के
बाद उसका हिसाब चुकता कर दिया। बस अडडे पर खजुराहो रेलवे स्टेशन जाने के लिये बस
तैयार खडी थी। लेकिन मुझे ऑटो में बैठकर जाना था। इसलिये वहाँ खडे ऑटो वाले से बात
की तो उसने कहा कि वह चाय पीने के बाद जायेगा। जब तक उसने चाय पी तब तक उसका ऑटो सवारियों
से भर गया।
ऑटो में दो
महिलाओं के साथ उनके दो बच्चे भी सवार थे। मेरे गले में कैमरा लटका देख उनका चेहरा
कोतुहल से भर गया था। उनमें से एक अपनी माँ को इशारा कर कैमरे के बारे में कुछ
कहना चाह रहा था। मैने उस गरीब की भावनाओं का सम्मान करते हुए उसके गले में कैमरा
लटका कर कहा। लो फ़ोटो खीच कर देखो। पहले तो वह सकपका गया लेकिन उसके बाद उसने कई
फ़ोटो खींचे तो उसका चेहरे की खुशी देखने लायक थी। उस गरीब बच्चे की कमीज में बटन
भी नहीं थे। बाद में मैने उस बच्चे का एक फ़ोटो भी लिया। अपना फ़ोटो देखकर वह बहुत
खुश हुआ। उस गरीब को इतने में ही बहुत सारी खुशी मिल गयी इसमें मेरा क्या घिस गया?
चाय पीते ही
ऑटो वाला हमें लेकर खजुराहो की दिशा में चल दिया। खजुराहो रेलवे स्टेशन की केवल
तीन सवारियाँ ही थी। बाकि अन्य सवारियाँ ग्वालियर व भोपाल की दिशा में किसी अन्य
स्थल की रही होंगी। जब खजुराहो रेलवे स्टेशन वाला फ़ाटक आया तो खजुराहो की दो
सवारियाँ वहीं उतर गयी। उनके साथ मैं भी फ़ाटक पर ही उतर गया। ऑटो वाले को सीधे चले
जाना था यानि रेलवे स्टेशन पर जाना नहीं था इसलिये फ़ाटक पर उतरना सही फ़ैसला रहा।
मेरे साथ उतरे दो बन्दे फ़ाटक पर बने रेलवे आवास में चले गये। मैंने रेलवे लाइन के
साथ-साथ स्टॆशन की ओर बढना आरम्भ किया। (यात्रा जारी है।)
2 टिप्पणियां:
सुन्दर यात्रा चित्र...
गधे महाराज भी अपनी छवि में मस्त नजर आ रहे है
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