शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

Let's go to Kumaun Region आओ उत्तराखण्ड के कुमायू क्षेत्र में घूमने चले।

KUMAUN CAR YATRA-01                                                       SANDEEP PANWAR
सन 2014 अप्रैल माह के शुरुआत की ही बात है। इस माह राजेश जी कई बार फ़ोन कर कह चुके थे कि संदीप जी चलो, कही भी चलो। मेरा मन हिमालय में कही चलने का हो रहा था। जबकि राजेश जी हरिदवार जाने की कह रहे थे। हरिदवार तो मैंने बीसियों बार देखा है। इसलिये वहाँ जाने का मन नहीं था। अजय भाई भी कई बार कह चुके थे कि संदीप भाई जी आपके साथ किसी यात्रा पर जरुर जाना है? दिनांक 8 को गुड फ़्राडे का अवकाश था। उसके अगले दिन शनिवार था। पहले अपनी भी शनिवार को छुट्टी रहा करती थी। लेकिन अब मात्र 6 घन्टे की नौकरी होने से केवल रविवार का ही अवकाश होता है। गुड फ़्राडे से पहले वाले सोमवार को चुनावी लाभ लेने के उद्देश्य से अम्बेडकर जयंती का अवकाश घोषित हो गया। अजय का फ़ोन आया भाई जी चलो कही भी चलो। मेरी तीन दिन की, व आपकी दो दिन की छुट्टी है।





राजेश सहरावत जी को फ़ोन मिलाया। उधर से जवाब मिला कि आपके द्वारा मिलाया गया नम्बर नेटवर्क से बाहर है। एक बार नहीं, कई बार ट्राय किया लेकिन दो घन्टे तक ऐसा ही होता रहा। अजय बोला क्या हुआ भाई जी? राजेश जी से बात हुई कि ना। आखिरकार मैंने अजय को राजॆश सहरावत का नम्बर देकर कहा। मेरे मोबाइल से यह नम्बर मिल नहीं रहा है यदि तुम्हारा मिल जाये तो तुरन्त मुझे सूचित कर देना। करीब तीन घन्टे बाद अजय का फ़ोन आया कि राजेश जी से बात हो गयी है। आप उनसे बात कर लो। राजेश जी से बात हुई। राजेश जी से पहले से ही तैयार थे। रात को 11 बजे लोनी गोलचक्कर पर मिलने की बात हो गयी। अभी रात के 8 बजे थे। हमारे पास तैयारी के लिये 3 तीन घन्टे थे जो बहुत थे।
मनु से भी बात हो चुकी थी। मनु ने कहा था कि उसका जाना वैसे तो मुश्किल है लेकिन आप लोग मेरे यहाँ तक आओ तो सही, तब तक मैं कोई ना कोई फ़ैसला कर लूँगा। इस तरह चार मनमौजियों के अलावा मनु का जाना अभी संस्पेंस में था। जिन चार का जाना पक्का था। राजेश जी गाडी वाले, संदीप पवाँर गाडी चालन में सहयोग देने वाले, बाकि बचे दो अजय और प्रवीण ये दोनों पिछली सीट पर बैठने के अलावा किसी काम के नहीं थे। प्रवीण भाई में थोडा शर्मीला पन है जबकि अजय अपनी तरह मस्त मौला है।
रात 10 बजे राजेश जी का फ़ोन आया कि मैं घर से चल दिया हूँ। ठीक है, मैं नहाकर कपडे पहन रहा हूँ। अजय को फ़ोन मिलाया। उसका शायद बैग या जूता कुछ ना कुछ फ़ट गया था उसे सिलवाने में लगा था। अजय से बात करते हुए एक कहावत/मिसाल याद आ गयी। जिसके अनुसार किसी हलवायी को कडाई गर्म होने के बाद याद आता है कि तेल तो है ही नहीं। खैर, अजय और प्रवीण तय समय पर आने की कह रहे थे। चूंकि इस यात्रा में कोई ट्रेकिंग आदि नहीं होनी थी। इसलिये मैंने अजय को बोला भी था कि जूते पहन कर मत आना। लेकिन महाराज जूते पहन कर ही आया।
अजय व प्रवीण को लोनी बार्डर पुलिस चौकी के ठीक सामने मिलने की बात तय हुई थी। अपुन की आदत बडी खराब है समय से कुछ पहले पहुंचने की आदत बन चुकी है। अजय व प्रवीण सिर्फ़ 4 मिनट देरी से पहुँचे। जिस दिन इनकी एक रेल मेरी तरह छूट गयी तो यह भी समय से पहुँचना सीख जायेंगे। समय से पहुँचने में कुछ लोग मिसाल होते है उनसे बडा उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता है। जब मैंने दोनों को देखा तो एक बात अच्छी रही कि अजय लोअर पहन कर आया था। जिससे गाडी में बैठने में आराम रहता है। अब प्रवीण पर नजर गयी। प्रवीण बाबू तो पूरे बाबू बन कर आये थे। इन्हे देखते ही मैंने कहा कि पार्टी में जा रहे हो?
हम तीनों पैदल ही, लगभग एक किमी दूर, लोनी गोलचक्कर की ओर चल दिये। थोडी देर में ही यह दूरी पार हो गयी। लोनी गोल चक्कर पहुँचकर वहाँ बने हनुमान मन्दिर के सामने डेरा जमा दिया। मन्दिर के गेट के सामने ही बैठने लायक जगह दिखायी दी। हम तीनों मन्दिर के गेट पर बैठ गये। मन्दिर के कपाट बन्द हो गये थे। हम वहाँ 10-12 मिनट बैठे होंगे कि उस दौरान दो-तीन भक्त मन्दिर का घन्टा बजाने पहुँच गये। चूंकि मैं गेट के बीच में घन्टे के ठीक नीचे बैठा था तो जब वे भक्त मेरे पीछे मन्दिर में झुक कर प्रणाम कर रहे थे तो अजय भाई मुस्कुरा रहे थे। अजय की मुस्कुराहट का राज पूछा तो अजय बोला भाई जी उन भक्तों को देखकर ऐसा लगता था जैसे वो आपको प्रणाम कर रहे थे। कही उन्हे पता तो नहीं लग गया कि मुझे दोस्त जाट देवता कहते है?
राजेश जी सही समय पर घर से निकले थे अभी तक तो उन्हे आ जाना चाहिए था। जब 11 बजे तक राजेश जी नहीं आये तो उन्हे फ़ोन मिलाया। राजेश जी बोले, संदीप जी वजीराबाद के जाम में फ़ंसा था। अभी बाहर निकला हूँ। इतनी रात में भी वजीराबाद पुल पर जाम लगा है यह हमें दिन में रोज सताता है। लोनी गोल चक्कर से वजीराबाद केवल 5-6 किमी दूर है। थोडी देर में ही राजेश जी अपनी वैगन आर लेकर पहुँच गये। इनकी गाडी धीमी होते ही मैं समझ गया कि यह गाडी राजेश जी की है। राजेश जी ने कुछ दिन पहले ही एक अन्य गाडी ली है जो शायद निशान कम्पनी की स्टनो माडल है। जब राजेश ने कहा कि कौन सी गाडी लेकर आऊँ? तो मैं कहा जिसे गंगा जी स्नान कराना है। अभी तो कोई सी ने भी गंगा स्नान नहीं किया है। ठीक है फ़िर पहले वाले ले आओ।
मैं आगे वाली सीट पर राजेश जी के साथ बैठ गया जबकि अजय व प्रवीण पिछली सीट पर जम गये। दिल्ली में पैट्रोल व डीजल अन्य राज्यों से सस्ता मिलता है। इसलिये दिल्ली से बाहर जाते समय गाडी की टंकी फ़ुल करा लेनी चाहिए। राजेश जी ने गैस तो फ़ुल करा ली लेकिन पैट्रोल टैंक फ़ुल कराना ना हमारे याद रहा, ना राजेश जी व अन्य किसी को ध्यान रहा कि इस गाडी में गैस के अलावा पैट्रोल टंकी भी है। यह बात रामपुर जाकर हमारे ध्यान में आयी थी।
रात को सडक पर चलते समय सडकों के किनारे इक्का दुक्का मानव दिखाई देता था। गाडियों की संख्या भी दिन के मुकाबले कम ही थी। दिल्ली से चलते समय हमारा लक्ष्य हरिदवार था लेकिन गाजियाबाद हिन्डन पहुँचने तक हमारा इरादा बदल चुका था। हम चारों पहले भी हरिदवार जा चुके है। इसलिये फ़टाफ़ट तय हुआ कि किसी नई जगह चला जाये। एक बार हिमाचल चलने की सोची लेकिन गाजियाबाद आकर हिमाचल जाना, मतलब उल्टा पहाड चढना था। इसलिये तय हुआ कि उत्तराखण्ड के कुमायूँ में चला जाये।
कुमायूँ का प्रवेश दवार कहा जाने वाला हल्दवानी इलाका अभी तक मेरे अलावा, अन्य सबके लिये अनदेखा था। नैनीताल के आसपास का इलाका काफ़ी सुन्दर है। हमने अपनी मंजिल तय कर ली थी कि सुबह तक भीमताल पहुँचा जाये। भीमताल पहुँचकर तय करेंगे कि आगे कहाँ जाना है? हिन्डन हवाई अडडे से आगे हिन्डन नदी का पुल पार करते ही मेरठ तिराहा आता है। यहाँ से मेरठ-हरिदवार के लिये उल्टे हाथ मुडना होता है। हमें सीधा जाना था। गाजियाबाद नये बस अडडे से आगे जाते ही एक फ़्लाईओवर आता है यहाँ से फ़्लाईओवर पर चढ गये तो बुलन्दशहर के लिये निकल जायेंगे। हापुड जाने के लिये फ़्लाईओवर के बराबर से होकर उल्टे हाथ मुडकर गाजियाबाद के पुराने बस अडडे के सामने वाले फ़्लाईओवर व उसके आगे रेलवे लाईन वाले फ़्लाईओवर से होकर हापुड की ओर बढते रहे।
गाजियाबाद पार करते ही हापुड रेलवे लाइन पार करने के लिये कुछ दिनों पहले ही फ़्लाईओवर बन चुका है। इस फ़्लाईओवर के ऊपर से होकर राष्ट्रीय मार्ग पर पहुँच जाते है। यहाँ आकर हमारी गाडी 80-100 के बीच चलने लगी। डासना जेल के पास बने टोल बूथ पर 15 रु की पर्ची कटा कर आगे बढते रहे। गढ गंगा जाकर दूसरा टोल टैक्स मिला यहाँ शायद 45 रु का टैक्स लगा। एक जगह नाम याद नहीं आ रहा है 55 रु का टैक्स लगा। इसके बाद मुरादाबाद में 15-15 के दो टैक्स लगे। इस हाईवे पर गाडी चलाते हुए काफ़ी सुकून मिलता है। यह जम्मू वाले हाइवे की याद दिला देता है।
रामपुर पहुँचकर राजेश जी को थकान होने लगी थी। मैंने उन्हे कहा भी कि कुछ देर मेरी सीट पर आ जाये। लेकिन वे हिम्मत हारने को तैयार नहीं थे। रामपुर से हल्दवानी-नैनीताल की ओर मुडते ही चाय की एक दुकान देखकर गाडी रोक दी। मैंने चाय बनाने के लिये आवाज दी तो मुझे अजय व राजेश ने रोक दिया कि नहीं यहाँ नहीं आगे पियेंगे। यह शांति प्रिय लोगों की दुकान है।
सुबह 4 बजे रामपुर से नैनीताल के लिये चल दिये। इस मार्ग की हालत दो साल पहले भी खराब थी जब मैं और मनु यही से बाइक पर रुपकुन्ड गये थे। रामपुर से आगे बढते ही सडक की हालत खराब मिली। अचानक मेरी निगाह सडक के सीधे हाथ जाती एक अन्य सडक पर गयी। वहाँ भी नैनीताल जाने का बोर्ड़ लगा था। मैंने सोचा कि यह कोई नया मार्ग बनाया होगा। गाडी कुछ मीटर आगे निकल आयी थी। इसलिये गाडी मोडकर वापिस लाये।
एक बन्दे से इस मार्ग के बारे में पता किया। ट्रक भी इसी मार्ग पर मुड रहे थे। उस बन्दे ने बताया कि यह मार्ग आगे जाकर काठगोदाम वाले मार्ग में ही मिल जायेगा। दोनों में से कौन सी सडक अच्छी है? इस सडक के बारे में ही बताया गया। अत: इस सडक से होकर आगे चल दिये। एक जगह रुककर राजेश जी ने एक कप चाय पी। कुछ देर बाद आगे चल दिये। आगे जाकर एक तिराहा मिला। यहाँ थोडी गडबड हुई। हमें उल्टे हाथ मुडना था जबकि हम सीधे हाथ मुड गये। एक बार फ़िर एक बाइक वाले से सही मार्ग पता किया। बाइक वाले ने बताया कि आपको बिलासपुर जाकर हल्दवानी-रामपुर वाली सडक मिल जायेगी। बिलासपुर पहुँचकर सीधे हाथ रुद्रपुर की ओर मुड गये।
जिस सडक से होकर आये थे कुल मिलाकर ठीक-ठाक सडक थी। रुद्रपुर से 3-4 किमी पहले उत्तराखण्ड की सीमा आरम्भ हो जाती है। उत्तराखण्ड आते ही खटारा सडक से छुटकारा मिल चुका था। रात को रुद्रपुर में काफ़ी सन्नाटा मिला। रुद्रपुर पार कर सडक, अचानक सीधे हाथ मुडती है यहाँ से मात्र 100 मीटर बाद पुन: उल्टे हाथ मुडना होता है। इसके बाद किसी से कही पूछने की आवश्यकता नहीं होती है। रात को हल्दवानी बाइपास पर जाने की जरुरत नहीं पडी। शहर के बीच से होकर काठगोदाम पहुँच गये। दिन का समय हो तो बाइ पास का उपयोग करने में ही भलाई है। दिल्ली से भरी गैस समाप्त हो गयी थी। अब गाडी पैट्रोल पर चलने लगी।
काठगोदाम व हल्दवानी आपस में जुडे हुए है कि आसानी से अन्तर पता ही नहीं चलता। काठगोदाम से आगे जाने के बाद भीमताल वाला मार्ग सीधे हाथ अलग होता है। जबकि सामने मार्ग नैनीताल के लिये चला जाता है। अगर किसी को भीमताल नहीं जाना है तो उसके लिये सीधा जाना ही सही है। भीमताल पहुँचते-पहुँचते दिन का उजाला होने लगा था। एक जगह रुककर उजाले व ठन्डी हवाओं का अहसास किया। भीमताल पहुँचते ही मैंने गाडी चालक की सीट सम्भाल ली। सबसे पहले भीमताल का चक्कर लगाया। उसके बाद नौकुचियाताल देखने गये। भीमताल में इक्का-दुक्का बून्द गिर रही थी। जबकि नौकुचियाताल में बारिश इतनी तेज थी कि कैमरा लेकर बाहर खडा नहीं हुआ जा सका। कुछ देर रुककर सातताल के लिये लौट चले। वापसी में एक जगह हनुमान जी बडी सी मूर्ति है यहाँ पर भी बारिश के साये में कुछ देर रुके।
नौकुचियाताल से सातताल जाने के लिये भीमताल के किनारे से ही होकर जाना होता है। नैनीताल जाने के लिये भवाली मुख्य तिराहा है। अभी सातताल जाना है। अत: भवाली की ओर ना मुडकर सातताल पहुँच गये। सातताल झीलें पहाड के ऊपर बहुत दूर से दिखायी दे जाती है। गाडी रोककर काफ़ी देर तक आसपास का नजारा देखते रहे। पहाड की ऊँचाई से आसपास के कई ताल दिखायी दे रहे थे। ठन्डी हवाओं के कारण गाडी से ज्यादा देर तक बाहर खडा रहना मुश्किल था। जब ठन्ड सहन ना हुई तो गाडी में जा बैठे।
सातताल पहुँचकर झील किनारे पहुँचे। यहाँ घूमते समय एक छोटा सा पिल्ला मेरी टांगों में आकर खेलने लगा। एक जगह बैठने लायक स्थान बना हुआ था। यहाँ बैठकर अपने खास स्टाइल में एक फ़ोटो तो खिचवाना ही था। फ़ोटो लेने के बाद मैंने कहा कि मैं पैदल ही ताल के किनारे होकर सडक तक पहुंचता हूँ। तब तक आप तीनों गाडी में बैठकर आगे मिल जाईये। सातताल के आखिरी छोर पर आकर हम चारों गाडी में सवार होकर नैनीताल के लिये बढ चले। नैनीताल की बारिश हमारा इम्तिहान लेने को तैयार खडी थी। (यात्रा अभी जारी है।)































16 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

जाट भाई राम राम, सुबह सुबह ही सब जगह देख डाली.
यात्रा की शुरूआत बढिया रही है आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा.
फोटो की कमी नही है इस पोस्ट मे,मजा आ गया फोटो देखकर.

Vaanbhatt ने कहा…

great...

Ritesh Gupta ने कहा…

बहुत खूब...... कुमायूं वास्तव में बहुत ही खूबसूरत हैं.......

फोटो बहुत अच्छे लगे...

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

कुमायूँ तो मैं भी सिर्फ़ एक बार गया हूँ वो भी बचपन में। शानदार तस्वीरें हैं।

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

संदीप भाई राम राम कैसे हो......

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

असली घुमक्कड़ी यही है कि घर से निकलने के बाद तय होता किधर कूं जाणा है। जय हो जाट देवता महाराज की।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत हैं.......

Ajay Kumar ने कहा…

सँदीप भाई जी फटा कुछ नही था.. ना जुत्ता और नही बैग,, उस समय प्रवीण का बार बार फोन आ रहा था कि जल्दी से आजा.. मैँ उस समय खाना खा रहा था तो उसको बोल दिया था कि मेरा बैग फट गया है उसको ठीक करवा रहा हूँ..

कविता रावत ने कहा…


गर्मी में यह यात्रा देख उसमें खो जाने का मन करता है
बहुत बढ़िया

Roopesh Kumar sharma ने कहा…

sandeep bhai hamara bhi program ban raha hai agle mahine jane ka isse hamen bhut madad milegi dhanyabad.

travel ufo ने कहा…

भाई नई गाडी लेकर नही गये थे क्या

राजेश सहरावत ने कहा…

मनु जी नई गाड़ी में आपके साथ चलेंगे बताओ किधर चलना है

Unknown ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

dobara nainital dekhna bahut bhaya ---

राजेश सहरावत ने कहा…

यादें ताज़ा हो गई

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