किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी)
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत
06- करछम से सांगला घाटी होकर छितकुल गाँव तक
07- छितकुल भारत के अन्तिम गाँव की यात्रा, बास्पा नदी किनारे व माथी मन्दिर भ्रमण
08- सांगला की सुन्दर घाटी व कमरु के किले का भ्रमण
07- छितकुल भारत के अन्तिम गाँव की यात्रा, बास्पा नदी किनारे व माथी मन्दिर भ्रमण
08- सांगला की सुन्दर घाटी व कमरु के किले का भ्रमण
09- सांगला से रकछम पोवारी (रिकांगपियो) होकर खाब पुल तक
10- खारो पुल से खाब पुल होकर काजिंग की शुरुआत तक
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल10- खारो पुल से खाब पुल होकर काजिंग की शुरुआत तक
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी)
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत
KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-18 SANDEEP PANWAR
हिमाचल के दुर्गम
पहाडों के बीच काजा स्थित है। दुर्गम पहाडों के हिसाब से काजा एक अच्छा खासा
शहर है। हर तरह की सुख सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध है। काजा समुन्द्रतल से 3650 मीटर अर्थात 11980 से 12500 फ़ुट की
ऊँचाई पर बसा हुआ है। हमने काजा में घुसते ही पैट्रोल पम्प के बारे में जानकारी
ली। शिमला की तरफ़ से आते हुए पैट्रोल पम्प उल्टे हाथ मिलता है। बाइक में सांगला से
टैंक फ़ुल कराकर चले थे। सांगला से यहाँ तक कोई पैट्रोल पम्प दिखाई नहीं दिया। हो
सकता है कि बीच में आने वाले कस्बे पूह में कही रहा हो, लेकिन हमें दिखाई नहीं
दिया।
काजा वाला पैट्रोल
दुनिया का सबसे ऊँचा पैट्रोल पम्प है। काजा के पैट्रोल पम्प की समुन्द्र तल से
ऊँचाई 12270 फ़ुट है। मेरी बड़ी इच्छा थी कि एक दिन दुनिया के सबसे ऊँचे पैट्रोल पम्प पर अपना फ़ोटो
होगा। आज जाकर दुनिया के सबसे ऊँचे पैट्रोल पम्प पर अपना आगमन हुआ। दुनिया की सबसे
ऊँची सड़क खर्दूंगला पास में है उसे तो लेह वाली यात्रा में देख चुका हूँ, दुनिया
का सबसे ऊँचा पैट्रोल पम्प कब देखने को मिलेगा? यह इच्छा इस यात्रा में जाकर पूरी
हो पायी है। कुल्लू से काजा के लिये सुबह चार बजे एक बस चलती है। ऐसी ही एक बस
रिकांगपियो/रामपुर से काजा के लिये चलती है।
दिल्ली से काजा
जाने के लिये मनाली से जाओ या शिमला से, दोनों मार्ग से लगभग बराबर दूरियाँ पड़ती
है। मनाली वाले मार्ग से वर्ष भर नहीं आया जा सकता है क्योंकि इस मार्ग से आने में
रोहतांग दर्रा व कुन्जुम दर्रा पार करना पड़ता है। ये दोनों दर्रे वर्ष में जून माह
से लेकर अक्टूबर मध्य तक ही खुला रह पाता है। यदि किसी को यहाँ आने की इच्छा है तो
हमारे वाले मार्ग शिमला –रामपुर -सुमडो का ही अनुसरण करना चाहिए।
इसके दो लाभ है।
पहला लाभ मनाली से रोहताँग जाने के लिये निजी वाहनों को अधिकारियों से आज्ञा लेनी
पड़ती है। जिसमें कई बार आज्ञा मिलने में ही कई घन्टे लग जाते है। शिमला की तरफ़ से
कोई टैन्शन नहीं है। बस ध्यान रखे, कि बारिश समाप्त होने के बाद इस तरफ़ का रुख करना
चाहिए, कही पता लगे कि बारिश के दिनों में इस मार्ग के पहाड़ खिसकने से कही दबे पडे
हो? और बाद में मुझे कोसते रहो कि जाट भाई आपके कहने पर गये थे। किन्नौर वैसे भी
बारिश से बहुत बदनाम है।
काजा वाले पैट्रोल
पम्प पर दोनों बाइक का टैंक फ़ुल करा लिया गया। काजा के बाद मनाली में ही अगला
पैट्रोल पम्प मिलेगा। यदि किसी को काजा से लेह की ओर जाना हो तो उसके लिये कैलोंग
से पहले टान्ड़ी में चन्द्रा व भागा नदी के संगम पर पैट्रोल मिलेगा। वहाँ से
पैट्रोल टैंक फ़ुल करके ही आगे जाना होगा। टांड़ी वाले पैट्रोल पम्प के बाद लेह से 15 किमी पहले कारु
में ही पैट्रोल मिलता है। जिसकी टांड़ी से दूरी मात्र 350 किमी है।
यदि हाल फ़िलहाल में
उपशी में भी पैट्रोल पम्प खोला गया हो तो मैं नहीं कह सकता। टान्ड़ी से उदयपुर, किलाड़
(पांगी वैली) होते हुए जम्मू कश्मीर की ओर जाना चाहते हो तो टान्ड़ी वाला ही आखिरी
पैट्रोल पम्प है। साच पास वाले मार्ग पर किलाड़ से चम्बा की ओर जाने पर चम्बा से
पहले कोई पैट्रोल पम्प नहीं मिलता है जबकि किलाड़ से आगे जम्मू की ओर जान पर
किश्तवाड़ या अनंतनाग में पैट्रोल मिलता है। काजा से कैलांग 197 किमी है। मनाली 224 किमी है। कल्पा (रिकांगपियो,
पोवारी) 210 किमी है।
बाइक की टंकी फ़ुल
कराने के बाद पैट्रोल पम्प के फ़ोटो लेने लगा तो राकेश बोला एक फ़ोटो मेरा भी ले लो।
कैमरे में ज्यादा मैमोरी नहीं बची थी इसलिये राकेश का सिर्फ़ एक फ़ोटो लिया। एक अपना
लिया और एक पैट्रोल पम्प के उस बोर्ड का, जिस पर लिखा है कि यह दुनिया का सबसे
ऊँचा पैट्रोल पम्प है। राकॆश का कैमरे से फ़ोटो ले लिया लेकिन राकॆश अपनी आदत से
लाचार था राकेश ने कैमरे से फ़ोटो लेते ही अपना मोबाइल भी मेरे सामने कर दिया।
मैंने कहा देख भाई, अगर कैमरे से फ़ोटो नहीं चाहिए तो मैमोरी क्यों खराब कर रहे हो?
मैंने राकेश के मोबाइल से उसका फ़ोटो नहीं लिया तो राकेश ने पैट्रोल पम्प वाले को
अपना मोबाइल देकर अपना फ़ोटो खिचवा लिया। यह देख अपनी खोपड़ी सटकी, और मैंने वही
राकेश का फ़ोटो कैमरे से मिटा दिया।
मनु उस समय हमारे
पास नहीं था। मनु पैट्रोल पम्प के साथ बने भोजनालय में बैठा भोजन की प्रतीक्षा कर
रहा था। मनु राकेश से पहले ही चिढा हुआ था। मनु की बाइक हल्की पड़ने के कारण चढाई
में पीछे रह जाती थी जिससे मनु को किसी जगह देखने के लिये कम समय मिल रहा था। मुझे
ज्यादा भूख नहीं थी इसलिये मैंने भोजन के लिये मना किया। सुबह से दोपहर तक कई सेब
खा चुके थे अब भूख कहाँ थी? लेकिन साथियों को सेब के अलावा रोटी भी चाहिए थी।
उन्होंने भोजन बनने व खाने में घन्टा भर लगा दिया। मैंने दो सेब निकाल कर खा लिये,
अब शाम तक अपुन की भोजन से छुट्टी हो गयी।
काजा से अपना ब
बाइक का पेट फ़ुल कराकर किब्बर की ओर चल दिये। काजा पार करने से पहले मनु की बाइक
में साईलैंसर की तरफ़ लगाया गया विशेष स्टैन्ड़ टूट गया था। काजा में टूटे स्टैन्ड़
पर वैल्डिंग करा कर आगे चले दिये। काजा से ११ किमी जाने पर की गोम्पा आता है। ४-५ किमी तक सीधी सड़क
मिलती है। यहाँ स्पीति पर एक पुल बना हुआ है। पुल पार कर उल्टे हाथ जाने पर
कुन्जुम की ओर जाया जाता है।
वैसे हमें भी
कुन्जुम जाना था लेकिन पहले की मोनेस्ट्री देखनी थी। इस पुल से थोड़ा पहले 10-12 बुलेट बाइक एक के पीछे
एक तेजी से सामने से आती गयी। सभी बुलेट काजा की ओर दौड़ी जा रही थी। इन बुलेट को
विदेशी चला रहे थे। एक के हैलमेट पर कैमरा भी लगा हुआ था। कैमरे से यात्रा की
विडियो या डोकियोमैन्ट्री बनायी जा रही होगी। ये बुलेट किब्बर से लौटते समय भी की
गोम्पा जाती मिली।
की गोम्पा जाते समय
एक विदेशी पैदल जाता हुआ मिला। किब्बर से वापसी आते समय यह की गोमपा तक प्पहुंच
चुका था। जब हम काजा में घुसे थे तो यह भी काजा में घुस रहा था। काफ़ी तेजी से चलता
जा रहा था। की गोमपा तीन मंजिला मठ है। गोम्पा में ह्रबल चाय सबको दी जाती है अपुन
तो चाय से दूर ही रहते है चाय चाहे हर्बल ही क्यों ना हो? 14 वे दलाई लामा यहां आये थे उदघाटन करने। उन्होंने 2000 में यहाँ के नये
पूजा स्थल का उदघाटन किया था।
काजा से हिक्किम व
कौमिक गाँव तक जाने का मार्ग अलग होता है। काजा से मात्र 15 किमी की दूरी पर
की गोम्पा आता है। की गोम्पा से मात्र 5 किमी ऊपर जाने पर किब्बर गाँव आता है। किब्बर
जाने की इच्छा इस यात्रा के शुरु से थी की गोम्पा देखकर राकेश वापसी जाने को तैयार
था। मात्र 5 किमी से किब्बर क्यों छोड़ा जाये। भले ही वहाँ 10 मिनट रुके।
काजा से किब्बर
जाते समय लेह के थिकसे जैसा दिखने वाला की मठ दूर से दिखाई देता है। कई किमी की
जोरदार चढाई के बाद हमें गोम्पा दिखाई दिया था। यह सड़क किब्बर गाँव तक जाती है की
मठ इस मार्ग से एक किमी हटकर है। हमारी बाइक की गोम्पा के ऊपर तक चली गयी, जबकि
बड़ी गाडियाँ नीचे ही खड़ी होती है। मठ की आखिरी 100 मीटर की चढाई बड़ी तीखी है।
की गोम्पा (मठ) में
अन्दर जाने के लिये लम्बी सीढियाँ चढनी पड़ती है। जहाँ हमारी बाइके खड़ी थी वहाँ पर
लैंटर ड़ालने के मिक्सर मशीन पर कुछ लोग कार्य कर रहे थे। ये मजदूर शक्ल से ही
झारखन्ड़ या बिहार के दिखाई दे रहे थे। बिहार व झारखन्ड़ के साथ नेपाल के श्रमिक
पूरे भारत में मजदूरी करते हुए मिल जाते है। भारत के पहाड़ी राज्यों में इनका औसत
कुछ ज्यादा रहता है जबकि मैदानी या दक्षिण भारत में कम संख्या में दिखायी देते है।
अपना सभी सामान बैग
व हैल्मेट आदि बाइक पर छोड़कर ऊपर चल दिये। सीढियाँ समाप्त होते ही एक पतली सा
गलियारा पार कर आगे गये। यहाँ पहुँच कर देखा कि कुछ भिक्षु प्रार्थना करने की
तैयारी में जुटे हुए है। वहाँ मौजूद लोगों ने हमें ऊपर जाने को कहा। हम ऊपर चले
गये। ऊपर जाने के बाद वहाँ मौजूद भिक्षु ने हमें जूते उतार कर अन्दर दर्शन करने के
लिये कहा। हम जूते उतार कर अन्दर गये।
की मठ समुन्द्रतल
से 13668 फ़ुट की ऊँचाई पर बताया जाता है। इस मठ में चाम उत्सव मनाया जाता है। यहाँ
मुख्य मठ में प्राचीन हस्तलिपियाँ तथा थंगकस का संग्रह सुरक्षित रखा हुआ है। जिनकी
उम्र एक हजार वर्ष बतायी जाती है। हमने यह भन्ड़ार देखा था। इस बारे में वहाँ मौजूद
बन्दे ने काफ़ी बाते बतायी थी। इस मठ में हथियार भी रखे हुए है। हमने हथियार नहीं
देखे।
इतिहास का खजाना यहाँ सुरक्षित है। ऊपर गोम्पा की छत से नीचे स्पीति घाटी में देखने पर क्या नजारा दिखाई दिया? चावल के खेत, दूर तक फ़ैली घाटी, स्पीति पार 10-15 किमी दूर तक साफ़-साफ़ देखा जा सकता था। ऊपर से फ़ोटो लेने के बाद नीचे लौटने लगे तो वहाँ मौजूद एक भिक्षु ने हमें चाय पीकर जाने को कहा। मनु बाद में आया था। राकेश वहाँ मिलने वाली हर्बल चाय का स्वाद लेकर लौटा। अपने लिये तो आम चाय व हर्बल चाय एक जैसी है। वहाँ दान की रसीद बुक रखी हुई थे। राकेश और मैंने एक रुपये देकर अपने आप पर्ची कटा ली।
इतिहास का खजाना यहाँ सुरक्षित है। ऊपर गोम्पा की छत से नीचे स्पीति घाटी में देखने पर क्या नजारा दिखाई दिया? चावल के खेत, दूर तक फ़ैली घाटी, स्पीति पार 10-15 किमी दूर तक साफ़-साफ़ देखा जा सकता था। ऊपर से फ़ोटो लेने के बाद नीचे लौटने लगे तो वहाँ मौजूद एक भिक्षु ने हमें चाय पीकर जाने को कहा। मनु बाद में आया था। राकेश वहाँ मिलने वाली हर्बल चाय का स्वाद लेकर लौटा। अपने लिये तो आम चाय व हर्बल चाय एक जैसी है। वहाँ दान की रसीद बुक रखी हुई थे। राकेश और मैंने एक रुपये देकर अपने आप पर्ची कटा ली।
की मोनेस्ट्री
देखने के बाद राकेश वापिस चलने की बात करने लगा। जबकि मैंने और मनु ने सड़क से जुड़ा
दुनिया का सबसे ऊँचा गाँव किब्बर देखने की योजना बनाई हुई थी। राकेश बोला आप लोग
बाइक लेकर चले जाओ, मैं यही मिल जाऊँगा। राकेश को समझाया कि हमें केवले 5 किमी ही
तो जाना है जिसमें आने-जाने में ज्यादा से ज्यादा आधा घन्टा लग जायेगा। वैसे भी
हमारी आज की मंजिल कुन्जुम पास पार करने की ही है। कुन्जुम यहाँ से सिर्फ़ 80 किमी
बाकि है हमारे पास 5 घन्टे बाकि है। अन्त में सहमति बनी कि किब्बर गाँव के बोर्ड
के साथ फ़ोटो खिचवाने के बाद वापिस लौट आयेंगे।
हमारी बाइके की
गोम्पा से किब्बर की ओर चल पड़ी। की गोम्पा तक सड़क अच्छी थी। किब्बर की ओर चलते ही
सड़क की हालत बेकार होती गयी। राकेश सड़क की हालत देखकर कुछ बोला था लेकिन मैंने
उसका कोई जवाब नहीं दिया। किब्बर पहुँचने से पहले एक जगह कई लूप चढने होते है। इन
लूप पर चढने के बाद दो किमी तक समतल सड़क मिली। दो-तीन मोड के बाद किब्बर दिखाई
देने लगा। किब्बर का बोर्ड आते ही हमारी मंजिल भी आ गयी। किब्बर के ऊपर एक और गाँव
दिखाई दे रहा था। किब्बर गाँव से कई ट्रेक शुरु होते है। अगले लेख में किब्बर गाँव से कुन्जुम दर्रे तक की यात्रा का विवरण दिया जायेगा। (यात्रा जारी है)
वो रहा की गोम्पा |
गोम्पा में हर्बल चाय यहाँ मिलती है। |
यह फ़ोटो मेरा नहीं है |
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (23-12-13) को "प्राकृतिक उद्देश्य...खामोश गुजारिश" (चर्चा मंच : अंक - 1470) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा...
बहुत ही उपयोगी जानकारी, वहाँ जाना होगा तो आपसे पूरा ज्ञान लिया जायेगा।
zabardast tasveeren..
हमारे एम पी में भी एक नदी है जिसे चंद्रभागा कहते है---और इतनी दूर पट्रोल आता है तो महगा भी होगा--- बहुत ही खूबसूरत तस्वीरे है -- और ये इतने गंजे वहाँ क्या कर रहे है :p
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