शनिवार, 7 दिसंबर 2013

Karcham to Chitkul via Sangla valley करछम- सांगला घाटी- छितकुल गाँव

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-06                             SANDEEP PANWAR


छितकुल व सांगला जाने के लिये करछम बान्ध पर बने पुल को पार करना होता है। पुल पार करते ही मार्ग T आकार में हो जाता है। सागला व छितकुल जाने के लिये पुल पार करते ही उल्टे हाथ मुड़ना होता है। हम उल्टे हाथ मुड़ते ही बान्ध के साथ-साथ चलते रहे। जहाँ बान्ध का पानी समाप्त होता है वहाँ एक पुल और आता है। यहाँ पुल से ठीक पहले लगे एक बोर्ड़ से बताया गया था कि सांगला जाने के लिये इस पुल को पार करना होगा। लेकिन उस पुल के पार मार्ग लगभग बन्द दिख रहा था। हम इसी उधेड़बुन में थे कि पुल पार किया जाये या नही, तभी एक बन्दा अपना बुलडोजर (जेसीबी) लेकर आ गया। हमने उससे सांगला जाने वाली सड़क के बारे में पूछा। उसने बताया कि कुछ महीने पहले तक इसी पुल को पार कर सीधे हाथ मुडकर सांगला जाते थे लेकिन कुछ महीने पहले यहाँ इस जगह से 300-400 मीटर आगे जाने पर भयंकर भूस्खलन हुआ था जिस कारण यह मार्ग अभी तक नहीं खुल पाया है।



राकेश ने हमें बताया कि वह अप्रैल माह में यहाँ आया था तब यह सड़क एकदम सही थी। जिस दिन यह भूस्खलन हुआ था उस दिन दिल्ली से लगभग 20-25 बाइकर सांगला छितकुल के लिये गये थे। उन बाइकरों की बाइके बाद में ट्रक में लादकर दिल्ली भेजी गयी थी। यह मार्ग भूस्खलन के महीने भर बाद तक भी सिर्फ़ पैदल यात्रियों के चलने लायक रह गया था। करछम बान्ध से सांगला वैली की दूरी मात्र 19 किमी ही है सांगला घाटी से 24 किमी आगे जाने पर छितकुल आता है। सांगला में बाहरी लोगों के आवागमन पर पाबन्दी थी यह क्षेत्र सन 1992 में ही आम लोगों के लिये खोला गया है।

थोड़ा आगे जाने पर हमने नदी में उल्टे हाथ नीचे की ओर बनाये गये कामचलाऊ पुल के जरिये वास्पा नदी पार ली। नदी में चढ़ने व उतरने के लिये तीखी ढलान व चढाई से मुकाबला हुआ। इस चढ़ाई को पार पाने में मनु की बाइक की हालत देखने लायक थी। हमने यहाँ पुल पार किया तो हमारी सारी यात्रा छितकुल तक इसी नदी किनारे उल्टे हाथ पर चलती रही। हमारे सीधे हाथ बास्पा नदी नीचे गहरी खाई में बह रही थी। हाईवे पर सड़क अच्छी थी इसलिये पीछे बैठने में समस्या नहीं आयी लेकिन छितकुल तक जबरदस्त चढ़ाई होने के कारण मैं बार पीछे खिसक रहा था। बीच में एक-दो जगह खड़डे आये तो वहाँ उछलते हुए निकले। मैंने राकेश को कहा, मेरा भी ख्याल कर भाई, खड़ड़ा आने पर आराम से निकाल लिया कर। राकेश पर मेरा बात का असर हुआ आगे उसने ध्यान से बाइक चलायी।

सांगला से पहले सड़क पर खाई वाली दिशा में एक मन्दिर बना हुआ है। शायद पहले यहाँ काफ़ी दुर्घटना होती होंगी जिस कारण यहाँ मन्दिर बनाने की आवश्यकता आन पड़ी होगी। हम मन्दिर पर रुके नहीं, सांगला पहुँचने तक मनु की बाइक के दम-खम की परीक्षा हो रही थी। सांगला से चार-पांच किमी पहले बास्पा गाँव में बिजली बनाने का हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाया गया है। यहाँ पर भूस्खलन के कारण असली मार्ग मलबे में दबकर गायब हो चुका है। इसलिये हाइड्रो प्लान्ट के अन्दर वाली सड़क से वाहनों का आवागमन जारी रखा गया है। पहली बार आने वाला बन्दा यहाँ धोखा खा जाता है।

हमने यहाँ रुककर आगे के मार्ग के बारे में एक बन्दे से पता किया। जिस बन्दे से हमने पता किया था वह इसी प्लान्ट में कार्य करता था उसी ने हमें बताया था कि सामने जो गेट दिख रहा है उसके अन्दर चले जाओ ऊपर पहुँच जाओगे। ऊपर जो बड़ा बोर्ड़ दिख रहा है। वह सड़क पर ही है। मनु अपनी 100 cc बाइक पर धीरे-धीरे चढ़ता हुआ आ रहा होगा। हम उस कर्मचारी के बताये दरवाजे से होकर ऊपर चले आये। ऊपर आते ही लाल-लाल सेब से लदे पेड़ दिखायी दिये। जब तक मनु आता तब तक राकेश ने हम तीनों के खाने लायक किन्नौर के लाल-लाल सेब तोड़ लिये थे। मनु भी उस जगह जा पहुँचा, जहाँ से हम आगे का मार्ग पूछकर वापिस मुड़े थे। मैंने मनु को आवाज लगायी। दो-तीन आवाज देने पर मनु को सुनायी दे गयी। मनु भी हमारे पास आ गया। मनु को भी सेब दिया गया। यहाँ पर रुके थे तो जाहिर है बिना फ़ोटो लिये आगे जाने का सवाल ही नहीं था। यहाँ पहुँचते-पहुँचते दोपहर होने लगी थी।

यहाँ से सांगला जाने में मुश्किल से 15-20 मिनट ही लगी होगी। सांगला आने से पहले ही हरियाली ने अपना साम्राज्य सड़क के दोनों तरफ़ फ़ैला दिया था। बास्पा नदी सड़क से दूर चली गयी थी सांगला घाटी में सेब के पेड़ चारों और फ़ैले दिखायी देने लगे थे। सोचा था कि पहले सांगला देखेंगे उसके बाद छितकुल जायेंगे। लेकिन सांगला पहुँचकर समय देखा तो दोपहर के सवा बारह बजे थे। मैंने एक जगह हरी भरी घाटी देखकर राकेश को फ़ोटो लेने के लिये रुकवा लिया। यहाँ मनु हमसे आगे निकल गया। फ़ोटो लेने के बाद हम भी आगे बढ़ चले।

धीरे-धीरे चलते हुए हमारी बाइक सांगला पार गयी। सांगला पार हो गया लेकिन मनु की बाइक या मनु दिखायी नहीं दिया। मैं प्रत्येक यात्रा में साथ जाने वाले बाइकर को कहता हूँ कि यदि कही से मुड़ना हो तो उस मोड़ पर इन्तजार करे। मनु का कुछ पता नहीं चल पाया। सांगला पार करने पर लोहे का एक पुल आता है। हमें काफ़ी दूर तक सड़क दिखायी दे रही थी लेकिन मनु दिखायी नहीं दिया। हमें शक हुआ कि मनु पीछे ही है इसलिये उसकी प्रतीक्षा होने लगी। कुछ देर बाद मनु को फ़ोन लगाया तो उसने कहा कि वह सांगला में कमरु का किला देखने पहुँच गया है। सांगला में सड़क से एक किमी ऊपर कमरु गाँव के सबसे ऊपर की चोटी पर यह किला बना हुआ है। मनु ने हमें बताया था कि कमरु जैसा किला अंग्रेजी फ़िल्म टर्मिनेटर 3 में दिखाये गये ग्यारह मंजिली किले जैसा दिखता है। किला तो देखना था लेकिन राकेश और मैंने पहले छितकुल देखकर आने की योजना बना ली गयी थी। मनु सड़क पर दिखा ही नहीं इसलिये उसे बता नहीं पाये थे।

सांगला में रात रुकने के लिये बहुत सारे गेस्ट हाऊस बने हुए है। छितकुल की दूरी मात्र 24 किमी बाकि रह गयी थी। यह दूरी पार करने में मुश्किल से एक सवा घन्टा ही लगना था कुल मिलाकर तीन बजे से पहले हम छितकुल में होंगे ही। वहाँ दो-तीन घन्टे रुकने के बाद अंधेरा होने तक यहाँ आसानी से पहुंच जायेंगे। उसके बाद इस किले को देखना तय हुआ था। मनु हमसे कई किमी पीछे रह गया था। यहाँ से आगे साथ-साथ ही चलना था इसलिये मनु के आने की प्रतीक्षा की गयी। हम दोनों मनु के आने की इन्तजार कर रहे थे। राकेश के मोबाइल पर एक फ़ोन आ गया। वैसे भी राकेश का ज्यादातर बिजनेस फ़ोन पर ही चलता है जिस कारण दिन भर में उसके 30-40 फ़ोन आना मामूली बात थी। मैं राकेश का फ़ोन आते ही कहता था काश यह नेटवर्क कई दिन के लिये गायब हो जाये तो मजा आ जाये। मेरी बात सुनकर राकेश यही कह सकता था जाट भाई मजाक तो नी कर रहे। मनु के आने से पहले मैंने सोचा कि चलो जब तक मनु आता है तब तक सांगला वैली की सड़क पर पैदल चलकर नीचे दिख रही घाटी के फ़ोटो ही ले लिये जाये।

राकेश को फ़ोन पर बाते करता छोड़कर मैं पैदल ही आगे की ओर चल दिया। सराहन में रात को खाने के लिये जो बिस्कुट लाये गये थे। उनमें से एक मेरी जेब में ही था। मैं फ़ोटो लेता रहा, आगे बढ़ता रहा। चलते-चलते बिस्कुट का पैकेट खोल लिया। फ़ोटो लेने व बिस्कुट खाने के चक्कर में मेरे सोनी कैमरे की लैंस पर लगायी जाने वाली कैप कही गिर गयी। जब मनु आया तो राकेश बाइक लेकर मेरे पास पहुँचा। जैसे ही मैं बाइक पर बैठा तो कैमरा बन्द कर उसके लैंस पर कैप लगाने लगा तो सारी जेब देख ली लेकिन लैंस की कैप गायब मिली। राकेश को बोलकर बाइक रुकवायी। हम दोनों काफ़ी दूर तक बाइक लेकर वापिस लौटे, लेकिन खूब तलाश करने पर भी कैमरे की कैप ना मिल सकी? अब तक कैप होने के कारण लैंस की धूल से काफ़ी सुरक्षा थी। मैं अब तक कैमरे को गले में लटकाये हुए आ रहा था। लेकिन कैप गुम होने से कैमरे को धूल से बचाने के लिये पन्नी में लपेटना पड़ गया। कैप गुम होने का दुख हुआ। मेरे जैसे महाकंजूस के लिये बेफ़ालतू में नई कैप खरीदने में कई सौ रुपये खर्च करने पडेंगे?

सांगला से अगला गाँव रकछम था। जो सांगला से 6 किमी दूर है। सतलुज किनारे करछम देखा था यहाँ रकछम देखा। इन दोनों नामों में क्या गड़बड़ है? एक में क आगे तो दूसरे में क पीछे लगा दिया। रकछम में रुकने का बढिया प्रबन्ध है। रकछम से आगे घने जंगलों से होकर निकलना पड़ता है। रकछम तक तो कहने के लिये सड़क बनी है लेकिन रकछम पार करने के बाद सड़क के नाम पत्थर ही पड़े हुए है। रकछम से थोड़ा आगे जाने पर आईटीबीपी की एक चैक-पोस्ट आती है। यहाँ पर गाड़ी का नम्बर और उसके सवारों का लेखा जोखा रखा जाता है। चैक पोस्ट पार करते ही सड़क के नाम पर पानी के झरने को पार कर आगे बढे।


रकछम से आगे निकलने पर छितकुल नजदीक दिखायी देने लगा। सड़क के नाम पर पत्थर की सड़क पर धीरे-धीरे चलते हुए। छितकुल का प्रवॆश दरवाजा दिखायी दिया। यहाँ इस गेट के किनारे ही छितकुल का सरकारी रेस्ट हाऊस बना हुआ है। हमारा इरादा छितकुल में उस जगह तक जाने का था जहाँ तक हमारी बाइक जा सकती थी। मनु ने अपनी सूची में देखकर बताया था कि छितकुल में कई सौ (500) साल पुराना देवी का मन्दिर भी है। बाद में देवी का मन्दिर भी देखा जायेगा। सबसे पहले बास्पा नदी के किनारे पहुँचा जाये। नदी किनारे पहुँचकर कुछ मस्ती काटी जाये। अपुन ठहरे मनमौजी मस्तमौला। बिना मस्ती अपुन को चैन कहाँ रे? चलिये अगले लेख में छितकुल की नदी के पानी में मस्ती व उसके बाद छितकुल देवी के मन्दिर की यात्रा करायेगी जायेगी। (यात्रा अभी जारी है।) चलो दोस्तों आज की पोस्ट मेरे ब्लॉग की 400 वी पोस्ट है।


























10 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

राम-राम भाई.सेब को बडे ध्यानपूर्वक देखा जा रहा है क्या बात है

alka mishra ने कहा…

फोटो तो आपने क्या गजब के खींचे हैं.
बधाई

कुछ जड़ी बूटियों को घड़े में हल्दी के साथ बंद करके मैंने एक दवा तैयार की है जो बुढ़ापे के असर को अस्सी प्रतिशत तक कम कर देगी ,नये बाल उग जायेंगे ,टूटे दांत भी निकल सकते हैं हड्डियों और जोड़ों के सारे दर्द गायब हो जायेंगे। अगर आपको चाहिए तो फोन कीजिये मुझको।

Unknown ने कहा…

Alka ji Namaste,
Mere left side se sar ke baal kam ho gaye hain. Aapse kaise contact kiya jaye, aapne Mob. No. likha hi nahi, maine aapke profile bhi dekhi waha bhi koi No. nahi hai. Please apna Mobile No. likhye.
Thanks.

Sandeep ji,

Photo bahut shandaar hain, ya ye kahiye ki photograph bahut shaandar hai.
Thanks.

Unknown ने कहा…

Sandeep Ji, Namaste
Photograph nahi photography likhna tha.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

मनु भाई के ब्लॉग पर और इस ब्लॉग पर चित्र देखकर महसूस होने लगता है कि हम लोग कितने अभागे हैं जो इन सब नजारों को अपने देश में होते हुये भी प्रत्यक्ष नहीं देख पाये। बहुत बहुत धन्यवाद भाई तुम लोगों का।

Ajay Kumar ने कहा…

Ram Ram Bhai JI... photo badhiya faade hai

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आकर्षित करते पहाड़..

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

"मज़ाक तो नी कर रे हो जाट भाई ",हा हा हा हा बहुत खूब ----४०० वी पोस्ट के लिए शुभकामनाये --- इसी तरह घूमते रहो और लिखते रहो हो और एक बात और है ---यदि गाँव के नाम याद हो तो फोटू के निचे भी लिख दिया करो ,ताकि हम कल्पना में वहाँ पहुच सके ,,, खूबसूरत चित्र----

Vaanbhatt ने कहा…

रोमांचक यात्रा विवरण...

Jaishree ने कहा…

संदीप जी, सांगला में बड़े ही रोचक अनुभव वाली यादे हैं मेरी, जो आज आपका ब्लॉग ढूंढते हुए पुनः ताजा हो गई. आपकी यात्रा लम्बी रही किन्नौर में. हमारी कल्पा तक ही थी, तब मेरा छोटा बीटा चार साल का ही था और हमने कुछ ट्रैकिंग का दुस्साहस भी किया था उसके साथ. लिखती हूँ शीघ्र ही.

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