शनिवार, 21 दिसंबर 2013

Dhankar Monastery To Kaja धनकर गोम्पा (मठ) से काजा

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-17                                       SANDEEP PANWAR

धनकर गोम्पा समुन्द्र तल से 3894 मीटर ऊँचा है। गोम्पा तक पहुँचने के लिये मिट्टी की मिसाइल जैसी चट्टानों से बचते हुए निकलना पड़ता है। धनकर मठ से सिर्फ़ आठ-दस मीटर पहले तक हमारी बाइक पहुँच गयी थी जिससे पैदल चलने की नौबत नहीं आयी। बाइक से उतरते ही मठ के आसपास के फ़ोटो लेने शुरु कर दिये। इस मठ से थोड़ा हटकर एक किला भी बताया गया था। वहाँ खड़े एक बन्दे से किले के बारे में पूछा तो जवाब मिला कि किले में मरम्मत कार्य चल रहा है। किला काफ़ी जर्जर हो चुका है। मनु ऊपर की ओर चला गया जबकि राकेश और मैं मोनेस्ट्री देखने चल दिये।



धनकर का नाम मिट्टी के खड़े कच्चे पहाड़ व किले के कारण हुआ होगा। किले की हालत तो खराब है जबकि मठ की हालत अभी भी काफ़ी अच्छी स्थिति में है। मठ में घुसने से पहले एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिसका फ़ोटो यहाँ दिया गया है। उस बोर्ड़ से पता लगा कि यहाँ कोई ग्रामीण संग्रहालय भी है। मठ के अन्दर जाने के लिये ऊपर जाती सीढियों पर चढना पड़ता है। यहां भी निर्माण कार्य चल रहा था। जहाँ हमारी बाइक खड़ी थी वहाँ से कुछ मजदूर सामान लेकर आ रहे थे। ये मजदूर लोहे के लम्बे पाइप या एंगिल लेकर खड़े थे। हमने उन मजदूरों से ही मठ में जाने का मार्ग पता किया था।

मठ में अन्दर घुसते ही उल्टे हाथ बने मिट्टी के जीने से होकर ऊपर जाना होता है। इन सीढियों पर रोशनी का अभाव था। जिससे अंधेरा हो रहा था। सावधानी से चलते हुए पहली मंजिल पर पहुँचे। यहाँ कुछ नहीं था इसलिये दूसरी मंजिल पर चल दिये। इस मंजिल पर आधा जीना ही पार किया था कि वहाँ बाहर से रोशनी आती दिखायी दी। हम दोनों उधर चल दिये। हमें झुककर चलना पड़ा। राकेश तो मुझसे भी लम्बा है अत: उसे तो और ज्यादा झुकना पड़ा था। यह मार्ग एक अंधेरे कमरे से होकर बाहर छज्जे पर जाकर निकला। हम छज्जे पर पहुँच गये।

छज्जे से नीचे खाई में देखने पर ड़र लग रहा था। खाई बहुत गहरी थी। खाई में पिन व स्पीति नदी का संगम भी दिखायी दे रहा था। एकदम सीधी खड़ी चढाई के ऊपर खड़ा होना, हालत खराब कर देता है। छज्जे से वापिस उसी जगह आये, जहाँ से अंधेरा जीना शुरु होता है। सावधानी से ऊपर पहुँचे। ऊपर जाते ही खुली जगह मिली। यहाँ पर सामने ही मुख्य मठ है। इसमें दर्शन करने के लिये प्रति आदमी 25 रु की पर्ची काटी जाती है। राकेश ने 3 पर्ची कटा ली। हम दो थे पर्ची काटने वाले ने पूछा तीसरी पर्ची किसके लिये है? हमारा तीसरा साथी मठ के ऊपर गया है। वह भी यहाँ जरुर आयेगा। इसलिये उसकी पर्ची भी कटा ली है। उस कमरे में सैकडों वर्ष पुरानी वस्तुएँ रखी हुई थी। वहाँ के फ़ोटो लेने की पाबन्दी है। वहाँ फ़ोटो ना लेनी वाली दिल को अखर गयी। मैं तुरन्त वहाँ से बाहर निकल आया। मठ के बाकि कमरे में देखने लायक कुछ नहीं था।

धनकर के इस मठ के बारे में कहा जाता है कि पुराने समय में जब कभी स्पीति घाटी में बाहरी आक्रमण होता था तो यहाँ किले पर मौजूद सैनिक या मठ में मौजूद सन्यासी आग जलाकर धुआँ कर देते थे। धुआँ देखकर घाटी में संदेश पहुँचने में देर नहीं लगती थी कि हमला हो गया है। नीचे स्पीति से मठ तक पैदल पगड़न्ड़ी से भी आया जा सकता है। पैदल दूरी मात्र 3 किमी है। तीखी चढाई में मात्रा 3 किमी में ही नानी याद आ जायेगी। मठ की मिट्टी से बनी दीवारे व मिट्टी के टीलों पर बना मठ अपने आप में अजूबा है।

मठ से बाहर आते ही घाटी का सम्पूर्ण नजारा दिख जाता है। बाहर आने के बाद हम दोनों मठ के ऊपर जाकर संगम का नजारा देखने चल दिये। मठ की चोटी पर जाने के लिये मठ से बाहर आकर बाइक के पास आना पड़ा। यहाँ से कच्ची पगड़न्ड़ी पर चढना शुरु किया। ऊपर एक बुजुर्ग महिला अपनी बकरी के साथ बैठी हुई थी। उस महिला के बराबर से होकर पक्की सीढियाँ चढते हुए ऊपर गये। पक्की सीढियाँ काफ़ी लम्बी थी। चोटी पर जाकर देखा कि वहाँ से ऐसा नजारा दिखता है जैसे हम किसी हैलीकाप्टर से नीचे खाई में देख रहे है।

चोटी से बहुत दूर-दूर तक साफ़-साफ़ दिखायी दे रहा था। सामने पिन स्पीति का संगम बहुत अच्छा लग रहा था। चोटी पर आकर एक कमरा मिला जिसका पूरा चक्कर लगा लिया। लेकिन जहाँ से चले थे फ़िर वही पहुँच गये। एक कोने मॆं बैठकर संगम के साथ अपना भी एक फ़ोटो लिया था जो यहाँ लगाया है। मेरे कैमरे की सैटिंग में कुछ गड़बड़ हो गयी थी। जिससे कैमरे में रंगों का तालनेल सही ढंग से नहीं हो पा रहा था। मनु ने ममी के पास मेरे कैमरे से फ़ोटो लेते समय कहा था जाट भाई आपके कैमरे में कुछ गड़बड़ है? मैंने सोचा था कि कैमरे की स्क्रीन पर गार्ड़ चिपका होने से रंग ऐसे दिख रहे हैं। यात्रा के दौरान कैमरे से ज्यादा छेड़खानी करना अच्छी बात नहीं है। कही पंगा हो गया तो सारे फ़ोटो गायब हो जायेंगे।

राकेश अपनी फ़ोटो वाली बीमारी से कुछ ज्यादा ही तंग था। उसकी इस आदत से तंग आकर मैंने उसके सामने फ़ोटो लेने ही बन्द कर दिये। चोटी से मैंने राकेश का फ़ोटो उसके मोबाइल से लिया जबकि अपना फ़ोटो अपने कैमरे से लिया। मेरे कैमरे में ४ जीबी का मैमोरी कार्ड़ था जिसमें अभी 105 फ़ोटो और लिये जा सकते थे। अब मेरे पास यह कहने को था कि राकेश भाई अब आप अपने मोबाइल से ही फ़ोटो लेते रहो। अभी हमें आने वाले दो दिन में कम से कम 4-5 स्थल देखने थे। उस दिन मैंने सोच लिया था कि घर आते ही 16/32 जीबी का मैमोरी कार्ड़ लेना है। कैमरे में कम मैमोरी होने के कारण मनु को बोल दिया कि तुम्हारे कैमरे से ज्यादा फ़ोटो लिये जायेंगे। मैं अपने कैमरे से बहुत जरुरी फ़ोटो ही लेना चाहूँगा।

धनकर से चलने को तैयार हुए। चलने से पहले हमने वहाँ खड़े एक बन्दे से यह जानना चाहा कि धनकर से काजा जाने के लिये कॊइ दूसरा मार्ग भी है कि नहीं। उस बन्दे ने कहा कि धनकर में मिट्टी की मिसाईलों के बराबर से ही उल्टे हाथ वाला मार्ग काजा जाने वाले मार्ग में जाकर मिलता है यह मार्ग सिचलिंग होकर जाने वाले मार्ग से 4-5 किमी छोटा भी है। अरे छोटा मार्ग है फ़िर तो ठीक है, सड़क कैसी है? सड़क नहीं बनी है, कच्चे मार्ग की हालत तो रुला देगी। हम अब तक बहुत कच्चा मार्ग झेलकर आये है अत: अब कच्चे मार्ग पर जानबूझ जाने वाले नहीं है।

धनकर से काजा की दूरी 34 किमी है। सिचलिंग तक लगातार ढलान मिली जिस पर बाइक का पैट्रोल बचाते हुए चले आये। वापसी में सिचलिंग गाँव नहीं जाना पड़ता है गाँव के बाहर से ही काजा के लिये मुड़ गये। काजा के लिये सीधे हाथ मुड़कर स्पीति के साथ चलते गये। थोड़ा आगे चलकर एक दो घर आये यहाँ से धनकर जाने के लिये तीन किमी की पैदल दूरी वाली खड़ी चढाई शुरु होती है। स्पीति नदी बहुत नजदीक होकर बह रही थी। आगे जाने पर स्पीति व पिन नदी का संगम आ गया। संगम को नजदीक से देखने में वो मजा नहीं आया जो सुख ऊपर धनकर मठ से देखने में आया था।

संगम से एक किमी आगे जाने पर स्पीति नदी पर एक पुल दिखायी दिया। यह पुल पिन नेशनल पार्क जाने के काम आता है। पुल पार एक दरवाजा बना हुआ है जिस पर लिखा था पिन वैली में आपका स्वागत है। इस यात्रा में पिन वैली जाने का कोई प्लान नहीं था इसलिये तीनों मॆं से किसी ने वहाँ जाने की इच्छा भी व्यक्त नहीं की। पिन वैली में भी एक गोम्पा है वहाँ रहने खाने का प्रबन्ध हो जाता है।

पिन वैली वाले पुल को अलविदा कह आगे बढ चले। सड़क पर जैसे जैसे आगे बढते जा रहे थे। मिट्टी के कच्चे पहाड़ मिलते जा रहे थे। आगे चलकर हमें सगनम नामक जगह मिली। सगमन में एक बोर्ड से पता लगा कि वहाँ सरकारी रेस्ट हाऊस भी है। अब काजा की दूरी ज्यादा नहीं बची थी। सगनम से आगे सडक पर बेहद ही खतरनाक टुकड़ा पार करना पड़ा। सडक मिट्टी के कच्चे पहाड के नीचे से बनाई गयी थी। जब मैंने इस कच्चे पहाड़ को देखा तो मेरा गला सूख गया था। मैंने राकेश को कहा देख भाई जरा ऊपर नजर घूमा के देख। राकॆश ने ऊपर देखा तो उसकी हालत भी मेरे जैसी थी। मनु कुछ पीछे था जब मनु साथ आ गया तो उस खतरनाक को तेजी से पार कर गये। 300 मीटर लम्बी उस जगह को आज भी याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते है।

काजा से काफ़ी पहले ही सरकारी भवन बनते दिखायी देते है। एक स्थानीय बन्दे ने बताया था कि वहाँ नवोदय स्कूल व उसका हॉस्टल बनाया जा रहा है। काजा से दो किमी काजा का टैक्सी स्टैन्ड़ नाम से एक बोर्ड दिखायी दिया। दूर काजा भी दिख रहा था। लेकिन काजा का टैक्सी स्टैन्ड़ इतनी दू क्यों बनाया जा रहा है? यह सवाल आज भी उलझा हुआ है। कुछ तो गड़बड़ है! काजा पहुँचते ही एक सुन्दर मठ दिखाई दिया।

आज के लेख में इतना ही, आगामी लेख में एशिया के सबसे ऊँचे गाँव की मान्यता प्राप्त किब्बर गाँव व की गोम्पा की यात्रा की जायेगी। यहाँ काजा में दुनिया के सबसे ऊँचे पैट्रोल पम्प पर फ़ोटो को लेकर मेरी और राकेश की बात बिगड़ गयी। जिसके बारे में अगले लेख में (यात्रा जारी है)

























7 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

गुरुदेव आप अपनी फोटोज़ का कलेक्शन अपना वेबपेज बना के अपलोड कर दो...आनंद आ जाये...मुझे उम्मीद है ब्लॉग में तो सिर्फ कुछ चुनिंदा फोटोज़ ही आप डालते होगे...

Sachin tyagi ने कहा…

सन्दीप भाई वानभट्ट जी ने ठीक ही कहा है आप अपनी यात्रा के बाद एक चित्रावली भी निकाला करे जिसमे कुछ खास चित्र संपादन किया करे

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

इस तरह के खड़े पहाड़ बने कैसे होंगे, भूगोलविदों के मत बड़े रोचक हो सकते हैं। कच्चे पहाड़ धसक कर नीचे भी तो गिर सकते होंगे?

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

कच्चे पहाड़ यानि सिर्फ मिटटी के --लेकिन वो भी पक्की मिटटी के ही होगे न --हिमालय तो यू भी कच्ची मिटटी का पहाड़ है --इन पहाड़ो की आकृति ऐसी क्यों है ?वहाँ के रहवासियो से पूछना था ?और इन कच्चे पहाड़ो पर मकान कैसे बनते है ?क्या ये बारिश में ठहते नहीं है ?और क्या ये मकान भी मिटटी के ही बनते है ---मिटटी के पहाड़ और मकान दूर से बहुत सुंदर लग रहे है --
संगम का फोटू लाजवाब है ! वाकई में टैक्सी स्टेंड इतनी दूर बनाने कि क्या तुक हो सकती है ----

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

संदीप ,तुम भी एक नया पेज़ बनाओ जिसमे ज्यादा से ज्यादा फोटू हो। … उसका नाम --- "जाट के कारनामे " कैसा रहेगा

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

your right mr. Vaanbhatt ji

Vidhan Chandra ने कहा…

gajab ki fotu khenchi bhai ne !!!

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