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01- दिल्ली से पोवारी तक kinner Kailash trekking
KINNER KAILASH TREKKING-11 SANDEEP PANWAR
शिमला की सबसे ऊँची जाखू चोटी पर स्थित हनुमान
मन्दिर देखने के बाद धीरे-धीरे मस्ती
भरी चाल चलता हुआ मैं शिमला के रिज मैदान तक आ पहुँचा। ऊपर जाते समय मैंने कुछ
बन्दर पानी में कूदते हुए देखे थे लेकिन वापसी में वहाँ उस जगह एक भी बन्दर नहीं
मिला। रिज मैदान में पहुँचा तो याद आया कि ऊपर एक प्लेटफ़ार्म से पूरा मैदान स्पष्ट
नजर आता है। मैं अभी मैदान में नहीं घुसा था पहले उस प्लेटफ़ार्म पर पहुँचा, जहाँ
से रिज मैदान सम्पूर्ण दिखाई देता है। मैं यहाँ से मैदान के फ़ोटो लेने लगा तो
दो-तीन बन्दे मेरे पास आकर खड़े हो गये। वे होटल में कमरा दिलाने का कार्य करते थे।
उन्होंने मुझसे ठहरने के लिये कमरे के बारे में कहा। मुझे रात में शिमला में ठहरना
ही नहीं है तो कमरा क्यों लेता? फ़िर भी मैंने उनसे कहा कि सबसे सस्ता कमरा बताओ
कितने का मिल जायेगा। उन्होंने सबसे सस्ता कमरा 400 का बताया था।
मैंने कहा कि 200 रुपये दूँगा। उन्होंने
मना करते हुए कहा कि इतने में यहाँ कमरा नहीं मिलेगा! अच्छा फ़िर मैं यहाँ नहीं
रुकूँगा।
मेरा कैमरा देखकर वहाँ बैठे दो तीन पर्यटक बोले
कि क्या आप फ़ोटोग्राफ़र हो? नहीं। आपका कैमरा काफ़ी अच्छा लग रहा है। मैंने कहा कि
कैमरे लगभग सभी अच्छे होते है बस उनके लैंस का अन्तर होता है। यह भी साधारण कैमरा
ही है बस इसका जूम थोड़ा सा ज्यादा है। जिस कारण इसकी बॉड़ी भी बड़ी बनायी गयी है।
यदि आप कम जूम का कैमरा लेना चाहोगे तो बेहद छोटा सा कैमरा इससे आधी कीमत में
आसानी से मिल जायेगा। एक जवान हीरो टाइप साहब वहाँ खड़े उचक-उचक कर हमारी बाते सुन
रहे थे। हमारी बाते सुनकर वह बीच में बोल पड़े कि इतने जूम का क्या करते हो? मुझे
ऐसे लोगों की झन्ड़ करने में बहुत मजा आता है। मैं कैमरा ऑन किया हुआ ही था मैंने
उन्हे मैदान की ओर कैमरा करते हुए कहा ये देखो, मैदान में कुछ दिखा। वह बोला मैदान
दिख रहा है। अच्छा अब देखो इस कैमरे का कमाल।
कोई 200-250 मीटर दूर से दो-तीन
सुन्दर सी लड़की (लड़की सभी सुन्दर होती है, लड़के सभी हैंड़सम होते है।) हमारी ओर आती
दिख रही थी। जब मैंने अपना कैमरा उनके चेहरे को फ़ोकस करते हुए जूम करना शुरु किया
तो शुरु में वो साहब कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन जब कैमरे की स्क्रीन में लड़कियों का
पूरा चेहरा आ गया तो वहाँ खड़े लोगों के मुँह से निकला। वाह! कैमरा हो तो ऐसा। देखा,
मैं लड़कियों के फ़ोटो लेने के लिये इस कैमरे का उपयोग करता हूँ। वह मेरा जवाब सुनकर
झेंप गया। जैसे कभी लड़की को घूरा ही नहीं हो? लड़कियों का फ़ोटो डिलिट करते हुए
मैंने कहा कि जानवरों व पक्षियों के फ़ोटो लेने के लिये ताकतवर जूम की आवश्यकता
होती है, उसी कार्य के लिये यह कैमरा लिया गया है। उनको वही छोड़कर मैं अपनी अगली
मंजिल शिमला चर्च की ओर बढ़ चला।
शिमला का चर्च काफ़ी पुराना है। पीले रंग चर्च
के बाहर नीले रंग का एक बोर्ड़ अंग्रेजी में लगा
हुआ है जिस पर CHRIST CHURCH SHIMLA लिखा है। उस
बोर्ड़ अनुसार धर्मप्रदेश अमृतसर में इसका लेखा जोखा मिलेगा। मैं इस चर्च को देखने
इसके अन्दर गया, अन्दर जाने से पहले एक छोटा सा बोर्ड़ दिखा जिस पर लिखा था कि यहाँ
फ़ोटो लेना मना है। सत्यानाश हो उन लोगों का, जो इस तरह की रोक लगाकर धर्म स्थलों
पर अपना अधिकार दुनिया पर जमाना चाहते है। मैंने गोवा के कई चर्च देखे है उनके लेख
आपको दिखा चुका हूँ। वहाँ फ़ोटो लेने पर ऐसी कोई रोक नहीं मिली। यहाँ हिन्दू
मन्दिरों की तरह फ़ोटो लेने पर रोक है। फ़ोटो लेने से जैसे इनका राज दुनिया को पता
लग जायेगा। जब मैं इस चर्च के अन्दर पहुँचा तो उस समय वहाँ सिर्फ़ इसका वर्दीधारी
गार्ड़ अकेला बैठा हुआ मिला। मैंने उससे अन्दर एक बोर्ड़ का फ़ोटो लेने के बारे में
पूछा। उस बोर्ड़ पर शिमला के इस चर्च के बनने का वर्ष अंकित किया हुआ था। मुझे यीशु
या उसकी मूर्ति से कुछ काम नहीं था। मैं सिर्फ़ इमारत देखने आया था। फ़ोटो लेने दिये
गये होते तो आगे यीशु की मूर्ति तक भी चला जाता, लेकिन मैं वही से वापिस चला आया,
जहाँ से बैठने वालों की कुर्सियाँ आरम्भ होती है।
चर्च से बाहर आकर रिज मैदान पार करते हुए शिमला
रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला। अभी आधा मैदान ही पार किया था कि मुझे याद आया कि कुछ
सालों पहले सन 2007 में अप्रैल माह में मैंने
शिमला की यात्रा की थी। शुरु के वर्षों में अकेले ही यात्रा करता था। लेकिन
जैसे-जैसे दोस्तों को मेरी यात्राओं के बारे में पता लगा तो आज मेरी अधिकांश
यात्राओं में कोई ना कोई दोस्त साथ हो ही लेता है। अपनी आदत अच्छी है या बुरी यह
बात मुझे नहीं पता। इसके बारे में मेरे साथ बार-बार जाने की इच्छा रखने वाले ही
बता सकते है। मेरे साथ जाने वाले दोस्तों के साथ ज्यादातर यही हुआ है कि वापसी में
हम लगभग आधी यात्राओं में अलग-अलग मार्गों से लौटते है। इस यात्रा में राकेश के
पैर में छाले होने के कारण मैं अकेला लौटा था।
रिज के बीचों-बीच खड़े होकर मैं पुरानी यादों
मॆं खो गया। बताऊँगा- उस एक मात्र फ़ोटो वाली यात्रा के बारे में जल्द ही। उस
यात्रा का एकमात्र फ़ोटो भी नहीं होता यदि एक फ़ोटो ग्राफ़र फ़ोटो लेने के लिये मेरे
पीछे ना पड़ा होता। आज मैं अपना कैमरा साथ लाया था। मैंने अपने फ़ोटो लेने के लिये
सामने से आ रहे स्कूलों बच्चों को कहा। उन्होंने मेरे कई फ़ोटो ले ड़ाले। फ़ोटो लेने
के बाद बच्चे अपनी राह चले गये। बच्चे तो गये, फ़िर मैं क्यों खड़ा हूँ। चलों मैं भी
चलता हूँ। धीरे-धीरे मैंने रिज की ढलान माल रोड़ पर उतरना शुरु कर दिया। यहाँ पर
पहाड़े के सीधे हाथ वाले किनारे के फ़ोटो बहुत अच्छे दिखायी देते है मैंने वो फ़ोटो
लिये भी और आपको दिखाये भी है। रिज पर स्थानीय लोगों के साथ बाहर से आने वाले
अंगन्तुकों की अच्छी खासी भीड़ भाड़ थी।
माल रोड़ पर कुछ दूर चलने के बाद सीधे हाथ
पर्यटन विभाग का सूचना केन्द्र दिखायी दिया। मुझे कोई सूचना नहीं लेनी थी लेकिन
वहाँ रेलवे की जानकरी देता हुआ एक बोर्ड देखकर मैं उसके पास जा पहुँचा। उस बोर्ड़
को पढने के बाद देखा कि वहाँ दो अन्य सूचना फ़लकों पर शिमला शहर के बारे में
जानकारी दी हुई है। उन फ़लकों अनुसार शिमला के बार में बताया गया है कि सन 1815 के गोरखा युद्ध के बाद शिमला अस्तित्व में आया।
महाकाली देवी का एक नाम श्यामला है जिसके नाम पर यह शिमला नाम पड़ा। गोरखा युद्ध
में अंग्रेजों की सहायता करने वाले पटियाला व कैन्थल राजा को अंग्रेजों ने बहुत
इनाम दिया था। 1864 में शिमला को गर्मियों की
राजधानी बनाया गया। आजकी तथाकथित आजादी मिलने तक यह क्रम चलता रहा। गोरे अंग्रेजों
के बाद काले अंग्रेजों ने यह क्रम तोड़ दिया। आजादी से पहले सम्पूर्ण पंजाब के अधीन
यह इलाका आता था। उस पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी।
शिमला शहर भारत से पाकिस्तान बनाने में अहम
भागीदार रहा। पाकिस्तान बनाने की घोषणा यही से हुई। भारत पाकिस्तान के बीच 1971 की लड़ाई के बाद सन 1972 में जो शिमला समझौता हुआ उससे भारत को ज्यादा
लाभ नहीं हुआ। पाकिस्तान के लगभग 95000 हजार सैनिक पकड़े
जाने के बाद भी भारत कश्मीर को पाकिस्तान से पूरा आजाद नहीं करा सका। इसी लड़ाई में
चटगाँव स्टेशन पर मेरे पिताजी को पाकिस्तानी सनिकों से लड़ाई में एक गोली छाती से
आर-पार हो गयी थी। भारत का एक बड़ा पेड़ जो आज ही के दिन 31.10.1984 को स्वर्ण मन्दिर पर सैनिकों व टैंको से हमला
करवाने के कारण नाराज सुरक्षा कर्मियों ने काट दिया गया था। वह बड़ा पेड़ शिमला
समझौते में कोई खास पराक्रम ना दिखा पाया। उसी बड़े पेड़ के गिरने के बाद उस बड़े पेड़
की बड़ी औलाद औलाद ने पब्लिक को भड़काने वाला ब्यान दिया कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो
छोटे-मोटे पौधे उसकी चपेट में आते ही है। कमाल देखो पेड़ इतना बड़ा निकला कि जिसने
पूरे भारत को अपने चपेट में लेकर लगभग 5500 सरदारों का काम
तमाम करवा दिया था। 1984 में हुए उन भीषण दंगों
में किसी दोषी को आज तक सजा भी नहीं हो पायी है।
यहाँ से मैं बाजार देखता हुई धीरे-धीरे रेलवे
स्टेशन की ओर चलता रहा। यह मार्ग सीधा स्टेशन जाकर ही समाप्त होता है। स्टेशन से
रिज मैदान लगभग दो किमी तो होगा। इस दूरी को पैदल पार करने में बहुत मजा आता है
पहाड़ के सौन्दर्य को निहारते हुए पैदल चलने का अलग सुख है। ट्रेन चलने का समय वैसे
02:30 मिनट का था लेकिन अभी तो 1 बजने वाला है और कोई काम नहीं था, इसलिये सोचा कि स्टेशन
पर बैठकर आराम किया जायेगा। ऊपर जहाँ से स्टेशन दिखायी देता है। वहाँ सड़क किनारे
पैदल चलने वालों के लिये पहाड़ के किनारे लोहे के गार्टर लगाकर पैदल मार्ग बनाया
गया है। मैंने देखा कि वहाँ पर मरम्मत कार्य हो रहा है। चलो अपुन को क्या? फ़ोटो ही
तो लेने है फ़ोटो लिये, चल दिया आगे, स्टेशन पहुँचकर देखा कि टिकट खिड़की अभी बन्द
है। ट्रेन जाने से एक घन्टा पहले टिकट खिड़की खोली जाती है। आज मैं दूसरी बार शिमला
रेलवे लाइन पर यात्रा करने जा रहा था इससे पहले मैंने कालका से शिमला की ओर सुबह
चलने वाली गाड़ी से यात्रा की हुई है। उस यात्रा में मैंने सिर्फ़ एकमात्र फ़ोटो रिज
मैदान पर चर्च के सामने एक फ़ोटो वाले से खिंचवाया था। अगले लेख में शिमला की
खिलौना रेल की शिमला से कालका तक की यात्रा करायी जायेगी। इस रेल यात्रा में जी भर
कर फ़ोटो लिये गये है। (यात्रा अभी जारी है।)
4 टिप्पणियां:
बढिया फोटो.
बहुत खूब पर्वतो की रानी शिमला, ऑफ सीजन में अलग ही मज़ा हैं....वन्देमातरम...
bhai Sandeepji
Badhiya yatra aapne karwai Shimla ki. Yatra ka vrnan bhi aapne achchha kiya hai. Photo ke sath thoda caption bhi dal dein to sone pe suhaga. Main bhi abhi Mount Abu se ho ke aya hoon. khoob anand raha.
उस बड़े पेड़ के नन्हे पौधे आज भी खून चूस रहे है---←←
शिमला के माल रोड को पार करके एक लिफ्ट हुआ करती थी जिससे हम माल रोड से सीधे नीचे उतर जाते थे वो अब भी है या नहीं ? वहाँ से टेक्सी से या पैदल ही हम स्टेशन जाया करते थे क्योकि हमने वहाँ रेलवे का रिटायरिंग रूम लिया हुआ था---- यह १९ ९५ कि बात है पर अभी भी शिमला वेसे ही लग रहा है ...
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