किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से पोवारी तक kinner Kailash trekking
KINNER KAILASH TREKKING-02 SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के पहले लेख में आपको दिल्ली से पोवारी तक की यात्रा के बारे में बताया
गया था। अब उससे आगे- जैसे ही सड़क किनारे लगे बोर्ड़ पर पोवारी नामक स्थान का बोर्ड़ दिखायी
दिया। हमने तुरन्त बस चालक से बस रोकने को कहा। मैं काफ़ी देर से सड़क
किनारे लगे दूरी सूचक बोर्डों को बड़े ध्यान से देखता हुआ चला आ रहा था कि कही
पोवारी पीछे ना छूट जाये? जब शांगठांग नामक
बड़ा सा लोहे वाला पुल आया तो वहाँ से पोवारी की दूरी मात्र दो किमी शेष बची थी। जितनी जानकरी हमें थी उसके अनुसार हमारी ट्रेकिंग आरम्भ करने का
स्थान पोवारी आ गया था। यहाँ से किन्नर
कैलाश की ट्रेकिग आरम्भ करने का स्थान बताया जाता है।
राकेश को चाय की तलब लगी थी इसलिये पोवारी में बस से उतरते ही चाय की दुकान पर रुककर राकेश ने चाय पी। हमने उस चाय वाले से ही किन्नर कैलाश जाने वाले मार्ग की जानकारी
लेनी चाही। साथ ही उससे पूछा कि यहाँ से सतलुज पार करने का झूला किधर है? जब
उसने कहा कि सतलुज पार करने के लिये आपको दो किमी वापिस जाना होगा क्योंकि झूला
टूटा हुआ है? वैसे तो किन्नर कैलाश की पैदल यात्रा सड़क पर पोवारी के ठीक सामने से
ही शुरु होती है लेकिन सतलुज पार करने के लिये हमें दो किमी वापिस जाना पड़ेगा, और
वहाँ से पुल के जरिये सतलुज नदी पार
कर फ़िर से पोवारी के ठीक सामने आना पडेगा। इस चक्कर में हमें पूरे चार किमी बे फ़ालतू में चलना पडेगा, ऐसा तो
हमने सपने में भी नहीं सोचा था।
राकेश चाय पीने में लगा था और मैं इसी उधेनबुन में लगा था कि काश कोई
बस आ जाये और हमारे कम से कम दो किमी तो बच ही जाये। वैसे भी पहाड़ों में
घन्टों में कोई बस दिखायी देती है। लेकिन कहते है ना, जहाँ चाह वहाँ राह अपने आप निकल जाती है। बस के चक्कर में समय नष्ट ना करते हुए हमने पैदल ही शांगटांग पुल की ओर चलने का फ़ैसला कर लिया था। ठीक उसी समय एक ट्रक वाला भी पोवारी से रामपुर-शिमला की ओर चलने को
तैयार बैठा था। हमें पैदल चलते देख उसने कहा कि आ जाओ, पुल तक मैं छोड़ देता हूँ। हमें उस समय इससे अच्छा कुछ नहीं मिल सकता था। ट्रक में सवार होकर हम दोनों सतलुज पार करने वाले शांगटांग पुल की ओर चल पड़े।
शांगटांग नामक
पुल पार करते ही रिकांगपियो की ओर जाते ही सड़क की बुरी हालत शुरु हो जाती है। वैसे इस यात्रा में तो हमने मात्र पोवारी तक की ही यात्रा की थी
लेकिन इस यात्रा के ठीक एक माह बाद इस मार्ग पर कुंजुम पास होते हुए मनाली तक की
यात्रा पूर्ण कर ली है। जैसे ही ट्रक ने
हमें शांगटांग पुल के पार पहुँचाकर उतारा तो हमारा बेशकीमती लगभग आधा घन्टा बच गया। यदि हमें पैदल आना होता तो कम से कम आधा घन्टा लगना तय था। हमने ट्रक वाले से वहाँ तक का किराया पूछा तो उसने कहा, अरे इतनी सी दूरी का काहे का किराया, मैं तो वैसे भी इधर से जा ही रहा था।
ट्रक वाले का धन्यवाद करने के उपराँत, हम तंगलिंग गाँव की ओर पैदल ही बढ़ चले। पुल से तंगलिंग लगभग दो किमी है जब हम पैदल ही तंगलिंग गाँव की ओर जा
रहे थे तो दो कार हमसे आगे
निकल गयी। मन में आया भी था कि चलो एक बार कार वालों को टोकते है। लेकिन जब कार नजदीक आयी तो हम उन्हे कुछ कह नहीं पाये। जब हम गांव के नजदीक पहुँचे तो एक बुजुर्ग महिला भी हमारे से आगे-आगे
पैदल ही चली जा रही थी। हमारी पीठ पर लदे रकसेक देखकर वो बुढिया बोली, कहाँ जा रहे
हो? हमने कहा कि हम तो किन्नर कैलाश दर्शन के लिये जा रहे है। हमारी बात सुनते ही वह बोली ऊपर जाने से पहले गाँव में देवता के मन्दिर
में हाजिरी देते हुए जाना। यह हाजिरी का क्या
चक्कर है? मामला कुछ-कुछ गोलमोल होता दिख रहा था।
बीते सप्ताह ही गाँव के देवता नाराज बताये गये थे जिनके कारण किन्नर
कैलाश यात्रा को रोकना पड़ा था। अब बुढिया अनुसार देवता के मन्दिर में हाजिरी भी लगानी पडेगी। तंगलिंग गाँव में
घुसने से पहले ही किन्नौर के लाल-लाल सेब से लदे हुए पेड़ दिखायी देने लगे थे। राकेश का मन सेब देखते ही हिरण की तरह छलाँगे मारने लगा था। यदि मैंने उसे ना रोका होता तो वह सेब के पेड़ से सेब तोड़े बिना मानने
वाला नहीं था। बड़ी मुश्किल से राकेश को सेब तोड़ने से रोका, उसे कहा कि आगे मार्ग में सेब तोड़ने के खूब मौके मिलेंगे।। तंगलिंग गाँव के बीच में एक पहाड़ी नाले को पुल के जरिये पार करते ही
एक दुकान दिखायी दी।
इस दुकान से किन्नर कैलाश जाने वाले मार्ग के बारे में पूछा तो
उन्होंने भी मन्दिर में हाजिरी लगाये बिना ऊपर ना जाने की सलाह दे ड़ाली। अभी दिन के तीन बजने वाले थे दुकान वालों ने बताया कि ऊपर खाने व
रहने के लिये कुछ नहीं मिलेगा। अभी तो भूख नही लगी थी लेकिन रात होते-होते भूख भी लगनी थी उससे बड़ा
लफ़ड़ा कल पूरे दिन का था जब गाँव वालों ने बताया कि ऊपर रहने व खाने को कुछ नहीं
मिलेगा तो आज शाम व कल पूरे दिन के खाने की व्यवस्था करने की आवश्यकता आन पड़ी। हम अभी तक यही सोच रहे थे कि ऊपर गुफ़ा नामक जगह पर भन्ड़ारा मिल
जायेगा। लेकिन अब हमारी सारी योजना अल्टा पल्टी हो गयी।
पहली समस्या रात के खाने की थी उसका इलाज तो गाँव की दुकान में बनने
वाली चाऊमीन थी जिसे पैक कराकर हमने अपने साथ ले लिया था। लेकिन कल पूरा दिन खाने के लिये वहाँ सिर्फ़ बिस्कुट के पैकेट ही
दिखायी दिये। पूरे दिन में खाने के लिये बिस्कुट के 10 रु वाले कई पैकेट ले
लिये गये। यदि आज हम आधी दूरी भी चढ़ गये तो कल रात तक नीचे वापिस आने की पूरी
उम्मीद बनी रहेगी। अभी दिन छिपने में
लगभग 4 घन्टे बाकि थे। इसलिये हमने फ़टाफ़ट
पैदल ट्रेकिंग आरम्भ करने की तैयारी कर दी। किन्नर कैलाश की एक तरफ़ की कुल पैदल दूरी 16-17 किमी बतायी जाती है। यहाँ
राकेश ने शायद दुकान के पास सेब के पेड़ से दो-तीन सेब तोड़ लिये थे। लेकिन गाँव
वाले के पूछने पर बताया कि सेब तो नीचे गिरे हुए थे। खैर किसी ने कुछ नहीं कहा।
किन्नर कैलाश यात्रा के बारे में जितनी जानकारी हमें मिली थी उसके
अनुसार इस यात्रा में पीने के पानी की बहुत समस्या आती है। इसलिये पीने के पानी की एक-एक बोतल भरकर अपने बैग में रख ली।। तंगलिंग गाँव की समुन्द्र तल से ऊँचाई मात्र 2600 मीटर है जबकि किन्नर कैलाश शिवलिंग की ऊंचाई
लगभग 20000 feet बतायी जाती है। इस तरह हमें मात्र 16
किमी
दूरी तय करने में मीटर की ऊँचाई चढ़नी थी। नाले के पुल को हमने पहले ही पार कर लिया था इसलिये वापिस पुल के इस
ओर आना पड़ा। इस नाले के पानी के बारे में बताया जाता है कि यह पानी पार्वती कुन्ड़
से आता है। इस नाले के पानी में तंगलिंग गाँव के मन्दिर का पुजारी प्रतिदिन स्नान करता है। हम इसी नाले के
साथ-साथ सीधे किनारे पर चलते हुए गाँव के देवता के मन्दिर की ओर बढ़ने लगे।
पगड़न्ड़ी पर हमें एक स्थानीय बन्दा मिला, हमे देखते ही बोला किन्नर कैलाश जा रहे हो, “हाँ”, देवता
के मन्दिर में हाजिरी लगाते हुए जाना। यार हाजिरी ना हुई, आफ़त हो गयी, जिसे देखो हाजिरी का पंगा सामने खड़ा करता हुआ निकल जाता है। चल भाई पहले इस देवता से ही निपट लेते है कि देखे यह क्या बला है? तंगलिंग गाँव के
स्थानीय देवता के मन्दिर में जाट देवता भी जा पहुँचे? वहाँ पहुँचकर देखा
कि मन्दिर में ताला लगा है। मैं पहले ही सोच रहा
था देवता के नाम पर गाँव वालों ने बवन्ड़र बनाया हुआ है। मन्दिर परिसर में पहुँचकर हाजिरी वाली बात के बारे में पूछा। वहाँ एक कमरे में एक बन्दा बैठा हुआ था उसने हाजिरी के नाम पर एक
रजिस्टर हमारे सामने सरका दिया और बोला कि इसमें अपनी प्रविष्टी दर्ज करा कर देवता
से आज्ञा ले ले लीजिए। और जो आपकी इच्छा हो
वह गल्ले में दान कर दीजिए।
दानपात्र की बात सुनते ही सारा माजरा समझ में आ गया कि स्थानीय गाँव
वालों ने मन्दिर की कमाई बढ़ाने के इरादे से किन्नर कैलाश आने वाले लोगों से उगायी करने
का नया तरीका निकाला है जिसे यह देवता के सामने हाजिरी का नाम दे रहे है। मैंने उस रजिस्टर में अपनी हाजिरी लगाते समय देखा था कि मेरा नम्बर 486 है। सिर्फ़ इतने लोग ही इस यात्रा पर आये होंगे, हो सकता है कि पंगे के नाम पर काफ़ी लोग ना आये हो लेकिन हमें बाद में
पता लगा कि बीते साल ऊपर भन्ड़ारे पर रहने व खाने की सुविधा के चलते यहाँ 5000 लोग यात्रा करने आये
थे। दान पात्र में राकेश ने एक सौ का नोट ड़ाल दिया था। नोट ड़ालते ही रजिस्टर देने वाले बन्दे ने कहा कि आपके पास यदि पोलीथीन
हो तो उसे वापिस लेते हुए आना।
अरे हाँ जब हम नाले के पुल से देवता के मन्दिर की ओर जा रहे थे तो तभी एक कार वहाँ आकर रुकी थी उसमें रामपुर के रहने वाले कई दोस्त थे। वे सभी किन्नर कैलाश ट्रेकिंग करने जा रहे थे। अभी तक हम केवल दो बन्दे ही थे। रामपुर वालों के साथ आते ही हम कई बन्दे हो गये थे। उनमें से दो बन्दे पहले भी किन्नर कैलाश की यात्रा कर चुके है। देवता के मन्दिर से आगे बढ़ने के बाद उसी नाले पर एक छोटा सा लोहे का
पुल पार कर दूसरी ओर चले गये। पुल पार करते ही एक
दीवार पर पीले रंग वाला एक पोस्टर दिखायी दिया जिस पर इस साल किन्नर कैलाश यात्रा
की देवता की महाभारत के गुणगान किये गये थे। मैं इस पोस्टर का फ़ोटो लेता हुआ आगे बढ़ता गया।
अभी तक हम आधा किमी से ज्यादा की दूरी पार कर चुके थे। नाले किनारे-किनारे आगे
बढ़ने पर यह
कच्ची पगड़न्ड़ी पक्की पगड़न्ड़ी में
बदल गयी। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे ही चढ़ाई भी तीखी होती जा रही
थी। तीन चार घुमावदार मोड़ पार करने के बाद साथ बह रहे नाले का किनारा पीछे नीचे छूट गया। मोड़ से ऊपर जाते ही
सीढियों वाली चढ़ाई आरम्भ हो गयी। पक्की पगडन्ड़ी पर चलते हुए ऊपर दिखायी दे रहे गाँव के नजदीक पहुँचने लगे। यह चढ़ाई भी कम खतरनाक नहीं थी। गाँव में ऊपर कुछ घर
बने हुए है। वहाँ तक पहुँचने के लिये जो जानदार चढ़ाई चढ़नी होती है उसे भूला नहीं
जा सकता है। हमें अंदाजा नहीं था कि आगे-आगे कैसी चढ़ाई आने वाली है लेकिन यह गाँव
की चढ़ाई एक अभ्यास के तौर पर देख ली जाये तो आगे कहने को कुछ नहीं बचता है।
राकेश बाबू को गाँव के ऊपरी भाग में पहुँचते ही फ़िर से लाल-लाल सेब
ललचाने में लगे थे। हम सेब के बागों के
मध्य बनी पतली सी पगड़्न्ड़ी से होते हुए ऊपर चढ़ते जा रहे थे। राकेश अपने साथ चाइना की छड़ी लाया था इस छड़ी का लाभ राकेश ने सेब
तोड़ने में जमकर उठाया। यहाँ राकेश ने लगभग 6-7 सेब तो अपनी झोली में ड़ाले ही होंगे। गांव के शीर्ष पर पहुँचकर कुछ पल विश्राम किया गया। उसके बाद आगे की यात्रा पर चल दिये। गाँव से आगे निकलते ही फ़िर से उसी नाले किनारे जाने के लिये ढलान पर उतरना पड़ा। जिसे पुल के जरिये पार कर यहाँ तक
आये थे। यहाँ नाले को पार
करने के लिये कुछ पत्थर व पेड़ के तने नाले में ड़ाले हुए थे। हम भी इन तनों के ऊपर से चलते हुए नाले को पार कर गये। नाले को पार करने के बाद सामने दिखायी दे रहे हजारों फ़ुट ऊँचे पहाड़ की तीखी धार पर चढ़ने में आने वाली आफ़त देखकर आँखे खुली रह गयी। इस तीखी खड़ी चढ़ाई को देखकर श्रीखन्ड़
की ड़न्ड़ाधार वाली चढ़ाई की याद हो आयी। चलिये अगले लेख में इसी धार को अपने जोर से
पार करेंगे।
शांगटांग पुल जहाँ जाट देवता लिखा है उसके नीचे है |
उतरो नाले में |
नाले पार का मार्ग |
नाले का पुल |
राकेश सेब चट करते हुए। |
10 टिप्पणियां:
good going bhai.asa lag raha h jese hum bhi aap ke sath sath chal rahe ho.
Sundeep jee yeh ughahi karne kaa tarika nahi hai....agar devta aadesh nahi karte to yatra kaise shuru ho paati or aap kaise kar paate,,,gaun waaloo ko dhanyabaad do..ki woh yatra m sahyog kar rahe hai,,or entry karwana aacha hai,agar pahroo m kho gaye tou kuch to madad hogi,,,,jab aapko pooja,pandit,daan mein shardha nahi hai tou eshi jagha jaate kyon ho?or bhi bhut jaga hai bharat m jaha Dev/devta/Mahadev nahi hai waha ki tracking/yatra kar liya karo.hame aapka blog padne m acha lagta hai,,or kinner kailash yatra kaa badi besabri se intzar tha,,,par aapne wohi purani Raagni devi/devta/pujari/pooja/Daan..wali baat likhkar dil thood diya...thik hai bhai aapka apna opinion hai...par Hindu ho kam se kam is baat kaa to dhyan do.Sabhi tarha ke log hai internet pe.Abhi kal hee Neeraj Bhai Phas gaye the GYATRI MANTRA ko lekar.jawab bhi nahi ban raha un se, unhe bhi aapka rang lagta jaa raha hai..Bhai do line kam likh liya karo.par esha mat likha karo.hum aapke pankhe hai.or hamari baat aapko maanni padegi.aapki sampoorn yatra kaa besabri se intzaar thoda jaldi-post kar do,,,,
Ek Devta ko bhi Dusre Devta ke yaha Hazri lagani padti hai??????????
सुंदर चित्रों के साथ सुंदर यात्रा वर्णन। जाट देवता की देवता के पास हाजिरि तो बनती थी, देखिये और साथी भी मिल गये।
sahi bat hai bandhu...
मुझे अपने हिन्दू होने पर खुशी इसलिये है कि मैं अपने धर्म पर, उनसे जुड़े ग्रंथों पर खुलकर प्रश्न उठा सकता हूँ। ईश्वर से जुड़े मसलों को बिना किसी डर या संकोच के कह सकता हूँ। तमाम अविश्वासों-विश्वासों की कसौटी के बीच मन में आता है तो ईश्वर को डांट भी देता हूँ, कभी ईश्वर की डांट महसूस भी करता हूँ। यह सारा कुछ एक हिन्दू होने के नाते ही कर पाता हूँ और इस खूबी के चलते ही मैं अपने हिन्दू होने पर गर्व करता हूँ। फिर यह भी जानता हूं कि दूसरे धर्म में होता तो यह सब नहीं कर पाता। तब मैं भी भयातुर रहता। इधर जिस तरह से तालीबानी किस्म के हिन्दू सिर उठा रहे हैं उससे लगता है मेरा विशाल हृदय वाला हिन्दू धर्म बाकी के भयातुर धर्मों की तरह होने के कगार पर है जिसमें ईशनिन्दा के लिये अल्लम गल्लम फतवे फतुल्ली जारी होते हैं
आपकी यात्रा का अनुभव हमें बताना और हम तो वो है जो आपकी लेखन शक्ति को सलाम करते है जय किन्नर कैलाश
कई जगह ऊंचाई और किलो मीटर छपा नहीं है ....क्यों ? इतने सुंदर सेव देखकर तोड़ने का मन किस का नहीं होगा ..हा हा हा और वो चोरी से तोडना पड़े तो क्या बात है ....
रास्ता तो थकाऊ है, बढिया यात्रा।
वाह भाई वाह आपने लिखा तो ऐसे है जैसे सारे सेव मैंने ही खाये हो , सबको बता देता हूं बराबर सब दिए थे मैंने जाट भाई को थोड़ा सा भी ज्यादा नहीं खाया , भाई तो मेरा नाम लगा देता है और खाने में मुझ से हमेसा आगे, चलो कोई ना मज़ा भी इसी में ही आता है
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