सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

Gufha to Gauri Kund गुफ़ा से पार्वती कुन्ड़

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH TREKKING-05                                         SANDEEP PANWAR
हमने गुफ़ा में पहुँचते ही पहले से तय कार्यक्रमनुसार अपने बड़े रकसैक बैग गुफ़ा में छोड़ दिये। गुफ़ा में कुछ सामान पहले से ही रखा हुआ था जिसमें किसी का रकसैक, स्लिपिंग बैग व मैट बिछी हुई थी। जिस दम्पति का यह सामान था वे रात गुफ़ा में ही ठहरे थे। बाद में दिन में यह लोग हमें किन्नर कैलाश शिला के दर्शन से लौटते हुए मिले थे। उससे भी बड़ा गजब यह रहा कि दिल्ली आते समय रात में मैं रामपुर बस अड़्ड़े के जिस डोरमेट्री में ठहरा था तो यह वहाँ भी उसी रात रुके थे यह बात मुझे रामपुर बस अड़ड़े के डोरमेट्री वाले ने देर रात बतायी थी। गुफ़ा पहुँचते ही राकेश व रामपुर वाले बन्दों ने चाय बनानी की तैयारी शुरु कर दी। मोबाइल में समय देखा सुबह के 07:30 हुए थे। एक बड़ी लकड़ी तो मैं अपने साथ लाया ही था लेकिन वहाँ पहले से ही कुछ लकडियाँ बची हुयी थी इसलिये अपनी वाली लकड़ी एक तरफ़ रख दी ताकि दूसरे लोगों के काम आ जाये। चूल्हे के नाम पर तीन चार पत्थर रखे हुए थे उन्ही को चूहे का रुप दे दिया गया था।



हमारे से आधा पौना घन्टे पहले कुछ लोग यहाँ से ऊपर की ओर गये थे उन्होंने भी यहाँ आग जलाकर खाने-पीने की कुछ वस्तु तैयार की थी। थोड़ी सी मेहनत के बाद चाय तैयार हो गयी थी अरे हाँ चाय बनाने के लिये शायद पावड़र वाला दूध नहीं बचा था इसलिये यह आपस में कह रहे थे कि आज तो काली चाय पीयेंगे। चाय पीने के बाद खाने की तैयारी करने लगे। रामपुर वाले बन्दे अपने साथ अपने घर से ही पराँठे बनवाकर लाये थे। हमने अपने बिस्कुट के पैकेट उनसे चाय के साथ बाँट लिये थे जब दाल गर्म हो गयी तो रामपुर वालों ने अपने घर से बनाकर लाये गये पराँठे सबमें बाँट दिये। दो-दो पराँठे मुझे व राकेश को भी मिल गये।

इसे कहते है ऊपर वाला जब देता है तो छ्प्पर फ़ाड़ कर देता है। मेरे जैसे बन्दे के लिये सुबह-सुबह दो पराँठे मिलने का मतलब था कि अब शाम तक कुछ खाने की आवश्यकता शायद ही पड़े। फ़िर भी भूख लगती तो बिस्कुट के पैकैट तो हमारे बैग में रिजर्व में मौजूद ही थे। रामपुर वालों को मैंने बीड़ी सिगरेट में कुछ भरकर पीते हुए देखा था। वे शायद गाँजा या कोई ऐसा ही नशा ले रहे थे। जबकि हम दोनों ठहरे ठेठ शाकाहारी, रामपुर वाले नशे के सहारे तेजी से चढ़ाई पर चढ़ते थे लेकिन हम भी उनसे किसी बात में कम नहीं थे। रामपुर वाले जब नशे की तैयारी कर रहे थे तो हम दोनों वहाँ से आगे की मंजिल की ओर चल दिये। अबकी बार बड़े बैग हमारे पास नहीं थे मेरे पास सिर्फ़ पानी की बोतल व बिस्कुट का 10 रु वाला एक पैकैट था। जबकि राकेश के पास पानी की बोतल के अलावा बिस्कुट के दो पैकैट के साथ दो सेब भी थे।

राकेश मुझसे बोला कि जाट भाई मेरा सामान अपने छोटे वाले बैग में रख लो, मैंने मना कर दिया कि नहीं राकेश भाई यह छोटा बैग मुश्किल से 2-3 kg सामान झेलने लायक ही है। यहाँ से आगे आप अपने सामान के लिये कोई लटकाने वाली पोलीथीन ले लो। राकेश ने अपना सामान एक पोलीथीन में लटका लिया था। सुबह के समय जब हम गुफ़ा में पहुँचे थे तो मैंने वहाँ बचे हुए खाने के सामान को देखा था उसमें दो तरह की दाल लगभग 5-5 किलो से ऊपर, चीनी लगभग 3-4 किलो, आटा लगभग 8-10 किलो, रिफ़ाइन्ड़ तेल लगभग 2-3 लीटर बचा हुआ था। इतना सामान रात में लौटकर खाना बनाने के लिये बहुत था। लेकिन हमें क्या पता था कि शाम तक उसमें से कितना सामान बाकि रहेगा?

गुफ़ा के आगे से ही ऊपर जाने वाला मार्ग दिखायी दे रहा था। वैसे कुछ लोग गुफ़ा तक आये बिना भी सीधे ऊपर की जाने वाली पगड़ड़ी से जाते हुए देखे थे। जैसी चढ़ाई कल वाली धार की थी ठीक उसी की बहन आज की चढ़ाई थी। जैसे कल हमारी हालत मस्त हो गयी थी इस चढ़ाई को देखकर लगता था कि आज भी कल की तरह बैन्ड़ बजने वाली है। आज गुफ़ा से आगे वाला मार्ग कल की अपेक्षाकृत कठिन दिखायी दे रहा था। जहाँ कल पेड़ों की बीच से होकर मार्ग था वही आज हल्की-फ़ुल्की घास के बीच से होकर मार्ग था।

आज की यात्रा में गुफ़ा के पास से ही सुन्दर-सुन्दर फ़ूल दिखने आरम्भ हो गये थे। इस प्रकार के हजारों फ़ूल मैंने कई यात्राओं मॆं देखे है लेकिन मेरी उत्सुकता सिर्फ़ ब्रह्म कमल फ़ूल में ही थी इससे पहले मैंने ब्रह्म कमल हेमकुन्ठ साहिब व फ़ूलों की घाटी की यात्रा में उगे हुए देखे थे। हमें गुफ़ा से आगे वाली गंजी धार को चढ़ने में दो घन्टे लग गये। जब इस धार को पार कर बड़े-बड़े पत्थर वाले इलाके में पहुँचे तो वहाँ हमें ब्रह्म कमल के फ़ूल दिखायी दिये। मैं सोच रहा था कि काश कोई ब्रह्मकमल का फ़ूल खिला हुआ दिखायी दे जाये लेकिन नहीं, लगता था कि फ़ूल हमारे सामने खिलने से शर्मा रहे थे हमें बन्द ब्रह्मकमल को देख कर ही संतोष करना पड़ा। बताया जाता है कि यह फ़ूल लगभग 15000 फ़ुट ऊँचाई पर पाया जाता है। इतनी ऊँचाई पर आकर घास-फ़ूस भी साथ छोड़ जाते है और देखो यह फ़ूल अपना राज करता हुआ दिखायी देता है।

राकेश ने शायद यह फ़ूल पहली बार देखा था इसलिये वह इन फ़ूलों के साथ बैठकर कई फ़ोटो खिंचवाकर ही माना। वैसे भी राकेश की जैसी आदत देखी उससे यही पता लगा कि राकेश को अपने फ़ोटो खिंचवाने की फ़ितूर सवार है यह सब उसकी उम्र का असर है कभी 10-11 साल पहले जब मैं भी उसकी उम्र का था तो मैं भी ऐसे ही अपने फ़ोटो जमकर खिंचवाता था। अब अपने इतने फ़ोटो हो गये है कि अपने फ़ोटो तो किसी यात्रा में दो चार ही खिचवाये जाते है वो भी सबूत के लिये ताकि कोई यह ना कहने बैठ जाये अरे आपका तो एक भी फ़ोटो नहीं है आप गये भी थे या किसी ओर के फ़ोटो चेप ड़ाले है। ब्रहम कमल का इलाका बहुत देर तक हमारा साथ नहीं निभा सका। यहाँ किसी यात्री ने बहुत सारे फ़ूल साथ जे जाने के लिये तोड़े होंगे एक जगह लगभग 20-25 ब्रह्मकमल के टूटे फ़ूल देखकर मैंने यही अंदाजा लगाया था कि बाद में किसी के मना करने पर उन्हे वही छोड़कर चला गया होगा।

जहाँ से हमें पत्थरों के बीच से होकर आगे बढ़ना था उस जगह खड़े होकर हमने पीछे का एक नजारा देखा वहाँ से रात वाला ठिकाना वन विभाग का कमरा साफ़ दिख रहा था। कैमरे का जूम प्रयोग कर वहाँ मौजूद लोगों की स्थिति कैमरे में कैद कर ली थी। ऊँचाई पर चढ़ते समय साँस अवश्य फ़ूलती है लेकिन फ़िसलकर खाई में गिरने की सम्भावना बेहद कम होती है। जबकि उसी मार्ग पर वापसी में फ़िसलकर गिरने वाले अधिक पाये जाते है। यहाँ इस जगह से आगे पत्थरों का जो अन्नत सिलसिला आरम्भ होता है यह ऊपर किन्नर कैलाश शिवलिंग तक भी पीछा नहीं छोड़ता है जैसे जैसे हम आगे चलते रहते है पत्थरों की यह भूल-भूलैया बढ़ती चली जाती है।

आगे जाने वालों ने इस पथरीले मार्ग पर निशान बनाने के लिये बड़े पत्थरों पर छोटे-छोटे पत्थर रखे हुए थे कई जगह तो यह छोटे पत्थर भी दिखायी नहीं देते थे। यहाँ कई बार ऐसी स्थित भी आयी थी जिसमें खड़े हो हो कर यह सोचना पड़ता था कि आगे वाले पत्थर तक कैसे पहुँचूँ। हमने बड़े बैग यहाँ ना लाकर अच्छा ही किया नहीं तो बड़े बैग इन बड़े उबड़-खाबड़ पत्थरों को पार करते समय कई बार अटकता, उससे परेशानी कम होने के अलावा बढ़ती ही, हाँ यदि हमारा रात में यही कही विश्राम करने का मन होता तो अपने रकसैक में रखे स्लिपिंग बैग मैट आदि बहुत काम आते, फ़िर चाहे कितने भी कष्ट होते हम अपने बैग हर हाल में यहाँ लेकर आते। इन पत्थरों पर चलते हुए अब तक सबसे कठिन पत्थरों वाली यात्रा याद हो आयी जब हमने इसी प्रकार के छोटे पत्थरों पर श्रीखन्ड यात्रा में पार्वती बाग से आगे नैन सरोवर तक की दो किमी की ट्रेकिंग की थी। श्रीखन्ड़ की पार्वती बाग से नैन सरोवर के बीच की वह यात्रा इसके सामने कही नहीं ठहरती।

पत्थरों के मायाजाल से उलझते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। मैं फ़ोटो व पत्थरों के चक्कर में उलझकर पीछे रह गया था जबकि राकेश आगे निकल गया था। आगे एक बड़े से सपाट पत्थर पर कुछ लोग भोजन करते हुए मिले। उन लोगों ने मुझे बहुत कहा कि लो भाई जी एक-दो रोटी खा लो, मैंने उन्हे मना किया उन्होंने खूब कहा कि हमारे पास बहुत भोजन है हम शाम तक पोवारी पहुँच जायेंगे। लेकिन नहीं, जब भूख नही तो भोजन किस लिये लेता। लेकिन जब उन्होंने कहा कि कम से कम पानी तो पीते जाओ। पानी की बात सुनकर मैं अपने आप को रोक नहीं सका। वे लोग थोड़ा सा हटकर बैठे थे पानी पीने के लिये मैं उनके पास पहुँच गया। 

उन सभी का फ़ोटो मैं इस लेख में लगाया हुआ है। मेरी पानी की बड़ी बोतल अब तक खाली हो चुकी थी लेकिन अभी मेरे पास सिलवर वाली 650 ml की बोतल बची हुई थी। मैंने पानी पीते हुए उनसे पूछा भी था कि अब पानी कहाँ मिलेगा? जब उन्होंने कहा कि बस पार्वती कुन्ड़ आने वाला है मुश्किल से 200-300 मीटर ही बचा होगा। पहले मैं सोच रहा था कि अपनी बड़ी बोतल उनके पास वाले पानी से भर लेता हूँ लेकिन जब उन्होंने बताया कि पानी नजदीक ही है तो मैं सोचा कि चलो पार्वती कुन्ड़ से ही अपनी बोतल भरते हुए आगे चलेंगे। मेरा मोबाइल बैग में ही था मैंने उनसे समय पूछा पता लगा कि ग्यारह बजने वाले है।

कुछ देर फ़िर से उन्ही बड़े-बड़े पत्थरों की भूल-भूलैया में होते हुए आगे बढ़ गया। आगे जाने पर लाल रंग का एक झन्ड़ा दिखायी दिया। मैंने सोचा कि पार्वती कुन्ड़ आ गया होगा लेकिन वहाँ पानी की एक बून्द भी दिखायी नहीं दी। जब मुझे पानी दिखायी नहीं दिया तो मैं आगे चल दिया। यहाँ से मुश्किल से 30-40 मीटर आगे बढ़ते ही फ़िर से लाल झन्ड़ा दिखायी दिया। अबकी बार देखा कि नीचे पत्थरों के बीच में गहराई में पानी दिख तो रहा है। पानी तक पहुँचने के लिये बड़े-बड़े पत्थरों की भूल भूलैया में काफ़ी घूम कर उतरने के बाद भरने की जगह दिखायी दे रही थी। राकेश मुझसे ज्यादा दूर तो नहीं था राकेश जरुर इन्ही पत्थरों में कही बैठा होगा। मैंने राकेश को आवाज लगायी तो उसने भी जवाब दिया लेकिन वह दिखायी नहीं दिया। मैंने उससे कहा अरे भाई अपनी छ्ड़ी को इन पत्थरों से ऊपर निकाल कर दिखाओ तभी पता लगेगा कि तुम कहाँ अटके हो।

जब राकेश के कहा कि आपको छड़ी दिखायी दी। चारों ओर देखने के बाद आगे की ओर राकेश की छ्ड़ी दिखायी दी। मैंने उससे कहा कि वहाँ क्यों बैठे हो? राकेश जवाब कुछ रुककर दे रहा था लगता था कि राकेश बिस्कुट के पैकेट को चट करने में लगा हुआ था। मैंने कहा क्या पीने का पानी भर लिया है? नही, ठीक है तुम नीचे जाकर मेरी और अपनी बोतले भर लाओ। बड़ा होने का कभी तो फ़ायदा भी मिलता है। राकेश बोतले लेने के लिये मेरे पास आया। मैंने उसे अपनी प्लास्टिक वाली बोतल दे दी। राकेश किसी तरह पत्थरों से बचते हुए बोतलों को लेकर नीचे पानी तक पहुँचा। वहाँ जाने के बाद उसे बोतल भरने के जगह मिलनी ही मुश्किल हो गयी। किसी तरह बोतल भरने की जगह मिली तो बोतल भरनी शुरु की। पहली बोतल भरते ही राकेश बोला, जाट भाई पानी बहुत ज्यादा ठन्ड़ा है। जितनी अंगुली पानी में गयी है सुन्न हो गयी है। मैंने कहा मैं पानी के अन्दर बर्फ़ देख रहा हूँ। चलो नहाते है? नहाने की बात सुनते ही राकेश अपना तकिया कलाम बोला “मजाक तो नी कर रहे हो।“ (यात्रा अभी बाकि है)














7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Ye brahmkamal mene shreekhand yatra me bhi dekhe the . Agale sal me bhi kinnar kailash janevala hu agar uski kripa bani to . Umesh joshi

Sachin tyagi ने कहा…

bahut badheya Sandeep bhai.rakesh ko kya pata ki jaat devta ko barfela paani dekhte hi nahane ki lag jati h.yatra mast chal rahi h next post ka intjaar h.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विस्तृत हिमालय, जीवट मानसिकता, पर्यटन की।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

पर्वत शिखर आसमान से बात करते हुए बहुत सुन्दर चित्र !
अभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बहुत बढ़िया ..साथ ही है ...हेमकुंड साहेब में ब्रम्ह कमल देखा था आज फिर

Yogi Saraswat ने कहा…

​हेमकुंड में ब्रह्म कमल ? मैंने नही देखा , या मैं देख नही पाया !!

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