गोवा यात्रा-10
गोवा की इस यात्रा में अभी तक आपने दिल्ली से ट्रेन का मुसीबत वाला सफ़र देखा, उससे आगे मडगाँव से लेकर मीरामार बीच तक का भी देखा है। अब आप देख रहे है गोवा का सबसे लम्बा व सबसे खूबसूरत बीच जिस पर वो भी एकदम अपनी स्टाइल में पूरे दो दिन तक पैदल चलते गये चलते गये कुदरती चीज देखनी है तो वाहन में बैठकर क्या मजा, कार-बस में बैठकर तो पर्यटक देखा करते है, हम जैसे तो जन्मजात(इसकी भी एक कहानी है बताऊँगा कभी) ही घुमक्क्ड़ ठहरे। घुमक्कड़ कुछ फ़क्कड़ (इसे यहाँ मंगते मत समझ लेना) किस्म के होते है। शुरु के दो दिन तक तो हम पर्यटक जैसे हालात में ही रहे, लेकिन जब अपनी वाली बात (ट्रेकिंग) आयी तो अपुन अपनी फ़ुल फ़ॉर्म में आ गये थे। आज से मैं अपने लगाये फ़ोटो में बार्डर का प्रयोग किया करुँगा। आपको अच्छा लगा तो सुभान अल्लू, बुरा लगा तो भी बार्ड़र लगाऊँगा।
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बीच पर उड़ाने का जुगाड़। |
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मस्ती शुरु |
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लगे रहो जाट देवता, किस्मत फ़ुर्सत में लिखवाकर लाये हो। (यह आपके शब्द होंने चाहिए) |
जहाँ आज की हमारी तय की गय दूरी समाप्त होनी थी, वहाँ पर हमें उस कैम्प के कैम्प लीड़र श्रीमान शर्मा जी समुन्द्र किनारे हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिल गये थे। उन्होंने हमें बताया कि आपके बस वाले चार साथी तो पहले ही आ गये थे। आप समय से आ रहे हो, जब हमने कहा कि हम तो आपके पास दो घन्टे पहले ही टपक जाते यदि नौसेना वालों ने अपनी टाँग बीच में नहीं फ़सायी होती तो। सबसे पहले हमने कैम्प का पता किया, उन्होंने बताया कि आपको यहाँ से दौ सौ मीटर अन्दर बिल्कुल सीधे जाने पर कैम्प दिखाई दे जायेगा। आप वहाँ पहुँचकर आराम करिये, मैं आपके ग्रुप के शेष सदस्यों को लेकर आता हूँ। हम तो अपने ग्रुप में राजधानी एक्सप्रेस के नाम से पुकारे जाने लगे थे। हमने उन्हें यह नहीं कहा कि हमारे साथी अभी दो किमी दूरी पर तो रह ही गये होंगे। हम अपना सामान कैम्प में रखने चले गये। कैम्प में जाते ही हमने अपना सामान पटक, नहाने क कपडे साथ ले नहाने चल दिये।
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ओये |
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अरे बच्चों क्या तलाश रहे हो? पापा कहते है मेरा नाम रेत में मिला दिया, उसे तलाश कर रहे है। |
जैसे ही हम समुन्द्र किनारे पहुँचे तो देखा कि वहाँ पर लोगों की सुरक्षा करने के लिये लाल कपडे पहने दो-दो बन्दे हर एक किमी बाद किसी ना किसी ठिकाने के पास तैनात रहते थे। हम लगभग चार बजे से ही पानी में घुस गये थे, यहाँ बीच पर दो तरह के झन्डे लगाये गये थे। पहला झन्डा लाल रंग का होता था जो इस बात की निशानी होती थी यहाँ पानी गहरा है अत: यहाँ वे लोग पानी में ज्यादा अन्दर ना जाये जिन्हें तैरना नहीं आता है। दूसरा झन्डा दो रंग का होता था, जो आधा लाल व आधा पीले रंग का होता था। जहाँ दो रंग का झन्डा लगा होता था वहाँ पर पानी की गहराई अपेक्षाकृत रुप से अन्य जगह की तुलना में कम पायी जाती थी। हम भी ऐसे ही दो रंग वाले झन्डे के सामने ही पानी में घुसे हुए थे। लेकिन लहरों के साथ अठखेलियाँ करते हुए हम काफ़ी दूर तक चले गये थे। जहाँ पर हमें सुरक्षा कर्मचारियों ने रोका कि यहाँ नहाना मना है। हम वापिस अपनी जगह आते और थोडी देर में फ़िर वहीं खतरे वाली जगह पहुँच जाते थे। हमारे एक साथी से इसी बात पर सुरक्षा कर्मी की कहासुनी भी हो गयी थी। जब हमें नहाते हुए काफ़ी देर हो गयी थी तो हमें अपने बिछुडे (पीछे छूटे) हुए साथी दिखाई दिये। जब उन्होंने हमें पानी में घुसे देखा तो वे भी जल्द ही वहाँ आ गये।
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मस्त, बीच पर समुन्द्र से बहकर आयी घास आपको गोबर जैसी दिख रही है। |
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मोटा-मोटी, बहुत मोटे थे। |
जब हमारे ग्रुप के बहुत सारे साथी हमारे साथ आ गये तो नहाने का एक दौर और चल पड़ा। पानी में खडे होकर हम लहरों का इन्तजार किया करते थे जैसे ही कोई तगडी सी लहर आती वैसे ही हम उससे झूझने के लिये तैयार हो जाते थे। हमारे समूह में से कई लोगों को तैरना आता था। जिस कारण वे पानी में काफ़ी अन्दर तक चले जाते थे, जबकि हम जैसे नौसिखिये सिर्फ़ उतनी ही दूरी तक पानी में घुसते थे जहाँ तक हमारी छाती डूबती थी। जैसे ही कोई लहर हमें किनारे पर धकेलती वैसे ही हम उसके साथ तैरने की कोशिश करते थे। इसी कोशिश का हमें बहुत फ़ायदा भी हुआ था। जहाँ पहले हमें नाम को भी तैरना नहीं आता था। वहीं अब हम दस-दस मीटर तक आराम से तैर लिया करते थे।
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ये तो गया काम से |
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अब सुरक्षा वाले भी चले अपने ठिकाने पर। |
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अच्छा बच्चू, सूर्य को हाथ पर उठाकर, लाल निक्कर पहन हनुमान जी बनना चाह रहे हो। |
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यह फ़ोटो हमारे गुजराती दोस्त ने अपने मोबाइल से लिया था, जबकि बाकि फ़ोटो भी मोबाइल के ही है। |
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यह फ़ोटो बम्बई वाले तराडे जी के कैमरे से लिया गया है। |
जब
हमें काफ़ी देर हो गयी तो हम पानी से बाहर आकर कपडे बदल कर सूर्यास्त देखने की
प्रतीक्षा करने लगे। हमें सूर्यास्त की इन्तजार करते देख हमारे साथ गयी एक लेडी ने
कहा कि सूर्यास्त नहीं देखना चाहिए। मैंने अनिल से कहा उसने अपने अपनी मन की बात
कह दी है अब उसे मानना या ना मानना हमारा काम है। बोलो क्या कहते हो? अनिल ने हाँ में हाँ मिलायी। हमारी हाँ क्या थी
उसका सबूत नीचे दिखाये गये फ़ोटोग्राफ़ है। वैसे बाद में वो लेडी भी सूर्यास्त
होने तक वही बैठी रही, शायद
उनको किसी ने बताया होगा कि ऐसा देखना अशुभ होता है। अब हम ठहरे उल्टी खोपडी के
मानव हम कहाँ इन जादू-टोने-टोटके को मानते है। मैं अभी तक भारत में कन्याकुमारी ही
ऐसी एकमात्र जगह देख पाया हूँ जहाँ से आप एक ही जगह से सूर्योदय व सूर्यास्त देख
सकते हो जबकि भारत में अन्य जगहों से दोनों में से एक ही सम्भव है। सूर्यास्त
के बाद हमारा भी वहाँ कुछ काम नहीं था, हम
भी सभी के साथ कैम्प में लौट आये थे।
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अपना आज का कैम्प स्थल |
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सुबह चलने की तैयारी हो रही है। |
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सुबह-सुबह स्टार मछली मृत अव्स्था में दिखायी जा रही है। |
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इसे कैकडा का बच्चा कहते है। |
कैम्प में आकर हमने ताजे साफ़ पानी से स्नान किया, यहाँ हमने अपने दो दिन से पहने हुए कपडे भी धो डाले थे। वहाँ का गर्म मौसम देखते हुए यह लग रहा था कि सुबह तक आसानी से सूख जायेंगे। लेकिन सुबह तक भी कपडे काफ़ी गीले रह गये थे। गोवा में रात को काफ़ी ओर गिरती है, जिस कारण कपडे पूरे नहीं सूखे थे। रात का खाना खाने के बाद हम सब सोने की तैयारी करने लगे, यहाँ पर कैम्प फ़ायर के समय मुझे अपनी लेह वाली यात्रा के बारे में बताने को कहा गया। जब मैं लेह वाली ठ्न्डी झुरझुरी बाइक यात्रा के बारे में बता रहा था तो मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं एक बार फ़िर से बाइक पर लेह जा रहा हूँ, वैसे मुझे एक बार फ़िर से लेह बाइक पर ही जाना है शायद अगले साल जाने का मौसम बन रहा है। रात को यहाँ सोते समय एक अकोला वाले महाराज ने अपने जोरदार खर्राटे से वहाँ तहलका मचा दिया था। अगली सुबह जब हम सोकर उठे तो सब उसके जोरदार-भयंकर खर्राटे के बारे में ही चर्चे कर रहे थे। सुबह मैं अपने गीले कपडे पहन कर ही यात्रा पर चल दिया था। अब कल से कमल हमारे साथ नहीं चल रहा था। उसके साथ उसका बीयर वाला पार्टनर उसका साथ निभा रहा था। हम अपने ग्रुप में चार लोगों को राजधानी एक्सप्रेस के नाम से पुकारा गया था जिनका फ़ोटो नीचे वाला है।
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राजधानी एक्सप्रेस के चार ट्रेकर, पहला गुजरात से, दूसरा बोम्बे से, तीसरा सब जानते है चौथा मेरा पडौसी। |
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सुरक्षा कर्मचारियों की ऊँची कुर्सी |
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चल भाई सम्भाल अपनी कुर्सी आजकल कुर्सी की ही कीमत है। |
आज केवल यहाँ तक ही, इससे आगे की यात्रा अगले भाग में दिखायी जायेगी।
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
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8 टिप्पणियां:
वाह वाह..
बहुत खूब, ये बोर्डर लगाने से पोस्ट में चार चाँद लग गए हैं, राम राम, वन्देमातरम...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
बहुत ही बढ़िया रही आज की तफरीह ....समुंदर किनारे मौज मज़ा का अपना ही मज़ा होता है .....
बार्डर से चित्रों में जान आ गई है .....
मौज मस्ती का आलम, बना रहे यूं ही आलम .करो खूब मस्ती खरामा खरामा ,....चलो अब यहाँ से खरामा खरामा ,....शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
Suryast ke photo bahut sundar hain. Shubh din Sandeep ji :)
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