सोमवार, 12 दिसंबर 2011

BHIMTAL भीमताल, भाग 2 (सेक्‍स sex को दबाए नहीं, उसे समझें)


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भीमताल के ओशो कैम्प में जाने के बाद हम तीनों में अन्तर सोहिल ने अपनी पहचान दिखा कर वहाँ के अभिलेख में अपना नाम-पता प्रविष्ट कराया। उनके द्धारा वहाँ की तय फ़ीस जमा की जो हम तीनों की 4500 रु तीन दिनों के लिये थी। दोपहर में हम पहुँचे ही थे। कुछ समय इधर-उधर घूमने में बिताया गया उसके बाद शाम को वहीं ओशो आश्रम में प्रवचन कक्षा में हमने भी भाग लिया था वैसे मैं सुबह-शाम की कक्षा में भाग लेने की सोच रहा था लेकिन वहाँ के स्वामी जी ने पहली सभा में ही फ़रमान सुना दिया कि सही कपडों (वेश भूषा) के बिना किसी को कक्षा में हिस्सा नहीं लेने दिया जायेगा। ये बात अपने को खटक गयी जिससे मैंने सिर्फ़ दो कक्षा के बाद सुबह-शाम कमरे में लेटकर आराम किया था। तीन दिनों के कैम्प में 15-16 बन्दे थे जिसमें से 5-6 बन्दी भी थी। सभी औरते भी अपने-अपने पति के साथ ओशो कैम्प में भरपूर ज्ञान उठा रही थी। वैसे मैंने ये देखा कि इन कैम्पों में इन्सानों के जीवन में बिताये जाने वाले पलों के बारे में खुल्लम-खुल्ला बताया जाता है। इन प्रवचन का एक ही उद्धेश्य देखा कि कैसे भी हो हर हालात में खुश रहना चाहिए। कभी-कभी तो मेरे जैसे बन्दे शरमा जाते थे। लेकिन जो लोग ऐसे कैम्प के अनुभवी है उन पर कोई फ़र्क नहीं पड रहा था। कैम्प में सुबह सबको चाय, बिस्कुट, नमकीन आदि दिया जाता था दोपहर को खाना ठीक एक बजे दिया जाता था, शाम को खाना ठीक आठ बजे दिया जाता था मैंने दोपहर का खाना एक बार भी नहीं खाया क्योंकि दोपहर को मैं किसी ना किसी ताल पर भ्रमण करने चला जाता था। पूरे दिन में 2-2 घन्टे की तीन कक्षा होती थी जिसमें प्रवचन के साथ योग आदि का समायोजन रहता था। प्रवचन में रोमांस, उत्तेजना, शिक्षा, जोश, होश जैसी भावना रहती थी।

भीमताल में ओशो कैम्प का बोर्ड जो सडक पर उल्टे हाथ लगा हुआ है।


भीमताल में ओशो कैम्प में प्रति बन्दे का दर्शाया गया मूल्य अदा करना पडता है।

भीमताल में ओशो कैम्प में ओशो का फ़ोटो दर्शाया गया है।
भीमताल में ओशो कैम्प में वहाँ के स्वामी प्रवचन देते हुए।

भीमताल में ओशो कैम्प में ओशो भक्त प्रवचन ग्रहण करते हुए।

ओशो के कैम्प में कई प्रवचन सुनने के बाद कुछ क्षण विश्राम के बिताये जा रहे है।

ओशो के संदेश।

ओशो के संदेश।


ओशो के कैम्प में कई प्रवचन सुनने को मिले जिसमें से एक भी याद नहीं रहा तो आपको क्या बताऊ, फ़िर भी नेट से तलाश कर आपके लिये ओशो के कुछ चुनिन्दा प्रवचन में से एक आपके लिये लाया हूँ मुझे तो इसमें काफ़ी दम लगा, आपको कैसा लगा, वो तो आप जाने।
नेट से ओशो का यह प्रवचन मैंने तलाश किया है। आपके लिये प्रस्तुत है.......




सेक्‍स को दबाए नहीं, उसे समझें: आचार्य रजनीश ओशो

'हमने सेक्स को सिवाय गाली के आज तक दूसरा कोई सम्मान नहीं दिया। हम तो बात करने में भयभीत होते हैं। हमने तो सेक्स को इस भांति छिपा कर रख दिया है जैसे वह है ही नहीं, जैसे उसका जीवन में कोई स्थान नहीं है। जब कि सच्चाई यह है कि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण मनुष्य के जीवन में और कुछ भी नहीं है। लेकिन उसको छिपाया है, उसको दबाया है। दबाने और छिपाने से मनुष्य सेक्स से मुक्त नहीं हो गया, बल्कि मनुष्य और भी बुरी तरह से सेक्स से ग्रसित हो गया। दमन उलटे परिणाम लाया है।

सेक्स को समझो : युवकों से मैं कहना चाहता हूँ कि तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारे पुरखे, तुम्हारी हजारों साल की पीढ़ियाँ सेक्स से भयभीत रही हैं। तुम भयभीत मत रहना। तुम समझने की कोशिश करना उसे। तुम पहचानने की कोशिश करना। तुम बात करना। तुम सेक्स के संबंध में आधुनिक जो नई खोजें हुई हैं उसको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि क्या है सेक्स?

सेक्स का विरोध न करें : सेक्स थकान लाता है। इसीलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि इसकी अवहेलना मत करो, जब तक तुम इसके पागलपन को नहीं जान लेते, तुम इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब तक तुम इसकी व्यर्थता को नहीं पहचान लेते तब तक बदलाव असंभव है। मैं बिलकुल भी सेक्स विरोधी नहीं हूँ। क्योंकि जो लोग सेक्स का विरोध करेंगे वे काम वासना में फँसे रहेंगे। मैं सेक्स के पक्ष में हूँ क्योंकि यदि तुम सेक्स में गहरे चले गए तो तुम शीघ्र ही इससे मुक्त हो सकते हो। जितनी सजगता से तुम सेक्स में उतरोगे उतनी ही शीघ्रता से तुम इससे मुक्ति भी पा जाओगे। और वह दिन भाग्यशाली होगा जिस दिन तुम सेक्स से पूरी तरह मुक्त हो जाओगे।

धन और सेक्स : धन में शक्ति है, इसलिए धन का प्रयोग कई तरह से किया जा सकता है। धन से सेक्स खरीदा जा सकता है और सदियों से यह होता आ रहा है। राजाओं के पास कई पत्नियाँ हुआ करती थीं। बीसवीं सदी में ही केवल 60-70 साल पहले हैदराबाद के निजाम की सौ पत्नियाँ थीं। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसके पास तीन सौ पैंसठ कारें थीं और एक कार तो सोने की थी। धन में शक्ति है क्योंकि धन से कुछ भी खरीदा जा सकता है। धन और सेक्स में अवश्य संबंध है। जो सेक्स का दमन करता है वह अपनी ऊर्जा धन कमाने में खर्च करने लग जाता है क्योंकि धन सेक्स की जगह ले लेता है। धन ही उसका प्रेम बन जाता है, धन के लोभी को गौर से देखना- सौ रुपए के नोट को ऐसे छूता है जैसे उसकी प्रेमिका हो और जब सोने की तरफ देखता है तो उसकी आँखें कितनी रोमांटिक हो जाती हैं बड़े-बड़े कवि भी उसके सामने फीके पड़ जाते हैं। धन ही उसकी प्रेमिका होती है। वह धन की पूजा करता है, धन यानि देवी। भारत में धन की पूजा होती है, दीवाली के दिन थाली में रुपए रखकर पूजते हैं। बुद्धिमान लोग भी यह मूर्खता करते देखे गए हैं।

दुख और सेक्स : जहाँ से हमारे सुख दु:खों में रूपांतरित होते हैं, वह सीमा रेखा है जहाँ नीचे दु:ख है, ऊपर सुख है इसलिए दु:खी आदमी सेक्सुअली हो जाता है। बहुत सुखी आदमी नॉन-सेक्सुअल हो जाता है क्योंकि उसके लिए एक ही सुख है। जैसे दरिद्र समाज है, दीन समाज है, दु:खी समाज है, तो वह एकदम बच्चे पैदा करेगा। गरीब आदमी जितने बच्चे पैदा करता है, अमीर आदमी नहीं करता। अमीर आदमी को अक्सर बच्चे गोद लेने पड़ते हैं। उसका कारण है। गरीब आदमी एकदम बच्चे पैदा करता है। उसके पास एक ही सुख है, बाकी सब दु:ख ही ‍दु:ख हैं। इस दु:ख से बचने के लिए एक ही मौका है उसके पास कि वह सेक्स में चला जाए। वह ही उसके लिए एकमात्र सुख का अनुभव है, जो उसे हो सकता है। वह वही है।

सेक्स से बचने का सूत्र : जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो उसमें उतरो। धीरे-धीरे तुम्हारी राह साफ हो जाएगी। जब भी तुम्हें लगे कि कामवासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत शांत होकर बैठ जाओ। जोर से श्वास को बाहर फेंको- उच्छवास। भीतर मत लो श्वास को क्योंकि जैसे ही तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ धकेलती है। जब तुम्हें कामवासना पकड़े, तब बाहर फेंको श्वास को। नाभि को भीतर खींचो, पेट को भीतर लो और श्वास को फेंको, जितनी फेंक सको फेंको। धीरे-धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे।

सेक्स और प्रेम : वास्तविक प्रेमी अंत तक प्रेम करते हैं। अंतिम दिन वे इतनी गहराई से प्रेम करते हैं जितना उन्होंने प्रथम दिन किया होता है; उनका प्रेम कोई उत्तेजना नहीं होता। उत्तेजना तो वासना होती है। तुम सदैव ज्वरग्रस्त नहीं रह सकते। तुम्हें स्थिर और सामान्य होना होता है। वास्तविक प्रेम किसी बुखार की तरह नहीं होता यह तो श्वास जैसा है जो निरंतर चलता रहता है। प्रेम ही हो जाओ। जब आलिंगन में हो तो आलिंगन हो जाओ, चुंबन हो जाओ। अपने को इस पूरी तरह भूल जाओ कि तुम कह सको कि मैं अब नहीं हूँ, केवल प्रेम है। तब हृदय नहीं धड़कता है, प्रेम ही धड़कता है। तब खून नहीं दौड़ता है, प्रेम ही दौड़ता है। तब आँखें नहीं देखती हैं, प्रेम ही देखता है। तब हाथ छूने को नहीं बढ़ते, प्रेम ही छूने को बढ़ता है। प्रेम बन जाओ और शाश्वत जीवन में प्रवेश करो।

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सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
साभार :   पथ के प्रदीप, धम्मपद : दि वे ऑफ दि बुद्धा, ओशो उपनिषद, तंत्र सूत्र, रिटर्निंग टु दि सोर्स,     एब्सोल्यूट ताओ से संकलित अंश।



भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-07-सातताल झील के साथ मस्त कदम ताल।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
भाग-09-नैनीताल की सबसे ऊँची चाइना पीक/नैना पीक की ट्रेकिंग।
भाग-10-नैनीताल से आगे किलबरी का घना जंगल।
भाग-11-नैनीताल झील में नाव की सवारी।
भाग-12-नैनीताल से दिल्ली तक टैम्पो-ट्रेन यात्रा विवरण।
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ताल ही ताल।

24 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जय हो महाराज, बिहनिया बिहनिया ज्ञानरंजन हुआ।

Bharat Bhushan ने कहा…

आज आपकी पोस्ट से ज्ञान और ज्ञान की कीमत ज्ञात हुई. आपकी यह यात्रा दिल को कुछ अधिक ही छू गई जाट भाई. वैसे मैं ऐसे केंद्रों से दूर ही रहता हूँ.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही ऊँचे विचार बता गये आप...

रविकर ने कहा…

प्रभावी---- ||
बधाई ||

Tarun Goel ने कहा…

sex ko smarpit post :D

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

निराला जी बहुत पहले कह गए हैं कि सेक्स और पाखाना दबाने की चीज़ नहीं है,ज़बरिया रोकोगे तो दूसरा रास्ता खोज लेगा !

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया रिपोर्ट..
वहां क्या होता था, ये तो आपने बताया। अच्छा होता कि आप पूरी क्लास करते और फिर अपने अंदर आए बदलाव को हमारे साथ बांटते तो हमे लगता कि हम भीं कैप में शामिल हो पाए।
ओशो की कुछ किताबें हमने पढी हैं, उनका दर्शन ही कुछ अलग हटकर है।

Rakesh Kumar ने कहा…

जय हो ,जय हो जाट देवता जी की जय हो.
प्रवचनों से धन्य हुए जी.

Unknown ने कहा…

Sex को दबाना खतरनाक हो सकता है। जानकारी के लिए धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

आज तो ओशो ही छाये हुए हैं । ओशो दर्शन अब महंगा हो गया लगता है ।

ये वर्ड वेरिफिकेशन क्यों लगा दिया भई ?

SANDEEP PANWAR ने कहा…

भूषण जी, मेरी भी किसी प्रवचन केन्द्र में जाने की रुचि नहीं रहती है वो तो अन्तर सोहिल जी के साथ होने से यह अवसर हाथ लग सका, वैसे इस प्रवचन में कोई बुराई वाली बात नजर नहीं आयी, सब कुछ पाक-साफ़ बताया गया था।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

महेन्द्र जी वहाँ के स्वामी अगर वेश भूषा वाली जिद ना करते तो मैं सभी कक्षा में उपस्थित होता? रही बात बदलाव वाली चिकने घडे पर कुछ नहीं चिपकाया जा सकता है।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दराल जी, मंहगे सस्ते का मुझे नहीं पता मैं तो पहली और शायद आखिरी बार किसी प्रवचन केन्द्र में गया था। वहाँ जाकर कुछ अच्छा ज्ञान मिला। वर्ड वेरिफिकेशन केवल ये देखने के लिये लगाया था कि क्या इसे लगाने के बाद भी कमैन्ट स्पैम में जाते है, पता लग गया कि जाते है अत: इसे हटा दिया है। लगता है कि गुग्गल को कुछ गडबड हो गया है जिससे स्पैम में कमैन्ट जा रहे है।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

जब से हमने सुना है ना कि ओशो सेक्स का खुल्लमखुल्ला समर्थन करते हैं तो भईया, हम भी उनके भक्तों में से एक हो गये हैं। लेकिन किसी कैम्प में जाना भी अपनी बस की बात नहीं है। आजकल मैं उनकी एक किताब पढने में लगा हूं- मैं मृत्यु सिखाता हूं।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

ओशो केवल तर्क को महत्व देता है भावनाओं को नहीं. समाज केवल तर्क से नहीं चलते.

virendra sharma ने कहा…

सहज जैविक और रागात्मक प्रवृत्ति है सेक्स बरसों पहले ओशो की किताब पढ़ी थी 'सेक्स से समाधी तक 'वह शुरुआत थी उसके बाद थोक में उनका साहित्य पढ़ा केसेट्स सुने नारनौल प्रवास के दौरान ,अच्छी जानकारी मुहैया करवाई है आपने ,सेक्स हमारे यहाँ आज भी वर्जना बना हुआ है .पाठ्यक्रमों में भी कम ही चर्चा है न जाने क्यों .जबकि सभी ज्ञान विज्ञान ही तो है

संजय भास्‍कर ने कहा…

बढिया रिपोर्ट....जाट देवता जी

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

संदीप जी तो अब आप यहाँ तक भी पहुँच गाये ....अच्छा हुआ जोश के साथ होश भी सिखाया ..और आप शरमा गए ..बंदी पतियों के साथ थीं ये भी सुन अच्छा लगा
भ्रमर ५

Vidhan Chandra ने कहा…

@नीरज जाट - मैं मृत्यु सिखाता हूँ मैंने आज से चौदह साल पहले पढ़ी थी!! मेरी नजर से ये पुस्तक बेहतरीन किताबों में से एक है!! मेरे विचारों को मोड़ने में इस पुस्तक का हाथ रहा है !!

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया ! ज्ञानवर्धक पोस्ट!

SANDEEP PANWAR ने कहा…

भ्रमर जी, आपका ये कहना कि अब आप यहाँ तक भी पहुँच गये हो, आखिर आप कहना क्या चाह रहे है जरा विस्तार से बताइये। ये दुनिया एक विशाल समुन्द्र जैसी है जिसमें से अगर हम अपने काम की दो-चार अनमोल वस्तु निकाल ले तो उससे इस ज्ञान के भन्डार पर कोई फ़र्क नहीं पडता है।

Ritesh Gupta ने कहा…

संदीप जी
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख हैं ये आपका ....
धन्यवाद

anil.ajger ने कहा…

बहुत अच्छा देश के लोगों ने चोरी छिप-छिप के जनसंख्या वृद्दिदर बढाई है। काश ये अन्धविश्वासी इसे हीन भावना से नही देखते तो देश की यह दुर्दशा नही होती

Govind Soni ने कहा…

ओशो एक दार्शनिक थे न की धार्मिक पथप्रदर्शक ,इनके विचार कई पाश्चात्य लेखकों से प्रभावित थे न की मौलिक । अगर सेक्स से समाधि होती तो शायद आज तक कितने ही बकरे और वेश्याएँ भगवान का दर्शन कर लेती

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