मंगलवार, 7 जून 2011

मन POEM, GEET


आज पडोस के एक लडके ने अपने स्कूल की वार्षिक कार्यक्रम की पुस्तिका में लिखी हुई एक कविता मुझे दी है,
मैंने इसमें कोई छेडखानी नहीं की है, नाम की भी नहीं,
अगर आपको धन्यवाद देना है, तो उस बच्चे को जिसने ये प्यारी सी रचना मुझे दी है,

कवि "दिनेश रघुवंशी" ने यह प्यारी रचना  लिखी है।

                     जीवन ग्रंथ
जीवन ऐसा चाहिए, मन संतुष्ट होना चाहिए।
रिश्ते कई बार बेड़ी बन जाते हैं
प्रश्नचिह्न बन राहों में तन जाते हैं
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बनकर जब उजियारे छ्लते हों
अँधियारों का हाथ थामना अच्छा है
रोज़-रोज़ शबनम भी अगर दग़ा दे तो
अंगारों का हाथ थामना अच्छा है
क़दम-क़दम पर शर्त लगे जिस रिश्ते में
तो वह रिश्ता भी केवल इक बन्धन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
दुनिया में जिसने भी आँखें खोली हैं
साथ जन्म के उसकी एक कहानी है
उसकी आँखों में जीवन के सपने हैं
आँसू हैं,आँसू के साथ रवानी है
अब ये उसकी क़िस्मत कितने आँसू हैं
और उसकी आँखों में कितने सपने हैं
बेगाने तो आख़िर बेगाने ठहरे
उसके अपनों मे भी कितने अपने हैं
अपनों और बेगानों से भी तो हटकर
जीकर देखा जाए कि कैसा जीवन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बोझा खुद ही ढोना पडता है
सच है रिश्ते अक्सर साथ नहीं देते
पाँवों को छाले तो हँसकर देते है
पर हँसती-गाती सौग़ात नहीं देते
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
कभी ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है





यह रचना प्रख्यात कवि एवं गीतकार दिनेश रघुवंशी जी की है: यहाँ देखिये:

http://kavyanchal.com/navlekhan/?p=943

32 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सच है---

मन संतुष्ट होना चाहिए

संदीप को दीप दिखाने की आवश्यकता नहीं,

फिर भी उसका मार्गदर्शन करते रहें

यह आप निर्देश समझें अपने लिए---

धन्यवाद---- उस बच्चे को
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं

ZEAL ने कहा…

संदीप जी ,
बहुत ही सुन्दर रचना है , एक सच्चाई , एक हकीकत है। कभी कभी मैं भी ऐसा ही महसूस करती हूँ। आभार इसे पढवाने का।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यह समझ नहीं आया कि कविता बच्चे ने लिखी है या उसकी पुस्तक से उतारी है ।

ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है।

ये पंक्तियाँ बच्चे की तो नहीं हो सकती ।
सुन्दर प्रस्तुति की लिए आभार ।

केवल राम ने कहा…

बहुत सुंदर देवता जी ...!
राम आज आपकी शरण में ..हा..हा..हा..!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वाह वा वाह वा..........सुभान अल्ला

Sunny Dhanoe ने कहा…

Good One Brother!

Maheshwari kaneri ने कहा…

ह्र्दय से निकली सुन्दर रचना……….संदीप को शुभ कामनाएँ …धन्यवाद

Bharat Bhushan ने कहा…

कई बार हमें अपने बारे में कहना नहीं पड़ता बल्कि वह कहीं से लिखा-लिखाया, कहा-कहलाया आ जाता है.
आपके पड़ोसी संदीप की भावनाएँ सुंदर हैं जो आप तक यह कविता पहुँचाई.

rashmi ravija ने कहा…

पंद्रह साल के बच्चे ने जैसे अपने मन की सारी उलझनों को शब्द दे दिया हैं.
बहुत ही अच्छी लगी रचना

virendra sharma ने कहा…

देर से आने के लिए माफ़ी -
अपना बनके जब उजियारे छलतें हों ,
अंधियारों का हाथ थामना अच्छा है ।
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को ,
रिश्ते उससे रोज़ उलझतेंहैं .
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की ,
रिश्ते उससे अपने आप सुलझतें हैं .
भाई संदीप छा गए हैं आप हमारे मन पे कई सवालों के ज़वाब थमा देती है यह भाव कविता ।
एक शैर आपकी नजर इसी भाव को अग्रसारित करता -
रफीकों से रकीब अच्छे ,जो जलके नाम लेतें हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं ,जो दामन थाम लेतें हैं ।
एक लडकी को जब दो व्यक्ति एक साथ चाहतें हैं तो उनमें एक रफीक (नायक )औरदूसरा रकीब (खलनायक )होतें हैं .।
रही बात एक दिन में एक "पोस्ट "पोस्ट करने की प्रकाशित करने की भाई साहब मैं दिन भर में कमसे कम चार घंटा लिखता हूँ .गत कई दशकों से ऐसा हो रहा है .अब पहली बार दो लेप टॉप नसीब हुएँ हैं .तो रफ्तार ज्यादा है .बाकी पोस्ट्स का क्या करू .लिखना पेशन है ,ओबसेशन है .लिखने से मैं बच जाता हूँ ,तनाव कम होता है ,ब्लड प्रेशर भी नियमित रहता है ११०/७० डब्लू एच ओ के मानकों के अनुरूप ।
बधाई इतनी सुन्दर कविता के लिए .

मदन शर्मा ने कहा…

सच्चाई को दर्शाती दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर कविता!!

Vaanbhatt ने कहा…

किसी मूवी का डायलोग है..."प्यार हमारी ताकत होना चाहिए...कमजोरी नहीं"...पर क्या करें रिश्ते तो ऐसे ही होते हैं...इन्हें निभाने में ही सार्थकता है...अकेले तो कोई भी जी सकता है...

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

घुमक्कड जाट अब कवि जाट भी बनता जा रहा है। ऑल राउण्डर बनने की ओर अग्रसर।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता, इस बच्चे को हमारा प्यार दे आशिर्वाद दे, धन्यवाद

sm ने कहा…

beautiful thoughtful lines
every line says something
touching

बेनामी ने कहा…

thanks for commenting on my blog

Richa P Madhwani ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सच्‍ची बात कही आपने।

---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता...

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

वाह-वाह यह तो बहुत बढ़िया लिखा..बधाई.
___________________

'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

निर्मला कपिला ने कहा…

रिश्तोम की हकीकत तो यही है शर्तों पर ही चलते हैं रिश्ते\ लेकिन तब आदमी दुनिया की भीद मे ही खो जाता है अकेलापन ही उसे अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है तक कितना अच्छा लगता है खुद का खुद के पास लौट आना। बहुत अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।

G.N.SHAW ने कहा…

अकेले भी चलने की आदत होने चाहिए ! निर्भरता असफलता भी लाती है ! बहुत सुन्दर !

upendra shukla ने कहा…

धन्यवाद संदीप जी जो आपने इतनी अच्छी कविता लिखी है मेरी ब्लॉग लिंक- "samrat bundelkhand"

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

bachcha samjhdaar hai.....badhai

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

जिस संदीप नामक बच्चे ने अपनी पुस्तक से उतार कर आपको वह कविता भेंट की जिसमें आपका भी नाम आजाता है वह अपने इस दिमागी प्रयोग के लिए काबिले तारीफ़ है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बच्चा सच में धन्यवाद का हक़दार है...... बहुत सुंदर लिखा है....

Harshvardhan ने कहा…

bahut khoob

Udan Tashtari ने कहा…

संदीप

बच्चे ने आपको बताया नहीं कि यह रचना उसकी नहीं है?

फिर रचना के साथ उसने बच्चे ने अपना नाम लिखा..यह तो अच्छे संस्कार नहीं जा रहे हैं उस बच्चे में. उसे प्यार से समझाईये कि जब भी किसी की रचना पसंद आये तो लिखे जरुर..मगर उससे छेड़छाड़ न करे और सबको बताये कि किसकी रचना है जो उसे पसंद आई.

बच्चे हैं, सिखाना हम बड़ों का कर्तव्य है. मेरा निवेदन स्वीकार उसे समझाईयेगा जरुर.


यह रचना मेरे मित्र एवं प्रख्यात कवि एवं गीतकार दिनेश रघुवंशी जी की है: यहाँ देखिये:

http://kavyanchal.com/navlekhan/?p=943


आशा है आप अन्यथा न लेंगे.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

समीर जी,.
मैने आपका बताया लिंक देखा,
सच में बच्चा झूठ बोला,
मैने इसमें कवि जी का लिंक दे दिया है,
संदीप नाम हटा रहा हूँ। आपका आभार मैं तो बच्चे की मेहनत समझ बैठा था।

virendra sharma ने कहा…

बेहतरीन अलफ़ाज़ आपके .बेहतरीन अश -आर आपके .कविता चुप चाप बहती निर्झर से टप टप झरती है .पढ़ आये हम दिनेश रघुवंशी जी की अन्य रचनाएं भी ,आपके सौजन्य से ,आभार आपका ,संदीप भाई .हम तो दो दिनों से आपको ढूंढ रहें थे ।
एक आदत सी हो गई तू ,
और आदत कभी नहीं जाती ,
ये जुबां हमसे सी नहीं जाती ,
ज़िन्दगी है के जी नहीं जाती .

Vivek Jain ने कहा…

संदीप जी ,
बहुत सुन्दर रचना है
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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