आज पडोस के एक लडके ने अपने स्कूल की वार्षिक कार्यक्रम की पुस्तिका में लिखी हुई एक कविता मुझे दी है,
मैंने इसमें कोई छेडखानी नहीं की है, नाम की भी नहीं,
अगर आपको धन्यवाद देना है, तो उस बच्चे को जिसने ये प्यारी सी रचना मुझे दी है,
कवि "दिनेश रघुवंशी" ने यह प्यारी रचना लिखी है।
जीवन ग्रंथ
जीवन ऐसा चाहिए, मन संतुष्ट होना चाहिए।
रिश्ते कई बार बेड़ी बन जाते हैं
प्रश्नचिह्न बन राहों में तन जाते हैं
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बनकर जब उजियारे छ्लते हों
अँधियारों का हाथ थामना अच्छा है
रोज़-रोज़ शबनम भी अगर दग़ा दे तो
अंगारों का हाथ थामना अच्छा है
क़दम-क़दम पर शर्त लगे जिस रिश्ते में
तो वह रिश्ता भी केवल इक बन्धन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
दुनिया में जिसने भी आँखें खोली हैं
साथ जन्म के उसकी एक कहानी है
उसकी आँखों में जीवन के सपने हैं
आँसू हैं,आँसू के साथ रवानी है
अब ये उसकी क़िस्मत कितने आँसू हैं
और उसकी आँखों में कितने सपने हैं
बेगाने तो आख़िर बेगाने ठहरे
उसके अपनों मे भी कितने अपने हैं
अपनों और बेगानों से भी तो हटकर
जीकर देखा जाए कि कैसा जीवन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ मेरा, अकेले चलने का मन है
अपना बोझा खुद ही ढोना पडता है
सच है रिश्ते अक्सर साथ नहीं देते
पाँवों को छाले तो हँसकर देते है
पर हँसती-गाती सौग़ात नहीं देते
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
कभी ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
यह रचना प्रख्यात कवि एवं गीतकार दिनेश रघुवंशी जी की है: यहाँ देखिये:
http://kavyanchal.com/ navlekhan/?p=943
http://kavyanchal.com/
32 टिप्पणियां:
सच है---
मन संतुष्ट होना चाहिए
संदीप को दीप दिखाने की आवश्यकता नहीं,
फिर भी उसका मार्गदर्शन करते रहें
यह आप निर्देश समझें अपने लिए---
धन्यवाद---- उस बच्चे को
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
संदीप जी ,
बहुत ही सुन्दर रचना है , एक सच्चाई , एक हकीकत है। कभी कभी मैं भी ऐसा ही महसूस करती हूँ। आभार इसे पढवाने का।
यह समझ नहीं आया कि कविता बच्चे ने लिखी है या उसकी पुस्तक से उतारी है ।
ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है।
ये पंक्तियाँ बच्चे की तो नहीं हो सकती ।
सुन्दर प्रस्तुति की लिए आभार ।
बहुत सुंदर देवता जी ...!
राम आज आपकी शरण में ..हा..हा..हा..!
वाह वा वाह वा..........सुभान अल्ला
Good One Brother!
ह्र्दय से निकली सुन्दर रचना……….संदीप को शुभ कामनाएँ …धन्यवाद
कई बार हमें अपने बारे में कहना नहीं पड़ता बल्कि वह कहीं से लिखा-लिखाया, कहा-कहलाया आ जाता है.
आपके पड़ोसी संदीप की भावनाएँ सुंदर हैं जो आप तक यह कविता पहुँचाई.
पंद्रह साल के बच्चे ने जैसे अपने मन की सारी उलझनों को शब्द दे दिया हैं.
बहुत ही अच्छी लगी रचना
देर से आने के लिए माफ़ी -
अपना बनके जब उजियारे छलतें हों ,
अंधियारों का हाथ थामना अच्छा है ।
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को ,
रिश्ते उससे रोज़ उलझतेंहैं .
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की ,
रिश्ते उससे अपने आप सुलझतें हैं .
भाई संदीप छा गए हैं आप हमारे मन पे कई सवालों के ज़वाब थमा देती है यह भाव कविता ।
एक शैर आपकी नजर इसी भाव को अग्रसारित करता -
रफीकों से रकीब अच्छे ,जो जलके नाम लेतें हैं ,
गुलों से खार बेहतर हैं ,जो दामन थाम लेतें हैं ।
एक लडकी को जब दो व्यक्ति एक साथ चाहतें हैं तो उनमें एक रफीक (नायक )औरदूसरा रकीब (खलनायक )होतें हैं .।
रही बात एक दिन में एक "पोस्ट "पोस्ट करने की प्रकाशित करने की भाई साहब मैं दिन भर में कमसे कम चार घंटा लिखता हूँ .गत कई दशकों से ऐसा हो रहा है .अब पहली बार दो लेप टॉप नसीब हुएँ हैं .तो रफ्तार ज्यादा है .बाकी पोस्ट्स का क्या करू .लिखना पेशन है ,ओबसेशन है .लिखने से मैं बच जाता हूँ ,तनाव कम होता है ,ब्लड प्रेशर भी नियमित रहता है ११०/७० डब्लू एच ओ के मानकों के अनुरूप ।
बधाई इतनी सुन्दर कविता के लिए .
सच्चाई को दर्शाती दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर कविता!!
किसी मूवी का डायलोग है..."प्यार हमारी ताकत होना चाहिए...कमजोरी नहीं"...पर क्या करें रिश्ते तो ऐसे ही होते हैं...इन्हें निभाने में ही सार्थकता है...अकेले तो कोई भी जी सकता है...
घुमक्कड जाट अब कवि जाट भी बनता जा रहा है। ऑल राउण्डर बनने की ओर अग्रसर।
बहुत ही सुंदर कविता, इस बच्चे को हमारा प्यार दे आशिर्वाद दे, धन्यवाद
beautiful thoughtful lines
every line says something
touching
thanks for commenting on my blog
सुन्दर प्रस्तुति
सच्ची बात कही आपने।
---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
बहुत ही सुन्दर कविता...
वाह-वाह यह तो बहुत बढ़िया लिखा..बधाई.
___________________
'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
रिश्तोम की हकीकत तो यही है शर्तों पर ही चलते हैं रिश्ते\ लेकिन तब आदमी दुनिया की भीद मे ही खो जाता है अकेलापन ही उसे अपने भीतर झाँकने का अवसर देता है तक कितना अच्छा लगता है खुद का खुद के पास लौट आना। बहुत अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
अकेले भी चलने की आदत होने चाहिए ! निर्भरता असफलता भी लाती है ! बहुत सुन्दर !
धन्यवाद संदीप जी जो आपने इतनी अच्छी कविता लिखी है मेरी ब्लॉग लिंक- "samrat bundelkhand"
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
bachcha samjhdaar hai.....badhai
जिस संदीप नामक बच्चे ने अपनी पुस्तक से उतार कर आपको वह कविता भेंट की जिसमें आपका भी नाम आजाता है वह अपने इस दिमागी प्रयोग के लिए काबिले तारीफ़ है.
बच्चा सच में धन्यवाद का हक़दार है...... बहुत सुंदर लिखा है....
bahut khoob
संदीप
बच्चे ने आपको बताया नहीं कि यह रचना उसकी नहीं है?
फिर रचना के साथ उसने बच्चे ने अपना नाम लिखा..यह तो अच्छे संस्कार नहीं जा रहे हैं उस बच्चे में. उसे प्यार से समझाईये कि जब भी किसी की रचना पसंद आये तो लिखे जरुर..मगर उससे छेड़छाड़ न करे और सबको बताये कि किसकी रचना है जो उसे पसंद आई.
बच्चे हैं, सिखाना हम बड़ों का कर्तव्य है. मेरा निवेदन स्वीकार उसे समझाईयेगा जरुर.
यह रचना मेरे मित्र एवं प्रख्यात कवि एवं गीतकार दिनेश रघुवंशी जी की है: यहाँ देखिये:
http://kavyanchal.com/navlekhan/?p=943
आशा है आप अन्यथा न लेंगे.
समीर जी,.
मैने आपका बताया लिंक देखा,
सच में बच्चा झूठ बोला,
मैने इसमें कवि जी का लिंक दे दिया है,
संदीप नाम हटा रहा हूँ। आपका आभार मैं तो बच्चे की मेहनत समझ बैठा था।
बेहतरीन अलफ़ाज़ आपके .बेहतरीन अश -आर आपके .कविता चुप चाप बहती निर्झर से टप टप झरती है .पढ़ आये हम दिनेश रघुवंशी जी की अन्य रचनाएं भी ,आपके सौजन्य से ,आभार आपका ,संदीप भाई .हम तो दो दिनों से आपको ढूंढ रहें थे ।
एक आदत सी हो गई तू ,
और आदत कभी नहीं जाती ,
ये जुबां हमसे सी नहीं जाती ,
ज़िन्दगी है के जी नहीं जाती .
संदीप जी ,
बहुत सुन्दर रचना है
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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