सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

Mount harriet National park माऊँट हैरिएट नेशनल पार्क

आज चलते है माऊँट हैरिएट की सैर पर


अंडमान व निकोबार द्वीप समूह की इस यात्रा में आपने अभी तक पोर्टब्लेयर का चिडिया टापू, डिगलीपुर में अंडमान की सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक, अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी सेल्यूलर जेल, हैवलाक द्वीप के सुन्दर तट और खूबसूरत नील द्वीप, अंग्रेजों का मुख्यालय रॉस द्वीप, समुद्रिका संग्रहालय देखा। आज चलते है माऊँट हैरिएट की चोटी के ओर। इस यात्रा को शुरु से पढना हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाकर  सम्पूर्ण यात्रा वृतांत का आनन्द ले। इस लेख की यात्रा दिनांक 29-06-2014 को की गयी थी
MOUNT HARRIET NATIONAL PARK TREKKING, PORT BLAIR हैरियट पर्वत के वन्य जीव अभ्यारण की यात्रा

समुद्रिका नामक नौसैनिक संग्रहालय देखकर आज के रात्रि विश्राम स्थल अंडमान टील हाऊस नामक सरकारी होटल पहुँच गये। समुद्रिका संग्रहालय व टील हाऊस होटल लगभग आमने-सामने ही है। हम कल सुबह माऊँट हैरिएट नेशनल पार्क की ट्रैकिंग करने जायेंगे। हमारा आज का कमरा भी वातानुकुलित है। इस यात्रा में घुमक्कडी करते समय पूरे ऐशों आराम भोगने वाला पर्यटक बनकर लुत्फ उठा रहा था। बडे होटलों में कहते है, कपडे धोने की मनाही होती है। होती होगी, हमने तो यहाँ भी अपने एक जोडी मैले कपडे धो डाले। कपडे सुखाने के लिये शानदार जगह मिली। जहाँ हमारे कपडे सिर्फ दो घंटे में ही सूख गये थे। हमारे कमरे के दरवाजे के ठीक बराबर में दूसरे कमरे का AC था। उसकी गर्म हवा का यहाँ पूरा फायदा उठाया गया था। 

रात को इसी होटल में भोजन करना तय किया था। भोजन का आर्डर देने में देरी हो गयी थी। पहले तो याद ही नहीं रहा, जब भूख लगी तो याद आया कि भोजन का आर्डर तो दिया ही नहीं। जब भोजनालय पहुँचे तो बताया गया कि आपका तो आर्डर है ही नहीं। अब क्या हो सकता है? होटल वाले बोले, सर, भोजन तो बन जायेगा, लेकिन आधा घंटा प्रतीक्षा करनी पडेगी। हमें कौन सा जल्दी थी? रात में अपने बिस्तर पर जाकर सोना ही तो बाकि है। खाना देरी से मिला, लेकिन स्वादिष्ट मिला। जब तक खाना खाकर वापिस लौटे, तब तक कपडे भी सूख गये। पूरे दिन एक मिनट भी चैन से नहीं बैठे थे। बिस्तर पर लेटने के बाद, कब आँख लगी पता ही न लगा? सुबह सोकर उठे तो याद आया कि आज तो माऊंट हैरियट पर्वत की यात्रा करने जाना है। हम आज की रात इस होटल में नहीं बितायेंगे। इसलिये अपना सामान पैक कर, स्वागत कक्ष में सुरक्षित रखवा दिया था। माऊँट हैरिएट देखकर वापिस इसी मार्ग से लौटेंगे तो अपना सामान भी ले जायेंगे।
माऊंट हैरिएट नेशनल पार्क Mount Harriet National Park
माऊंट हैरिएट कैसे पहुँचे
किसी जगह जाना हो तो सबसे पहले दिमाग में यही बात आती है कि वहाँ तक कैसे पहुँचा जाये? जब किसी जगह पहुँचने की जानकारी हमारे पास हो तो वहाँ पहुँचना बेहद आसान होता है। माऊँट हैरिएट पहुँचना बहुत ही आसान है। चाथम जेट्टी (लकडी वाले आरा मिल वाली) तक बस या आटो से पहुँचना होता है। हमें होटल से बाहर निकलते ही एक बस मिल गयी थी जो चाथम जेट्टी जा रही थी। बस में हम तीनों का केवल 15 रु किराया लगा। बस ने जेट्टी के ठीक सामने उतारा। जेट्टी पर पहुँचे ही थे कि एक फैरी बम्बूजेट्टी जाने के लिये हार्न बजा चुकी थी। हम फटाफट उस फैरी में सवार हो गये। जेट्टी पर फैरी में सवार होने से पहले ही टिकट लेना पडता है। यह हमें पता ही नहीं था। बम्बू जेट्टी तक हमें किसी ने नहीं टोका? बम्बू जेट्टी व चाथम जेट्टी की दूरी 2 किमी के करीब होगी। लगभग आधा घंटे में हम दूसरे किनारे पहुँच चुके थे। जेट्टी से बाहर आने तक कोई टिकट के लिये नहीं आया।
जीप से माऊँट हैरिएट के द्वार तक
जेट्टी से बाहर निकल कर माऊँट हैरिएट जाने वाले मार्ग की जानकारी ली। जेट्टी के ठीक बाहर खाने-पीने की एक दुकान है। मेरा सीधा सा फंडा होता है। पहले किसी दुकान पर कुछ खाया पिया जाये। उस दौरान बातचीत में अपने काम की जानकारी ले ली जाये। पेज पूजा करते हुए अपने काम की जानकारी मिल गयी। जिस दुकान से खाने का सामान लिया था उसी ने बता दिया था कि अब आफ सीजन है। वैसे तो जीप मिलनी मुश्किल है। यदि आप पूरी सवारी के पैसे दे सको, तो मैं एक जीप वाले को बुलवा देता हूँ। पूरी जीप में 10 सवारी आती है। हम ठहरे 3, यानि 7 सवारियों का किराया मुफ्त में देना पडेगा। 

हमें जीप की प्रतीक्षा में खडे देख तीन महिलाएँ हमारे पास आयी और बोली कि माऊँट हैरिएट के लिये जीप आटो आदि कहाँ से मिलेगा? मैंने उनसे पूछा, आपके साथ कितनी सवारी है? जवाब मिला 5, हमने भी उनसे वही बात कही जो दुकान वाले ने हमसे कही थी। वो महिलाएँ दस सवारियों के पैसे देने को तैयार हो गयी। हमें लगा कि एक जीप वाला बडी मुश्किल से तैयार हुआ है। उसे ये महिलाएँ ले उडी तो हमारा क्या होगा, रे रामा? दिमाग में तुरन्त बिगुल बजा कि पटा लो इन महिलाओं को, नहीं हो इन्हे कोई और पटा कर ले जायेगा। महिलाओं को एक मिनट रुकने को बोला और हमने आपस में सलाह कर सहमति बनाई कि इन महिलाओं के साथ एडजस्ट हो लेते है। महिलाओं से कहा कि जीप आ रही है आपके साथ 3 सवारी और जायेगी। जीप का जो किराया बनेगा वो आपस में बाँट लिया जायेगा। 

जीप वाले ने 400 से कम पर जाने से मना कर दिया। एक महिला हमारे साथ जीप वाले से बात कर रही थी। हमने जीप वाले को कुल 8 सवारी बतायी थी। चलो 50 रु प्रति सवारी पर आने-जाने की बात फाइनल हो गयी। जीप वाले ने बताया कि ऊपर पहाड पर आपको तीन घंटे का समय दिया जायेगा। तीन घंटे में घूमकर आपको गाडी के पास लौटकर आना होगा। चल भाई, ठीक है। हम सब जीप में सवार होकर, माऊँट हैरिएट की ओर चल दिये। लगभग 2 किमी की दूरी समुन्द्र किनारे बने मार्ग पर चलते हुए आगे बढते रहे। पहाड की चढाई आरम्भ होने के बाद लगभग 5 किमी की चढाई जीप ने तय करा दी। जीप वाले ने एक बैरियर के पास जाकर हमें बताया कि इससे आगे गाडी नहीं जायेगी। यहाँ से आगे की दूरी आपको पैदल की तय करनी होगी।

पैदल यात्रा के नाम से ही राजेश जी इधर-उधर देखने लग जाते है। बैरियर से आगे निकलते ही झोपडी में बनी टिकट खिडकी है। झोपडी नुमा टिकट खिडकी पहली बाद देखी थी। केवल 20 रु प्रति यात्री का टिकट है। कैमरे का टिकट यहाँ नहीं लगा। यहाँ हमारे जैसे शौकिया फोटो लेने वालों पर कोई शुल्क नहीं है। प्रोफेशनल फोटोग्राफर के कैमरे पर यहाँ शुल्क लगता है। टिकट वाले से पूछा, आगे कितनी चढाई है? उसने बताया कि बस आधा किमी ही चढाई है इसके बाद पार्क है वहाँ से आगे लगभग समतल है। चलो दोस्तों, पद यात्रा शुरु करते है, उससे पहले माऊँट हैरिएट की कुछ जानकारी आपको बता देते है।
माऊंट हैरिएट पहाड की खास बात 20 रु के नोट पर तस्वीर
सन 1979 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा हासिल हुआ था। यह पोर्टब्लेयर की फरारगंज तहसील में स्थित है। इस पर्वत (माउंट हैरिएट) की समुन्द्र तल से 383 मीटर की ऊँचाई है। यह अंडमान निकोबार द्वीप समूह की तीसरी (Mount Harriet) सबसे ऊँची चोटी है। दूसरे स्थान पर माऊंट थूलीयर (Mount Thullier) आता है। जिसकी ऊँचाई 568 मीटर है। यह ग्रेट निकोबार में स्थित है। रही बात अंडमान की सबसे ऊँची चोटी की तो आप वहाँ की सैर कर ही चुके हो। भूल गये क्या? सैडल पीक (Saddle peak) ट्रैक याद नहीं है। जहाँ आपको 732 मीटर ऊँचाई तक का ट्रैक जबरदस्त तूफान व बारिश के बीच कराया था। 

हैवलाक द्वीप व नील द्वीप से समुन्द्री यात्रा से लौटते समय आपको एक बात बतायी थी कि 20 रु के नोट के पीछे इस लाइट हाऊस वाले द्वीप की फोटो है। याद आया ना, जी हाँ यह वही पहाड है जो 20 रु के नोट के पीछे है। देखो जरा 20 का नोट देखो। वो यही का है। यह पार्क पोर्ट ब्लेयर से 20 किमी की दूरी पर है। चलो चलो आज इसी पहाड पर घूमते है। हैरियट एक अंग्रेजी अधिकारी था जो यहाँ तैनात रहा। इस पहाडी द्वीप को अंडमानी कबूतर व तितलियों के लिये विशेषतौर पर जाना जाता है।
काला पत्थर मौत का ट्रैक
यह एक रिजर्व जंगल है जो वन्य जीव अभ्यारण में बदल दिया गया है। पार्क में लगे एक बोर्ड अनुसार जो जानकारी मिली थी। उसके अनुसार यह 11520 एकड में फैला हुआ है। पार्क के कार्यालय से आगे घने जंगल में ट्रैक करने के दो किमी बाद काला पत्थर नामक जगह आती है। बताते है कि यहाँ सीधी खाई में कैदियों को गिरागर मौत की सजा दी जाती थी। अंग्रेजों ने न जाने यहाँ कितने भारतीय सैनानियों को मौत के घाट उतारा होगा? इस पहाड पर ट्रैक करने का सबसे ज्यादा लुत्फ आया। इस पहाड पर एशियाई हाथी, हिरण, साँप, छिपकली, आदि बहुत सारे जीव यहाँ पाये जाते है।
माऊँट हैरिएट की पद/जीप यात्रा
बम्बूफ्लैट जेट्टी से इस पहाड की चोटी तक कुल 7 किमी की सडक बनी हुई है। जीप नहीं मिले तो पूरी चढाई की ट्रैकिंग करनी पडती है। हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमें वहाँ की 7 किमी की इस चढाई वाली दूरी के लिये एक जीप मिल गयी। जीप चालक ने बताया कि जीप कुछ समय पहले ही चलनी आरम्भ हुई है। पहले यहाँ जेट्टी से ही पैदल यात्रा करनी पडती थी जिससे कम यात्री इस पहाड की ओर जाते थे। अब जीप की सुविधा होने से बहुत से यात्री इस पहाड की यात्रा करने आते है। टिकट वाले ने पहले ही बता दिया था कि आगे आधा किमी की चढाई ही शेष है। राजेश जी चलो। राजेश जी अनमने मन से हमारे साथ चल दिये। सडक पर चलते हुए आधा किमी कब पार हुआ पता न लगा। 

अब चढाई समाप्त हो गयी थी। हम एक पार्क नुमा स्थल पर पहुँच चुके थे। यहाँ कुछ देर रुककर पृकति का आनन्द लिया। हमारे साथ जो महिलाएँ आयी थी। वह भी पार्क में डेरा जमा चुकी थी। कुछ देर पार्क में घूमे, उसके बाद एक मचान (वाच टावर) पर चढकर आसपास का इलाका छान मारा। जहाँ कैदियों को पहाड से गिराकर मार दिया जाता था। काला-पत्थर नामक जगह देखने चल दिये। हमें काला-पत्थर की ओर जाता देख तीन महिलाँए हमारे साथ-साथ चलने लगी। किसी ने बताया कि काला पत्थर यहाँ से केवल दो किमी दूर है। हम घने जंगल में एक घंटा चलते रहे। जंगल में चढाई नाम मात्र ही थी जिससे तेजी से चलते जा रहे थे। बारिश का सीजन चल रहा था। उस मार्ग पर हमारे अलावा कोई और निशान भी दिखाई नहीं दे रहे थे। मार्ग की हालत ठीक-ठाक थी। हम पहाड की चोटी पर बनी धार पर चल रहे थे। जंगल के बीच से समुन्द्र भी कभी झांकने चला आता था। काला पत्थर पहुँचकर हमें कुछ खास नहीं लगा। वहाँ ढलान पर सिर्फ पत्थर ही पत्थर थे। इनपर कैदियों धक्का दे दिया जाता था। पत्थरों से लहुलुहान होकर कैदी बीच में ही बेहोश हो जाता होगा या समुद्र में गिरकर डूब जाता होगा।
जौंक का आतंक (Terror of Leech)
हम इस पगडंडी पर और आगे जाने की सोच रहे थे कि तभी एक लडकी जोर से चिल्लायी। मैं और मनु समझे कि कोई जंगली जानवर दिख गया लगता है। क्या हुआ? उस लडकी ने बताया कि मेरे पैरों में जौंक (लीच leech) चिपक गयी है। अबे तेरी, मनु भाई, भाग बेटा, जंगली जानवर से तो लडने का कोई जुगाड देख लेते। जौंक से लडने का जुगाड तो सिर्फ नमक ही है, जो अब हमारे पास नहीं है। मनु भाई पैंट पहने हुआ था जबकि मैं हाफ पैंट में था। सबसे पहले हमने अपने पैर घुटनों तक चैक किये। मुझे और मनु को भी एक-एक जौंक चिपकी हुई मिली। लकडी से रगड कर उसे उतार दिया। उस लडकी को भी लकडी की सहायता से जौंक उतारने की सलाह दी। उस लडकी को 5-6 जौंक चिपकी हुई थी। उसने भी किसी तरह जौंक से छुटकारा पा लिया।

जौंक के कारण आगे जाने का निर्णय बदल कर, वापिस लौटना तय हुआ। चलने से पहले सबको यह बात समझाई गयी कि बीच-बीच में किसी सूखी जगह या किसी पत्थर पर रुककर अपने पैरों पर जौंक अवश्य चैक करते रहना। मुझे और मनु भाई को करेरी झील यात्रा में भी जौंकों ने बहुत सताया था। जौंक के इलाके में चलते समय एक खास बात होती है कि यह सबसे आगे चलने वाले इंसान पर बहुत ही कम चिपकती है। जौंक पीछे चलने वालों पर ही ज्यादा चिपकती है। जब मैंने आगे चलने वाली बात सबको बतायी तो मजा आ गया। वापसी में लगभग सभी एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर में तेजी से चलते रहे। जाते समय हमें एक घंटा लगा था। वापसी में हम सिर्फ 20 मिनट में पार्क पहुँच गये।

जीप वापसी में अभी एक घंटा बाकि था। अब कही और तो जाना नहीं था इसलिये जीप के पास सभी लौट आये। जीप वाला वहाँ नहीं था। पता लगा कि वह दूसरी जीप में सो रहा है। उसे उठाया गया। जीप में सवार होकर बम्बूजेट्टी लौट आये। सभी से 50 रु लेकर जीप वाले को 400 रु दे दिये गये। बम्बूजेट्टी से इस बार पहले ही चाथम जेट्टी तक का टिकट ले लिया था। पहले अज्ञान वश हुआ था। इस बात भी वही करते तो चोरी हो जाती। चाथम जेट्टी से बस में बैठकर अंडमान टील हाऊस पहुँचे। अपना सामान लेकर बाहर आ गये। अब हमें पोर्टब्लेयर में आखिरी रात्रि के लिये नया गाँव स्थित पुराने वाले होटल में जाना था। जहाँ हम दो रात्रि पहले भी बिता चुके थे। एक आटो में सवार होकर, दोपहर के ठीक 12 बजे होटल पहुँच गये। होटल में अपना सामान रख पोर्ट ब्लेयर के सबसे सुन्दर वंडूर बीच (Wandoor beach) के लिये प्रस्थान कर दिया। (क्रमश:) (Continue)


अपनी सवारी

बम्बू जेट्टी आ गयी


टिकट खिडकी

अपनी जीप

यही से आये है










वाच टावर














5 टिप्‍पणियां:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

जोंक भी दिखा देते

Onkar ने कहा…

सुन्दर विवरण.सुन्दर चित्र

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-03-2017) को
"खिलते हैं फूल रेगिस्तान में" (चर्चा अंक-2602)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

बढ़िया

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बढ़िया चित्रण

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