जय बद्री विशाल। बद्रीनाथ धाम
के दर्शन मात्र करना ही अपने आप में सम्पूर्ण यात्रा है। यदि बद्रीनाथ के
साथ-साथ, नीलकंठ पर्वत, चरण पादुका, माणा गाँव, नर नारायण पर्वत के दर्शन, वसुधारा
जल प्रपात, भीम पुल, सरस्वती नदी, व्यास गुफा, गणेश गुफा जैसे आसानी से पहुँच
में आने वाले स्थल तो कदापि नहीं छोडने चाहिए। हमने इस बार की यात्रा में महाभारत
काल के पाँच पांडव भाई व उनकी पत्नी (युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ
इनकी एकमात्र पत्नी द्रौपदी) के स्वर्ग जाने वाले मार्ग का ही अनुसरण किया। इस
यात्रा में हमने स्वर्गरोहिणी पर्वत के दर्शन व सतोपंथ झील में स्नान
करना मुख्य है। यदि आप कभी भी बद्रीनाथ गये हो और उपरोक्त स्थलों को देखे बिना ही
वापिस लौट आये हो तो यकीन मानिये कि आपने अपनी बद्रीनाथ यात्रा में बहुत कुछ छोड
दिया है। कुछ भक्त/ यात्री केवल बद्रीनाथ मन्दिर के दर्शनों को ही महत्व देते है
तो उनके लिये अन्य स्थलों के दर्शन करने का कोई महत्व ही नहीं रह जाता। मुझ जैसे
कुछ घुमक्कड प्राणी भी होते है उनके लिये बद्रीनाथ धाम केवल रात्रि विश्राम व अन्य
आवश्यक सामग्री एकत्र करने के लिये एक आधार मात्र ही होता है। हमारे ग्रुप की
मंजिल (सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी पर्वत) इससे (बद्रीनाथ धाम) बहुत आगे पैदल मार्ग पर
तीन दिन की कठिन ट्रैकिंग करने के उपरांत ही आ पाती है। हमारी मंजिल जहाँ होती है
वहाँ तक पहुँचने के लिये ढेरों जल प्रपात व घास के विशाल मैदानों, तीखी फिसलन वाली
ढलानों, बहते नदी-नालों के साथ टूटे हुए पहाड के विशाल पत्थरों (बोल्डर) को पार
करना पडता है। यदि आप ऐसी जगह जाने के लिये मचलते हो तो यह लेख आपके बहुत काम का
है। इस यात्रा का लेखन कार्य कई लेख चरणों में पूरा किया गया है।
यात्रा की तैयारी कैसे करे।
हमेशा ध्यान रखे कि कोई भी यात्रा शुरु करने से
पहले उस यात्रा की तैयारी करनी बहुत जरुरी है। कुछ लोग कहते है कि यात्रा की
तैयारी कैसे करे। मैं कहता हूँ कि यात्रा की तैयारी के लिये कुछ खास नहीं करना
पडता है। जो कपडे आपने पहने हुए है उसके अलावा एक जोडी कपडे अपने बैग में डाल
यात्रा पर निकल जाये। मैंने यह यात्रा एक समूह (ग्रुप) में की थी। समूह में यात्रा
करने के लिये बहुत सारे बंधनों में बंधना पडता है। समूह में रहकर बंधन एक अति
आवश्यक नियम भी होता है। यदि किसी समूह में एक बन्दा भी नियम तोडने पर आमादा हो
पाये तो उस यात्रा का सत्यानाश होते देर नहीं लगती है। थोडी बहुत ऊपर नीचे तो दो
साथियों में भी हो जाती है व चलती भी रहती है। यात्रा का दूसरा नाम ही कठिनाई होता
है। जिन लोगों को कठिनाई झेलने से डर लगता है वे अपने घर में बैठ आराम करना पसन्द
करते है। जिन लोगों को पैदल चलना अच्छा लगता है वे गाडी पहुँचने लायक स्थलों की
यात्रा करके ही खुश हो जाते है।
इस यात्रा में यदि आपको केवल बद्रीनाथ तक ही
सीमित रहना है तो कोई ज्यादा तामझाम लेकर जाने की आवश्यकता नहीं है। बद्रीनाथ में
हजारों यात्री एक दिन में ठहर सकते है। यहाँ तक बडी बस भी पहुँच जाती है। हमें
बद्रीनाथ से करीब 28 किमी ऊपर संतोपंथ झील व
उसके आगे जहाँ तक स्वर्गरोहिणी के स्पष्ट दर्शन सम्भव हो। वहाँ तक जाने का इरादा था। बद्रीनाथ धाम तो नर-नारायण
पर्वत से घिरी एक समतल घाटी में स्थित है जहाँ पर कोई भी साधारण व्यक्ति आसानी से
पहुँच सकता है। बद्रीनाथ से आगे माणा गाँव तक पक्की सडक बनी हुई है। इससे ज्यादा
ऊँचाई पर जाने के लिये सडक समाप्त होने के उपरांत पैदल मार्ग ही एकमात्र सहारा
होता है। इसलिये उन स्थलों पर रहने व खाने के लिये सारा सामान अपने साथ ले जाना
पडता है। जिसके बारे में आगे के लेख में बताऊँगा।
अब इस यात्रा की शुरुआत
करते है। दिल्ली से 10 दोस्त इस यात्रा पर जाने के लिये तैयार हुए थे। ज्यादातर आपस में फेसबुक व
व्हाटसअप के माध्यम से आपस में जुडे हुए भी है।
मैंने भी WHATTAPP पर एक ग्रुप “यात्रा चर्चा TRAVEL TALK” नाम से एक ग्रुप बनाया हुआ है जहाँ पर शुरुआत में 150 के करीब लोग जोडे गये। जिसमें से छँटनी
करते-करते 50 फिर भी रह गये है।
अधिकतर को राजनीतिक बातचीत व चुटकलों के कारण हटाया गया। अपने ग्रुप के सख्त नियम
है। एक सप्ताह गैर हाजिर रहते ही ग्रुप से बाहर कर दिया जाता है। अब जितने भी बचे
है वे सभी सख्त नियमों को मानने वाले ही है। एक जैसी समझ वाले बन्दे एक जगह
जुडेंगे तो एक बात शुरु करने पर कई तरह की सलाह उपलब्ध हो जाती है। अब जिसको जो
पसन्द आये वो उस पर अमल करे। ना पसन्द आये तो ना करे।
इस यात्रा की शुरुआत दिल्ली के मुख्य बस
अडडे “कश्मीरी गेट” से होनी थी। जहाँ से सभी शाम को 8 बजे वाली बस में सवार होकर हरिद्वार के लिये चल दिये। मेरी
आदत हमेशा समय से पहुँचने की होती है जिस कारण मैं सभी साथियों को शुरुआत में ही
देर न करने की सलाह हमेशा देता रहा हूँ। हम हरिद्वार सुबह करीब 03:30 के बीच पहुँच गये थे। यहाँ से हमें दूसरी बस
में बद्रीनाथ के लिये बैठना था। वैसे दिल्ली से भी उतराखण्ड रोडवेज की सीधी बस
सेवा गोपेश्वर, चमोली, कर्णप्रयाग, जोशीमठ तक के लिये मिल जाती है। दिल्ली से
बद्रीनाथ तक के लिये सीधी बस सेवा अभी उपलब्ध नहीं है। सीधी बस सेवा न होने से
बद्रीनाथ के लिये दूसरी बस हर हालत में बदलनी ही थी लेकिन जून के महीने में यात्रा
सीजन होने के कारण उन बसों में सभी लोगों को सीट मिलने की सम्भावना कठिन हो सकती
थी। चमोली से आगे कम से कम 105 किमी की सडक यात्रा रह जाती है। जिसमें बस को 4 घन्टे लग ही जाते है। चार घन्टे में पहाड की बस यात्रा में खडा-खडा बन्दा पक जायेगा। उसके बाद दो-चार तो
बद्रीनाथ से ही वापिस भाग आयेंगे। इसलिये तय हुआ था कि दिल्ली से पहले हरिद्वार
जायेंगे। हरिद्वार से बद्रीनाथ तक जाने वाली सीधी बस में ही चलेंगे। हरिद्वार में
यात्रा सीजन चालू रहने से सभी को सीट मिलने की सम्भावना बेहद कम थी। इसलिये
पटियाला से आने वाले साथी सुशील बंसल “कैलाशी” को हरिद्वार से बद्रीनाथ तक के लिये
10 टिकट बुक करने को बोल
दिया था। सुशील ने 10 टिकट बुक कर व्हाटसएप पर मैसेज भी भेज दिया था।
हरिद्वार से आगे बद्रीनाथ धाम तक के टिकट बुक होने के बाद आगे की कोई चिंता नहीं
थी। दिल्ली से हरिद्वार व ऋषिकेश के लिये थोडी-थोडी देर बाद ढेरों बसे चलती है जो सुबह से लेकर देर रात 12 बजे तक लगातार चलती रहती है। दिल्ली से
हरिद्वार की बसों में मारामारी सिर्फ़ कुम्भ व कांवड के दिनों में ही रहती है। बाकि
दिनों में बस में दिल्ली से हरिद्वार पहुँचना कोई मुश्किल नहीं है। दिल्ली से 10 की जगह 12 दोस्त हो गये। दिल्ली से हरिद्वार तक तो कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन हरिद्वार
से बद्रीनाथ (325 KM) वाली बस के केवल 10 टिकट ही टिकट बुक किये थे। दिल्ली से जो दो
साथी बिना बताये साथ चले थे उन्होंने पहले से अपनी कोई सूचना नहीं दी थी। जब बस
चलने लगी तो दो सवारी ज्यादा होनी ही थी। क्या करते? दो को सीट नहीं मिलेगी। बिना
सीट पूरा दिन (हरिद्वार से बद्रीनाथ) यात्रा करना, कोई पागल भी नहीं करेगा। मुझे
और बीनू को बस बदलनी पडी। बीनू श्रीनगर उतर गया। श्रीनगर पहुँचकर बीनू को बोला।
अरे भाई सामने वाली दुकान से दो समोसे तो लेकर आ। बीनू समोसे देकर अपने दोस्त
सुमित के पास चला गया। बीनू श्रीनगर से आगे बाइक पर आयेगा। मैं और बीनू जिस बस में
बैठे थे वो बस कर्णप्रयाग से सीधे हाथ पिण्डर नदी के साथ ग्वालदम की ओर चली
जायेगी। पिण्डर के साथ-साथ आगे थराली लोहाघाट होते हुए वाण गाँव जाते है। जहाँ से
रहस्यमयी रुपकुन्ड की यात्रा आरम्भ होती है। मैंने दो बार रुपकुन्ड किया है और
दोनों बार अपनी बाइक नीली परी से ही गया था।
कर्णप्रयाग पहुँचकर मैंने यह बस छोड दी। कर्ण
प्रयाग में बद्रीनाथ जाने वाली कई बसे आयी लेकिन सीट न होने से छोडनी पडी। एक जीप
आयी उसमें बैठ चमोली पहुँचा। चमोली से दूसरी जीप बदली, इसने जोशीमठ छोडा। दोनों
जीप में पीछे वाली सीट मिली थी जिस कारण खोपडी खराब हो चुकी थी इसलिये सोच लिया था
कि जोशीमठ से जीप मिलेगी तो सबसे पीछे नहीं बैठना है उसके बदले चाहे बस में खडे
होकर दो घन्टे की यात्रा करनी पडे। जोशीमठ में एक आगे की खाली सीट वाली जीप आयी भी
लेकिन उस समय मैं राजमा-चावल खा रहा था जब तक चावल निपटाये तब तक उसकी आगे की सीट
फुल हो गयी। इसके बाद आधे घन्टे तक कोई जीप नहीं मिली तो एक बस में सवार हो गया।
शुक्र रहा कि उस बस में सबसे आखिर वाली सीट में बैठने की जगह मिल गयी। बस की आखिरी
सीट मुझे जीप की बीच वाली सीट जैसी दिख रही थी।
बद्रीनाथ पहुँचा तो शाम के 7 बज चुके थे। सुशील भाई मुझे बस अडडे पर ही टहलते मिल गये।
मैं तो सुशील भाई को टोपे में पहचान ही नहीं पाया था। सुशील भाई ने मुझे जरुर मेरी
चाँद से पहचाना होगा। साथियों ने बस अडडे के सामने ही बरेली वाली धर्मशाला में बडा
5-6 बैड वाला कमरा लिया था।
जो प्रति वयक्ति रु 125/- के करीब पडा था। नजदीक
ही सडक किनारे ऊपर की साइड सरकारी डोरमेट्री भी है। सरकारी डोरमैट्री में एक बैड
का किराया केवल रु 110/- ही है। यदि कोई भाई अकेला यहाँ यात्रा पर आये
तो उसके लिये तो डोरमैट्री सबसे बढिया रहेगा। यदि थोडी सी मेहनत कमरा देखने में की
जाये तो 200-300 रु में डबल बैड वाला कमरा
भी मिल जाता है। इस यात्रा के आखिरी दिन हम जिस होटल में रुके थे उसने हमसे 7 बन्दों व 5 डबल बैड वाले कमरे के 800 रु लिये थे। 800 रु में एक शर्त भी जोडी थी कि सभी को नहाने के
लिये एक-एक बाल्टी गर्म पानी भी देना होगा।
बद्रीनाथ तो मैं सन 2007 में अपनी नीली परी लेकर भी आ चुका हूँ। तब मैं
यहाँ से वापसी में फ़ूलों की घाटी, हेमकुंठ साहिब व केदारनाथ भी गया था। उस यात्रा
का विवरण यहाँ माउस को क्लिक करने पर मिल
जायेगा। बद्रीनाथ पहुँचकर सबसे पहले कमरे में अपना सामान देखा जो बाकि साथी पहली
वाली बस में ले आये थे। बद्रीनाथ में ठन्ड थी इसलिये अपनी गर्म चददर निकाल कर ओढ
ली। अभी तक मैं दिल्ली वाली टी शर्ट में चला आ रहा था। सभी साथी बद्रीनाथ जी के
दर्शन करने गये हुए थे। मैं और सुशील भाई भी बद्रीनाथ जी के दर्शन करने चल दिये।
मन्दिर के बाहर जाते ही पता लगा कि 500 मी की लाइन लगी है। आज बाहर से राम-राम करते है। कल पूरा
दिन भी यही रहना है। कल अन्दर से आमने-सामने राम-राम हो जायेगी। मन्दिर से वापिस
आते समय एक गोल-गप्पे वाला दिखायी दिया। उसके पास बडे वाले बन्द थे जिसका वो बर्गर
बना रहा था। हम दोनों ने एक-एक बर्गर निपटा डाला। कमरे पर आये तो देखा कि सभी आ
चुके थे। सबसे मुलाकात की। (continue) अगले लेख में
23 टिप्पणियां:
जय राम जी की जाटदेवता
ऐसी विस्तारपूर्वक लिखी पोस्ट ही असली आनंद देती हैं।अगली पोस्ट का इंतजार लंबा मत करवाना।
इंतजार की घड़िया खत्म हुई जाट देवता रिटर्न
बोहत बढ़िया सुरवात
मनोरंजक वर्णन किया है
great sirji
शानदार जाट देवता जी। मेरी बद्रीनाथ यात्रा की यादें ताज़ा हो गयी। धन्यवाद्
जय बद्रीनाथ सतोपथ स्वर्गरोहिनी यात्रा का लेख बहुत ही शानदार ओर सरलता के साथ वर्णन
जय बद्रीनाथ सतोपथ स्वर्गरोहिनी यात्रा का लेख बहुत ही शानदार ओर सरलता के साथ वर्णन
शानदार पोस्ट 👌🙏
बहुत खूब....
सुन्दर वर्णन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-12-2016) को मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-; चर्चामंच 2569 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शानदार लेख
I like it
बहुत बढ़िया जाट देवता भाई .. आगे की यात्रा पड़ने में मजा आयगा
मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक विवरण।
शानदार बद्रीनाथ यात्रा की यादें विस्तारपूर्वक लिखी है बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई जाट भाई
भाई शानदार जबरदस्त शुरुवात बहुत दिन से इंतजार था और मुझे ये तरीका भी बहुत सही लगा यात्रा की तैयारी पहले लिखना। ... एक राय है तैयारी को थोड़ा और विस्तृत करते तोहम जैसे लोगो को ज्यादा आसानी रहेगी जैसे बस किराया कहा से मिलेगी उसके अलावा क्या रस्ते है जाने के टाइमिंग , यात्रा के लिए सही समय इतियादी इतियादी
अवश्य राकेश भाई। इसका पूरा रखा जायेगा।
क्या बात है भाई यात्रा पढ़ते ही मजा आ गया।
भाई बहुत बढ़िया
भाई बहुत बढ़िया
Hi
Kya satopath October month me ja sakte h
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