गुरुवार, 10 जुलाई 2014

Orcha Fort- Light and sound show ओरछा किले में उजाला व आवाज शो

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-07

आज के लेख में दिनांक 27-04-2014 की यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा के बारे में शुरु से पढना है तो नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे। ओरछा रेलवे स्टेशन से ओरछा नगरी की दूरी मात्र 6 किमी है। स्थानीय ऑटो में बैठकर आगे वाली सीट पर चालक के साथ यात्रा करने में मजा आया। ओरछा में सडक की स्थिति बहुत शानदार है। सडक तो खजुराहो में भी शानदार ही मिली थी। आटो में यात्रा करते समय एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि सडक में कोई गडडा आया हो। ओरछा पहुँचने में मुश्किल से 10 मिनट का समय ही लगा होगा। ऑटो वाले ने राम मन्दिर के सामने वाले चौराहे पर जाकर उतार दिया। अंधेरा होने में ज्यादा समय नहीं बचा था। इसलिये सोचा कि पहले रुकने का ठिकाना ही तलाश कर लिया जाये। ओरछा नगरी भले ही आस्था व पर्यटन मिश्रित नगरी के तौर पर जानी पहचानी जाती हो लेकिन यहाँ के कुदरती नजारे हिमालय के नजारों से टक्कर लेते हुए दिखायी देते प्रतीत होते है।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद




इस चौराहे तक आने से कई किमी पहले एक मोटी विशाल दीवार दिखायी दी। इस दीवार के बारे में जानकारी मिली कि यह दीवार ओरछा नगरी की सुरक्षा के लिये यहाँ के राजा ने बनवायी थी। दीवार काफ़ी मोटी थी। इस प्रकार की दीवार कई पुराने नगरों में आज भी दिखायी देती है। इस दीवार तक दुबारा आने के लिये मैंने ऑटो में ही तय कर लिया था कि सुबह सूर्य निकलने से पहले ही यहाँ तक टहलता हुआ आऊँगा। ऑटो से उतरते ही रुकने के लिये एक कमरा देखना था। अमेरिकी का ऑटो का किराया भी मैंने ही दे दिया। यदि मैं उसका किराया ना देता तो हो सकता था कि ऑटो वाला यह समझता कि यह अमेरिकी अकेला है जिससे वह उसको होटल में कमरा दिलाने के नाम पर कमीशन के चक्कर में जरुर पडता।
ऑटो वाले को किराया देकर वही मन्दिर की ओर चल दिये। मन्दिर के ठीक पहले सीधे हाथ वाली दिशा में एक होटल दिखायी दिया। यह होटल मन्दिर से एकदम सटा हुआ है। अमेरिकी मेरे साथ-साथ था। हम दोनों कमरा देखने पहुँच गये। कमरे का किराया 400 रु बताया। मुझे लगा कि कमरा ठीक है ले लेना चाहिए। अमेरिकी की खोपडी कुछ और सोच रही थी। उसके साथ हिंगलिश में समझने लायक बाते करते हुए यह समझ आया कि यह अमेरिकी अलग कमरा लेना चाहता है। हो सकता है उसे मुझ पर विश्वास ना रहा हो। अब मुझे अकेले को 400 वाला कमरा लेना पडेगा। नहीं इतना महंगा कमरा लेकर कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। हम दोनों वहाँ से वापिस चौराहे पर आ गये। चौराहे पर दो तीन कमरे देखे लेकिन कोई भी इससे कम पर मानने को तैयार नहीं हुआ।
अचानक मुझे याद आया कि ओरछा के आबकारी विभाग में कार्यरत पुलिस इन्सपेक्टर मुकेश चन्दन पाण्डेय भी इसी नगरी में ही रहते है। मुकेश जी से आज तक मुलाकात तो नहीं हुई है। फ़ेसबुक के माध्यम से वह मुझसे जुडे हुए है। एक बार मुकेश जी ने अपने संदेश में कहा भी था कि ओरछा का चक्कर कब लगा रहे हो? मैंने यहाँ आने के बारे में उस समय मुकेश को कहा था कि निकट भविष्य में यहाँ की यात्रा करने वाला हूँ तब आपसे मुलाकात भी की जायेगी। फ़ेसबुक के माध्यम से ही मुकेश जी फ़ोन नम्बर भी मैंने ले लिया था। मेरा नम्बर उनके पास था। जैसे ही मैंने उन्हे फ़ोन लगाकर कहा कि मुकेश जी ओरछा में ही हो या कही बाहर तो मुकेश जी ने कहा। ओरछा में ही हूँ तो मैंने कहा कि मैं भी ओरछा में ही हूँ। मुकेश जी ने कहा कि अभी कहाँ हो?
मन्दिर वाले चौराहे से आगे कुछ आगे तक कमरा तलाश करते निकल गये थे। कहाँ हूँ यह बताने के लिये आसपास का जायजा लिया तो सडक किनारे पंचायत विश्रामालय का बोर्ड लगा दिखायी दिया। मैंने झट कह दिया कि मैं पंचायत कार्यालय के सामने हूँ। मुकेश जी बोले आप सिर्फ़ 5 मिनट रुकिये मैं आपके पास पहुँचता हूँ। अमेरिकी के साथ एक घन्टा हो चुका था जिससे पता लग चुका था कि अमेरिकी हिन्दी के कुछ शब्द समझता है। शुक्र है कि मैंने उसके बारे में कोई उल्टी-सीधी बात नहीं की। नहीं तो सोचता कि भारत में सभी एक जैसे ही होते होंगे। हम दोनों वही खडे होकर मुकेश जी की प्रतीक्षा करने लगे। थोडी देर बात मुकेश जी का फ़ोन आया कि मैं पंचायत कार्यालय के सामने पहुँच चुका हूँ। आप कही दिखायी नहीं दे रहे हो। ऐसा कैसे हो सकता था। वहाँ तो ज्यादा भीड भाड भी नहीं थी जिसमें मुकेश जी मुझे तलाश नहीं कर पाते। मुझे लगा कि मुकेश जी कही आसपास ही है लेकिन मुझे देख नहीं पा रहे है।
मैंने मुकेश जी को समझाया कि मैं बडे लम्बे से लाइट वाले खम्बे के नीचे खडा हूँ यहाँ आसपास इसकी आधा लम्बाई वाला खम्बा नहीं है। मुकेश जी थोडा सोचकर बोले कि यहाँ तो कोई लम्बा खम्बा ही नहीं है। मुकेश जी की बात सुनकर मेरी खोपडी चौकन्नी हो गयी। मैंने पंचायत वाले बोर्ड को ध्यान से देखा तो वहाँ पर लिखा था पंचायती यात्री विश्रामालय। ओ तो यह गडबड थी। मैंने जिसे कार्यालय समझ लिया था असलियत में वह बस अडडे पर यात्रियों के लिये बनाया गया प्रतीक्षालय था। पंचायती कार्यालय वहाँ से थोडी दूरी पर था। मुकेश जी बोले आसपास कोई होटल आदि तो दिखायी दे रहा होगा, उसका नाम बताओ। मैंने मुकेश जी को एक होटल का नाम बताया तो मुकेश जी बोले आप वही रुको मैं दो मिनट में पहुँचता हूँ।
मैंने खीरे बेचने वाले एक बन्दे से पूछा कि पंचायत कार्यालय कहाँ है? उसने बताया कि मन्दिर वाले चौराहे से किले की ओर जाने पर पंचायत कार्यालय आता है। अमेरिकी को साथ आने की बोल मैं उधर चल दिया। अमेरिकी ने अपनी अंग्रेजी में कुछ गिटर-पीटर की जो मेरे पल्ले नहीं पडी। मैं मन्दिर वाले चौराहे पर पहुँचकर मुकेश जी की प्रतीक्षा करने लगा कि मुकेश जी बाइक लेकर निकलेंगे तो यहाँ से ही, लेकिन कई मिनट बाद तक भी मुकेश की बाइक नहीं आयी तो मैंने मुकेश जी को फ़ोन लगाया कि कहाँ हो? उधर से आवाज आई मैं बाइक लेकर आपकी बतायी जगह लम्बे खम्बे के पास आ गया हूँ। ओर तेरी तो फ़िर से गडबड हो गयी। मुकेश जी सोचते होंगे कि जाट किस खोपडी का बना है जहाँ कहता है वहाँ मिलता ही नहीं।
मुकेश जी मैं मन्दिर वाले चौराहे पर खडा हूँ अमेरिकी मेरे साथ है आ जाओ। अब वहाँ से ट्स से मस होने का अर्थ था कि मुकेश के साथ लुका छिपा का खेल खेलना। वैसे भी पुलिस वालों को लुका छिपी का खेल खेलने में बहुत मजा आता है। कुछ मेरे जैसे होते है जिनके जीवन में लुका छिपी रोमांच बन जाती है। खैर मुकेश ने मन्दिर वाले चौराहे पर आकर हमें घेर लिया। हमारे सामने अपनी बाइक लगा दी। यह तो शुक्र रहा कि मुकेश जी वर्दी में नहीं थे। नहीं तो अमेरिकी वहाँ से भाग खडा होता। कही दूर जाकर सोचता कि किसी स्मगलर के साथ कमरा तलाश करने में लगा था।
मुकेश जी ने गर्मजोशी से स्वागत किया। उनके चेहरे के हावभाव बता रहे थे कि वह मुझसे मिलकर बहुत खुश है। उनके चेहरे पर खुशी क्यों नहीं होती आखिर वह भी घुमन्तू प्रजाति के जीव जो ठहरे। मैंने कहा, मुकेश जी कोई ठीक-ठाक व उचित दाम वाला होटल बताईये ना। मेरे साथ अमेरिकी को देख बोले यह कौन है? यह अमेरिकी खजुराहो से ट्रेन में साथ आया है। मुकेश जी बोले चलो पहले कुछ ठन्डा हो जाये। ठन्डा वाली दुकान पर होटल के बारे में पता लगेगा। हम तीनों कोल्ड ड्रिंक पीने के लिये एक दुकान पर जा पहुँचे। शाम का समय था यह दुकान विदेशी मेहमानों से रोशन हो रही थी। विदेशी लोगों को देखकर मैंने कहा, मुकेश इतने विदेशी? हाँ संदीप जी इस दुकान ओरछा आने वाला लगभग हर विदेशी एक बार जरुर आता है। ऐसी क्या खास बात है। खास बात वाली बात बातों में उलझ कर रह गयी। मुकेश जी से दुबारा मुलाकात होगी तो उस बात के बारे में पता करुँगा।
मुझे ठन्डे पेय पदार्थों में आम के रस वाले पेय बहुत अच्छे लगते है यदि नीम्बू पानी मिल जाये तो सोने पर सुहागा। ठन्डा पीने के दौरान मुकेश जी दुकानदार से हमारे लिये कमरे की बात करने लगे। दुकानवाले ने दो-तीन जगह फ़ोन लगाया था। जब तक हमने ठन्डा निपटाया तब तक दुकान वाले ने हमारे लिये होटल का चुनाव कर लिया। अमेरिकी जवान ही था लेकिन वजन में वह मुझसे थोडा भारी ही होगा। जिस होटल के बारे में दुकान वाले ने बताया था वह कुछ दूरी पर था। मुकेश जी बोले चलो बाइक पर सवार हो जाओ। मुकेश जी दो किंवटल ढोकर ले चलोगे। हम तीनों एक बाइक पर सवार होकर चल दिये।
जिस होटल में हमें ठहरना था। उसके सामने से कुछ देर पहले यह सोचकर निकल गये थे कि यह महँगा होटल है अपने काम का नहीं। लेकिन हमे क्या पता था? कि रात यही काटनी है। होटल वाले ने हमें कमरे दिखाये। उनका किराया 500 रु प्रति कमरा बताया गया। अभी यहाँ सीजन नहीं है जिस कारण किराया कम है। मेरा आधार कार्ड लेकर उन्होंने अपनी कागजी कार्यवाही पूरी की। अमेरिकी भी अपने कमरे में पहुँच गया। मुकेश जी रिशेस्पशन पर रुके हुए थे। मैंने उन्हे कहा कि सिर्फ़ 5 मिनट रुकिये। मैं नहाकर आता हूँ। सुबह से नहाने को नहीं मिला था इसलिये शरीर पर पानी डालना बहुत जरुरी हो गया था। साबुन लगाकर नहाने का समय नहीं था इसलिये नहाने में ज्यादा समय लगाना ही नहीं था। नहाकर सामान वही छोड दिया। अमेरिकी कमरे में बन्द था। अब उससे हमारा कोई काम नहीं था।
मैंने कमरे का ताला लगाया और बाहर आया। मुकेश जी मुझे अपनी बाइक पर बैठाकर अपने सरकारी ठिकाने ले गये। मुकेश जी आबकारी कंट्रोल रुम में ही रहते है। उनके साथ उनके नाना जी कुछ समय रहने के लिये आये हुए थे। मुकेश जी आपकी शादी नहीं हुई है यदि आपकी शादी हो जाती तो फ़िर कंट्रोल में नहीं रहते। मुकेश जी नौजवान है। मुकेश जी ने अपनी उम्र 29 वर्ष बतायी थी। यानि मुझसे लगभग 10 साल छोटे है। इतिहास के अच्छे ज्ञाता है। मुझे भी इतिहास बहुत पसन्द है। एक जैसे विचार वाले दो बन्दे एक जगह मिल जाये तो अलग समां हो जाता है।
मुकेश जी बताईये क्या कार्यक्रम है? मुकेश जी बोले नानाजी को साथ लेकर किले में होने वाले लाईट एन्ड साऊंड शो को देखने जायेंगे। मुकेश जी के आवास पर कुछ देर रुकने के बाद नानाजी को साथ लेकर हम दोनों किले का लाइट एन्ड साऊन्ड शो देखने पहुँच गये। अभी अंग्रेजी वाला कार्यक्रम चल रहा था। अंग्रेजी पढने में तो फ़िर भी काफ़ी समझ आ जाती है लेकिन सुनने में बहुत कम पल्ले पढती है। मुकेश जी बोले, अभी हमारे पास कुछ समय है तब तक शीश महल में बैठते है। ओरछा किले व जहाँगीर महल के ठीक बीच बने होटल को शीश महल कहा जाता है। राजाओं के जमाने में शीश महल उनके मेहमानों के लिये बनाया गया था। शीश महल का नाम शीश महल इसलिये पडा कि इसकी छत पर बहुत सारी टाइले लगायी गयी थी जो सूर्य की रोशनी में शीशे जैसे चमकती थी।
होटल के कर्मचारी ने बताया कि हिन्दी में कार्यक्रम का समय हो गया है। चलो तो किले के जीवन को हकीकत में महसूस करने का पल देखने चलते है। शीश महल से किले में जाने के लिये जिन सीढियों का उपयोग होता है उनपर लाइट एन्ड साउन्ड शो आरम्भ होने के कारण घनघोर अंधेरा हो गया था। इसलिये होटल का एक कर्मचारी हाथों में टार्च लेकर हमें मार्ग दिखाता हुआ आगे चल रहा था। यदि शो नहीं चल रहा होता तो इन सीढियों पर हल्की रोशनी की व्यवस्था की गयी है। जिससे यहाँ कोई समस्या नहीं आती है।
किले में नीचे उतरते समय सैकडों साल पुरानी सीढियाँ देखी। जिनकी हालत खस्ता हो चुकी थी। सीढियाँ एक दो जगह से टूटी हुई भी थी जिसके बारे में साथ चल रहा कर्मचारी सचेत करता हुआ जा रहा था। थोडा नीचे जाने पर सीढियाँ समाप्त हुई तो लम्बी वाली सीढियाँ आ गयी। लम्बी सीढियाँ ऐसी थी जिनकी लम्बाई तो पाँच फ़ुट रही होगी लेकिन ऊँचाई केवल चार इन्च के करीब ही होगी। अंधेरे के कारण यहाँ आने वाले लोग लम्बी सीढियाँ देखकर यह समझ लेते है कि चलो समतल भूमि आ गयी। जिस चक्कर में अगली लम्बी सीढी पर उनका संतुलन बिगड जाने से यहाँ कई लोग गिर चुके है। ऐसा होटल वाले ने बताया था।
सबसे आखिरी कोने में प्लास्टिक की कुछ कुर्सियाँ रखी गयी थी। अधिकतर कुर्सी भरी हुई थी। सबसे पहली वाली लाइन में हम तीनों विराजमान हो गये। शो चालू हो चुका था। शो के दौरान लाइट व साऊन्ड का मिक्स करके ऐसा वातावरण पैदा कर दिया है जिससे वहाँ बैठे लोगों को ऐसा लगता है कि वे कोई फ़िल्म देख रहे है या हकीकत में उस दुनिया में पहुँच गये है। मुकेश जी ने बताया कि संदीप जी वैसे तो मुझे किले व ओरछा का लगभग सारा इतिहास मालूम है लेकिन आप इस शो में स्वयं सुनकर महसूस करोगे कि ओरछा नगरी इतनी जानी पहचानी क्यों है? किसी भी स्थान के बारे में जो वर्णन वहाँ किये जाने वाले लाईट एन्ड साऊन्ड शो करते है उस तरह का वर्णन कोई गाईड नहीं कर सकता है।
लाईट एन्ड साऊन्ड शो में ओरछा के राजा महाराजा व राम मन्दिर व अन्य स्थलों के बारे मॆं महत्वपूर्ण जानकारी मिली। जिससे ओरछा में भ्रमण करते समय बहुत आसानी हो गयी। शो समाप्त होने के उपरांत शीश महल में ही भोजन की व्यवस्था मुकेश चन्दन पाण्डेय जी ने की थी। मैं अक्सर महंगे होटलों में रहना व खाना नहीं खाया करता। मुकेश का अनुरोध अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता था। मुकेश जी बोले संदीप जी मैं भी घर पर बना खाना खाता हूँ। होटल में खास दोस्त या खास रिश्तेदार के आने पर ही आना हो पाता है।
अभी खाना खाना शुरु भी नहीं किया था कि मुकेश जी के फ़ोन पर उनके किसी कर्मचारी का फ़ोन आया जिसे सुनकर मुकेश चन्दन पान्डेय जी बोले आप शुरु करिये मैं अभी आता हूँ। तीन-चार मिनट में ही मुकेश जी लौट आये। होटल में खाने से पहले कुछ फ़ोटो लिये जिनमें से स्वागत के लिये फ़ूलों का बनाया गया स्वास्तिक बहुत अच्छा लगा। एक जगह एक हुक्का भी रखा हुआ था। वह उपयोग में तो नहीं आता होगा। लेकिन राजा महाराजों के समय उसका उपयोग जरुर होता होगा।
रात्रि भोजन बहुत स्वादिष्ट था। भोजन उपरांत हम तीनों बाइक पर सवार होकर वापिस लौट चले। वापसी में शीश महल से किले के पीछे से घूमकर उतरते समय देखा कि शीश महल काफ़ी ऊँचाई पर बनाया गया है। मन्दिर वाले चौराहे पर पहुँचकर मुकेश जी ने बाइक रोकी। वहाँ उनको फ़ोन करने वाला कर्मचारी खडा था। वे बाते करने लगे। मैं बाइक से उतरकर चौराहे से एक फ़ोटा ले आया। मुकेश जी का कर्मचारी रात के समय किसी चन्दे के कार्य से घूम रहा था। मुकेश जी ने अपने हिस्से की राशि दी तो उनका पीछा छूटा। इसके बाद मुकेश जी ने मुझे होटल छोडा। मुझे छोडते समय मुकेश जी बोले कि संदीप जी सुबह उजाला होते ही हाजिर हो जाऊँगा। सुबह के समय बेतवा के किनारे चलेंगे। दिन में यहाँ के कई स्थल दिखाऊँगा। सुबह ऐसा हुआ कि जिसका अंदाजा मैंने सपने में भी नहीं लगाया था। (यात्रा जारी है।)



























7 टिप्‍पणियां:

Ritesh Gupta ने कहा…

संदीप जी.... ओरछा के बारे में काफी सुना था....आज आपके माध्यम से सैर भी कर ली...पर आपने इसके इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं दी....|

खैर फोटो बहुत अच्छे आये.... नेट पर हुई जान पहचान हकीकत में मिलने पर ब्बहुत सुखद अहसास देती है... |

Sachin tyagi ने कहा…

संदीप भाई ओरछा के किले मे लाईट एंड साऊंड के बारे मे बताने के लिए आभार.क्या यहां भी अमिताभ बच्चन साहब जी की आवाज मे यह कार्यक्रम होता है.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बहुत बढ़िया --फेसबुक दोस्तों से मिलकर बहुत खुशी होती है --ओरछा की कहानी भी सुना ही देनी थी --न सुनाने का कारन समझ नहीं आया

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

नही , लेकिन म० प्र० का सबसे अच्छा शो ओरछा में होता है .

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अंग्रेज नै जाट के साथ रुम शेयर करके के मरना था, भला हुआ बेचारा बच गया, समझदार था। :)

Pradeep Chauhan ने कहा…

सबसे मजेदार बात ये लगी "वो अमेरिकी किसी स्मगलर के साथ कमरा तलाश करने में लगा था " !

Pradeep Chauhan ने कहा…

वैसे मजेदार लेख, मज़ा आ रहा है पढ़ने में !

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