मंगलवार, 6 मई 2014

Patal bhuvaneshwar cave detail story पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का विस्तृत विवरण

KUMAUN CAR YATRA-03                                                       SANDEEP PANWAR
इस यात्रा में आपने शुरु के दो लेखों में दिल्ली से भीमताल, नौकुचियाताल व सातताल, नैनीताल, अल्मोडा होकर राई आगर तक की यात्रा पढी है अब उससे आगे चलते है। आज दिनांक 14 अप्रैल 2014 की बात है। रात में राई आगर के जिस होटल में ठहरे थे उसकी मालकिन से रात में ही तय कर लिया था कि सुबह गर्मा-गर्म पानी में स्नान करना है। अत: सुबह 6 बजे गर्मागर्म पानी आ भी गया। नहाने का साबुन लिया नहीं था जिस कारण नहाने में ज्यादा समय नहीं लगा। ठन्ड का मौसम था इसलिये फ़टाफ़ट नहाधोकर अपना सामान अपने बैग में समेट कर गाडी में जा बैठे। इस यात्रा में हम केवल एक जोडी कपडे लेकर ही गये थे। घर से चलते समय हरिदवार के लिये निकले थे। लेकिन उत्तराखण्ड के पिथौरागढ जिले में आ पहुँचे। यहाँ का मौसम काफ़ी ठन्ड वाला है जबकि दिल्ली में काफ़ी गर्मी थी। आज हमारी मंजिल धरती में 100 फ़ीट गहरे बेहद संकरे मार्ग वाली पाताल भुवनेश्वर है। 



गाडी मालिक राजेश जी चालक की सीट पर कब्जा छोडने को राजी नहीं थे। राई आगर से गंगोलीहाट जाने वाली सडक पर चल दिये। यह सडक गंगोलीहाट होते हुए टनकपुर जा निकलती है। कभी बाइक लेकर इस सडक से टनकपुर तक जरुर जाना है। क्या पता आगामी आदि कैलाश यात्रा में इस सडक पर पुन: बाइक यात्रा हो ही जाये। भविष्य में क्या छिपा है? नहीं पता। राई आगर से गंगोलीहाट जाने वाली सडक की हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं कही जायेगी। राईआगर से कोई 18 किमी तक गंगोलीहाट वाली सडक पर चलना है।
अभी 2 किमी ही चले थे कि उल्टे हाथ खाई में बादलों का समुन्द्र देखकर आश्चर्य से आँखे खुली रह गयी। मैंने इस प्रकार के कुदरती नजारे कई बार देखे है लेकिन जब भी ऐसा नजारा दिखाई देता है तो मन कह उठता है कि रुक जा राही, कुछ देर निहार तो ले। आना-जाना तो चलता रहेगा। मुझ जैसे नजारे, तुझे दिल्ली में कहाँ मिलेंगे? कुछ देर रुक कर नजारे देखे। थोडा आगे जाने पर सडक पर कीचड ही कीचड मिला। राजेश जी वैगन आर कार को बेहद ही सावधानी से निकाल कर आगे चलते रहे। बादलों का समुन्द्र/सागर पेडों के झुरमुट के बीच से निकलते ही पुन: दिखाई देने लगता था। कई बार गाडी रोककर इस सागर को निहारा।
सडक किनारे बुरांश के काफ़ी पेड थे एक फ़ूल नीचे गिरा हुआ था। मैं कल से सोचता आ रहा था कि बुरांश के फ़ूल का एक फ़ोटो तो लेना ही है। किस्मत से बुरांश का यह फ़ूल अपने आप ही मेरे सामने आ गया। बुरांश का फ़ूल अप्रैल माह में ही खिलता है। इस फ़ूल से शरबत भी बनाया जाता है। मैंने इसका शरबत एक बार पिया है। अपने एक ब्लॉगर बन्धु है जिनका नाम विरेन्द्र शर्मा है। वह वर्ष के कुछ माह भारत में रहते है तो कुछ माह अमेरिका में बिताने चले जाते है। वीरु जी जन्म से हरियाणवी है लेकिन दिल्ली व बोम्बे में ही उनका अधिकांश समय व्यतीत होता है। उन्होंने अपने घर पर यह शरबत मुझे पिलाया था। एक जगह गाडी रोककर बादलों का समुन्द्र देख रहे थे। सडक किनारे चीड का एक पेड था जिस पर फ़ोटो खिचवाने के इरादे से मैंने चढना शुरु कर दिया। राजेश जी बोले बस इससे ज्यादा ऊपर नहीं जाना।  
आगे चलकर गुप्तादी नामक जगह पर एक तिराहा आता है यहाँ से उल्टे हाथ वाली अच्छी सी सडक पाताल भुवनेश्वर जाती है। इस मोड से पाताल गुफ़ा की दूरी करीब 8 किमी है। नाक की सीध में जाओगे तो गंगोलीहाट वाला मार्ग है। इस मोड से गंगोलीहाट सामने वाले पहाड पर दिखाई भी देता है। इस तिराहे से पाताल भुवनेश्वर तक सडक अच्छी स्थिति में है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा के खुलने का समय सुबह 8 बजे का है। जब हमारी कार सडक के अंतिम छोर पर जाकर रुकी तो 8 बजने में 6-7 मिनट बाकि थे।
काठगोदाम से पाताल गुफ़ा की दूरी करीब 225 किमी है। हमारी गाडी यहाँ तक आने में 525 किमी चल चुकी थी। टनकपुर भी यहाँ से 200 किमी के करीब ही है। टनकपुर व काठगोदाम यहाँ के नजदीकी रेलवे स्टेशन है। कार से बाहर निकलते ही एक दुकान वाला बोला, नाश्ता तैयार है। आज नाश्ता नहीं करना है। आज तो आइसक्रीम का नाश्ता होगा। वह बोला, रायता पी लीजिये। रायता सुनकर कान खडे हो गये, किस चीज का रायता है? खीरे का रायता है। ठीक है तैयार रखना, वापसी में खीरे का रायता पीकर जायेंगे सडक से आगे चलते ही एक पक्की पगडन्डी पर चलते रहे। इस पगडन्डी पर थोडा सा आगे बढते ही कुमायूँ विकास निगम का रेस्ट हाऊस है। हमें यहाँ रुकना नहीं था। कुछ जानकारी ले ली ताकि किसी और के काम आ जाये। वापसी में यहाँ कमरे का किराया पता किया। यहाँ दो कमरों के अलावा डोरमेट्री में 150 रु में 1 पलंग मिल जाता है। जबकि कमरे का किराया शायद 700 रु बताया गया था।
रेस्ट हाऊस से आगे जाते ही चीड के घने जंगलों से घिरा हुआ पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का प्रवेश दरवाजा दिखायी दिया। पगडन्डी किनारे एक जगह गाँव की महिलाये पानी के श्रोत पर कपडे धोने में लगी हुई थी। हम गुफ़ा के सामने पहुँच चुके थे। समय देखा 8 बज गये थे। गुफ़ा में नीचे उतरने वाली सुरंग पर ताला लटका हुआ था। गुफ़ा खोलने वालों का कोई अता पता नहीं था। इसलिये आसपास के फ़ोटो लेने के बाद, खाई की ओर जाती पगडन्डी पर चलना शुरु कर दिया। मुझे उधर जाता देख, बाकी साथी बोले किधर जा रहे हो? आओ खाई में बादलों को तसल्ली से देखकर आते है। हमारे पीछे-पीछे वहाँ खडे अन्य लोग भी चलने लगे। लगभग 100 मीटर उतरने के बाद खाई देखने के लिये एक व्यू बिन्दु बनाया गया है। यहाँ पत्थर का एक खम्बा भी खडा किया गया है। हम इस बिन्दु पर खडे होकर वहाँ के शांत व खूबसूरत वातावरण को निहारते रहे। 5-7 मिनट बाद किसी ने आवाज लगाई कि गुफ़ा खोलने वाले आ गये है, आ जाओ।
गुफ़ा के बाहर काफ़ी जानकारी लिखी गयी है। जिसके अनुसार गुफ़ा में जाने के लिये प्रवेश शुल्क देना होता है। कोई बात नहीं, व्यवस्था बनाये रखने के लिये देना भी चाहिए। राजेश जी ने हम चारों के गुफ़ा में प्रवेश के लिये रसीद कटा दी। कैमरा व मोबाइल वही जमा करा लिया। जिससे अन्दर के फ़ोटो नहीं ले पाये। अन्दर के फ़ोटो लेने के बारे में बताया गया कि देहरादून में घन्टाघर के पास त्यागी रोड स्थित पुरातत्व विभाग के कार्यालय से यहाँ गुफ़ा के अन्दर फ़ोटो खीचने की आज्ञा मिलती है। अच्छा घनचक्कर बनाया है। यहाँ आकर देहरादून से आज्ञा लेने कौन समझदार इन्सान जायेगा? किसी को पहले से ही जानकारी होगी तो बात अलग है। सुबह का समय होने के कारण गाइड अभी पहुँचे नहीं थे। बिना गाइड अन्दर जाना मना है। इस कारण पाताल गुफ़ा के पुजारी हमारे पुजारी बनकर साथ हो लिये।
गुफ़ा में घुसने से पहले सुरक्षा के नाम पर खाना पूर्ति (काम चलाऊ) वाली जाँच की गयी। रसीद देखने के बाद कहा कि आपके साथ गाइड बनकर मुख्य पुजारी जी जायेंगे? पुजारी महोदय के आते ही हम उनके पीछॆ चल दिये। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा में उतरने का प्रवेश मार्ग बहुत संकरा है। इसमें इन्सान का खडा होकर तो क्या, झुककर चलना भी आसान नहीं है। लगभग बैठकर उतरने वाली स्थिति में नीचे उतरते चले गये। उतराई काफ़ी तीखी है। शुक्र है कि पत्थरों को तराश कर सीढियों जैसा बनाया गया है। अन्यथा यहाँ लगायी गयी लोहे की जंजीर भी यात्रियों को गिरने से नहीं रोक पाती? लगभग 30-40 फ़ुट तक उतरने में दो-तीन जगह घुटनों का सहारा भी लेना पडता है। सिर बचाते हुए भी 2-3 बार सुरंग से टकरा गया। लगभग 100 के करीब सीढियाँ रही होंगी। मैं पुजारी के पीछे था इसलिये तेजी से उतर नहीं सकता था। अजय मेरे पीछॆ था। अजय सावधानी से धीमे-धीमे उतर रहा था। इसके बाद सुरंग वाला संकरा मार्ग समाप्त हो जाता है।
लगभग 50 वर्ग गज की खुली जगह आती है। खुली जगह पहुँचकर बाकि साथियों के उतरने का इन्तजार करना पडा। एक-एक कर अजय व प्रवीण भी उतर गये। राजेश जी दिखायी नहीं दे रहे थे। प्रवीण ने कहा राजॆश जी तो आये ही नहीं? ऐसा क्या हुआ? हमारे साथ आये पुजारी महोदय ने कहा कि यहाँ वोही ही आता है। जिसका बुलावा होता है। उनकी किस्मत में यहाँ का बुलावा नहीं है। पुजारियों की इन्ही बे सिर पैर की बातों पर मुझे तरस आता है। यह खाने कमाने के चक्कर में अच्छे भले आदमी का उल्लू बना देते है। जो इनके चक्कर में आ गया। उसका अल्ला भी मालिक नहीं बनता? भगवान तो इनके शिकंजे में पहले ही फ़ंसे हुए है?
गुफ़ा के अन्दर चूने के पत्थरों का काफ़ी प्रभाव है। चूने के टपकने के कारण भिन्न प्रकार की आकृतियाँ बन गयी है। चूने के टपकने से बनी कलाकृतियों को गाइड/पुजारी लोग भगवानों से जोडकर कहानी का रुप दे दिया गया है। मैंने आंध्रप्रदेश के विजाग (विशाखापटनम) के पास अरकू वैली जाते समय आने वाली बोरा गुफ़ा भी देखी हुई है। उस यात्रा में विजाग निवासी नारायण जी ने वहाँ के स्थल घूमाये थे। वह गुफ़ा भी चूने पत्थर से बनी आकृतियों के कारण काफ़ी मजेदार बन पडी है। पाताल गुफ़ा में हमारे साथ गये पुजारी के हाथ में एक टार्च थी। लेकिन गुफ़ा में बिजली से जलने वाली सीएफ़एल लगायी गयी है जिससे गुफ़ा में काफ़ी उजाला रहता है। टार्च शायद, आपातकाल में बिजली जाने के बाद काम आती होगी।
पुजारी महोदय ने गुफ़ा के बारे में प्रवचन (पुराणों में लिखी गयी कहानियाँ) देना आरम्भ किया कि इस गुफ़ा की खोज सबसे पहले त्रेता युग में सूर्यवंशी राजा ऋतुपूर्णा ने की थी। अब उस समय यह गुफ़ा चाहे बनी भी ना हो। दवापर युग में पांडवों ने इसकी खोज की। कलयुग में आदि गुरु शंकाराचार्य जी यहाँ आये। सन 1191 में चन्द्र राजाओं ने इस गुफ़ा में काशी से लाये गये भण्डारी परिवार को पूजा पाठ के लिये नियुक्त किया। गुफ़ा में बनी संरचनाओं को पुराणों की कहानियों के साथ जोड दिया गया है। इस गुफ़ा के बारे में स्कंद पुराण के मानस खन्ड के 103 वे अध्याय में बताया गया है।
गुफ़ा में घुसते ही सबसे पहले 33 प्रकार (कुछ ज्यादा पढे लिखे 33 करोड देवता बोलते है। मैं कम पढा लिखा हूँ इसलिये 33 प्रकार कहता हूँ) के देवी देवताओं का किस्सा बताने से गुफ़ा विवरण आरम्भ हुआ। पुजारी महोदय ज्यादा पढे लिखे थे अत: उन्होंने भी 33 करोड देवी देवता बताया। यह पुजारी सिर्फ़ 7-8 मिनट बाद ही अपनी कही बात से पलट बैठा था जब राजेश जी कुछ देर बाद गुफ़ा में नीचे पहुँचे तो मैंने कहा पुजारी जी आपने ने तो कहा कि जिसे भगवान ने नहीं बुलाया वो यहाँ नहीं आ सकता। अब बताओ आपके कथित भगवान ने अपना निमंत्रण इतनी जल्दी कैसे बदल दिया? पुजारी ने अपनी बात को बल देने के लिये दो चार बाते बनायी जिसका हम पर कोई प्रभाव नहीं पडना था। उसकी सफ़ाई पर मैंने कुछ नहीं कहा, नहीं तो वह वहाँ विवरण बताना छोड, लडने बैठ जाता।
सभी प्रकार के देवी-देवता ने हमारी आवभगत कर दी तो हमारी धरती को अपने फ़न पर सम्भालने वाले शेषनाग की कहानी शुरु हुई। हमारी पृथ्वी अपनी घुरी पर जिस तेजी से घूमती है उस हिसाब से शेषनाग जी को तो चक्कर आ रहे होंगे। चलो कहानी है सच्चाई थोडे ना है। सुनते रहे। यही सुनने का पैसा तो बाहर देकर आये थे। शेषनाग के फ़न जैसी शक्ल का बनाया हुआ एक पत्थर दिखा कर बताया गया है कि यह शेषनाग का फ़न है इसके नीचे खडे हो जाओ। लो जी खडे हो गये। पुजारी बोले अब तुम शेष नाग की छत्र छाया में हो तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड पायेगा। (मन में आया कि इस पुजारी का हाथ पकड कर खाई में छलाँग लगा दूँ, तभी मन में ख्याल आया कि पुजारी के चक्कर में मैं भी अपने हाथ पैर पर पलस्तर क्यों चढाऊँ?) शेषनाग के फ़न पर किया गया कार्य साफ़ दिखायी दे रहा था।
अब आगे चलते है। पानी बहने से चूना पत्थरों पर लाइने सी बनी हुई है। जिसके बारे में बताया गया कि यह शेष नाग का अस्थि पंजर है। इसका अर्थ है कि हम शेष नाग की रीड की हडडी के ऊपर चल रहे थे। अगर इससे शेष नाग नराज हो गया तो बहुत बुरा होगा, भाई जल्दी आगे बढ लो। खैर, जल्दी ही शेष नाग के ऊपर से हट गये। आगे जाकर एक गडडा दिखाया गया। उसके चारों ओर बैठने को कहा। जब बैठ गये तो गडडे के बारे में बताया गया कि इस कुन्ड में जन्मेजय ने एक यज्ञ किया था। इस गुफ़ा में चार युग बताने वाला स्थल भी दिखाया गया है। जिसके बारे में कहा गया कि हर युग में एक दरवाजा बन्द होता चला गया। आगे चलकर काल भैरव की जीभ भी दिखायी गयी।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश एक जगह दिखायी देते है। छत पर चूने की आकृति को कमल मान लिया गया। चूने के पत्थर के कारण बनी आकृति को किसी ना किसी भगवान से जोड दिया गया है। आगे जाकर एक ऐसा पत्थर दिखायी दिया जो देखने में गरुड पक्षी जैसा लगता है। इस पत्थर की मुन्डी पीछे की ओर मुडी हुई थी। जिसके बारे में पुराणों में किसी कहानी में बताया गया है। कि गरुड का मुंह हमेशा कुन्ड के विपरीत मिलेगा। एक जगह ताँबे के कवच से घिरा हुआ शिवलिंग है। आदि गुरु शंकराचार्य ने यहाँ पूजा की थी ऐसा पुजारी ने बताया। हमारे साथ आये पुजारी जी व इनके शिष्यों को ही यहाँ पूजा करने का हक (कमाई का हक दूसरा कोई कैसे ले सकता है?) है। पुजारी महोदय ने शिवलिंग के पास जल से भरा ताँबे का घडा दिखाया और कहा, “एक बन्दा इसे उठाकर शिवलिंग पर धार बनाकर डाल दो बाकि सभी उसको हाथ लगा लो। पुजारी महोदय मन्त्रोंचारण करने लगे। घडे का पानी समाप्त होने के बाद पुजारी जी कुछ आस लगाये खामोश बैठ गये।
गुफ़ा के अन्दर की दीवारों पर पानी रिस कर बह रहा था जिस कारण काफ़ी गीला हो गया था। बहता हुआ पानी चट्टानों से होता हुआ पहाड की दरारों से खाई में चला जाता है। पुजारी ने यह भी बताया कि शिव शंकर भोलेनाथ जी ने पान्ड्वों के साथ यहाँ इस गुफ़ा में चौपड खेली थी। इतने बडे लम्बे चौडे पाण्डव इस सुरंग में घुसे कैसे होंगे? यहाँ आकर गुफ़ा का अन्तिम बिन्दु आ जाता है इसके बाद वापिस जाना होता है। वापसी के मार्ग में मामूली सा बदलाव किया गया। वापसी में समुन्द्र मंथन से निकली दो मुख्य जगह दिखायी गयी। पहली कल्पवृक्ष व दूसरी इन्द्र का एरावत हाथी जैसा दिखने वाली चट्टान। इन्द्र के हाथी के बारे में कहा जाता है कि उसके सैकडों पैर थे। कामधेनु गाय के थन भी यहाँ बने हुए है। complete story of Patal Bhuvaneshwar

वापसी में चार युग वाले पत्थरों की कहानी बतायी गयी। एक पत्थर कुछ ज्यादा लम्बा था उसके बारे में बताया गया कि यह कलयुग की निशानी है। जिस दिन यह बढता हुआ गुफ़ा की छत से मिल जायेगा। संसार समाप्त हो जायेगा? जिस गति से कलयुग की खून्टी बढ रही है इस हिसाब से कलयुग समाप्त होने में लाखों वर्ष लग जायेंगे। गुफ़ा दर्शन पूर्ण हुआ। हम लोग जंजीरों के सहारे ऊपर चले आये। गुफ़ा से ऊपर आना ज्यादा सरल था। जंजीरों का सहारा लेकर जल्दी ही बाहर आ गये। बाहर आकर अपना सामान वापिस लिया। पुजारी ललचायी नजरों से हमारी ओर देखे जा रहा था। राजेश जी ने उसे सिर्फ़ 100 रु परची से अलग दिये। बाहर आकर हाथ पैर धोने के बाद वापिस चल दिये। राइ आगर में आइसक्रीम का नाश्ता खाकर बैरीनाग, चौकोडी, बागेश्वर, अल्मोडा होकर दिल्ली प्रस्थान करना था। (यात्रा अभी जारी है।)





























 

8 टिप्‍पणियां:

राजेश सहरावत ने कहा…

संदीप भाई होटल वाली का फोटो लेने से पहले इजाजत ले ली थी ?

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बेचारे पुजारी का हाथ पकड़ खाई में कूदने को त्यार था। होट्ल वाली ने बेरा चाल जाता तो हाथ गोड़ों की मरम्मत तो बिना खाई मै कुदे ही हो जानी थी। :)

Unknown ने कहा…

Yatra ka anand LALIT ji ke comment se aur badh guya..hansi choot gai..
lagta hai wo 5 liter wala Icecream ka pack isi ko impress karne k liye khareeda tha... Kyun??
Bhabhiji blog nahi padhti lagta hai..

Photo kheechne k chakkar me main ek bar phus chuka gaon me. Jara savdhaan rahen...

Ritesh Gupta ने कहा…

पाताल भुवनेश्वर का यात्रा का पुनः स्मरण अच्छा लगा....

Sachin tyagi ने कहा…

भाई राम राम...
पाताल भुवनेश्वर की यात्रा बहुत रोचक रही.
शेषनाग की शरण मे हो आए जब ही तो आइसक्रीम वाली का फोटो खिच लिया आपने.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बादलो का समुंदर देखणा बेहद आशचर्य भरा था --

Ajay Kumar ने कहा…

acchi thiii.... ice cream

Susheel ने कहा…

bhai sahab, jab gufa mein aapko sab kuch andh vishwas lag raha tha, tou aap wahan karne kya gaye thhey?

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