NACHIKETA TAAL-GANGOTRI-02 SANDEEP PANWAR
बाइक पर नचिकेता ताल व गंगौत्री यात्रा के लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- इस यात्रा का पहला लेख नचिकेता ताल यहाँ है।
02- उत्तरकाशी से गंगौत्री मन्दिर यात्रा
बाइक पर नचिकेता ताल व गंगौत्री यात्रा के लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- इस यात्रा का पहला लेख नचिकेता ताल यहाँ है।
02- उत्तरकाशी से गंगौत्री मन्दिर यात्रा
उत्तरकाशी
से उजाला होने से थोडा पहले ही गंगौत्री के लिये चल दिये। अभी उत्तरकाशी पार भी
नहीं हुआ था कि एक होटल वाले ने हमारी बाइक पर दिल्ली का नम्बर देखकर रुकने का
ईशारा किया। उसने कहा क्या आप होटल में ठहरना है? नहीं। उसने कहा कि वह केवल एक सौ
रुपये चार्ज लेगा। हमें उससे पीछा छुडाने के लिये कह दिया कि ठीक है शाम को वापसी
में तुम्हारे यहाँ ही रुकेंगे। उत्तरकाशी से 15 किमी बाद मनेरी बाँध आता है। यहाँ मनेरी में गंगा का पानी रोककर एक छोटा
सा बान्ध बना दिया गया है। जिससे आसपास के गाँवों के लिये बिजली बनायी जाती है।
दो साल पहले
छोटे भाई की ड्यूटी यहाँ के थाने में ही थी। मनेरी थाने को एशिया का सबसे बडा
भूभाग वाला थाना बताया जाता है। इस थाने से गंगौत्री की दूरी 85 किमी है। गंगौत्री से चीन की सीमा करीब 30
किमी से ज्यादा ही होगी। इस तरह देखा जाये तो मनेरी थाने का अधिकार
क्षेत्र 120 किमी इलाके में है। अगर आपको इससे ज्यादा लम्बाई
वाले इलाके को कंट्रोल करते किसी पुलिस स्टेशन के बारे में पता है मुझे अवश्य
बताये। जितना लम्बी सीमा इस थाने की है उतने लम्बे तो जिले भी ज्यादा नहीं होते
है। ज्यादा दूर जाने की बात नहीं होगी। दिल्ली को ही ले लीजिए। दिल्ली को किसी भी
कोने से नापना आरम्भ कर दीजिए। दोनों सिरों की दूरी 100 किमी
से कम ही मिलेगी।
उत्तरकाशी
से मनेरी पहुँचते-पहुँचते जोरदार ठन्ड का अहसास हो गया था। सुबह का समय होने के
कारण ठन्ड अपने चरम पर थी। मैंने विन्ड शीटर पहनी हुई थी जिससे सामने से आने वाली
हवाओं का असर थोडा कम हो रहा था। मैडम शाल को लपेट कर मेरे पीछे दुबकी बैठी थी।
सिर को ठन्ड से बचाने के लिये चुन्नी सिर पर अच्छी तरह कसी जा चुकी थी। सूरज महाराज
ऊँचे पहाडों पर अपनी धूप बिखरने में लगे थे। जबकि हमारी बाइक पहाडों की तलहटी में
चल रही थी वहाँ तक धूप आते-आते दो घन्टे और लगने थे। उत्तरकाशी से करीब 50 किमी आगे गंगनानी नामक जगह आती है जहाँ
गर्म पानी के श्रोत है। यहाँ तक आते-आते धूप के कारण मौसम में थोडी राहत मिल गयी
थी। हमारी बाइक पानी की धार के विपरीत दिशा में चल रही थी जिससे चढाई लगातार बनी
रही।
गंगनानी में
एक दुकान पर रुककर मैडम को चाय पिलायी गयी। अभी शादी को एक साल भी नहीं हुआ था
मैडम के साथ पहाड की यह पहली बाइक यात्रा थी। गंगनानी में चाय पीने के बाद हम फ़िर
से गंगौत्री के लिये चल दिये। गंगनानी से आगे एक किमी की सडक दिखायी नहीं दे रही
थी। सडक की जगह पत्थर ही पत्थर पडे हुए थे। एक जगह बाइक निकालने के लिये भी पत्थर
हटाना पडा। उसके बाद बाइक आगे निकाली जा सकी। कुछ पत्थर काफ़ी बडे थे। जो 7-8 आदमियों के बस से बाहर की बात थी। अगर हम
बस या जीप से आये होते तो वही अटक कर रह गये होते।
कोई आधा
किमी इलाके में पत्थर की बरसात मिली। इसके बाद अच्छी सडक थी। आगे एक पुल पर दो तीन
गाडी खडी थी। उन्होंने हमें रुकने का इशारा किया। मैंने बाइक रोक ली। बाइक रोकते
ही उन्होंने कहा, भाई जी रास्ता साफ़ कर दिया गया है क्या? नहीं तो। आप कैसे निकल
कर आये? कैसे मतलब? सुबह से पत्थर गिर रहे है। जब हम वहाँ से निकल रहे थे तो उस
समय तो पत्थर नहीं गिर रहे थे। हाँ अभी भी पूरी सडक पर पत्थर ही पत्थर बिखरे पडे
है। कुछ तो बहुत बडे है। जब तक बुलडोजर उन्हे हटायेगा नहीं, आपकी गाडी वहां से आगे
नहीं जा पायेगी। यहां आकर सूर्य महाराज हमारी पहुँच में आ पाये। करीब दस-बारह मिनट
रुककर सूर्य की किरणों से शरीर को गर्मी पहुँचायी। सूर्य की धूप ऐसी लग रही थी
जैसे हम किसी आग के सामने तप रहे हो।
सुक्खी टाप
उत्तरकाशी से गंगौत्री के बीच सबसे ऊँची जगह पडती है। यहाँ पर सडक एक पहाड की चोटी
से होकर आगे जाती है। जिस कारण पहाड पर चढने उतरने के क्रम में करीब 20 किमी ज्यादा गाडी चलानी पडती है। अगर यहां
दो-तीन किमी लम्बी सुरंग बना दी जाये तो यह दूरी बहुत कम हो सकती है। सुक्खी टोप
के उस पार गंगा के पुल तक उतराई लगातार बनी रहती है। ऊपर से सामने देखने पर एक
शानदार घाटी दिखायी देती है। जो हर्षिल कहलाती है। जहाँ गंगा/भागीरथी पर जो पुल
बना है उस जगह को झाला पुल कहते है। यहाँ रात्रि विश्राम की अच्छी सुविधा है। इस
पुल से आगे सडक लगभग समतल सी दिखायी देती है जिस पर गाडी तेजी से भगायी जाती है।
सडक के उल्टे हाथ गंगा नदी साथ-साथ बहती है गंगा पार एक बडा मैदान सा दिखायी देता
है जिसे हर्षिल कहते है।
हर्षिल पहली
नजर में कश्मीर के पहलगाम जैसा दिखायी देता है। यहाँ के सेब बहुत मशहूर है। यहाँ
उगने वाले सेब की फ़सल इंग्लैन्ड से लायी गयी थी। राजकपूर ने राम तेरी गंगा मैली
नामक फ़िल्म की शूटिंग यही पर की थी। यहाँ एक झरने का नाम उस फ़िल्म की हीरोइन
मंदाकिनी के नाम पर मंदाकिनी फ़ाल पड गया है। हर्षिल से गंगौत्री की दूरी करीब 26 किमी है। यहां से कोई 10 किमी आगे जाने के बाद एक छोटा सा कस्बा धराली आता है। जहाँ पर रहने खाने
का अच्छा प्रबन्ध है।
एक दुकान पर
बिक रहे सेब देखकर मैडम बोली कुछ सेब ले लो। शायद 10 रुपये किलो का भाव था। दो किलो सेब ले लिये। जिन्हे खाते हुए गंगौत्री की
ओर बढने लगे। जैसे-जैसे सेब खाते जा रहे थे शरीर में झुरझुरी बढती जा रही थी।
ताजे-ताजे सेब रस से भरपूर थे। जिन्हे दांतों से काटते समय रस की बून्दों ट्पक रही
थी। पहाडों में सितम्बर के महीने में सेब की फ़सल होती है जिससे ताजे-ताजे सेब खाने
को मिल जाते है। यही सेब मैदान तक पहुँचते-पहुंचते 100 रु
किलो तक पहुँच जाते है। मैडम ने दो सेब खाने के बाद बाकि के सेब बैग में रख दिये।
मैंने कहा क्या हुआ? सेब अच्छे नहीं है। सेब खाने से ठन्ड लग रही है।
अब धूप भी
लगातार मिल रही थी। गंगौत्री से कोई 9-10 किमी पहले भैरों घाटी में लंका पुल आता है। यहाँ पर चीन की सीमा नेलांग से आने वाली नदी पर यह पुल
बनाया गया है। कहते है कि यह पुल पानी की सतह से ऊँचाई के मामले में भारत में पहले
स्थान पर है। पुल से नीचे देखने पर नदी एक पतली सी धार जैसी लगती है। कमजोर दिल
वाले इस जगह ज्यादा देर खडे नहीं रह पाते। मजबूत दिल वालों को पुलिस वाले ज्यादा
देर खडे नहीं होने देते। पुल पार करते ही उल्टे हाथ चीन की सीमा की तरफ़ जाने वाली
सडक है जिस पर सेना का कब्जा है उस सडक पर आम जनता का जाना प्रतिबन्धित है।
थोडी देर
में गंगौत्री धाम आ गया। बाइक पर उत्तरकाशी से यहाँ आने में करीब 4 घन्टे लगे। मैं यहाँ कई बार बाइक पर आ चुका
हूँ। हर बार लगभग इतना ही समय लगता है। बाइक सडक किनारे खडी कर सीधे हाथ उतरकर
पुलिस चौकी के सामने से होते हुए गंगा पार की उसके बाद गंगा किनारे चलते हुए आगे
बढते रहे। यह पगडन्डी आगे चलकर लकडी के एक पुल पर पहुँचती है। जिस नदी पर यह पुल
बना है वह केदार गंगा है। केदार गंगा केदारनाथ के ठीक ऊपर वाले पहाड से निकलती है।
इस नदी के किनारे चलते हुए केदारताल होते हुए केदारनाथ पहुँचा जा सकता है। लेकिन
यह मार्ग काफ़ी खतरनाक है। जिससे केदारनाथ पहुँचने में कम से कम तीन दिन लग सकते
है।
लकडी का पुल
पार करते हुए डर लगता है कि कही यह टूट ना जाये। पुल से आगे जाने के बाद गंगौत्री
मन्दिर दिखायी देने लगता है। गंगाजी के जल को छूकर देखा। पानी जबरदस्त ठन्डा था।
जिसमें कई भक्त स्नान कर रहे थे। मैंने भी एक बार सन 2009 की जुलाई में यहाँ स्नान किया था जिसका
फ़ोटो इस लेख में लगाया भी है। आज स्नान नहीं किया। क्योंकि यहाँ स्नान का मतलब था।
फ़्री में आफ़त बुलाना। सीढियाँ चढकर मन्दिर के दर्शन किये। सर्दियों में जब यहाँ
बर्फ़बारी के कारण आना-जाना बन्द हो जाता है तब गंगा की पूजा हर्षिल के सामने गंगा
पार मुखवा गांव में बने मन्दिर में की जाती है।
गंगौत्री की
यात्रा समाप्त हो चुकी थी। समय देखा दोपहर के एक बजने वाले थे। एक दुकान पर रुककर
थोडा बहुत खाया पीया गया। उसके बाद अपनी बाइक पर सवार होकर उत्तरकाशी के लिये
प्रस्थान कर दिया। गंगौत्री से उत्तरकाशी जाने में भी उतना ही समय लगा, जितना आने
में लगता है। आते समय चढाई के कारण बाइक तेज नहीं भागती है तो वापसी में उतराई पर
फ़िसलने के डर से बाइक सीमित भगानी पडती है। थराली आने के बाद झाला पुल तक बाइक
तेजी से भगायी जाती है।
झाल पुल पर
चढाई चढकर उतराई पूरी की तो याद आया कि एक पुल के किनारे पर चाय की दुकान से जाते
समय मैडम को चाय पिलायी थी। लेकिन अब चाय वाली दुकान बन्द थी। मैडम को बिना चाय के
ही रहना पडा। यहाँ आते समय जिस मार्ग पर पत्थर बिखरे हुए थे अब वहाँ कोई पत्थर
नहीं मिला। सारे पत्थर हटा दिये गये थे। गंगनानी आकर कुछ देर रुके। मैडम ने चाय
पी। कुछ देर गर्म पानी के श्रोत देखने में लगाये। उसके बाद उत्तरकाशी पहुँचकर ही
आराम किया।
रात को आराम
करने के बाद अगली सुबह दिल्ली प्रस्थान करना था। सुबह उजाला होने से पहले ही
दिल्ली के लिये चल दिये। इस बाइक पर मेरे साथ मेरी माताजी देहरादून, मसूरी, धनौल्टी
वाले मार्ग पर जबरदस्त बर्फ़बारी के बीच यहाँ आयी थी। जिसके फ़ोटो व विवरण पहले ही
आपको बता दिया गया है। जिसका लिंक यहां है। दोपहर तक पहाडों की यात्रा समाप्त कर
चुके थे। बुआ की लडकी का शाल हमारे पास था। उसे उसका शाल लौटा कर दिल्ली कूच कर
दिया। हरिदवार से दिल्ली पहुँचने में लगभग छ: घन्टे लग जाते है। अंधेरा होते-होते
दिल्ली पहुँच चुके थे।
श्रीमति जी
के साथ यह पहली गंगौत्री यात्रा थी। इसके बाद सन 2005
की जून में एक बार मैडम के साथ पहाडों की यात्रा का कार्यक्रम बना
था। उस यात्रा में हमारे साथ श्रीखण्ड महादेव यात्रा में बीच से लौटकर आने वाले
नितिन व उसकी नई नवेली मैडम जी अपनी बाइक पर हमारे साथ गयी थी। उस यात्रा में हमने
हरिदवार से नीलकंठ से उतरकाशी से गंगौत्री से यमुनौत्री से मसूरी से देहरादून से
दिल्ली तक की यात्रा की थी जिसका विवरण जल्द बताया जायेगा। (यात्रा समाप्त)
3 टिप्पणियां:
बहुत ही बडिया, असली घुमक्कड़ी यही है... अछा है की आपने मेडम को भी शुरू से ही घूमने की आदत दाल दी....नोटीस बोर्ड बहुत अच्छे लगे मुझे
आपका अनंदाज निराला है.
choudhray sahab "shadhi ke pehle saal ganga darshan, GHAR waloo ne roka nahi kya? bhut sunder vivran sahi kaha Bhaskar jee ne AAPKA ANDAZ HI NIRALA HAI..
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