गुरुवार, 21 नवंबर 2013

Dharamshala- Kunal Pathri Mata Shaktipeeth Temple कुनाल पत्थरी शक्ति पीठ मन्दिर-धर्मशाला

करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।

01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान  Back to Delhi

KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-06

हिमाचल के खूबसूरत शहर धर्मशाला के बेहद नजदीक माता का शक्तिपीठ मन्दिर होगा। ऐसा मैंने कभी पढा होगा, याद नहीं आ रहा है। हम पैदल ही यहाँ के चाय बागान देखते हुए आगे बढ़ते गये तो एक मोड़ पर इस मन्दिर का प्रवेश द्वार दिखायी दिया। वैसे राकेश हमारे साथ था जिसने पहले भी इस मन्दिर में कई बार दर्शन किये हुए है। मन्दिर के बाहर कुछ गाय बैठी हुई थी जिनके फ़ोटो मैंने इससे पहले वाले लेख में लगाये थे। मन्दिर प्रागंण में घुसते ही एक बोर्ड़ पर नजर गयी।



उस पर लिखा था कि यहाँ पर भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग प्रशिक्षण केन्द्र में चिकित्सक बनाये जाते है। अगर आप पाठकों में से किसी को चिकित्सक बनने की इच्छा हो तो यहाँ आकर कर सकते है। चिकित्सक नैचुरो पैथी डिप्लोमा अवधि 3 वर्ष 6 माह, सहायक चिकित्सक डिप्लोमा अवधि मात्र 1 वर्ष 6 माह में किया जा सकता है। इस संस्थान ने अपने फ़ोन नम्बर भी यहाँ लिखे हुए है, यह संस्थान पंजीकृत है इसकी मान्यता है या नहीं इसके बारे में पहले पता कर लेना, बाद में मुझे मत कहना कि यह फ़र्जी था आपने बताया नहीं था।

इस बोर्ड़ को पढकर आगे बढे तो पीलखन (पीपल की बहिन/मौसी) का एक बड़ा सा पेड़ दिखायी दिया। इस पेड़ के तने पर बहुत सारी चूडियाँ टाँगी गयी थी। मन्दिर में आने वाले मनौती माँगने आते होंगे यह कारनामा उन्ही का लगता है। इस पेड़ को देख आगे बढे, लेकिन यह क्या सड़क समाप्त हो गयी और मन्दिर दिखायी नहीं दिया। मैंने सोचा कि मन्दिर नीचे खाई में उतर कर होगा, इसलिये राकेश का इन्तजार होने लगा। राकेश आया तो उससे कहा, कहाँ गया मन्दिर? राकेश बोला, क्या जाट भाई? ये सीढियाँ देखो, ये मन्दिर ले जाकर ही छोडेगी। सीढियाँ नीचे उतर रही थी इसलिये सड़क से दिख नहीं रही थी। दोनों ओर दुकाने थी जो बन्द पडी थी। ये दुकाने शायद किसी खास मौके पर ही खुला करती होंगी। मन्दिर वाला दरवाजा पूरा नहीं बना था इसलिये दूर से ना पहचाना जा सका। सीढियों से होकर नीचे चले गये।

नीचे जाते ही एक चैनल गेट दिखायी दिया, उसके पास लगे बोर्ड़ से पता लगा कि यहाँ हर रविवार को दोपहर में भन्ड़ारा/लंगर लगाया जाता है। हमने मजाक में कहा कि चलो वापिस रविवार को आयेंगे। जब यहाँ तक आये ही है तो दुर्गा माता कुनाल पत्थरी के दर्शन कर ही लेते है। हम सीढियों से उतरते हुए नीचे चले गये। सड़क के मुकाबले मन्दिर काफ़ी गहराई में है जिस कारण बाहर से दिखायी नहीं देता है। सीढियों पर ही जूते उतारने का बोर्ड़ लगा था इसलिये जूते पहले ही उतार दिये थे। मन्दिर की साफ़-सफ़ाई देखकर मन इतना खुश हुआ कि बता नहीं सकता।

मुझे नंगे पैर चलने की आदत नहीं है लेकिन इस मन्दिर में शानदार सफ़ाई व्यवस्था थी जिस कारण नंगे पैर चलने-फ़िरने में परेशानी नहीं आयी। सबसे पहले मन्दिर के गर्भ गृह में जाकर माता की मूर्ति रुपी कुन्ड़ को प्रणाम किया। मैं यहाँ आने से पहले सोच रहा था कि माता की मूर्ति कैसी होगी? लेकिन मूर्ति के स्थान पर एक कुन्ड़ देखा तो थोड़ा सा आश्चर्य हुआ। इस कुन्ड़ के बनने के पीछे भी एक कहानी है मन्दिर में लगे बोर्ड़ में इस मन्दिर की कहानी का वर्णन किया गया है।

मुझे मन्दिर के अधिकतर खाऊपिऊ आदत वाले पुजारियों से चिढ सी होती है इसका मुख्य कारण यही है कि मन्दिर के अधिकांश पुजारी मन्दिर में आने वाले भक्तों से नकद नारायण लेने के चक्कर में लग जाते है। लेकिन मैंने अब तक बहुत कम पुजारियों को भगवान की सेवा करते हुए पाया (अधिकांश अपनी सेवा करते है।) है। इस मन्दिर के पुजारी बाहर बारमदे में बैठकर किसी पुस्तक को पढ रहे थे। उन्होंने हमें मुख्य मन्दिर में जाते हुए देखा, लेकिन वह अपनी पुस्तक पढने में लगे रहे। सबने अपनी इच्छानुसार दान मन्दिर के दान-पात्र में ड़ाल दिया था।

मन्दिर में सुबह-शाम आरती होती है इसके बारे में वहाँ लगे बोर्ड़ अनुसार गर्मियों में सुबह 7 व शाम 7:30 पर आरती होती है जबकि शरद ऋतु में सुबह 7:30 व शाम को 6:30 पर आरती का समय निर्धारित है। माता के मन्दिर के सामने ही गुपेश्वर महादेव नाम से एक छोटा सा मन्दिर और भी है। हमने यहाँ के सारे मन्दिर देखे। अब इस मन्दिर के इतिहास का वर्णन भी हो जाये- बोर्ड़ अनुसार धौलाधार पर्वत के आंचल में कपोलश्वरी देवी कुनाल पत्थरी के नाम से प्रसिद् है।

इस मन्दिर के पीछे भी शिव महापुराण वाली वही कहानी है जिसमें भोले नाथ शंकर की पत्नी पार्वती (पूर्व जन्म में सती) अपने पिता दक्ष से नाराज होकर उनके हवन कुन्ड़ में जल गयी थी। शिव के गण वीरभद्र ने उस हवन को तहस-नहस कर ड़ाला था। यह बात भोले नाथ को पता लगी तो क्रोध के कारण शिव सती के मृत शरीर को कंधे पर उठाकर घूमने लगे। कहानी में आगे बताया जाता है कि त्रिदेव के एक अन्य भगवान विष्णु ने सती के मृत शरीर के अंगों को काटना शुरु कर दिया। सती के शरीर के कुल 52 टुकडे किये। (विष्णु भगवान था या कसाई?) जहाँ-जहाँ ये टुकडे गिरे, वही पर एक-एक शक्तिपीठ की स्थापना कर दी गयी। यहाँ इस मन्दिर पर माता का कपाल गिरा था।

कुनाल पत्थरी नाम के पीछे भी एक कहानी है कि यहाँ पत्थर का एक प्राकृतिक कुन्ड़ बना हुआ है। यह कुन्ड़ ही माता का कपाल बताया गया है। इस पत्थर का आकार आटा गूथने वाले बर्तन परात के जैसा है। परात को पहाड़ की कांगड़ी भाषा में कुनाल कहा जाता है। इस कुन्ड़ ने नीचे देवी की पिन्ड़ी रुपी शिला है। इस कुन्ड़ में हर समय पानी भरा रहता है। इस पानी में कोई कीड़ा या जाला नहीं लगता है। इस मन्दिर में रात्रि विश्राम हेतू सराय/धर्मशाला भी बनायी गयी है। यह मन्दिर ज्वालामुखी, बज्रेश्वरी, चामुन्ड़ा, भागसूनाग, अघंजर महादेव (मैंने नहीं देखा), तपोवन आदि मन्दिरों की परिक्रमा में आता है। कहते है कि जब कोई दर्शानार्थी यहाँ आता है तो उसे एक विशेष प्रकार की आनन्दनुभूति होती है सच कहा है हमें भी ऐसा ही अनुभव हुआ था। देखते है यहाँ पुन: कब जाना होगा?

मन्दिर की फ़ोटो लेने के लिये कैमरा निकाला और फ़ोटो लेने शुरु कर दिये। पुजारी महोदय ने हमें फ़ोटो लेने से भी नहीं रोका। मैंने इस प्रकार के शांत आचरण वाले पुजारी गिने चुने ही देखे है अन्यथा मन्दिर में फ़ोटो लेने लगो तो पुजारी कोहराम मचा देते है। भुवनेश्वर के लिंगराज मन्दिर में वहाँ के पुजारी मेरा मोबाइल छीनने को तैयार हो गये थे। मन्दिर में लगे बोर्ड़ से इसकी महत्ता पता लगी। जब फ़ोटो का काम पूर्ण हो गया तो मैं पुजारी जी के पास आकर बैठ गया। (मुझे लालची पुजारियों से बात करने का मन भी नहीं करता है।) पुजारी से काफ़ी देर तक साधारण वार्तालाप होता रहा। अन्त में हमने पुजारी को प्रणाम किया और वहाँ से वापिस चलने के लिये तैयार हो गये।


कमरे से चलते समय पानी की बोतल भी साथ नहीं लाये थे। मेरे पास कैमरा और फ़ोन्चू था जोर की प्यास लगी थी मन्दिर में नीचे की तरफ़ पीने के पानी की टोन्टी लगी हुई थी छीक कर पानी पिया। पेट फ़ूल कर कुप्पा हो गया। अब हमें कमरे तक पैदल ही जाना था। वापसी में चाय बागानों के बीच से होकर ही जाना था। जितना आनन्द यहाँ आते समय हुआ था उतना ही यहाँ से वापसी में भी महसूस किया था। आते समय हमने काफ़ी फ़ोटो लिये थे लेकिन वापसी में गिने चुने फ़ोटो ही ले पाये थे। घन्टे भर में टहलते हुए धर्मशाला से कांगड़ा जाने वाली सड़क पर आये ही थे कि कांगड़ा जाने वाली बस सामने आ गयी। मनु अभी पीछे था उसे आवाज लगाकर बुलाया तब तक बस रुकी रही। बस में सवार होकर कांगड़ा का किला देखने के लिये चल दिये। (यात्रा अभी जारी है।)

































8 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

jai mata di Sandeep bhai.sunder yatra vratant

travel ufo ने कहा…

jai mata di

kb rastogi ने कहा…

beautiful post

Ajay Kumar ने कहा…

भाई जी एक पत्थरी देवी का मंन्दिर मेरे गुर्दे मे भी है जिसमे दौ चार दिन मे घँटी बजती रहती है। चलो छोडो ये तो पुरानी बात है . . . फोटू तो फाडू तार राखे है।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

yah mandir dharmshala mei kaha hai ,yadi malum hota to jarur jati ...kher, agli baar jaugi ...

बेनामी ने कहा…

संदीप भाई ये मंदिर ५२ शक्ति पीठ में तो नहीं है पर कोई बात नहीं और यात्रा और फ़ोटो एकदम झकास है

बेनामी ने कहा…

अजय कुमार जी आपके गुर्दे में पथरी है इसमें डरने कि कोई बात नहीं है या तो आप पथरचट का एक पत्ता रोज ७ दिन तक खाना है रोज सुबहः उठने के बाद और पानी पिने है जितना आप पि सके या एक दिन मेरे पास से दवाये ले जाना मेरे भी पथरी थी पर अब ठीक है

Unknown ने कहा…

Bhai itne sunder mandir the ye lekin ye
Jhaat devta kya tha....

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