शनिवार, 16 नवंबर 2013

Dharamshala- Dal lake धर्मशाला की ड़लझील

करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।

01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान  Back to Delhi


KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-04

करेरी से लौटते समय हम उसी पुल तक पहुँच गये थे जहाँ कल करेरी की दो बहनों का अंतिम संस्कार किया गया था। आज उनकी जगह केवल राख का ढेर बचा था। आज शाम तक या कल सुबह को गाँव के लोग इस राख को भी पानी में बहा देंगे। आज पुल के पास कोई नहीं था बारिश भी नहीं हो रही थी कुछ देर पुल पर रुककर विश्राम किया। पुल पर आने के लिये हमने कल वाला सड़क का मार्ग नहीं चुना था। आज हमने जंगल के बीच से होकर जाने वाली पैदल पगड़न्ड़ी का उपयोग किया था। सड़क के मुकाबले यह बहुत छोटा मार्ग निकला। लेकिन चढ़ाई में यह बुरी तरह थकाने वाला मार्ग साबित होता होगा।





मैंने आगे चलने के लिये कहा तो राकेश नहाने पर अड़ गया। नीचे नदी में एकदम शीशे जैसा साफ़ पानी बह रहा था। मन तो हमारा भी था कि नहा लिया जाये लेकिन बारिश की सम्भावना देखते हुए नहाना बेकार साबित होने वाला था। इधर राकेश मानने को तैयार नहीं था। राकेश ने पुल के ऊपर से ही नदी तक जाने वाला मार्ग देख कर कहा कि वहाँ नहाया जा सकता है। मनु बोला जाट भाई क्या आप भी नहाना चाहते हो? हाँ नहाना तो चाहता हूँ लेकिन आसमान देखो, जैसे कह रहा हो बेटे तुम नहाकर बाहर तो निकलो, मैं तुम्हे फ़िर निहला दूँगा। मनु भाई मैं चाहता हूँ कि हम जितनी जल्दी यह पैदल मार्ग पार कर जाये, उतना हमारे लिये सही रहेगा। रही बात राकेश की, उसे हम दोनों के साथ चलना ही पडेगा। यह गड़रिया तो है नहीं जो जिद पकड़ कर बैठ जायेगा।

मैं और मनु यह कहकर चल दिये कि यहाँ से नदी में जाकर नहाना खतरे से खाली नहीं है। आगे जहाँ भी नहाने लायक उचित स्थान मिलेगा, वही स्नान करना शुरु कर देंगे। हम दोनों के चलते ही राकेश को भी बुझे मन से आगे बढ़ना पड़ा। हम कल इस जगह बारिश में चल रहे थे। दुकानों के पास पहुँचकर वहाँ के स्थानीय लोगों से धर्मशाला जाने वाला अन्य मार्ग पता किया। हम सोच रहे थे कि गाँव वाले धर्मशाला जाने के लिये सड़क वाला मार्ग बतायेंगे लेकिन जब उन्होंने उसी मार्ग पर चढ़ने के लिये इशारा, जिस पर कल उतर कर आये थे तो खोपड़ी झन्ना गयी। कल जौंक के इलाके के होकर जिस खतरनाक उतराई से उतर कर आये थे आज वही उतराई चढ़ाई के रुप में चढ़ने की सुन सबकी बोलती बन्द हो चुकी थी। मरते क्या ना करते? चढ़ाई पर विजय पताका फ़हराने के लिये चल दिये। वो अलग बात है कि उस चढ़ाई के नाम पर सबका गला सूखा जा रहा था।

हमें इस बात की पूरी आशंका थी कि आज भी इस मार्ग में भरपूर जौंके मिलेंगी। कल नमक की जो थैली ली थी उसमें अभी भी काफ़ी नमक बचा हुआ था। अभी थोड़ी ही चढ़ाई हुई थी कि एक जौंक ने मेरे पैर में चिपक कर हमें ललकारा कर चेतावनी दी कि आज फ़िर आ गये। आज तुम्हारी टोली की खैर नहीं है। सबका खून पीया जायेगा। उस जौंक पर तुरन्त नमक छिड़क दिया गया। नमक ऐसा पदार्थ है जिसे छिड़कते ही जौंक गलने लग जाती है। जौंक मिलते ही सभी के कान खड़े हो गये थे। अगर हम बारिश के महीने में नहीं आये होते तो जौंक की सम्भावना बहुत कम रह जाती। लेकिन अब क्या करे? अब तो बारिश का ही सीजन चल रहा है। सबने जौंक से बचने के लिये अपने-अपने पैरों पर नमक छिड़क लिया। थोड़ा आगे चलते ही वो छोटा सा पुल आ गया जिसे पार करने पर बहुत सारी पगड़न्ड़ी दिखायी देने लगती है।

पुल पार करने के बाद सब अलग-अलग पगड़न्ड़ी से ऊपर चढ़ने लगे। आज मैंने सबसे खड़ी चढ़ाई वाली पगड़न्ड़ी चुन ली थी। इस पगड़न्ड़ी के बीच में जाकर मैं बुरी तरह फ़ँस गया। यहाँ से ऊपर चढ़ने से पहले पगड़न्ड़ी की जगह कीचड़ से होकर निकलना पड़ा। बारिश के कारण जबरदस्त कीचड़ थी वापसी में फ़िसलने का ड़र था। यह पगड़न्ड़ी मुश्किल से 20 मीटर की ही रही होगी। ऊपर पहुँचकर मैंने देखा कि मनु व राकेश एक लम्बे मार्ग से होकर ऊपर आ रहे है। मैं ऊपर पहुँच चुका था मैंने उन्हे आवाज लगायी, उन्होंने भी एक शार्टकट से ऊपर चढ़ना चाहा तो मैंने कहा नहीं, सीधा-सीधा आ जाओ, इसी में ही भलाई है। ऊपर पहुँचकर सबने अपने पैर देखे कि कोई चाची चिपकी तो नहीं है।

यहाँ से आगे चल दिये। अब मार्ग में काफ़ी दूर तक हल्की-हल्की चढ़ाई थी। हमें दुकान से चलते हुए मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे कि बारिश शुरु हो गयी। अभी आधी चढ़ाई बाकि थी। बीच-बीच में साफ़ पानी दिखायी देने पर राकेश को नहाने के लिये बोल दिया जाता था। इस यात्रा में राकेश पहली बार हमारी साथ गया था राकेश का तकिया कलाम बड़ा मस्त था। हम जब भी कोई जोरदार बात कहते थे तो राकेश बोलता था मजाक तो नी कर रहे। राकेश की मजाक तो नी कर रहे वाली बात मैंने पकड़ ली थी। बाद में करेरी से वापसी करते समय हमने राकेश को उसकी हर बात का जवाब देने के लिये हमने भी “मजाक तो नी कर रहे” कहना शुरु कर दिया तो राकेश ने परेशान होकर अपना तकिया कलाम भूलना ही बेहतर समझा।

चढ़ाई समाप्त होने वाली थी। कल हमने करेरी की ट्रेकिंग शुरु की थी तो उस समय नीचे जाती हुई एक पगड़न्ड़ी दिखायी दी थी जब हमने ऊपर चढ़ते हुए एक पुल के जरिये वह नदी पार की तो समझ गये कि अब चढ़ाई समाप्त होने वाली है। कल वाले मार्ग पर इसी नदी को पानी में घुसकर पार करना पड़ा था। मेरे साथ राकेश चल रहा था। जबकि मनु व उसका दोस्त उसके साथ-साथ हमारे पीछे-पीछे आ रहे थे। जब पगड़न्ड़ी समाप्त होने का आभास हुआ तो मनु व उसका दोस्त सीधे ही पहाड़ पर चढ़ने लगे जबकि मैं और राकेश बनी हुई पगड़न्डी पर ही चलते रहे। सड़क पर पहुँचने के बाद कुछ देर रुकना चाहा लेकिन पैर में कीचड़ व जौंक चिपके होने की सम्भावना के चलते पहले पैर धोना ही सही समझा।

नजदीक ही एक मन्दिर व स्कूल था स्कूल में पहुँचकर नल से अपने पैर अच्छी तरह साफ़ कर दिये गये। आज फ़िर मनु के पैरों में तीन जौंक चिपकी मिली। नमक की थैली का यहाँ अंतिम बार उपयोग किया गया। वहाँ अध्यापन कार्य कर रहे एक अध्याक से काफ़ी देर बाते करते रहे। बारिश भी अपने पूरे वेग से झमाझम बरस रही थी। बारिश रुकने की सम्भावना नहीं के बराबर थी इसलिये अपने फ़ोन्चू फ़िर पहने और बारिश में ही आगे की यात्रा पर चल दिये। स्कूल टीचर ने बताया कि आप यहाँ से आगे जाओगे तो उल्टे हाथ ऊपर जाती पक्की पगड़न्ड़ी मिलेगी। उससे चले जाना। सड़क मार्ग के मुकाबले यह आधा ही पड़ता है। राकेश उस पक्की पगड़न्ड़ी से होकर गया जबकि हम तीनों सड़क मार्ग से होकर आगे चलते रहे। सड़क वाले मार्ग पर चढ़ाई बहुत कम महसूस हुई।

हमें अध्यापक महोदय ने बताया था कि आपको सतोवरी तक पैदल जाना होगा। वहाँ तक ही बस आती है। हम सतोवरी की ओर बढ़ने लगे। बीच में एक जगह एक स्कूटर लावारिस खड़ा दिखायी दिया, उसके पास बैठकर हमने नमकीन खायी थी। लगभग दो किमी चलने के बाद कुछ घर दिखायी दिये। यहाँ तक आते-आते बारिश भी बहुत कम हो गयी थी। इस सड़क पर चलते समय एक जगह एक ऐसा पत्थर दिखायी दिया था जिस पर नजर पड़ते ही ऐसा लगा कि जैसे किसी मानव का चेहरा बनाया गया हो। उस पत्थर के दूसरी ओर पहुँचे तो उसका जादू समाप्त मिला। दूसरी ओर से देखने पर वह एक सामान्य पत्थर जैसा ही दिखायी देता था। यहाँ से सतोवरी बस स्टैन्ड़ आधा किमी दूर बचा था। राकेश छोटे वाले मार्ग से गया था इसलिये वह हमसे पहले स्टैन्ड़ तक पहुँच गया था।

राकेश ने बताया कि अभी कुछ मिनट पहले ही धर्मशाला जाने वाली बस गयी है अगली बस एक घन्टे बाद ठीक 12:30 मिनट पर आयेगी। यहाँ आने वाली बस नड़ड़ी होकर आती है। सतोवरी व नड़ड़ी की सवारियाँ लेकर/छोड़कर बस धर्मशाला जाती है। सुबह करेरी से दो-दो पराँठे खाकर चले थे सबको भूख भी लगी थी। इसलिये सतोवरी स्टैन्ड़ पर एकमात्र दुकान से मैंगो वाली बोतल व बिस्कुट लेकर भूख मिटायी गयी। बिस्कुट खाने के उपराँत बस की इन्तजार में बैठे रहे। कुछ देर पहले रेत ढोने वाली एक जीप सतोवरी की ओर गयी थी, बस का कही पता नही था हमने जब वह जीप वापिस आती देखी तो उसको हाथ से रुकने का इशारा किया। उसके चालक से पूछा कि क्या वह हमें ड़ल लेक तक छोड़ सकता है? उसके हाँ कहने की देर थी कि हम उस जीप के पीछे वाले हिस्से में खड़े हो गये। ड़ल लेक वहाँ से चार किमी ही है कुछ देर में ही जीप ने हमें वहाँ पहुँचा दिया। जीप से उतर कर उसका किराया देने लगे त्तो जीप वाला बोला आप हमारे यहाँ घूमने आये हो, मैं घूमने वालों से किराया नहीं लिया करता।

ड़ल लेक हमारे सामने थी। बारिश की बून्दे चिटपुट बरसना जारी थी। हमने झील के काफ़ी फ़ोटो लिये थे। यह झील बहुत ज्यादा बड़ी भी नहीं है झील का पानी बहुत साफ़ भी दिखाई नहीं दिया। झील को देखने से  लगता है कि इस झील को सड़क बनने के बाद बनाया गया होगा। सड़क बनने से पहले झील का अस्तित्व नहीं होगा। झील सड़क के साथ ही बनी हुई है सड़क के दूसरे किनारे पर यहाँ का दुर्वेश्वर महादेव मन्दिर है जिसके बारे में वहाँ लगे बोर्ड़ से जानकारी मिल जाती है। उस बोर्ड़ अनुसार यह मन्दिर दुर्वेश्वर महादेव मन्दिर लगभग 200 वर्ष पुराना है। मन्दिर वाले बोर्ड़ अनुसार ड़ल झील को छोटा मणिमहेश जितना पवित्र माना जाता है। इस झील में दो प्रकार के स्नान ठन्ड़ा स्नान व त्तता स्नान ज्यादा प्रचलित बताये जाते है। इनकी तिथि भी विचित्र बतायी जाती है। जन्माष्टमी के 15 दिन बाद आने वाली राधा अष्टमी को यहाँ मेला लगता है।


मन्दिर देखने की इच्छा नहीं थी इसलिये सड़क से ही भगवान जी को राम राम कर औपचारिकता पूरी कर दी। बस की प्रतीक्षा ज्यादा देर नहीं करनी पड़ी। नड़ड़ी वाला मार्ग ड़ल से ही अलग होता है। बस सतोवरी से सवारियँ लेकर ड़ल पहुँच गयी थी। बस में पीछे वाली सीट खाली थी हमारे पास बड़े-बड़े बैग थे उनके रखने के लिये पीछे वाली सीट सबसे बेहतर थी। राकेश ने हम सबके टिकट ले लिये थे। राकेश के साथ की गयी तीनों यात्राओं में उसे ही खजान्ची बनाया गया था। बस ने हमें धर्मशाला उतार दिया था। तिराहे पहुँचने से पहले ही बस रुक गयी थी जब बस काफ़ी देर तक आगे नहीं बढ़ी तो पता लगा कि तिराहे पर जाम लगा है हम पैदल ही बस स्टैन्ड़ की ओर बढ़ने लगे। धर्मशाला उतरने के बाद राकेश बोला, चलो आपको वह दुकान दिखाता हूँ जहाँ मैं भोजन करने आता था। तिराहे के पास ही भोजन वाली दुकान थी यह दुकान तीसरे मार्ग पर थी। 

तिराहे से लगभग 100-150 मीटर दूर जाने पर सीधे हाथ दुकान थी। वहाँ सामने ही बैंक था। दुकान पर पहुँचकर सबने भोजन किया। दोपहर के दो बजने वाले थे। भोजन स्वादिष्ट बना था। भोजन वाली दुकान से धर्मशाला का क्रिकेट स्टेडियम भी दिखायी देता था। राकेश बोला स्टेडियम देखने चलोगे। ना भाई हम क्रिकेट के दीवाने नहीं है। इस खेल में जमकर राजनीति होती है नहीं होती तो देख लो BCCI का अध्यक्ष कौन है किस पार्टी के राज्य सभा सांसद को भारत रत्न देखने की घोषणा हुई है। चलो कमरे पर चलते है वही जाकर देखेंगे कि अब क्या करना है? अभी धर्मशाला के आसपास चाय के बागान व कुलथी माता का शक्तिपीठ मन्दिर भी तो है उसे देखेंगे उसके बाद कांगड़ा का किला देखने चलेंगे। (यात्रा अभी जारी है।)



























11 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुन्दर चित्रावली .
हालांकि डल झील तो डल ही लगी थी . इसी साल गए थे वहां .

Sachin tyagi ने कहा…

बढिया यात्रा; जोंक भी मनु भाई को ज्यादा पसंद कर रही है अन्त मे सुदंर चित्र भी मजे आ गए जाट भाई.

amitgoda ने कहा…

Van hi Jivan Hai

Vaanbhatt ने कहा…

nice presentation...

Ajay Kumar ने कहा…

Bhai Ji,,,,,, itne khatarnak photo mat khicha karo... (please see the photo No.18)

quetzalcoatl ने कहा…

Do bar Dharamshala gaya lekin is taraf kabhi nehi gaya... aglibar dekhunga...

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

bahut sunder ....

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

इतनी बारिश में कभी पहाड़ो का रुख नहीं करना चाहिए ...

kb rastogi ने कहा…

बहुत खूबसूरत यह जगह है। मै भी अपने आफिस के साथियो के साथ पूरी बस लेकर गया था और तब धर्मशाला में इन सभी जगहो पर जाना हुआ था।

MAHESH CHANDRA PALIWAL ने कहा…

बस अब नही रह पाऊंगा
जल्दी ही प्लान सम्भव है👍

Ravindra Singh ने कहा…

आपने हिमाचल में घूमने लायक जगह के बारे में बता कर बहुत अच्छी बात की है

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