इस सीरिज के अन्य भाग
बाइक पर हम दोनों कसकर बाइक पकडकर बैठे हुए थे और बाइक पहाड की तेज ढलान पर धीरे-धीरे चढने लगी। उस तेज चढाई पर बाइक का लगभग सारा जोर लग गया था। तेज ढलान पर बाइक चढाते समय कई बार ऐसा लगा था कि कही बाइक आगे से घोडे की तरह उठ तो नहीं जायेगी? लेकिन शुक्र रहा कि कोई अनहोनी घटना नहीं घटी जिससे बाइक आसानी से उस खतरनाक दिखने वाली तेज ढलाने पर चढ गयी थी। यहाँ बाइक चढाने के बाद मैंने रुककर पीछे मुडकर उस ढलान को काफ़ी देर तक निहारता रहा था। उसके बाद हम दोनों माँ-बेटा एक बार फ़िर अपने आगे की यात्रा पर बाइक पर सवार होकर चल दिये। कोई आधा किमी जाने पर एक दौराहा आता है जहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग धनौल्टी होते हुए चम्बा की ओर जाता है। जबकि सीधे हाथ नीचे की जाने वाला मार्ग देहरादून की ओर उतर जाता है जो कुछ आगे जाने पर मसूरी की ओर भी मुड जाता है अगर कोई देहरादून से सीधा धनौल्टी जाना चाहे तो उसे मसूरी में अन्दर घुसने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसे मसूरी के बाहर से ही धनौल्टी जाने के लिये सीधे हाथ पर तीन किमी पहले ही एक मार्ग मिल जायेगा। जहाँ से मसूरी बाई पास हो जाती है।
हम दोनों सीधे चम्बा वाले मार्ग पर चल पडे थे, यह मार्ग मसूरी से चम्बा तक पहाड के लगभग शीर्ष पर ही चलता रहता है जिससे कि मार्ग में दोनों तरफ़ के दिलकश नजारे देखते हुए कब सफ़र बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता? हम लगभग 18-20 किमी यात्रा कर आगे ही आये थे कि एक जगह कई वाहनों की लाईन लगी देखी, पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन जब मैं bike उन वाहनों से आगे ले गया तो बात समझ में आ गयी कि यह वाहन वहाँ क्यों खडे हुए थे? उन वाहनों से आगे ले जाकर मुझे भी अपनी बाइक रोकनी पड गयी। सडक पर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखायी दे रही थी। मैंने बाइक वही किनारे लगा कर पैदल ही आगे मोड तक, कुछ दूर तक देख कर आनी की सोची और मैं माताजी को बाइक के पास छोडकर आगे के मार्ग के हालात को देखने चल पडा था। लगभग तीन सौ मीटर जाने पर मैंने पाया कि मार्ग में हर सौ-दौ सौ मीटर के बाद लगभग 10-20 मीटर बर्फ़ पडी मिल रही थी। लेकिन बर्फ़ इतनी ज्यादा थी कि उसमें से कार भी नहीं निकल पा रही थी जिस कारण कार वाले पीछे ही रुके खडे थे।
दो मतवाले माँ-बेटे अपनी धुन के पक्के।
मैंने एक किमी जाने पर पाया कि इस मार्ग से इस प्रकार आगे बढते जाना बाइक से बहुत खतरनाक साबित हो सकता है और अब चम्बा यहाँ से केवल 30-32 किमी शेष बचा हुआ है यदि अब मैं यहाँ से वापिस देहरादून होते हुए चम्बा जाऊँ तो चम्बा की दूरी मुझे लगभग 150 किमी पड जायेगी। मैं इधर जाऊँ, कि वापिस जाऊँ, इसी उधेडबुन से सुलझने में लगभग एक घन्टा वही लग गया था। लेकिन कहते है ना किस्मत भी बहादुरों का साथ देती है कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी होने वाला था। एक बस चम्बा से मसूरी की ओर आ रही थी। बस देखकर मेरी जाट खोपडी ने तुरन्त इरादा कर लिया था कि मैं बाइक इस बस के पहियों से बनने वाली जगहों से होते हुए ले जाऊँगा। मैंने बस चालक से बर्फ़ के बारे पता कर लिया, बस वाले ने बताया था कि बर्फ़ लगभग 10-11 किमी लम्बाई में फ़ैली हुई है लेकिन बीच-बीच में सूखा भी है अत: अत्यन्त सावधानी से बाइक चलानी पडेगी। मैंने वहाँ बर्फ़ में अपना व माताजी का एक फ़ोटो एक कार वाले से खिचवा लिया था जो इस लेख में लगा रहा हूँ।
बाइक चलाने से पहले मैंने माताजी को कह दिया था कि मम्मी बाइक बर्फ़ में कई बार फ़िसल सकती है। अत: मैं तेज नहीं चलाऊँगा? जिससे कि बाइक सम्भल जायेगी। फ़िर भी आप बर्फ़ आते ही मजबूती से मुझे पकड लेना ताकि हम दोनों में से कोई भी बाइक के अचानक फ़िसलने से ना गिर पडे। मैंने धीरे-धीरे बाइक चलानी शुरु की शुरु-शुरु में तो बर्फ़ में बाइक चलाने में बडी मुश्किल आयी। पहली बार बर्फ़ में बर्फ़ के ऊपर बाइक चलानी पड रही थी। बीच-बीच में एक दो जगह बर्फ़ में अगला पहिया मोडना चाहता था तो वह बर्फ़ में सीधा चला जाता मुडने की जगह फ़िसल जाता था। कई बार ऐसा हुआ कि मैंने बाइक के अगले पहिये के ब्रेक लगाता तो बाइक का स्केटिंक स्कूटर बन जाता था। लेकिन बाइक की रफ़तार कम होने से ज्यादा समस्या नहीं आयी थी। एक दो बार मैंने पैरों से बाइक रोकनी चाही तो भी बाईक नहीं रुकी। उल्टे मेरे जूते स्केटिंग जूते बन गये थे। फ़िर भी धीरे-धीरे चलते-चलते हमने काफ़ी मार्ग पार कर लिया था। बीच-बीच में कई जगह मामला बडा पेंचीदा भी हो गया था। जहाँ हमें बाइक से उतर कर 20-30 मीटर की दूरी पैदल पार करनी पडी थी। कई बार हम बाल-बाल गिरते-गिरते भी बचे थे। लेकिन सही सलामत चलते रहे।
इस चित्र को ध्यान से देखो और बताओ कौन सा वाहन दिखायी दिया है?
धीरे-धीरे हम सुरकंडा देवी मन्दिर के आधार स्थल कददूखाल पर आ पहुँचे थे, हमने सोचा, चलो मन्दिर तक पैदल चला जाये, लेकिन थोडा सा ऊपर चलते ही समझ में आ गया कि मन्दिर तक इस भयंकर बर्फ़ में जाना समझदारी नहीं होगी। हम तीन सौ मीटर से ही वापिस लौट आये। बाइक स्टार्ट की और आगे चम्बा की ओर चल पडे। यहाँ से कुछ आगे चलने पर एक मार्ग नीचे सीधे हाथ की ओर उतरता है जो सीधे देहरादून ऋषिकेश मार्ग में जाकर मिलता है। लेकिन हमें तो चम्बा जाना था। इस तिराहे से आगे चलते रहने पर थोडा आगे जाने पर बर्फ़ वाला मार्ग समाप्त हो गया था। बर्फ़ ने लगभग 10-11 किमी जमकर तंग जरुर किया था, लेकिन बर्फ़ के कारण यह यात्रा आज भी ठीक ऐसे याद है जैसे कल की ही बात हो। तिराहे से आगे जाने पर सडक में ढलान आना शुरु हो गया था। यह ढलान चम्बा तक पूरे 20 किमी तक लगातार बना रहता है। सडक में लगातार ढलान जरुर है लेकिन सडक फ़िर भी पहाड के शीर्ष पर ही चलती रहती है। मैंने एक बार यह यात्रा स्वयं आल्टो कार चलाकर परिवार सहित दोहरायी हुई है जिसमें सुरकंडा देवी यात्रा भी की गयी थी। बताऊँगा कभी उस यात्रा के बारे में भी।
चम्बा पहुँचते-पहुँचते हमें दोपहर हो गयी थी। यहाँ से एक मार्ग ऋषिकेश जाता है एक नई टिहरी की ओर, एक गंगौत्री की ओर चला जाता है, हमें गंगौत्री वाले मार्ग पर ही जाना था। आधे घन्टे में खाना खाकर हम फ़िर से आगे की यात्रा पर चल दिये। यहाँ से टिहरी शहर के बेहद नजदीक से होकर, हम दोनों उतरकाशी की ओर बढते रहे। आगराखाल, चिन्याली सौड, धरांसू, डुण्डा होते हुए हम उतरकाशी पहुँच गये। जहाँ ज्ञानसू गाँव में छोटा भाई रहता था। दो साल पहले 1999 में भाई की डयूटी गंगौत्री पुलिस चौकी में ही थी। जबकि अब भाई की डयूटी उतरकाशी शहर में ही थी। उतरकाशी में जब हम भाई के घर जाने के लिये बाइक एक तरफ़ खडी कर पैदल चले तो हमें भाई के घर पहुँचने के लिये लगभग तीन सौ मीटर की जबरदस्त चढाई चढनी पडी थी। जिसे देखकर माताजी बोली थी, दो दिन में हम पूरे दिन बाइक पर बैठकर नहीं थके लेकिन यह 300 मीटर की चढाई मुझे थका देगी। अगले दिन हमने आराम किया उतरकाशी में काशी विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन किये।
उसके बाद अगले दिन हम वापिस दिल्ली आने के लिये
सुबह-सुबह बाइक पर सवार हो चल पडे। वापसी यात्रा वर्णन जिसमें पुरानी टिहरी शहर का एक दुर्लभ फ़ोटो भी है, इस यात्रा का आखिरी व अगले लेख में बताया जायेगा।
12 टिप्पणियां:
संदीप भाई जय राम जी की, बर्फ में बाइक चलाना बहुत ही हिम्मत, और अनुभव का काम हैं. पर जब माँ का आशीर्वाद साथ हो तो सभी कठिन राहे सरल हो जाती हैं. वन्देमातरम....
बहुत ही रोचक यात्रा वृत्तान्त..
सुन्दर -
पूज्य ।
सादर नमन ।।
राम राम संदीप भाई . बढ़िया हो रही है यात्रा . फोटो में वाहन है बस . क्या सही है ?
संदीप भाई माताजी के साथ बर्फीले रास्ते का फोटो दुर्लभतम है । पहले तो आज तक मैने मां बेटी की घुमक्क्डी पढी नही कहीं ना देखी । पर हो सकता है कोई और हो पर नेट पर तो कहीं नही । उपर से जिस जगह का आपने वर्णन किया वो भी बर्फ में पहली बार देखी । ये फोटो खिंचवाकर कार वाले से आपने बहुत बढिया किया ।
एक कहावत सुनी थी याद आ गई -हिम्मते मर्दाँ मददे ख़ुदा !
Can I use some of the content from your site on mine? I will make sure to link back to it :)
संदीप भाई राम -राम ....बहुत ही मज़ेदार और साथ मे बहुत ही रोमांचिक यात्रा की है , आपने माता जी के साथ वो भी बाइक पर ! माता जी हौंसले की दाद देनी पढ़ेगी !इतनी वीर माता को सत-सत परणाम !
चित्र में स्पष्ट ही "बस" है। चम्बा के खीरे अलग ही टेस्ट देते हैं। वैसा टेस्ट और कहीं नहीं मिला। पुराना टिहरी देखा था ...नया देखने का अवसर नहीं मिलपाया। पर आप अपनी आँखों से दिखा सकते हैं।
अरे जाट भाई जैसा आप ने लिखा यह बहुत खतरनाक यात्रा थी, एक तो इतनी बर्फ़ ओर फ़िर पहाडी ओर अगए एक बार बर्फ़ से फ़िसल गये ओर ढलान की तरफ़ फ़िसले तो आप खुद सोच ले, मां भी हिम्मत वाली हे जो तीन दिन वाईक पर बेठ गई ओर ऎसे ऎसे खतरनाक रास्तो पर, हां उस फ़ोटो मे जिस वाहन के बारे आप ने पुछा हे वो एक बस हे...
बहुत खूब जाट देवता जी ,
एक ब्लाग के द्वारा आपके ब्लाग पर आना हुआ और जो हम नोकरी करते समय घूमने का कार्य नही कर सकते है वह आज जब आपकी ये पोस्ट पढी तो लगा जैसे आप नही हम ही भ्रमण कर रहे है और ऐसे विचार उत्पन्न हुये माना हम इस ब्लाग को पढ नही रहे बल्की यह हमारे गाईड का कार्य कर रहा है और तनीक भी देरी इसे ज्वाईन करने मे नही की
मेरे द्वारा संचालित ब्लाग को भी ज्वाईन करे तो खुशी होगी www.yunik27.blogspot.com
आप दोनों की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी ....सब गुण माँ से मिले हैं आपको ...अब समझ में आ रहा है
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