भीमताल, नौकुचियाताल, देखने के लिये यहाँ क्लिक करे।
पहले लेख में मैंने बताया था कि अब सातताल मुश्किल से 200 मी की दूरी पर ही है, अब वहाँ से आगे। यहाँ से सडक के किनारे सीधे हाथ की ओर एक पैदल मार्ग नीचे की ओर जाता दिखाई दे रहा था। जबकि सडक दूसरी ओर मुड गयी थी चूंकि पहाडों में ऐसा होता ही है कि पैदल मार्ग सडक मार्ग के मुकाबले काफ़ी छोटा होता है अत: यहाँ भी मैंने सडक छोड कर पैदल मार्ग पर चलना शुरु किया ही था कि मुझे एक ऊँचे से पत्थर पर कुछ लोग रस्सी बांधकर चढने में लगे हुए थे। यहाँ पर राक क्लाईमिंग की जा रही थी। कुछ देर तक उनको देखने के बाद, मैंने फ़िर से अपनी मंजिल की ओर चलना शुरु कर दिया था। यह पैदल मार्ग मुझे एक बैरियर के किनारे ले आया था। यहाँ बैरियर से इस स्थान पर आने वाले वाहनों से शुल्क लिया जा रहा था। मेरे पास तो वाहन था ही नहीं अत: मैं तो अपनी ग्यारह नम्बर की गाडी से आगे की ओर चलता रहा। अरे हाँ एक बात तो रह ही गयी थी कि इस बैरियर पर आते ही मैं सातताल झील के किनारे आ गया था। यहाँ बैरियर से ही सडक झील के किनारे-किनारे ही होकर आगे जा रही है। कुछ आगे जाने पर मैंने देखा कि कोई 20-25 स्कूल/कालेज या किसी संस्थान के युवक-युवती इस झील में अपनी-अपनी नाव लेकर झील की सैर करने की तैयारी करने में लगे थे। मैं कुछ दूर तक इन्हें देखता रहा उसके बाद मैं आगे की ओर चलता रहा।
ऊँचाई से एक और फ़ोटो।
थोडी दूर आगे जाने पर एक घोडे वाला मिला यकीन मानिये घोडे वाला ही था नहीं तो पहाडों में तो खच्चर ही भरे पडे है। यहाँ उस घोडे वाले ने कहा "भाई जी घोडे पर सैर करोगे" यह सुनकर अपना माथा ठनका। मैंने कहा देख भाई वो सामने पहाड दिखाई दे रहा है मैं भीमताल से उसी पहाड के ऊपर से पैदल होता हुआ आ रहा हूँ क्या आपको लगता है कि मैं आपके घोडे पर सवारी करूँगा, भले ही शौक के लिये ही, वैसे आप सब की जानकारी के लिये बताना चाहता हूँ कि आजतक मैंने पहाडों पर घोडे का प्रयोग नहीं किया है। घोडे वाले से बाते हो ही रही थी कि तभी अचानक तेज बारिश होने लगी। मैं अपने साथ छाता भी लेकर नहीं आया था लेकिन शुक्र रहा कि सामने ही झील किनारे बैठने के लिये कुछ ठिकाने बने हुए थे जिन पर ऊपर छत भी बनी हुई थी। अत: मैं उनमें से एक ठिकाने में जा घुसा। बारिश भी लगता था कि पूरी तरह ठान कर आयी थी जो रुकने का नाम नहीं ले रही थी। पूरे ढाई घन्टे बरसने के बाद बारिश का वेग कुछ कम हुआ तो अपनी जान में जान आयी नहीं तो लगने लगा था कि आज बारिश का ये हाल रहा तो रात यही बितानी पडेगी। बारिश में वैसे मैं तो एक जगह ही जम कर बैठा हुआ था लेकिन कालेज के युवक-युवती बारिश में भी नाव पर सवारी करते हुए अपनी-अपनी नाव लेकर मौज कर रहे थे। उन सभी में एक प्रतियोगिता चल रही थी जिसमें एक युवक विजयी रहा था। इन सबको सिखाने वाले प्रशिक्षक भी पूरी तरह मस्ती के मूड में थे। इन सब पर बारिश का कोई प्रभाव नहीं पड रहा था।
बच्चों के लिये बहुत कुछ है यहाँ पर।एकदम शान्त जल।
आखिरकार बारिश रुक गयी। मैं तो था ही इसी इन्तजार में तुरन्त वहाँ से उठा, कुछ आगे चलते ही बच्चों के खेलने के लिये बहुत सारे झूले लगाये गये थे। यहाँ आकर एक बार मुझे लगा कि यह जगह बच्चों के लिये हर तरह से काम की है यहाँ झील है नाव है रात को रुकन के लिये सरकारी आवास है सामने ही गढवाल निगम का आवास है। बच्चों के खेलने के लिये समय बिताने के लिये इससे बेहतर जगह नैनीताल क्षेत्र में मुझे दिखाई नहीं दी। अगर आप में से कोई यहाँ नहीं गया है तो परिवार को साथ लेकर जाये आपके साथ आपके बच्चे भी इसे पूरा एन्जाय करेंगे। यहाँ मैंने बच्चों के लिये कई प्रकार के झूले देखे थे। घुडसवारी के लिये घोडे तो थे ही। एक रोमांचक खेल झील में एक स्थान पर जहाँ चौडाई कुछ कम थी दोनों किनारों पर मोटे व लम्बे रस्से बाँध कर रोपवे की तरह बनाया हुआ था। जिस पर किसी भी बन्दे को वो चाहे छोटा हो या बडा लडका हो या लडकी हर कोई उसका आनंद उठा सकता था। ठीक इसी प्रकार से पहाडों में ज्यादातर जगह पर सामान व मानव नदी पार करने के लिये इसी तरीके को प्रयोग में लाते रहे है। यहाँ आपके मनपसंद भोजन के लिये भी कई भोजनालय है इनका थाली का मूल्य भी ठीक-ठाक ही है लेकिन झील किनारे बैठकर खुले में खाना व रात्रि में यहाँ पर रहना एक अलग ही अनुभव देता है। इन दुकानों व खेलों के कुछ आगे चलते ही ढेर सारी नाव आपके इंतजार में तैयार मिलती है जिसमें बैठकर आप उस झील में लम्बी यात्रा कर सकते है जो हमें पहाड के ऊपर से दिखाई दे रही थी। यहाँ के पहाड चारों ओर से पेडों से घिरे हुए है। जिससे कभी भी यहाँ आकर ऐसा नहीं लगता है कि हम किसी शहरी वातावरण में यात्रा कर रहे है।
झील में मस्ती करते लोग।बारिश के दौरान लिया गया फ़ोटो है।
अब कुछ बाते इस सात ताल झील के बारे में यह झील उत्तराखंड के नैनीताल से मात्र 23 किमी दूर एक बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। कुमाऊँ क्षेत्र के सभी तालों में यह ताल सर्वोत्तम है। नल-दमयंती ताल, गरूड़ ताल, राम ताल, लक्ष्मण ताल, सीता ताल, पुर्ण ताल, सुखा ताल यहाँ की ताल है। यह सात छोटी-छोटी झीलों का समूह सात-ताल भवाली से मात्र 12 किलोमीटर के आसपास है। नैनीताल से आते समय भवाली से सीधे हाथ की ओर मुडना होगा। सात-ताल तक पहुँचने के लिए भीमताल से भी मार्ग बन गया है। भीमताल से महारा गाँव होते हुए 'सातताल' की सडक से दूरी केवल 7 किमी है। इस ताल के चारों ओर एक पक्का पैदल मार्ग बनाया गया है, प्रत्येक कोने पर बैठने के लिए सुन्दर व्यवस्था की गयी है। यह ताल देखने के हिसाब से बहुत ही अच्छी जगह पर है। यहाँ पर नौकुचिया देवी का मन्दिर भी है। इसकी लम्बाई 19 मीटर है, चौड़ाई 315 मीटर और गहराई 150 मीटर तक बतायी गयी है और यह समुद्र तल से 1300 मी की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ रात में ठहरा के लिये कई बिस्तर वाला एक आवास गृह भी बनाया हुआ है।
झील के तल के पास जाकर लिया गया फ़ोटो है।
गलत मार्ग पर जाने पर यह नजारा दिखाई दिया था।
इस ताल पर कई घन्टे बिताने के बाद मैंने यहाँ से अपने ठिकाने भीमताल के ऒशो आश्रम की ओर पैदल ही चलना शुरु कर दिया था। बारिश रुकने के बाद मौसम बडा सुहावन हो गया था। जब मैंने घोडे वाले से बात की थी तो उसने बताया था कि आप जिस मार्ग से आये हो उसके अलावा भी एक और पैदल मार्ग और जिस पर सडक मार्ग बनाने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। अबकी बार मैंने उस घोडे वाले के बताये मार्ग से जान की ठान ली थी। झील से वापसी में मैं उसी चट्टान के पास से होता हुआ ठीक उसी जगह पर आ गया था, जहाँ से यहाँ आते समय मैंने यह सडक देखी थी। यहाँ कुछ दूर सडक पर चलते हुए एक छोटा सा मोड पार करने के बाद एक पगडंडी मुझे ऊपर जाती हुई दिखाई दी मैंने सडक छॊड दी और उस पैदल मार्ग की ओर चल पडा था लेकिन मुझे कुछ सौ मीटर आगे जाते ही यह अहसास होने लगा था कि यह मार्ग जिस पर मैं जा रहा हूँ एक आम पैदल मार्ग नहीं है क्योंकि यहाँ मुझे तंग झाडियाँ से होकर निकलना पड रहा था और सबसे बडी बात नीचे मार्ग में साफ़ सफ़ाई नहीं थी बल्कि पत्थर उल्टे सीधे पडे हुए थे। कुछ और आगे जाने पर मैंने पाया कि मैं किसी पैदल मार्ग पर नहीं हूँ बल्कि मैं बारिश के पानी के बहाव के मार्ग पर था पहाडों में पानी के बहने से ऐसे बहुत से मार्ग जैसे बन जाते है जो हमें पैदल मार्ग जैसे दिखाई देते है। मैं भी पूरा ऊँत खोपडी का जाट मैंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि आगे कुछ मिलेगा या नहीं। यहाँ कोई आधा किमी चलने पर मुझे एक कच्ची-पक्की सडक दिखायी दी। इस सडक पर आने के बाद एक समस्या आ गयी अब यह समझ नहीं आ रहा था कि मुझे जाना किस ओर है।
कुछ देर सोचने के बाद मैंने पहाड की उतराई की ओर चलना शुरु कर दिया था। लेकिन थोडा आगे जाने पर नीचे की ओर एक झील का शानदार नजारा दिखाई दिया तो इस मार्ग पर आने का गम नहीं रहा। यहाँ से कुछ आगे जाने पर देखा कि जिस सडक पर मैं चला आ रहा था वो समाप्त हो गयी है। अब मेरे पास वापस जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस सडक पर वापस आते हुए यह सडक दो तीन घरों के बराबर से होती हुई एक बडी सडक में जा मिली। यहाँ पर मुझे दो-तीन लोग मिले जिन्होंने मुझे बताया कि सामने जा रही सडक पर कुछ आगे जाने पर सीधे हाथ एक मार्ग नीचे जाता हुआ दिखाई देगा बस उसी पर उतरते जाना है। मैं उनके बताये मार्ग पर उतरता चला गया यह मार्ग अब तक पक्का बन गया होगा। यहाँ एक गाँव से होता हुआ एक ऐसी जगह पहुँचा जहाँ एक पुल का निर्माण कार्य चल रहा था। यहाँ आकर एक बार फ़िर से हल्की हल्की बारिश शुरु हो गयी। कुछ देर एक दुकान पर रुकना पडा, थोडी देर में बारिश रुक गयी। यहाँ से मैंने चलते हुए भीमताल के इलाके में प्रवेश किया।
इस स्थल पर कितनी गजब की बात लिखी हुई है?
भीमताल में आकर नारियल का स्वाद लिया जा रहा है।
शाम के चार बजने वाले थे। मैं आराम से टहलता हुआ लगभग शाम के पाँच बजे तक भीमताल के ऒशो आश्रम पहुँच चुका था। भीमताल के आसपास के सारे ताल तो देख लिये थे अब बारी थी नैनीताल को देखने की जिसके लिये मुझे यहाँ से विदा होना था यानि अब इस ओशो आश्रम को छोडने की बारी आ गयी थी अब समस्या यह थी कि मेरे साथ अन्तर सोहिल व उनके दोस्त अभी यहाँ से जाने के मूड में नहीं थे। आज की आखिरी रात मैंने एक बार फ़िर भीमताल की ठन्डी हवा में बिताने की सोच कर किनारे जा बैठा।
अगले भाग में नैनीताल की सैर करने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
भाग-09-नैनीताल की सबसे ऊँची चाइना पीक/नैना पीक की ट्रेकिंग।
भाग-10-नैनीताल से आगे किलबरी का घना जंगल।
भाग-11-नैनीताल झील में नाव की सवारी।
भाग-12-नैनीताल से दिल्ली तक टैम्पो-ट्रेन यात्रा विवरण।
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ताल ही ताल।
21 टिप्पणियां:
प्रकृति न जाने कितने सुन्दर रूप छिपाये है..
आभार ||
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी। होली की अग्रिम शुभकामनाएं
जय हो जाट देवता की.
जय हो राजू पेंटर की.
सुन्दर चित्रो के साथ पढकर आनंद
आ गया जी.
आप सभी को होली की बहुत बहुत बधाईया, मैं भीम ताल तो कई बार गया हूँ, लेकिन सात ताल कभी नहीं गया, अब आपने सात ताल भी घुमा दिया, बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद्.
इतने सुन्दर फोटो
बहुत देर से दिखाये आपने
धन्यवाद
Nature Nature Nature....very nice
bahut hi sunder aur aur kya kahoon
बढ़िया विवरण !
लेकिन यूँ अकेले पहाड़ों में घूमना क्या सही है !
ऐसा तो अंग्रेज़ भी नहीं करते .
सात ताल से सम्बंधित इसके पहली वाली पोस्ट भी पढ़ी...दोनों ही खूबसूरत हैं!
अरे मेरी टिपण्णी कहं गई ? इतनी मेहनत से लिखी थी....भाई जाट देवता अगर यह सब नेनीताल के आसपास हे तो मै यहां १९८८ मे घुम चुका हुं, नयी नयी शादी हुयी थी, इस लिये मेरा ध्यान तालो से ज्यादा गालो पे था, आज आप दुवारा खिचे सुंदर सुंदर चित्र ओर विस्तार से सभी तालो के बारे पढ कर याद आ गया, फ़ोटू तो मैने भी बहुत खींचे थे, लेकिन तालो के नही, तुम्हारी भाभी के ही खींचता रहा, धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये ओर सुंदर चित्रो के लिये
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - मिठाई के नाम पर जहर का कारोबार - ब्लॉग बुलेटिन
वृहद् वर्णन...सातताल और भीमताल के बारे में ज्ञान बढ़ाने के लिए...धन्यवाद...अधिकांश लोग नैनीताल की झील की विशालता देख के मुग्ध हो जाते हैं...पर सात ताल की बात ही कुछ और है...उस पर आपका ये रोमांचक सफ़र...सुभानल्लाह...
खूबसूरत तस्वीरें। जाटदेवता को नारियल खाकर गुजारा करना पड़ा, आईसक्रीम का भोग मयस्सर नहीं हुआ क्या? :)
पढकर मन को आनंद और फ़ोटो देखकर आंखों को सुकून मिलता है हमेशा जब भी आपकी पोस्ट पर आते हैं । घुमक्कडी जिंदाबाद
टोल टैक्स और पाकिंग शुल्क, ये दो चीजें मुझे हमेशा से बड़ी खराब लगती हैं.
कुदरत के शानदार नज़ारे परोसती है आपकी हर यात्रा .सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ .सुन्दर छवि उकेरतें हैं आप कुदरत की प्राकिर्तिक सौन्दर्य की मेरे देश की विविधता की ,जाँबाज़ी की .
होली मुबारक .
होली का पर्व मुबारक हो !
शुभकामनाएँ!
जिनमें जुनिया में आकर दुनिया देखने की प्रबल इच्छा होती है वे आम आदमी के मुकाबले अधिक जीवट वाले और जिजीविषा वाले होते हैं. आपका यात्र वर्णन बहुत सुंदर है.
कालेज के युवक युवती तीन बार लिखा लेकिन चित्र नहीं खिंचा .
सर पर गरम टोपी पर स्वेटर नहीं टी शर्ट में ही
मीठा नारियल .
होली हे होली हे
sarvesh n vashistha
भाटिया जी, बालकों को बिगाडोगे क्या??
सन्दीप भाई अब अपनी वाली को भी ले जाया करेंगे और फोटो खींचते टाइम कहा करेंगे कि ओनली गाल।
हर बार की तःरह इस बार भी बहुत सुन्दर जिवंत विवरण.....
आपको तथा सभी ब्लॉगर बंधुओं को होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं......
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