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नैनीताल का स्नोव्यू पोइन्ट SNOW VIEW POINT तो देख लिया, जबकि मैं इस स्थल को देखने के लिये नहीं आया था, मैं तो नैना पीक NAINA PEAK इसे चाइना पीक CHINA PEAK भी कहते है इसकी समुन्द्र तल से ऊँचाई 2615 मी है को देखने की इच्छा थी। वापसी में नैना पीक की ओर आते समय सडक किनारे दो तीन लोग एक मोड पर कुकडी यानि कि भूट्टे भून-भून के उस पर काला नमक व नीम्बू लगा कर बेच रहे थे। जिन लोगों ने इस प्रकार के आग में भूने हुए भूट्टे खाये होंगे उनके मुँह में तुरन्त पानी आ गया होगा। मैंने 15 रुपये वाला एक बडा सा भूट्टा देशी भाषा में बोले तो कुकडी खाने के लिये ली। हमारे गाँव में तो इसे कुकडी ही बोले है आप लोगों के यहाँ कुछ और बोलते होंगे। मैं स्वाद ले-ले कर कुकडी खाता रहा, साथ ही पैदल चलने में भी लगा रहा। मुश्किल से दो किमी भी नहीं चला था कि एक मोड पर एक बोर्ड दिखाई दिया जिस पर लिखा था कि नैना देवी पैदल मार्ग दूरी मात्र तीन किमी। अरे केवल तीन किमी जबकि मैं समझा था कि नैना देवी अभी 5-6 किमी तो होगा ही। जहाँ से यह पैदल मार्ग शुरु होता है ठीक वही पर उल्टे हाथ की ओर एक चाय की दुकान है, मैंने कुछ देर उस दुकान पर बैठने की सोची। दुकान वाले ने मुझसे पूछा कि नैना पीक जाओगे। मैंने कहा हाँ क्यों मार्ग बन्द है क्या? मैंने मार्ग बन्द होने के बारे में इसलिये कहा क्योंकि मुझे वहाँ बैठे-बैठे लगभग आधा घन्टा हो गया था लेकिन कोई भी उस पैदल मार्ग से जाना वाला दिखाई नहीं दिया था। चाय वाले ने बताया कि आज मौसम साफ़ नहीं है इसलिये आज अभी तक दो तीन लोग ही ऊपर गये है। चाय वाले ने बातों बातों में बताया कि यह पैदल मार्ग यहाँ से नहीं बल्कि नीचे से ही यहाँ तक आया है। जब मैंने कहा कि मैं भी नीचे से ही पैदल ही आया हूँ तो वो मानने को तैयार नहीं था जब उसको कैमरे से फ़ोटो दिखाये तो उसकी बोलती बन्द। एक जवान फ़ौजी अपनी नई नवेली फ़ौजन के साथ वहाँ आया, फ़ौजी तो नैना पीक जाना चाहता था लेकिन फ़ौजन को तीन किमी की पैदल चढाई के नाम से ही साँप सा सूंघ गया था।
लो जी देख लो कुछ ऐसा मार्ग है।
आधे घन्टे बाद मैंने अपना बैग उठाया व पहाड के पैदल मार्ग पर चढाई शुरु कर दी। थोडी दूर जाने पर ही मेरी समझ में आ गया कि क्यों लोग इस चढाई के नाम से थोडा सा घबराते है वैसे चढाई कोई भयानक नहीं है मार्ग बडा अच्छा बनाया हुआ है। मुझे तो इसी प्रकार के मार्ग कुछ ज्यादा ही पसन्द आते रहे है। जो लोग अभी तक यहाँ नहीं गये है उनकी जानकारी के लिये बता दूँ कि तीन किमी का पैदल मार्ग पारिवारिक रोमांच के लिये बहुत बढिया है। मैं अपनी मस्त चाल से, मेरी मस्त चाल के बारे में सुन लो मेरी मस्त चाल व होती है जो मैं आमतौर पर हर जगह प्रयोग में लाता हूँ यानि कि पहाड हो, मैदान हो, उतराई हो, खाई हो, पेट भरा हो खाली हो उससे मुझ पर कोई फ़र्क नहीं पडता है मेरी चाल हर जगह एक समान सी ही रहती है। बस थोडा सा उतराई पर जरा ध्यान से उतरता हूँ क्योंकि उतराई पर कई बार फ़िसलकर चोट खा चुका हूँ। जैसे-जैसे पैदल मार्ग ऊपर की ओर चढता रहता है। मन में कई बार बुरे-बुरे से ख्याल आने शुरु हुए कि अगर किसी मोड पर कोई जंगली जानवर मिल गया तो लेकिन बेचारे जंगली जानवर जिन्हे हम जैसे मानव जाति के जंगली व जानवर कहते है उनके दिल से पूछ कर देखो, जिनके घर(जंगल) हम लोगों (मानव) ने काट छाँट कर अपने खेत व घर बना लिये है। कुदरत की मार बडी भयंकर होती है जब तब कुदरत चाहती है एक झटका देती है और हजारों लोगों का पता साफ़ हो जाता है ऐसा पूरे वर्ष में संसार में कई जगह हो जाता है लेकिन मानव जाति सुधरे तो बात बने।
चोटी पर जाकर यह पेड आपको जरुर मिलेगा।
मैं अकेला अपनी धुन में बढता जा रहा था कि एक मोड पर कुछ ढेर सारे वानर नजर आये। मैं अकेला वे लगभग 50 की संख्या में तो रहे होंगे। मैं जैसे-जैसे उनके पास पहुँच रहा था वानरों का समूह कुछ सावधान सा होता महसूस हो रहा था। पहाड में पाये जाने वाले लंगूर काफ़ी सीधे होते है लेकिन बन्दर के बारे में कुछ भी कहना सही नहीं होगा कि कब उनका दिमाग बिगडे और वो आप पर हमला कर दे। बन्दर अचानक से डराते है व हमला करते है इसलिये मैं पूरी तरह सावधान था। मैंने उनसे बचने के लिये कुछ पत्थर हाथ में उठा लिये ताकि अगर कोई बन्दर गुस्ताखी करे तो उसका उसी की भाषा में जवाब दिया जा सके। मैं भी बिल्कुल शांत व चौकन्ना होकर उनके बीच से निकल रहा था। जब मैंने उनको पार कर लिया तो अपना दिमाग कुछ शान्त हुआ। मैं चलता रहा बीच में एक जगह जाकर मार्ग दो भागों में बँट गया अब अपनी खोपडी खराब कि यार अच्छा आये इस जगह ना कोई बोर्ड ना कोई निशान अब जाये तो जाये कहाँ? पहले मैंने लोगों के पैरों के निशान देखकर अंदाजा लगाने की कोशिश की, लेकिन उस जगह पर मार्ग पथरीला था मुझे कोई भी कैसा भी हाथ-पैर का निशान दिखाई ना दिया। आखिरकार मैंने सीधे हाथ वाले मार्ग को कुछ दूर तक देखने की सोची, मैं उस मार्ग पर मुश्किल से 100 मी तक ही गया था कि मेरी समझ में आ गया कि यह वाला गलत है। अत: मैं वापिस उसी जगह पर आया जहाँ पर दो मार्ग मिले थे मैंने सीधे वाले मार्ग पर चलना शुरु कर दिया। जैसे जैसे यह मार्ग आगे बढता रहा अपनी दिमागी परेशानी भी बढनी लगी।
ऊपर वाला फ़ोटो इसके दूसरे किनारे का है।
हुआ ऐसा कि जिस पैदल मार्ग पर मैं जा रहा था आगे जाने पर वह मार्ग, मार्ग ना रहकर बरसात के पानी बहने के मार्ग में बदल चुका था। चूंकि पैदल चलने लायक अच्छा मार्ग था अत: मैं भी चलता रहा। जैसे-जैसे ऊँचाई बढती जा रही थी पेडों का जंगल भी घना होता जा रहा था। बीच में एक बार लगा कि पहाड की चोटी पर आ गया हूँ लेकिन मार्ग अब भी आगे जा रहा था। तभी बारिश भी शुरु हो गयी, ऊपर वाले का शुक्र रहा कि बारिश हल्की फ़ुल्की ही थी लेकिन मुझे गीला करने के लिये बहुत थी। अत: मैंने अपना पन्नी वाला बुर्का निकाल लिया, पन्नी वाला बुर्का बिल्कुल मुल्लन के बुर्कों जैसा ही होता है फ़र्क सिर्फ़ इतना होता कि मुल्लनों को उन बुर्कों को जीवनभर पहनना होता है, रही बात घुमक्कड वाले पन्नी के बुर्के की तो यह कोई भी पहन सकता है यह हमेशा भी नहीं पहना होता है सिर्फ़ तभी जब बारिश हो रही होती है। पन्नी वाला बुर्का दाम में भी ज्यादा नहीं होता है मुश्किल से 20-30 रु का आ जाता है। बैग में रखने में आराम कैसे भी मोड-तोड लो इस पर कोई फ़र्क नहीं पडता है। यह पन्नी का बुर्का बाइक पर भी बहुत काम आता है आपने कैसी भी रैन कोट पहनी हो, आप उसमें जरुर भीग जाओगे, लेकिन यह बुर्का भी कमाल की चीज है जो कम पैसों में ज्यादा काम आता है।
अब खा ही लू क्या पता कौन बीच में टपक जाये।
मैं पहाड पर चढ ही रहा था कि मेरा मोबाइल बजना शुरु हो गया, मैंने बारिश से बचने के लिये उसको भी एक पन्नी में लपेट कर बैग में डाल दिया था। पहली बार बजने पर मैंने काल रिसीव नहीं की लेकिन जब मोबाइल दुबारा बजना शुरु हुआ तो मुझे मोबाइल बैग से निकालना ही पडा। मोबाइल में देखा तो अन्तर सोहिल मुझे फ़ोन करने में लगे पडे थे। अन्तर सोहिल व उनके दोस्त को मैं सुबह भीमताल में ही छोड आया था। अन्तर सोहिल ने कहा जाट देवता कहाँ हो मैंने कहा कि नैना पीक पहुँचने वाला हूँ। अन्तर सोहिल ने बताया कि वे भी भीमताल से चल दिये है अभी भुवाली आ गये है। मैंने कहा ठीक है आ जाओ मैं तुम्हे नैना पीक जाने वाले पैदल मार्ग पर जहाँ यह सडक पर मिलता है एक चाय की दुकान है उसी पर बैठा मिलूँगा। थोडी देर बाद मैं नैना पीक पर पहुँच चुका था। चोटी पर आकर देखा तो चारों ओर कोहरा छाया हुआ था। यहाँ देखने को तो कुछ खास नहीं मिला लेकिन यहाँ आना भी मजेदार रहा। चोटी पर वन विभाग का वायरलैस रिले केन्द्र था जिस पर वायर लैस पर बार-बार आवाज आ रही थी। वहाँ पर एक कर्मचारी डयूटी पर उपस्थित था, मैंने उससे वहाँ के बारे में काफ़ी जानकारी ली। वो उस समय अकेला था मुझे वहाँ पाकर उसे भी बहुत अच्छा लगा था। मुझे तो पूरे मार्ग में कोई मानव जाति का प्राणी नहीं मिला था।
यहाँ से नैनीताल का सारा नजारा दिखाई देता है।
देखा है ऐसा शानदार मस्त नजारा।
उसने मुझे बताया कि यहाँ से हिमालय की कई चोटियाँ दिखाई देती है, लेकिन आज तो मौसम बहुत ही खराब है अत: आज तो बिल्कुल भी सम्भव नहीं है। उसने मुझे एक पेड के नीचे एक चार फ़ुट की दीवार दिखाई जिस पर तांबे की पलेट लगी हुई थी जिस पर सामने दिखायी देने वाली चोटियों के बारे में जानकारी दी हुई थी। मैंने उस व्यक्ति से पीने का पानी माँगा तो उसने मुझे पीने का पानी तो दिया ही साथ ही कहा कि वह मैगी भी बनाता है ताकि अगर यहाँ आकर किसी को भूख लगी हो तो मैगी खा सके। वहाँ पीने के लिये पानी की व ठन्डे की बोतलों का इन्तजाम भी किया हुआ था। मैंने अपने लिये एक मैगी बनायी ऐसी पैदल यात्रा पर गर्मा-गर्म मैगी खाने का अपना अलग ही आन्नद है। मैगी खाकर मैंने उससे उस चोटी पर कुछ और जगह के बारे में पता किया तो उसने कहा कि मौसम खराब है नहीं तो इस झोपडी से थोडा आगे 5 मिनट पैदल चलकर इस पहाड का आखिरी किनारा आ जाता है जहाँ से नैनीताल का शानदार नजारा दिखाई देता है। मैंने तुरन्त वो जगह देखने की सोची, मौसम भले ही खराब हो कम से कम वो पोइन्ट तो देख ही सकते है। जब मैं उस जगह पर पहुँचा तो पहाड से नीचे का तो कुछ दिखाई नहीं दिया लेकिन पहाड के ऊपर ही इतना शानदार नजारी दिख गया कि यह यात्रा सफ़ल हो गयी। इस जगह को देख कर वापिस वन विभाग की उसी लकडी की झोपडी में आया जहाँ पर मैंने मैगी खायी थी। उसके पैसे दिये अपना बैग उठाया और दुबारा आने की सोच वापिस चल पडा। वापसी में चलते ही तीन लोग मिले, उन्होंने पूछा कि चोटी कितनी दूर है मैने कहा 100 मी से भी कम। मार्ग में जाते समय जहाँ बन्दर मिले थे वापसी में एक भी नजर नहीं आया था। मैं अपनी चाल से आधे घन्टे में ही उसी चाय की दुकान पर आ गया जहाँ से मैंने यह तीन किमी की चढाई शुरु की थी।
यहाँ आकर मुझे अन्तर सोहिल व उनके दोस्त की प्रतीक्षा करनी पडी। ये दोंनों दारु के पक्के दीवाने। जिसके बारे में अगले भाग में किलबरी देखने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से भीमताल की मुश्किल यात्रा।
भाग-02-भीमताल के ओशो प्रवचन केन्द्र में सेक्स की sex जानकारी।
भाग-03-ओशो की एक महत्वपूर्ण पुस्तक सम्भोग से समाधी तक के बारे में।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-05-नौकुचियाताल झील की पद यात्रा।
भाग-06-सातताल की ओर पहाड़ पार करते हुए ट्रेकिंग।
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ताल ही ताल।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से भीमताल की मुश्किल यात्रा।
भाग-02-भीमताल के ओशो प्रवचन केन्द्र में सेक्स की sex जानकारी।
भाग-03-ओशो की एक महत्वपूर्ण पुस्तक सम्भोग से समाधी तक के बारे में।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-05-नौकुचियाताल झील की पद यात्रा।
भाग-06-सातताल की ओर पहाड़ पार करते हुए ट्रेकिंग।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
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ताल ही ताल।
19 टिप्पणियां:
ज्ञानवर्द्धक पोस्ट ..
आपकी यात्रा यूं ही चलती रहे ..
शुभकामनाएं !!
वर्णन करने के तरीके ने बाँध दिया, हर लाइन में रोमांच. मजा आ गया.
वहाँ, बस मैगी का सहारा रहता है।
संदीप जी, आपकी चाइना पीक चोटी की यात्रा के बारे में पढ़कर मुझे अपने १९८३ में इस चोटी की यात्रा की याद आ गयी, मेरे मामा नैनीताल में रहते थे, में उनके यंहा छुट्टियों में गया था, २ महीने वंहा पर रहा था, चाइना पीक जाने का प्रोग्राम बना था, पर मामा के लड़के सब फेल हो गए थे, फिर में अकेला ही गया था, जाने में और आने में केवल एक प्रताप गढ़ का परिवार साथ में मिल गया था, खुला मौसम था, ऊपर से पूरा नैनीताल बहुत खुबसूरत दीखता हैं, और वे चोटिया भी दिखती हैं, उस समय वंहा पर केवल चाय मिलती थी. और कुछ भी नहीं था.
संदीप जी, आपकी चाइना पीक चोटी की यात्रा के बारे में पढ़कर मुझे अपने १९८३ में इस चोटी की यात्रा की याद आ गयी, मेरे मामा नैनीताल में रहते थे, में उनके यंहा छुट्टियों में गया था, २ महीने वंहा पर रहा था, चाइना पीक जाने का प्रोग्राम बना था, पर मामा के लड़के सब फेल हो गए थे, फिर में अकेला ही गया था, जाने में और आने में केवल एक प्रताप गढ़ का परिवार साथ में मिल गया था, खुला मौसम था, ऊपर से पूरा नैनीताल बहुत खुबसूरत दीखता हैं, और वे चोटिया भी दिखती हैं, उस समय वंहा पर केवल चाय मिलती थी. और कुछ भी नहीं था.
सुन्दर ।
प्रभावी प्रस्तुति ।।
हर लाइन में रोमांच ||
दिल्ली की कुछ लड़कियां लेह तक मोटर साइकिल से
यात्रा की.
आपकी लेह यात्रा दुबारा पड़ी
पेड़ के नीचे बैठ कर नया पलंग पर मैगी मजा आ गया
वशिस्थ
मुफ़्त की यात्रा करा लाते हैं आप। पर मन भी बड़ा ललचाता है।
लोकल लोग इसे चीना पीक कहते हैं ।
मोड़ तक पहले तीन किलोमीटर की चढ़ाई बेकार है , यह रास्ता टैक्सी से तय करना चाहिए यदि आप परिवार के साथ हैं । आगे की तीन किलोमीटर आसान सा जंगल ट्रेक है । लेकिन मौसम अच्छा हो तो ज्यादा मज़ा आएगा । पीक से नैनी लेक पूरी खूबसूरती में दिखाई देती है । बड़ा मनोरम दृश्य होता है । हवा भी बड़ी तेज बहती है ।
बंदरों से सामना तो अवश्य होता है । कई तो बड़े खतरनाक दिखते हैं ।
कभी मेडम के साथ भी जाओ , ज्यादा आनंद आएगा । :)
आपकी पोस्ट में होता है...एडवेंचर... एडवेंचर...और सिर्फ...एडवेंचर...
सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
यात्रा रोमाच ज़ारी रहे .मनोरानाजं ज्ञानवर्धन और रोमांच तीनों एक साथ .
मनमोहक चित्रों के साथ मन मनभावन प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई..
romanch se bhari hui yatra h sandeep bhai aapka or aapke sathiyo ka dhanyawad.....
आपकी यात्रा यूं ही चलती रहे ......
वाह क्या बात है लाजवाब चित्र है जी आपकी पोस्ट पढ़कर आनंद आ जाता है ...और मन में रोमांच छा जाता है .....रोमांचक विवरण संदीप जी
namaste sandeepji
adventure journey on peaks
beautifully narrated with the help of nice photos
thanks for sharing
namaste sandeepji
adventure journey on peaks
beautifully narrated with the help of nice photos
thanks for sharing
हैरान खुद कम हम भी नहीं ,
देखते अपना, नजर आता है चेहरा तेरा .
यूं पगडण्डी खुद कहीं नहीं जाती ..
बहुत सकारात्मक सोच और जोश के स्वर जीवट का आवाहन करते .
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