मंगलवार, 1 नवंबर 2011

HAR KI DOON हर की दून, भाग 3

हर की दून-
सुबह दस बजे से चलते-चलते दोपहर के एक बजने वाले थे, अपुन को तो कुछ नहीं हुआ क्योंकि पानी जगह-जगह उपलब्ध था। लेकिन सांगवान को चाय की हुडक लगी थी मार्ग में एक दो जगह इस बारे में बात भी होती रही कि अगर चाय की इच्छा हुई तो बेहिचक बोल देना, मेरे चक्कर में मत रहना। एक जगह तो मार्ग पूरा खिसक कर नदी में समाया हुआ था कुछ पहले किसी ऊपर के मार्ग से आना-जाना किया हुआ था। यहाँ मैं तो एक छ्लांग लगाकर खाई में कूद गया लेकिन जब सांगवान की बात आयी तो भाई ने सबसे पहले तो अपना बैग फ़ैका था उसके बाद जाकर सम्भलते हुए आराम से उस खाई में उतर गये थे। इसी खाई में वापसी में तो चढने की कोशिश भी नहीं की थी, किसी और पगडंडी से चढ गये थे। यहाँ खाई से आगे बढने पर बडा ही खतरनाक मार्ग हो चला था जिसके कारण ऊपर से पत्थर गिरने का भय था। खैर बिना किसी परेशानी के ये खाई पार हो गयी थी। 
ये फ़ोटो ओसला या कहो सीमा जाकर लिया गया है।



दो ब्लॉगर एक साथ, दूसरे ब्लॉगर विशाखापटनम के रहने वाले है। इनका ब्लॉग यहाँ है।

बीच मार्ग में एक जगह एक आठ-नौ साल की लडकी कुछ इकटठा कर रही थी लेकिन हमें पास आते देख रुक गयी लेकिन मैंने दूर से उसे कुछ चुगते हुए देखा था। अत: जब उसी जगह पहुँचे तो मैंने देखा कि वहाँ तो एक अखरोट का पेड था जिस पर काफ़ी अखरोट लगे हुए थे, लेकिन अखरोट हमारी पहुँच से कम से कम तीस फ़ुट दूरी/ ऊँचाई पर थे। जिस कारण हम भी उस छोटी सी बच्ची की तरह वहाँ अखरोट तलाशने में लग गये जिससे हमें चार पाँच मिनट में ही १०-१२ अखरोट मिल गये थे। जो हमारे लिये काफ़ी थे। यहाँ अखरोट के वृक्षों पर लंगूर भी काफ़ी संख्या में थे, जो कि अखरोट नीचे फ़ैंकने में काफ़ी मदद कर रहे थे। हमने वहीं अखरोट तोडकर खाने की सोची तो पता चला कि अखरोट तोडने की कोशिश में एक पत्थर टूट गया लेकिन अखरोट नहीं टूटा जिससे हम जल्दी समझ गये कि ये उसी ब्रांड के अखरोट है जो कि वैष्णों देवी यात्रा में धोखे से लोगों को दिये जाये है दिखाते कुछ है घर आकर जब उन्हें तोडने की बारी आती है तो ईंट पत्थर से भी नहीं टूटते है आखिरकार उन्हें तोडने के लिये हथोडी व पेंचकस की मदद ली जाती है, एक बार ऐसी ही हथोडी फ़ोड अखरोट, हथोडी की चोट से गोली की स्पीड से निकल शीशे पर जा लगा था जिस कारण दो रुपये के अखरोट ने दौ सौ रुपये का शीशा नया करवा दिया था।
ओसला से चलते ही ये तारों वाला झूला पुल पार करना होता है।
इस पुल में ऊपर खाई ढलान में देखो एक छोटा सा पुल नजर आ रहा है वही से होकर जाना है।
इस पुल से नीचे खाई ढलान में देखो एक बडा सा पुल नजर आ रहा है वही से होकर आये है।

हमने अखरोट तोडने की ज्यादा कोशिश भी नहीं की, बाकि अखरोट अपनी जेब में रख अपनी यात्रा जारी रखनी शुरु की, वो छोटी सी बच्ची भी हमारे साथ-साथ ही चलने लगी, कुछ दूर जाने पर हमने उस बच्ची से उसके बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि वह दूसरी कक्षा में पढती है। कोई एक किमी की यात्रा के बाद उस बच्ची का गाँव आ गया था और वह अपने गाँव गंगाड गाँव की ओर जाने वाले मार्ग पर चली गयी लेकिन जाने से पहले उसने हमसे खाने के लिये टॉफ़ी की माँग की थी जो हम उसे ना दे सके अरे भाई हमने टॉफ़ी आदि तो कुछ लिया ही नहीं था। एक नदी/नाले के पुल के पास एक दुकान पर चाय बन रही थी जिसे देखकर सांगवान के चेहरे पर चमक आ गयी थी। अबतक हम लगभग नौ किमी आ चुके थे। यहाँ से ओसला केवल 5 किमी बाकि रह गया था जिससे ये जानकर हमें बडी खुशी हुई थी। यहाँ दो तीन घर मार्ग के एकदम साथ बने हुए थे। कुछ आगे जाने पर एक जगह हमे दो मार्ग मिले एक उपर जा रहा था दूसरा नदी के साथ-साथ जिस पर कुछ अंदेशा था कि कहीं ये गलत तो नहीं है लेकिन हमें आधे घन्टे चलने पर भी कोई नहीं मिला एक दो बार तो लगा कि हम गलत तो नहीं आ गये है, लेकिन एक किमी जाने पर एक जगह मार्ग की हालात देखी तो समझ में आया कि कोई यहाँ से आ क्यों नहीं रहा है, बात ही कुछ ऐसी थी कि भूस्खलन की वजह से मार्ग बचा ही नहीं था  हमें भी बेहद ही सावधानी से उस जगह को पार करना पडा था। ये मार्ग कुछ आगे जाकर देखा तो उसी मार्ग से जुड गया है जिसे हमें ऊपर जाने वाला मार्ग छोड कर आये थे। लेकिन नदी के साथ वाले मार्ग पर आने का हमें फ़ायदा भी हुआ, कम से कम इस पर उतराई-चढाई का कम ही झंझट मिला था।
यहाँ से देखो ओसला व झूला पुल दोनों दिखाई दे रहे है।
सामने जो पहाड दिखाई दे रहा है बस ये ओसला से आगे सबसे बडी चढाई है।

कुछ आगे जाने पर एक बार फ़िर अखरोट के पेड मिले, यहाँ भी हमें कुछ अखरोट मिले, वे भी हमारी जेब में समा गये। हमें दूर से ही ठीक उसी तरह जैसे पहले गंगाड गाँव दिखाई देने लगा था दो किमी के आसपास दूरी रही होगी एक गाँव और भी दिखाई देने लगा था नाम का तो पता नहीं था। हम ये सोच रहे थे कि पहले ओसला आयेगा उसके बास सीमा, लेकिन जब सामने वाले पहाड पर बसे गाँव के ठीक नीचे बनी तीन चार दुकाने व दो तीन घर नजर आये तो लगा कि ओसला आ गया है। हमने एक दुकान से पूछा कि सीमा कितनी दूर है तो उस दुकान वाले ने कहा कि यही सीमा है और जो सामने पहाड पर गाँव दिखाई दे रहा है वो ओसला है। ये सुनते है अपनी खुशी कई गुणा बढ गयी थी क्योंकि अभी तो तीन ही बजे थे। हमारे पास अभी तीन घन्टे बाकि जिससे हम आगे जा सकते थे लेकिन आगे के बार में पता चला कि हर की दून अभी 12 किमी बाकि है, चढाई तो ज्यादा नहीं है लेकिन आज वहाँ भीड ज्यादा है जिससे वहाँ जाने के बाद रहने की समस्या आ सकती है। ये सुनकर हमने आजके दिन आगे जाने का कार्यक्रम रद्ध किया व आज यहीं सीमा/ओसला में ही आत्रि विश्राम करने का फ़ैसला किया। ओसला व हर की दून में रात्रि ठहराव सिर्फ़ सरकारी विश्राम गृह वन विभाग के तथा गढवाल मंडल विकास निगम के ही उपलब्ध है, अगर ज्यादा भीड ना हो तो आसानी से रात्रि विश्राम की जगह मिल जाती है। वैसे अगर कोई चाहे तो पहले से ही इनकी बुकिंग करवा कर आ सकता है, जो कि पुरोला, देहरादून, या नेट पर करवा सकते हो। रही बात हमारी आज तक रेल के अलावा आवास की कोई अग्रिम व्यवस्था नहीं करायी है अत: यहाँ भी बिना आरक्षण के काम चल गया था। यहाँ गढवाल मंडल विकास निगम वाले डोरमेट्री के एक बंदे के 165 रुपये लेते है, कमरे के चार्ज अलग-अलग है जो कि 300/400 से शुरु होते है

सामने जो खाई दिखाई दे रही है बस हम वहीं से आये है।
 अब देखो बर्फ़ के पहाड भी नजदीक आने लगे है।

वनविश्राम भवन के सामने ही एकमात्र ढाबा था जहाँ पर सबका खाना बन रहा था, उस दिन कुल 42 लोगों का खाना बनाया जा रहा था। गढवाल मंडल विकास निगम का विश्राम भवन भी वन विभाग के साथ ही बना हुआ है, और उसमें ज्यादा व्यक्तियों के ठहरने का प्रबन्ध है, जब बैठे-बैठे चार बज गये तो मैंने जाकर निगम में नियुक्त व्यक्ति सुभाष से रात्रि विश्राम की बात की तो उस बंदे ने बताया कि आप का अग्रिम आरक्षण नहीं है अत: आपको 5 बजे तक इन्तजार करना होगा, उसके बाद ही मैं आपको रहने का स्थान दे पाऊँगा, मैंने सुभाष से कहा "ठीक है भाई 5 की जगह 6 बजा दे, उसमें तो कोई बात नहीं है लेकिन बाद में ये मत कह देना कि जगह नहीं बची है" तो उस बंदे ने कहा अगर ऐसी नौबत आयी तो मैं आपको अपने आवास पर ले जाऊँगा आप चिन्ता ना अरे, उसके ये शब्द सुनकर हमें संतुष्टि हुई। जब हम खाना खा रहे थे तो वहाँ पर एक ब्लॉगर बन्धु हर की दून ना जाकर बीच मार्ग से वापिस लौट आये थे क्योंकि उनके साथी को चलने में दिक्कत थी। कुछ देर बाद ही बारिश होने लगी, बारिश के समय हम दोनों ने अपने सारे अखरोट फ़ोडने के चक्कर में कई पत्थर फ़ोड डाले थे। जब तक सारे अखरोट निपटाये तो तब आधे घन्टे से हो रही बारिश रुक गयी थी, लेकिन बारिश के बाद ढाबे से बाहर निकल कर देखा तो जो ऊँचे पहाडों पहाड बारिश से पहले एकदम भूरे रंग के नजर आ रहे थे उनपर अब सफ़ेद ताजी बर्फ़ दिखाई दे रही थी। इसके साथ-साथ ठन्ड भी एकदम से जबरदस्त रुप से अचानक आ धमकी थी हम केवल कमीज पहने हुए थे जिससे हम काँपने लगे व तुरन्त अपने बैग से अपनी गर्म चददर निकाल कर ओढ ली थी, साथ ही हम ढाबे वाले के चूल्हे के पास बैठ गये थे जिससे कुछ राहत मिली थी। कुछ देर बाद सुभाष  भी आ गया था और बोला कि आप को आपकी सोने की जगह बताता हूँ, उसके साथ पहली मंजिल पर एक डोरमेट्री में गये वहाँ दो विदेशी लरका-लरकी(लडका-लडकी) पहले ही मौजूद थे, बाकि पलंग खाली थे। विदेशी जोडा रात में एक ही बैड पर सोये थे उन्होंने प्यार में एक जगह सोये या ठन्ड से या पैसा बचाने को, ये तो वे दोनों जाने ये मैं तो नहीं कह सकता हूँ। हाँ उन विदेशी के पास सिर पर बंधी हुई एक टार्च थी जिससे वो अंदेरे में अपना काम कर रहे थे। क्योंकि यहाँ ओसला में बिजली नाम की चीज अभी तक नहीं पहुँच पायी है, केवल मोमबत्ती के सहारे काम चलाया जा रहा था। हमने वापस ढाबे पर जाकर खाना खाया व आकर अपने पलंग पर सो गये। 
लाल-लाल मिर्च की तरह दिखने वाले पौधे।

रात में ये पता चल गया था कि आगे हर की दून में ही खाने को मिलेगा उससे पहले नहीं। तीसरे दिन दिनांक 08/10/2011 को सुबह ठीक 6 बजे हम दोनों एक-एक मैंगी खाकर आगे की ओर चल दिये थे। रात को ठहरने का किराया भी हमने नहीं दिया था जिसके लिये सुबह सुभाष को आवाजे लगायी थी लेकिन वो नहीं उठा तो हम आगे के ओर चले गये थे। आज वापसी में भी तो यहीं रुकना था। इसलिये हमने अपने बैग से फ़ालतू सामान निकाल कर एक बैग में कर दिया था। अपने साथ सिर्फ़ गर्म चददर व छतरी ही लेकर गये थे। जैसे ही हमने ओसला पार किया तो सबसे पहले झूला पुल आया जिसे पार करते हुए सामने पहाड पर एक और पुल नजर आ रहा था जिस पर से होकर जाना था। मैंने ये पहले ही सोच रखा था कि एक पुल से दूसरे का फ़ोटो जरुर लेना है। झूला पुल पार करते ही ऊपर वाले पुल तक बेहद जबरदस्त ढलान चढाई शुरु हो गयी थी जो कि पूरे आधे किमी की तो होगी ही, ऊपर के पुल पर जाकर नीचे वाले पुल का भी फ़ोटो लिया आपने दोनों देख ही लिये है। अब यहाँ से आगे दो किमी तक समतल सा मार्ग था सीधे हाथ नदी व मार्ग के बीच एक मन्दिर भी था हमने दूर से ही प्रणाम किया व चलते रहे। आगे अचानक एक बेहद ही छोटी सी धारा के लिये हमें नीचे खाई में जाना पडा व ऊपर तो आना ही था। इसके बाद तो खेतों के बीचों-बीच से मार्ग जा रहा था, खेत पार होते ही एक बार फ़िर एक गहरी खाई में हमें उतरना पडा यहाँ पक्का पुल बना हुआ था लेकिन यहाँ तो ऊपर चढने में दम ही फ़ूल गया था लेकिन मैं भी कहाँ ऐसी चढाई से डरने वाला था। इस चढाई को पार करने के बाद हमें एक लडका मिला उसने हमें कहा कि अगर आप सीधे खेतों से होकर जाओ तो आपका काफ़ी समय बच जायेगा। हमने उसकी बात मानी और मार्ग छोडकर खेतों के रास्ते हो लिये थे। ये खेतों का मार्ग मुझे हेमकुंठ साहिब के पास स्थित फ़ूलों की घाटी की याद दिला रहा था। खेत पार होते ही सामने पहाड पर चढाई वाली पगडंडी दिखायी दे रही थी हमने इस मार्ग की अंतिम कठिन चढाई भी धीरे-धीरे चढ ही ली और चढाई के सबसे ऊपर आकर कुछ देर आराम किया। वापस आ रहे एक बन्दे ने बताया कि आप लोग आधा सफ़र तय कर चुके हो। यहाँ से हमें चारों ओर दूर-दूर तक का दृश्य साफ़ दिखाई दे रहा था। बल्कि यहाँ से हमें ओसला व तालुका तक के पहाड दिखाई दे रहे थे। यहाँ से आगे थोडी ढलान थी जो कि वृक्षों के बीच से होकर जा रही थी। यहाँ हमें एक छोटा सा झरना दिखाई दिया। हमें लकडी के दो तीन पुल और मिले, एक जगह हमें पुल के पास भालू...........................

वृक्षों का आखिरी झुरमुट और उसके बाद हर की दून का इलाका शुरु।

भालू के बारे में व सिर्फ़ हर की दून के फ़ोटो अगले भाग में


हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। 
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-

38 टिप्‍पणियां:

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

एकदम मस्त करने वाला रास्ता और सचित्र वर्णन।
सुभाष के पांच की जगह छ बजे की तरह भालू से मिलने वाली बात बेशक अगली से अगली कड़ी में बताओ, लेकिन बता देना कहीं फ़िर कह दो कि भालू नहीं मिला था:)

Archana Chaoji ने कहा…

इस ब्लॉग पर चित्र देखकर घूमने की इच्छा बलवती हो जाती है ....और..
यात्रा-वर्णन पढ़कर घूमना हो जाता है ....आभार..घर बैठे यात्रा करवाने का...

प्रेम सरोवर ने कहा…

आपका पोस्ट अच्छा लगने के साथ-साथ सराहनीय भी है । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर यात्रा ब्रितांत|

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

आनन्द आ गया। जल्दी जल्दी लिखा करो, आज दस दिन बाद पोस्ट उजागर हुई है। कहते हो कि आलस से सख्त नफरत है लेकिन लिखने में इतना आलस?

Geeta ने कहा…

behad romanchit yatra varnan, aisa lagta hai mano aapke sath sath hum bhi chal rahe ho

Urmi ने कहा…

आपका यात्रा तो बहुत ही बढ़िया हो रहा है! सुन्दर चित्र के साथ उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घुमक्कड़ी के सहारे देश भ्रमण..

फकीरा ने कहा…

संदीप भाई मजा आ गया
लेकिन एक बात सोचने पर मजबूर हूँ कि इन गाँव मैं आज तक बिजली नहीं पहुंची है
तो वहाँ के बच्चे कंप्यूटर कैसे चला पायेंगे,
लेकिन यात्रा मजेदार है अभी तक , असली रोमांच तो अब भालू के आने पर आया है

अब देखते है कि भालू भागता है या जाट देवता ?

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

pahaadi ilaake ki sundarta hi gazab ki hoti hai yatra vritaant ke liye bahut bahut badhaii...

कुमार राधारमण ने कहा…

यात्रा जारी रहे।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर और रोचक यात्रा के लिए बधाई .चित्र में स्मार्ट लग रहे हो...बहुत बहुत शुभकामनायं...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

हम १९९४ में गए थे । तब सीमा में एक आध मकान ही थे । ओसला आखिरी गाँव पड़ता था । पता चला कि वहां के लोग कौरवों के अनुयायी हैं । रास्ते में गेहूं के खेत थे । लेकिन यह पुल बाद में बना है ।
रास्ते में एक जगह पानी से चलने वाली आटा पीसने की मशीन भी देखी थी ।
हर की दून में बादल आते ही एकदम ठण्ड बढ़ जाती है । इसलिए गर्म कपडे साथ ही होने चाहिए ।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

sandeep ji
bahut hi romanch kari v gyan-vardhak rahi aapki duun yatra.bahut bahut hi badhiya lekh
shubh kamnao sahit
poonam

SANDEEP PANWAR ने कहा…

संजय भाई, मस्त तो असली में तब होओगे जब यहाँ होके आओगे।

अर्चना जी, चित्र देखकर घूमने की उत्सुकता ना हो तो क्या फ़ायदा इन चित्रों का?

नीरज भाई, दिनांक 1/11/11 के चक्कर में सोमवार को पोस्ट नहीं की थी और अब सोच रहा हूँ कि 11/11/11 को हर की दून के दर्शन करा ही दूँ।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

प्रवीण जी सही कह रहे हो कोई नौकरी में भारत भ्रमण कर लेता है मैं घुमक्कड़ी के सहारे।

फ़कीरा भाई, बिजली के अभाव में यहाँ पर सौर ऊर्जा से काम करने वाली बैट्री पहुँचने लगी है,

माहेश्वरी जी धन्यवाद, चित्र के बारे में बताने के लिये।

दराल साहब, 17 साल में ज्यादा फ़र्क नहीं हुआ है पानी से चलने वाली आटा पीसने की मशीन अब पानी की कमी से बन्द होने लगी है, यहाँ पहाडों में दिन में सूरज होने से ठन्ड कम ही लगती है।

Vaanbhatt ने कहा…

आप सबको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...

Vaanbhatt ने कहा…

इतनी बीहड़ जगह पर भी इतनी भीड़ की एडवांस बुकिंग करानी पड़े...कहाँ से खोजी ये जगह...और किसने रिकमंड की...११/११/११ का इंतज़ार रहेगा...

Mirchi Namak ने कहा…

Anand ki koi seema nahi hoti par ek ghummakad ke anand ko dekhkar apne ko bhee anand mil jata hai aapk bahut bahut Dhanyawad.

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

खाई पार होने के बाद और बेक़रार हैं,आगे बताओ !

Sunil Kumar ने कहा…

आपका तो अंदाज ही अलग है ........

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

सभी फोटो बहुत बढ़िया ...

बेनामी ने कहा…

beautiful photos and narration

"BELATED DIWALI WISHES"

Also thanks for leaving a comment about my new post

Mukesh Bhalse ने कहा…

Excellent narration and beautiful pictures.

Arti ने कहा…

What a beautiful post. The narration and the mountains, clouds, greenery... Especially loved the bridge, looks magnificient...
Thanks for sharing this:)

बेनामी ने कहा…

Really very nice post.Each pic is very beautiful. I like this post very much. Congrats.

SAJAN.AAWARA ने कहा…

bahut hi majedaar yatra or darsay.....
jai hind jai bharat

चन्द्रकांत दीक्षित ने कहा…

वाह संदीप भाई 11/11/11 का इन्तजार है

कविता रावत ने कहा…

apne liye to ghumne-ghaamne ka samay nikalna bahut hi mushkil hai.. lekin jab kabhi blog par yaatra sansmaran padhti hun to ham bhi saath ho lete hai..
sundar prastuti ke liye aabhar!

अशोक सलूजा ने कहा…

आगे के सुखद सफर के लिए ....
शुभकामनाएँ!

virendra sharma ने कहा…

नयना भिराम वृत्तांत जीवंत चित्रण ओर सजीव चित्रावालियाँ लिए है यह पोस्ट .आभार संदीप भाई .ईद मुबारक .

संजय भास्‍कर ने कहा…

beautiful post with beautiful photos

Rajesh ने कहा…

Wonderful shots of the place.

रेखा ने कहा…

वाह ..फोटो देखकर तो मजा आ गया ,आपकी हर यात्रा की तरह यह यात्रा -वृतांत भी काफी रोमांचक लग रहा है ...
अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) ने कहा…

बढ़िया पोस्ट.

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' ने कहा…

जात देवता आपका ब्लॉग पढ़ने लगता हूँ तो कुछ और पढ़ना भूल जाता हूँ | आपके फोटोग्राफ देखने लगता हूँ तो कुछ भी देखना अच्छा नहीं लगता | यात्रा साहित्य में आपके इस योगदान को बहुत याद किया जाएगा | हाँ बहुत दिन से मेरे ब्लॉग की तरफ नहीं आये | सैलानी हो घुमाते फिरते एक निगाह इधर भी देख लिया करो | आपसे कुछ करने का हौसला मिलता है |

Amrita Tanmay ने कहा…

आनन्द आ गया आपको पढ़कर.

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

गज़ब का यात्रा वृतांत मनमोहक फोतो के साथ।धन्यवाद।

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