रविवार, 18 सितंबर 2011

PAUNTA SAHIB पौंटा साहिब गुरुद्धारा


पौंटा साहिब का कवि दरबार से लिया गया चित्र है।


हमारी यह यात्रा श्रीखण्ड महादेव भाग 13 में यहाँ तक आ पहुँची है। हम पौंटा साहिब गुरुद्धारे शाम को अंधेरा होने से काफ़ी पहले आ चुके थे। चारों ही यहाँ पहली बार आये थे, इसलिये यहाँ के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था कि अन्दर कहाँ रुकना है किससे पूछे इसी उधेडबुन में मुख्य दरवाजे के बाहर पास में ही अपनी-अपनी बाइक खडी कर दी व अन्दर जाकर सबसे पहले तो रात को रुकने के बारे में मालूम किया तो पता चला कि अन्दर घुसते ही उल्टे हाथ पर एक खिडकी से रात को रुकने वालो को परची दी जा रही है इसी परची को दिखाकर अपनी-अपनी बाइक भी गुरुद्धारे की चारदीवारी के अन्दर ला सकते हो। तो जी हम भी लग गये लाइन में जब हमारा नम्बर आया तो परची काटने वाले बंदे ने कोई भी पहचान पत्र दिखाने को कहा, उस समय मेरे पास पहचान पत्र नही था नीरज ने अपना पहचान पत्र दिखाया, अपना नाम पता व कितने बंदे हो सब कुछ लिखवाया था। जब सब खानापूर्ति हो गयी तो उसने हमें परची दे दी, हम परची ले बाहर आये व अपनी-अपनी बाइक को मुख्य द्धार से चारदीवारी के अन्दर ले आये। मुख्य द्धार से प्रवेश करते ही जहाँ से परची ली थी ठीक उसी के सामने ही कुछ दूरी पर बाइके खडी करने का स्थान है जहाँ पर सैंकडों की संख्या में बाइक खडी हुई थी। हमने भी अपनी-अपनी बाइक स्थान देख कर वही पर लगा दी। यहाँ पर ज्यादातर बाइक वाले हेमकुंठ साहिब की यात्रा से आने वाले या यात्रा पर जाने थे। वैसे मैं हेमकुंठ साहिब की यात्रा पाँच साल पहले इसी नीली परी पर कर चुका हूँ। वो यात्रा फ़िर कभी होगी आज तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पौंटा साहिब के बारे में ही होगा। 
                               
                                इस यात्रा को शुरु से देखने के लिये यहाँ चटका लगाये।
दूसरा कोना

भवन के ठीक सामने का चित्र है।
निशान साहिब


अपने-अपने हेलमेट व बाइक एक साथ बाँध दिये ताकि कोई छेडछाड ना करे। हम सामने ही बने हुए एक विशाल भवन (नाम याद नहीं आ रहा है कि उस हाल का नाम क्या था) में अन्दर प्रवेश किया व देखा कि ये तो इतना विशाल है कि एक साथ कई हजार भक्त इसमें आराम कर सकते है। हमने भी एक दीवार के साथ बिछे हुए दरे पर अपना डेरा जमा दिया था। यहाँ दीवार के किनारे इसलिये क्योंकि दीवार पर मोबाइल व कैमरा आदि में ऊर्जा (CHARGE) भरने करने के लिये बोर्ड लगे हुए थे, अगर बीच में कहीं भी बैठते तो बार-बार दीवार के पास आना पडता। यहाँ इस विशाल बरामदे में कोई ताला या कमरा आदि कुछ नहीं था सब कुछ खुल्लमखुल्ला था। पहले विपिन व नितिन बाहर घूमने के लिये गये उसके बाद मैं व नीरज भी यहाँ का सारा कुछ देखने के लिये गये। मेरी एक आदत है कि मैं जहाँ भी घूमने जाता हूँ वहाँ पर एक-एक चीज बारीकी से देखना चाहता हूँ अब वो चाहे मन्दिर-गुरुद्धारे हो या पहाड मुझे जब तक उस जगह को जगह को अच्छी तरह से ना देख लूँ तसल्ली नहीं होती है। यहाँ का किनारा नजदीक जाकर देखे बिना रह गया है, अबकी बार उसे भी देख कर आऊँगा।

ये है कवि दरबार का इतिहास।
ये है दैनिक सूचना पट।
एक झरोखे से लिया गया चित्र है।


मैंने व नीरज ने एक कोने से शुरु कर सारा गुरुद्धारा देखना आरम्भ कर दिया। सबसे पहले वो स्थान देखा दस्तार यानि पगडी जहाँ पर गुरु जी अपनी पगडी बाँधा करते थे। इसके बाद नीचे यमुना नजर आयी तो उसे देखने चल पडे लेकिन आगे तो जाल लगाकर मार्ग ही अवरुद्ध किया हुआ था वापस आने के अलावा कोई चारा नहीं था। मैं तो किनारे तक जाना चाह रहा था, लेकिन नीरज ठहरा आलसी उसने जाने से मना कर दिया क्योंकि नीचे जाने के लिये काफ़ी घूम कर आना पड रहा था। कोई बात नहीं अब सामने एक बोर्ड देखा जिस पर लिखा हुआ था कवि दरबार  हो लिये कवि दरबार की ओर, यहाँ आने के लिये कुछ सीढियाँ भी चढनी होती है। तो जी चढ गये और जा पहुँचे इस जगह पर भी। इस जगह पर उस समय के सबसे अच्छे कवियों का दरबार लगा करता था और एक बात यहाँ ध्यान देने वाली थी कि जो यमुना शोर मचाती हुई आती है यहाँ पर आकर एकदम शांत हो जाती है। ऐसा क्यों है कौन जाने? इसी स्थल के सीधे हाथ की ओर गुरु का लंगर चल रहा था। हमें भी भूख लग ही रही थी, लेकिन उससे पहले गुरु के दर्शन करने जरुरी थे तो जी हम चल दिये मुख्य भवन की ओर मुख्य भवन में प्रवेश करने से पहले प्रवेश द्धार के बाँये हाथ एक बोर्ड नजर आया उस पर उस दिन के बारे में बताया हुआ था, आप भी फ़ोटो में देखना कि क्या लिखा हुआ था।

यमुना नदी व किनारे का मन्दिर भी दिखाई दे रहा है।
मुख्य जगह पर प्रवेश करते हुए।
गुरुग्रन्थ साहिब
ऊपर छत का नजारा।
बाहर आते हुए।


सिखों के नवे गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर पटना साहिब में सिखों के दसवें गुरू गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म सन 1666 को हुआ था। इनकी माता का नाम गुजरी जी है। बचपन का नाम गोविंद राय रखा गया। सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। सन 1675 को लोगों(आम जनता) की मदद करते हुए श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में बलिदान दिया, जहाँ पर आज शीश गंज गुरुद्धारा है। इसके बाद 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्धी पर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी विराजमान हुए। गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने ही पाँच प्यारे बनाये। पञ्च प्यारे यानी सिक्ख धर्म के पहले 5 व्यक्ति, जिन्होंने अपना शीश धर्म के लिए कुर्बान किया, आज जो भी सिक्ख धर्म अपनाता हैं वो पञ्च प्यारों के हाथो अमृत-पान करता हैं और उन्ही पञ्च प्यारों के हाथो अमृत-पान करके गुरु गोविन्दराय गुरु गोविन्द सिंह बने और कहा कि जहाँ पाँच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं भी निवास करूँगा। गुरु गोबिंद सिंह जी की तीन पत्नियाँ थी जीतो जी, सुंदरी जी और साहिबकौर जी थीं। इनके 4 लडके थे जिसमे से बडे दो अजीत सिंह व जुझार सिंह लडाई में शहीद हुए और दोनों छोटों लडकों जोरावर व फ़तेह सिंह को सरहिंद नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। आज जहाँ दमदमा साहिब गुरुद्धारा है वहीं पर लेखक मणि सिंह जी ने गुरुबाणी लिखी थी, जिसे लगभग 5 महीने में लिखा गया था। अपना सब कुछ कुर्बान कर नांदेड में श्री हुजूर साहिब में ग्रन्थ साहिब को गुरु का दर्जा दिया था। इनके बाद कोई गुरु नहीं हुआ। ये ही आखिरी गुरु थे। सन् 1708 को नांदेड में ही शरीर छोड सचखंड का रुख किया। 


 पहला इतिहास 16 अप्रैल 1685 को


गुरुद्धारा पौंटा साहिब सिखों के दसवें गुरू गुरु गोबिंद सिंह जी व सिख बंदा बहादुर के कारण प्रसिद्ध है। पौंटा साहिब का असली नाम पाँव टिका है, कहते है कि गुरू गोविंद सिंह के घोड़े ने यहाँ पर पैर जमा दिये थे व आगे बढने से मना कर दिया था। जिस कारण गुरु ने कुछ दिन यही रहने का फैसला किया। उसी समय में गुरु जी ने कई सिख धार्मिक पुस्तकों यहाँ लिखा था, यहाँ पर उस समय की कुछ वस्तुएँ व कुछ हथियार अभी तक एक छोटा से संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए है। पौंटा साहिब राष्ट्रीय राजमार्ग 72 पर स्थित है, जो कि शिमला(180), चडीगढ(130), देहरादून(45), सहारनपुर आदि को जोडता है। कालेसर राष्ट्रीय उधान मात्र 12 किमी दूर है। यहाँ आसपास विभिन्न गुरुद्धारे व मन्दिर है, लोहगढ किला, भूरे शाह, नाहन व आसन बैराज देखने लायक जगह है।


अन्दर प्रवेश करते ही सारा माहौल ही बदला-हुआ था, जहाँ बाहर चहल-पहल थी, अन्दर तो सम्पूर्ण वातावरण शांती से भरा हुआ था, कुछ सुनायी दे रहा था तो सिर्फ़ गुरुवाणी का पाठ जो उस समय वहाँ पढा जा रहा था। मैं तो कुछ देर बिल्कुल चुपचाप बुत सा बनकर वहाँ खडा रहा उसके बाद आगे बढकर गुरुग्रंथ को प्रणाम किया व बराबर से शुद्ध देशी घी से बने हल्वे का प्रसादा ग्रहण किया व चारों ओर को निहारते हुए प्रणाम करते हुए बाहर आ गये। अब एक कार्य बचा था, वो था पेट भरने का तो जी हम अब की बार कवि दरबार की ओर(भवन के पीछे है) से नहीं, बल्कि सामने की ओर से लंगर चखने के लिये जा पहुँचे। अपनी-अपनी थाली गिलास कटोरी ले कर हम भी बैठ गये और लग गये जी लंगर चखने में, जब तक पेट पूरा नहीं भरा हम लोग वहाँ से नहीं उठे। वैसे जाटों और सरदारों में एक कहावत है जब कोई बंदा खाने में नखरा दिखाता है तो उसे कहते है कि खा ले नहीं तो बाद में गुरुद्धारे जाना पडेगा। खा पी कर अपने-अपने बर्तन अच्छी तरह धोकर रख दिये। मेरा मन था कि चलो कुछ देर सेवा की जाये लेकिन अपने आलसी भाई यहाँ भी नहीं माने। एक बार फ़िर सोच लिया कि चलो कोई बात नहीं।

पगडी सजाने का स्थान यही है।
यही बैठा करते थे


वापस अपने डेरे पर यानि कि उसी जगह पर जहाँ पर हमारा सामान रखा हुआ था पहुँच गये, अब सब आराम कर रहे थे, अंधेरा भी हो गया था। नितिन अपनी माशूका के साथ मोबाइल पर व्यस्त था, सबने अपने-अपने घर पर बता दिया कि कल सुबह जल्दी यहाँ से घर के लिये चलेंगे व दोपहर तक पहुँच जायेंगे। रात के आठ बजने वाले थे कि तभी ध्यान आया कि कल तो नीरज का जन्मदिन है तो हम जन्मदिन के मौके पर आइसक्रीम की दावत कैसे छोड देते। नीरज को खडा किया व गुरुद्धारे के बाहर बनी हुई दुकान से सबके लिये आइसक्रीम ले आये। नीरज के लिये एक अलग से थी। आइसक्रीम तो हम कल भी खा सकते थे लेकिन नीरज का कार्यक्रम तो हमें बीच में छोड कर भागने का था नीरज को कल दोपहर की नौकरी जरुर करनी थी। इसलिये नीरज ने पहले ही कह दिया था कि मैं तुम्हारे साथ अम्बाला या सहारनपुर तक ही जाऊँगा। सुबह जल्दी की भागम-भाग में कहाँ आइसक्रीम याद रहती इसलिये पहले ही खा ली व नीरज का जन्मदिन मना लिया था। रात के दस बजने वाले थे ये लोग सोने के मूड में नहीं लग रहे थे, जब मैंने कहा कि सुबह पाँच बजे चलना है उसके लिये चार बजे उठना होगा, तो नितिन व विपिन दोनों बोले कि जब मरजी ऊठा देना चाहे रात के तीन बजे ही सही। इनकी ये बात सुनकर मैं सोने लगा कल नीरज की चिंता नहीं थी उसको तो खुद जल्दी जाकर अपनी दोपहर की नौकरी करनी थी।


आओ आप भी लगंर में।
अरे फ़ूल यहाँ भी।

इस सफ़र के दो ब्लॉगर साथी   नीरज जाट  व   विपिन  ने क्या लिखा है ये भी देखे।


आगे की किस्त इस यात्रा की आखिरी किस्त होगी जिसमे दिल्ली तक यात्रा का सारा विवरण रहेगा, चित्र सहित। इस यात्रा का आगे का भाग देखने के लिये यहाँ क्लिक करना होगा

                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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24 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

बढ़िया वर्णन. पौंटा साहब के दर्शन कराने के लिए आभार. आपने देखा होगा कि गुरुद्वारों में प्रसाद शुद्ध देसी घी में बनता है और गुरुवाणी पाठ शुद्ध शास्त्रीय संगीत में. आपको धन्यवाद.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यहाँ दिख रहा है संस्कृति व यमुना का स्वस्थ प्रवाह।

चन्द्रकांत दीक्षित ने कहा…

यही यमुना दिल्ली में कैसी हो जाती है विश्वाश नहीं होता

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सिखों के नौवें और दसवें गुरुओं के बारे में पूर्ण जानकारी बहुत लाभदायक रही ।
अच्छा लगा वर्णन ।

Rajesh Kumari ने कहा…

पोंटा साहब के बहुत अच्छे विवरण सहित दर्शन कराये हैं आपने !बहुत साल पहले गई थी याद तजा हो गई !

अवनीश सिंह ने कहा…

बढ़िया लगा आपके ब्लॉग पर आकर|
फोटो बहुत ही बढ़िया है |


http://premchand-sahitya.blogspot.com/

यदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |

यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |

Maheshwari kaneri ने कहा…

वाह: आप तो देहरा दून के बिल्कुल करीब आगये ...दो साल पहले हमने पौंटा साहब के दर्शन किये थे..सार्थक विवरण बोलते चित्र...बहुत सुन्दर

दीपक बाबा ने कहा…

टीप करने के लिए सर पर रुमाल तो नहीं बांधना पड़ेगा...

Suresh kumar ने कहा…

संदीप भाई आपने पोंटा साहिब गुरूद्वारे के इतिहास की बहुत ही अच्छी जानकारी दी | आप वहां गए तो आपने थोड़ी बहुत सेवा जरुर करनी चाहिए थी |हमें सभी धर्मों की इज्जत करनी चाहिए |सबसे ज्यादा मज़ा आता है गुरुद्वारे के लंगर में मैंने कई बार खाया है |

Arun sathi ने कहा…

आपतो कलाकार है सरजी

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

भक्ति, शक्ति, सेवा, श्रद्धा सबका मिलाजुला अनुभव होता है किसी ऐतिहासिक गुरुद्वारे में जाकर। संबंधित स्थान का संक्षिप्त इतिहास भी बताना आपकी घुमक्कड़ी को विस्तार देता है।
नीरज को जन्मदिन की बधाई।
आईसक्रीम फ़ेवरेट डिश लगती है, बढ़िया है।

रेखा ने कहा…

आपने तो जबरस्त घुमाया और गुरुद्वार के दर्शन भी करा दिए ..........आपकी जय हो

prritiy----sneh ने कहा…

anand aa gaya darshan karke.

shubhkamnayen

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

पहले चित्र में -बड़े गुरूद्वारे के पास जो छोटा सा झोपड़ा दिख रहा हैं --असल में वही स्थान गुरु गोविन्द सिंह जी का हैं --वही वो रहते थे ?
पौंटा साहेब की याद दिलाने का शुक्रिया संदीप ...
निशाने साहेब नहीं ..निशान साहेब कहते हैं संदीप ...
और ' कवि दरबार' के नीचे मैंने भी फोटू खिचवाया था...
एक गलती और हैं --गुरु गोविन्दसिंह जी ने पञ्च प्यारो को गुरु का दर्जा नहीं दिया --? गुरु का दर्जा तो ग्रन्थ साहेब को मिला हैं ..पञ्च प्यारे यानी सिक्ख धर्म के पहले ५ व्यक्ति ...जिन्होंने अपना शीश धर्म के लिए कुर्बान किया ..आज जो भी सिक्ख धर्म अपनाता हैं वो पञ्च प्यारो के हाथो अमृत -पान करता हैं -- और उन्ही के हाथो अमृत -पान करके गुरु गोविन्दराय गुरु गोविन्द सिंह बने .

Rakesh Kumar ने कहा…

सुन्दर जानकारीपूर्ण प्रस्तुति से व सुन्दर चित्रों को देख कर मन गदगद् हो गया है.

बहुत बहुत आभार जी.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

गुरु गोविंद सिंह के बारे में काफी विस्तार से जानकारी देने के लिये आभार.आपकी नजर बहुत ही सूक्ष्म है. दर्शनीय स्थल के साथ सम्बंधित जानकारियाँ भी पाठकों को देकर कृतार्थ कर देते हो.आपकी पोस्ट तो शालेय पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिये.

Vaanbhatt ने कहा…

पौंटा साहब के दर्शन कराने के लिए धन्यवाद...

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर जगह के दर्शन करवाए आपने .... प्यारे फोटोस

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

मैं सोच रहा था कि इस पोस्ट में इतना टाइम क्यों लगाया जा रहा है। अब समझ में आया कि गुरू का पूरा इतिहास, जांच-पडताल के बाद, खोज-खंगाल के बाद; टाइम तो लगना ही था।
वाकई कमाल की ऐतिहासिक जानकारी दी है भाई।

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

प्रिय संदीप जी पोंटा साहिब और गुरु जी के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए आभार ....सुन्दर और म्हणत भरा काम .
भ्रमर ५

Teamgsquare ने कहा…

very nice .

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई इन धारावाहिक यात्रा वृतांतों के लिए आपकी दस्तक के लिए आभार .

MAHESH SEMWAL ने कहा…

I have been to ponta sahib many times. very nice place.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

विस्तृत और महत्वपूर्ण जानकारी मिली इस पोस्ट से साथ ही चांदनी चौक से जुडी स्मृतियों की भी.
मुझे भी किसी जगह को विस्तार से देखना ही पसंद है.

नीरज को जन्मदिन की बधाई.

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