ये देखो छोटी रेल लाईन देखते ही कैसे उतावले हो रहे है।
आज शाम तक हमने शिमला, कुफ़री, होते हुए नारकंडा से आगे सैंज या उसके आगे अन्नी तक जाने की सोच रखी थी। ताकि कल हम जलोडी पास व उसके पास एक झील व एक किले के खण्डहर देख कर शाम तक आगे की यात्रा पर जॉव/निरमुंड तक पहुँच सके। पिंजौर गार्डन देख कर, जैसे ही आगे गये तो यहाँ की मुख्य सडक के किनारे पर बारिश से बचने के रैन कोट टंगे हुए थे। विपिन ने रैन कोट दिल्ली से ही ले लिया था। नीरज ने अपने लिये व मेरे लिये मेट्रो द्धारा दिये गये रैन कोट ले कर आया था। क्योंकि मेरा वजन इन तीनों से बीस किलो ज्यादा होगा, अत: नीरज ने मेरे लिये अपने कार्यालय में कार्य करने वाले मंदीप का रैन कोट संदीप के लिये लाया था। मंदीप व संदीप एक जैसे डील डौल के है। नितिन ने एक रैन कोट ले लिया, उसकी हालत ज्यादा अच्छी तो नहीं थी, ठीक ठाक कही जा सकती थी।
ये रहा दूसरा उतावला अनाडी ठहरा ना।
वैसे मैं रैन कोट की जगह पन्नी के बने हुए बुर्के ही ज्यादा प्रयोग किया करता हूँ। पन्नी के बुर्के हल्के होने के साथ-साथ पानी से बचाव का एकदम सुरक्षित साधन है। हाँ बाइक पर चलते समय यह फ़ट सकते है, जिसका बचाव है, विंड-शीटर यानि हल्की वाली जैकेट, पन्नी वाले बुर्के के ऊपर पहन ली जाये तो कैसी भी बारिश हो आपको नहीं भिगो सकती है। रैन कोट में भी एक किलो से कम वजन ना था। और पन्नी के बुर्के में मात्र 100 ग्राम ही वजन होता है। जब हम रैन कोट खरीद रहे थे तो तभी एक कार जो सडक पर सामने किसी छोटे से मार्ग से मुख्य सडक पर आ रही थी कि मुख्य सडक पर जा रही एक अन्य स्कारपियो गाडी ने उस कार को ठोक दिया, जिससे कार का बोनट जो कि प्लास्टिक का बना हुआ था टूट गया, अब कुछ तो तमाशा होना ही था। फ़ैसला क्या रहा, हमने उसका इंतजार नहीं किया।
आखिर इन्हे रेल मिल ही गयी।मार्ग ऐसा है कि जैसे सुरंग में जा रहा हो लेकिन ऐसा है नहीं
हम अपनी आगे की यात्रा पर निकल पडे, कुछ देर बाद ही कालका अ गया, कालका पूरा पार भी नहीं हुआ था कि हिमाचल प्रदेश का बार्डर कब आया पता ही नहीं चला। हम धीरे-धीरे पहाड में टेडे-मेडे मार्गों पर अपनी मस्ती में चले जा रहे थे। नितिन ने शिमला वाली छोटी रेल में बैठने के लिये, दिल्ली से यहाँ तक कई बार बोल दिया था। हम भी उसे कहते हुए आ रहे थे कि जहाँ भी रेल आयेगी हम उसे जरुर बैठायेंगे, जब पहली बार छोटी रेल-लाइन पर फ़ाटक आया तो नितिन के चेहरे पर एकदम चमक आ गयी, और उसने अपनी बाइक फ़ाटक पार करते ही किनारे पर लगा दी, हम भी उसके साथ रुक गये। यहाँ पर सबने फ़ोटो खींचे व खिंचवाये। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरु हो गयी थी, तो हम सबने अपने-अपने रैनकोट पहन लिये, क्योंकि पहाड की बारिश का कोई भरोसा नहीं होता है कि कितनी देर व कितनी ज्यादा हो जाये।
ये देखो बिजली विभाग का देशी जुगाड। आखिर दिल है हिन्दुस्तानी
बारिश हल्की-हल्की होती रही, हम भी हल्के-हल्के आराम से इसका पूरा लुत्फ़ उठाते हुए आगे बढते रहे, छोटी रेल की पटरियाँ यदा-कदा हमें दिखाई दे जाती थी, तो नितिन अपनी बात दोहरा देता था, जब धर्मपुर नाम का रेलवे स्टेशन आया तो नितिन ने बाइक एक तरफ़ लगा कर बोला मैं तो रेल में बैठूंगा, उसके बाद ही आगे जाऊंगा, हमारे साथ जीती जागती, चलती फ़िरती रेल की समय-सारिणी मौजूद थी, जिसने बताया कि अभी एक घंटा बाद रेल आयेगी, तब हम सडक के किनारे नीचे की तरफ़ जाकर इस स्टेशन पर जाकर पता करने जा पहुँचे, वहाँ जाकर पता चला कि अभी आधा घंटा बाद रेल आने वाली है। नितिन को समझाया कि फ़िर कभी बैठ लेना, अभी हमें बहुत आगे जाना है। फ़िर भी हम यहाँ की याद लिये हुए, फ़ोटो खींच-खांच कर ही आगे बढे। सुबह से अब तक यहीं आकर पहला मौका आया जब हम चारों की फ़ोटॊ एक साथ आयी वो भी जब कि किसी एक अन्जान बंदे को कैमरा दिया, तभी तो निर्मला जी का कहना ठीक है कि चंडाल-चौकडी की फ़ोटो एक दो बाकि फ़ोटो से एक चंडाल गायब होता रहा।
बस एक नजर शिमला की, इससे ज्यादा नहीं, अबकी बार
अभी कुछ आगे ही चले थे कि नितिन ने वन विभाग के चैक-पोस्ट के पास बाइक रोक दी, इसके पास ही एक सब्जी वाले ने अपनी दुकान लगाई हुई थी। उससे हमने दो किलो खीरे ले लिये जिसे सबने खाया, यहीं इस दुकान के सामने ही एक ऐसा बिजली का खम्बा था जो ऊपर से लकडी का व नीचे से असली खम्बा था। नितिन बिजली विभाग में कार्य करता है उसे पूरे सफ़र में बिजली की लाईन के अलावा कुछ और कम ही नजर आता था
ये हाल कुफ़री से पहले का था।सब मस्ती में है। फ़ागु जो आ गया है
जब हम शिमला के कुछ किलोमीटर पहले ही थे तो एक चैक-पोस्ट पर हमारे चार लठो को देख कर एक हिमाचल पुलिस वाला हवलदार बिदक गया और हमें देखते ही बोला "रुको-रुको-रुको-रुको हम समझे इसको क्या हुआ, हम रुक गये व उस हवलदार से पूछा कि क्या बात हुई है, जो हमें रोक रहे हो, वो बोला ये लठ लेकर कहाँ जा रहे हो, हम सब एक साथ बोले श्रीखण्ड महादेव जा रहे है उस बावली पूँछ को ये नहीं पता था कि श्रीखण्ड महादेव है कहाँ व हमसे बोला कि तुम गलत आ गये हो तुम्हे तो दूसरे मार्ग से जाना था, उसके ये कहते ही, मैंने नीरज की ओर व नीरज ने मेरी ओर देखा, और उसकी मुर्खता पर मन ही मन मुस्कुराये, इसके बाद वो बोला कि इन लठ का क्या करोगे, अब उसको क्या समझाते कि कैसी चढाई है, बस ये कहा कि इस यात्रा में दस किलोमीटर बर्फ़ में चलना होता है, इसलिये ये लठ अपने घर से साथ लेकर आये है। तब कहीं जाकर उसे कुछ तसल्ली हुई व हमें कहा कि जाओ। वैसे इन लठों के कारण लोग हमें ऐसे घूरते थे व चौंक जाते थे, जैसे हिन्दी फ़िल्मों में किसी बडे खलनायक के आने पर लोग चौंक जाते है।
टंकी फ़ुल करा लो आगे का क्या पता।
इस समझदार हवलदार से किसी तरह पार पाकर जब हम आगे बढे तो शिमला की हल्की-हल्की गुलाबी ठंडक ने हमारा स्वागत किया, कुछ ही देर बाद हम शिमला शहर में आ चुके थे। इस शहर में पहले भी आ चुका हूँ वो भी इस छोटी रेल से आया था। हम इस शहर के ज्यादा अंदर तक नहीं गये, बस उस छोटी सी सुंरग से उल्टे हाथ की ओर मुड गये, जहाँ से मार्ग कुफ़री, नारकंडा, रामपुर, कौरिक बार्डर की ओर चला जाता है। शिमला आने से पहले ही नीरज भूख-भूख-भूख से परेशान था, समय सवा तीन बज गये थे, कुछ आगे जाकर हमें एक भोजनालय नजर आया और इस भोजनालय को देखते ही बाइक रोकी, सब ने चाऊमीन खाने की इच्छा जतायी, दे दिया आदेश कि सबको चाऊमीन की दावत दी जाये, जब चाऊमीन आयी तो, इसके साथ सिरका, मिर्च व टमाटर मिलाकर खाया जाता है, सब आराम से खा रहे थे, नीरज को कुछ ज्यादा ही जल्दी थी, अत: उसने जल्दबाजी में ये नहीं देखा कि किस में टमाटर सॉस है, व किसमें मिर्च, दोनों का रंग लाल था। उसने पूरे चार या पाँच चम्मच लाल मिर्च अपनी चाऊमीन में मिला दी व जब खाने लगा तो उसका मुँह देखने लायक था वो तो शुक्र रहा कि उसकी आँखों में आंसू नहीं आये। और जब चाऊमीन खत्म की तो सीधा चीनी की माँग की।
ठीक चार बजे हम यहाँ से आगे के सफ़र पर चलने को तैयार थे। मौसम तो यहीं पर खराब था। पहले ये पता किया कि अगला पेट्रोल पम्प व रात में रुकने का ठिकाना कितना आगे है, जबाब मिला कि 25-30 किलोमीटर आगे पेट्रोल मिलेगा, व रात में रुकने का अगला ठिकाना नारकंडा जाकर मिलेगा। अत: चल पडे अपने सफ़र पर कुफ़री आया, फ़ागू आया हम आगे बढते रहे, जब मन करता रुक जाते, फ़ोटॊ लेते आगे बढ जाते, इसी जगह शायद फ़ागू के आसपास ही सडक के किनारे पर बने बोर्ड पर बैठने के फ़ोटो खिंचवाते समय नितिन की रैनकोट की पैंट फ़ट गयी, कुछ आगे जाकर नितिन की नकल विपिन ने भी की तो उसकी भी फ़ट गयी (पैंट), इस फ़ट फ़टाई की जो मजाक हमने ली कि वापसी तक बार-बार ये फ़टने की बात याद आ जाती थी। एक बात और इनकी ये ऐसी फ़टी जो निरमुंड जाकर टेलर की दुकान पर ही सिली।
नारकंडा से बीस किलोमीटर पहले ही थे कि जोरदार बारिश ने हमारा स्वागत किया, हम चलते रहे वो तो शुक्र रहा कि सडक बहुत ही अच्छी थी जिस कारण हम बारिश में भी पूरे एक घंटा चलकर नारकंडा जा पहुँचे, यहाँ आते ही एक दुकान में जलेबी दिखाई दी, जलेबी को देखते ही नितिन व नीरज परेशान हो गये, नीरज जाकर एक किलो जलेबी ले आया और सबसे ज्यादा भी उसने ही खाये थी, आखिर लाल मिर्च का असर भी तो कम करना था, नहीं तो उसे अगली सुबह उसका फ़ल मिलना तो तय था। बारिश में सब भीगे हुए तो थे ही जलेबी खा कर ठन्ड लगने लगी थी। अब आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, हाँ बारिश रुक जाती तो एक बार सोचा जरुर जाता।
नारकंडा से बीस किलोमीटर पहले ही थे कि जोरदार बारिश ने हमारा स्वागत किया, हम चलते रहे वो तो शुक्र रहा कि सडक बहुत ही अच्छी थी जिस कारण हम बारिश में भी पूरे एक घंटा चलकर नारकंडा जा पहुँचे, यहाँ आते ही एक दुकान में जलेबी दिखाई दी, जलेबी को देखते ही नितिन व नीरज परेशान हो गये, नीरज जाकर एक किलो जलेबी ले आया और सबसे ज्यादा भी उसने ही खाये थी, आखिर लाल मिर्च का असर भी तो कम करना था, नहीं तो उसे अगली सुबह उसका फ़ल मिलना तो तय था। बारिश में सब भीगे हुए तो थे ही जलेबी खा कर ठन्ड लगने लगी थी। अब आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी, हाँ बारिश रुक जाती तो एक बार सोचा जरुर जाता।
गेस्ट हाऊस का अन्दर का नजारा
ये खडा पहलवान नजारे देखता हुआ
यहाँ के सरकारी रेस्ट हाऊस में तीन-तीन सौ में दो कमरे लिये, और आराम से रात गुजारी, हाँ विपिन ने सुई धागा माँगकर रात को अपनी फ़टी हुई पैंट सिलने के नाकाम कोशिश की। अगली दिन जब उठे तो मौसम एकदम साफ़ था। एक बार फ़िर फ़ोटो सैसन हुआ, नीरज को सोने को उठाया गया, समय हुआ था सुबह के साढे छ: बजे सब सात बजे तक चलने को तैयार हो चुके थे। यहाँ से सैंज नामक जगह चालीस किलोमीटर दूर है, नारकंडा से सैंज तक पॄरी ढलान है। जो कि आगे रामपुर तक रहती है।
गेस्ट हाऊस का बाहर का
चलो अब यहाँ से आगे चले। जरा ध्यान से जुराब सुखाने का नया तरीका देखो, शायद पहली बार देखा है ना।
मार्ग में किसी जगह पर था ये सुन्दर दिलकश नजारा।
ये कौरिक तिब्बत वाला बार्डर है। पहले तो हमारे समझ में ही नहीं आया था कि ये क्या बला है।
सेब चोर चोरी के सफ़ल मिशन से वापस आते हुए
एक पहाडी बुजुर्ग का जो मार्ग में जा रहे थे।
सतलुज के प्रथम दर्शन यहाँ होते है। साथ ही दो मतवाले जाटों के भी हो गये है।
चोरी किया गया सेब है। पीछे सतलुज दिखाई दे रही है।
सेब हटा के देख लो, एकदम साफ़ सतलुज दिखाई दे रही है।
हम सैंज से उल्टे हाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर जोकि अन्नी होते हुए जलोडी पास व आगे कुल्लू तक जाता है, की ओर चले गये। यह मार्ग सतलुज के किनारे पर कई किलोमीटर तक रहता है, उसके बाद यह फ़िर से सीधे हाथ पहाडों में मुड जाता है। सैंज से बीस किलोमीटर बाद अन्नी आता है हम यहाँ ठीक साढे नौ बजे आ गये थे, यहाँ अन्नी में नीरज सबके खाने के लिये डेढ दर्जन केले ले आया, यहाँ पर केले कुछ छोटे से थे। यहाँ से आगे नीरज व विपिन बस में बैठ कर जलोढी जोत तक गये, आखिरी के चार किलोमीटर कुछ ज्यादा ही कठिन थे, एकदम बेकार मार्ग था। जब हम ज्लोढी जोत आये तो बडी खुशी हुई, ये जगह है ही इतनी सुंदर व इसके आसपास एक प्यारी सी झील व एक किले के अवशेष भी हमने देखे थे जिसके बारे में अगले भाग में तब तक..................
जलोडी जोत की ओर जाते हुए
आ ही गयी जलोडी जोत
अगले भाग में
झील व किले के अवशेष व जंगल में भटकने की मजेदार सच्ची घटना के बारे में पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा
भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा
भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक
भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक
भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में
भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।
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31 टिप्पणियां:
Fabulous post and beautiful pics, Sandip. Great travel memoirs. Thanks dear.
बहुत ही ख़ूबसूरत यात्रा वृत्रांत...यात्रा दिलचस्प होती जा रही है...
सारे हिन्दुस्तान में हवलदार की एक ही प्रजाति है, न थाणेदार रहता और न सिपाही। समझ में कहाँ आएगी?
शानदार चित्रो के साथ धुवाधार यात्रा
आभार
असली आनन्द आ रहा है।
yatra aur chitron ko dekhkar to maja hi aa gaya.kuch drashya jaise fogg badlon se dhake hue pahaad sammohit karte hain.aage ki post ka intjaar.
बहुत ही अच्छा सिलसिलेवार यात्रा वृतांत आपकी यात्रा काफी रोचक होती जा रही है अगली कड़ी का इंतजार धन्यवाद् ...
Waah! Ghumiye aap, paise kharch kijiye aap.. aur maje maine le liye..
Bahut hi badhiya blog.. badhai..
bhaut achhe bhai sahab, dheere dheere lage rahiye aap, srikhand pahunch jaayenge :)
http://veerubhai1947.blogspot.com/ और भैया यहाँ नभी पधारें -
घूमें फिर कुदरत के नज़ारे परोसते जीमते करलो दुनिया मुठ्ठी में .भारत के भौगोलिक क्षेत्र की खबर दे रहे हो इन यात्रा वृतांतों के ज़रिये कुदरत के नायाब सौन्दर्य की भी .बढे चलो जवानों ....
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"फाडू महादेव" के दर्शन करने चार "फाडू" निकले ...फाडू पिक्चर्स फाडू ब्लॉग!आप को मेरा सलाम जाट देवता!!
बहुत दिनों बाद शिमला घूमकर अच्छा लगा ।
जुगाड़ देखकर तो मज़ा आ गया और खूबसूरत सेब भी ।
बाकि तो सफ़र का आनंद आ रहा है ।
बहुत ही ख़ूबसूरत ||
शानदार ||
आभार ||
आपका यात्रा वृतांत तो लाजबाब होता ही है. सारे चित्र भी मनमोहक है. जुराबे सुखाने का तरीका पसंद आया. अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
ज़बरदस्त चल रही है यात्रा.... और आप जलेबी भी खा रहे हैं.... :)
रोचक यात्रा वृतांत ...
चित्रों ने मन मोह लिया !
इस बार स्पीड कुछ बढी है। मैं तो सोच रहा था कि आज नारकण्डा में रात्रि विश्राम होगा। साथ ही ये भी तो बता देते कि श्रीखण्ड जाते जाते रास्ते से हटकर जलोडी जोत की तरफ क्यों गये जबकि श्रीखण्ड का रास्ता तो रामपुर से जाता है। अगर कोई इस लेख को पढकर जायेगा तो बेचारा वो भी बिना बात के जलोडी जोत पहुंच जायेगा। जब वहां जाकर कहेगा कि श्रीखण्ड जाना है और उसे पता चलेगा कि उसका रास्ता तो 50 किलोमीटर पहले सैंज से जाता है तो बेचारा आपको कितनी गालियां देगा। कहेगा कि खुद तो सिरफिरा है ही, हमें भी बिना बात के 100 किलोमीटर दौडा दिया।
Wonderful shots of the place. Very scenic.
bahut hi sundar
aakele aakele mast khum leya na
abhut aacha tasaver
romanchak raha
आपके ब्लॉग पर आकर मन प्रफुल्लित हो उठता है! मुझे घूमने का बहुत शौक है और मैं भारत में लगभग सभी जगह देख चुकी हूँ और विदेश में काफी देश देखना बाकि है! आपने बहुत सुन्दरता से तस्वीरों के साथ यात्रा का वर्णन किया है जिसे पढ़कर और देखकर ऐसा लगा जैसे मैं भी उसी जगह पहुँच गई! दो साल पहले मैं शिमला, कुलु और मनाली का यात्रा करने गई थी ! आपकी मेहनत और शानदार फोटोग्राफी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://www.seawave-babli.blogspot.com/
भाई फोटो देख के मज़ा आ गया. कैमरा वाला चोर मैंने पहली बार देखा है. लगे रहो गुरु....
कभी हमहूँ के लिया चला अपने संगे यात्रा पर. हमरो मन बहुत करेला घुमे के. श्रीखंड महादेव के सफल घुमाई के लिए बहुते- बहुत बधाई.
जाटों की मसखरी और कुदरत के नजारों का लुत्फ़ वो बेचारा पुलिस वाला क्या जाने ,उसने गिरधर की कुण्डलियाँ तो पढ़ीं नहीं हैं .अच्छी पोस्ट .कृपया यहाँ भी पधारें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
और यहाँ भी -http://veerubhai1947.blogspot.com/और यहाँ भी -http://sb.samwaad.com/
कमाल की तस्वीरें हैं भाई...मस्त!!! तीनो भाग अभी पढ़ा मैंने...और मैं तो केवल तस्वीरें ही देखता रह गया...
बहुत बढ़िया विवरण। तस्वीरों के कारण लंबी पोस्ट भी दिलचस्प हो गई।
गजब है भई...क्या नजारा और क्या विवरण...मन प्रसन्न हो गया.
आपके साथ भ्रमण करना अच्छा लगता है।
विवरण और चित्र दोनों अति सुंदर।
आप के ब्लॉग पर अब हम आते रहेंगे. थोड़ी व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग नहीं लिख पा रहा हूँ, मेरी मजबूरी समझ कर मुझे माफ़ करेंगे ऐसी उम्मीद है. हाँ आपके ब्लॉग पर आते रहेंगे !!
शिमला की छोटी गाडी देखकर शिमला की याद हो आई
Bhaiki photos ek se ek badhiya hai, sath me jagah to ati ati sundar hai
circuit house behtarin hai
संदीप भाई जी नमस्कार ..
आपकी घुमक्कडी का हमेशा से कायल रहा हूँ ...आपसे एक मदद की आवशयकता आन पड़ी है ..
आगामी १२ से १५ जुलाई के बीच जलोरी पास जाने का इरादा है मेरा ,हालाँकि पहले अपनी कार से जाने का प्लान था पर आपकी पोस्ट को एक बार फिर से
पढ़कर बाइक से जाने का निश्चय किया है ..कृपया मुझे बताये की इस ट्रिप के लिए ३ दिनों का समय काफी रहेगा या और दिन चाहिए,यात्रा delhi से करनी है अकेले ही. जाने के लिए मंडी की तरफ से जाऊ या नारकंडा होते हुए,कृपया मार्गदर्शन करे ..
भाई तीन दिन में आने-जाने में ही लगे रहोगे, नारकंडा से होकर जलोडी जोत तक जाओ और रघुपुर फ़ोर्ट वाली चोटी तक जरुर जाना, मात्र दो-ढाई किमी की ट्रेकिंग है लेकिन नजारे ऐसे कि जीवन भर याद करोगे। हो सके तो वापसी कुल्लू मन्डी वाले रुट, या फ़िर करसोग वाले रुट से करना।
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