गुरुवार, 7 जुलाई 2011

KASHI काशी (BANARAS बनारस) से SARNATH सारनाथ तक

प्रयाग काशी पद यात्रा-
आज आखिरी दिन हम सुबह ठीक चार बजे उठ खडे हुएआज पैदल तो नहीं जाना थालेकिन हमें डर था, कि अगर हम ज्यादा देर करेंगे, तो लम्बी लाईन में लगना पडॆगाइसलिये सुबह छबजे लाईन में लगने के लिये मंदिर के द्धार पर जा पहुँचेलेकिन द्धार पर जाकर हमें जोर का झटका धीरे से लगा, क्योंकि जिस द्धार से हम कल अंदर गये थे आज महाशिवरात्रि के दिन सारी व्यवस्था पूरी तरह बदली हुई थी।

ये वाला बोर्ड लोहे के पुल की ओर से आ रहे मार्ग पर है।



कल के कई द्धार के मुकाबले आज सिर्फ़ एक द्धार से प्रवेश कराया जा रहा थाहम उस दिशा में चलते गये जिधर हमें पुलिस के जवान ने बताया। सब तरफ़ उत्तर प्रदेश पुलिस के जवान कई सौ की संख्या में जमे हुए थेहमें लाईन मिली थाने के सामने जाकरथाने का नाम शायद लाल कुआँ था। हम लग गये जी लाईन मेंधीरे-धीरे लाईन आगे खिसकती रहीसाथ-साथ हम भीभीड इतनी ज्यादा थी कि आधा किलोमीटर पार करने में पूरा डेढ घंटा लग गया था। आज जिस द्धार से प्रवेश कराया जा रहा था वो द्धार प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर (अब नाम ज्ञान वापी मस्जिदके एकदम पीछे था। हमें इस 60-70 मीटर की दूरी को तय करने में 15-20 मिनट लग गये।

हमारे हाथों में गंगाजल से भरी हुई, एक-एक लीटर की कैन थीजब अन्दर जाकर शिवलिंग पर गंगाजल की धार बनायी तो लगा कि तीन दिन की मेहनत सफ़ल हो गयी हैआज भारी भीड के कारण मुश्किल से एक बंदे को दस सैकण्ड का समय मिल पा रहा थाजबकि कल इसी जगह पर हम तसल्ली से कई-कई मिनट रुके रहे थे। इस वर्तमान मस्जिद पूर्व का असली मंदिर के चारों और मोटे-मोटे लोहे के पाइप से बीस-पच्चीस फ़ुट ऊँचा सुरक्षा घेरा बनाया हुआ था। जिससे कि कोई तोडफ़ोड ना कर सकेलेकिन इसमें तोडफ़ोड करने की जरुरत ही क्या हैये साफ़ दिखायी देता है कि बीस-बीस फ़ुट की दीवारे प्राचीन ही हैबाद के मुस्लिम शासकों ने तोडी/तुडवायी नहीं थीछ्त व चारों कोनो में कुछ फ़ेरबदल किया गया हैसाफ़ नजर आ रहा थाकि जबरदस्ती मस्जिद बनायी हुई है।

गंगाजल अर्पण करने के बाद हम लोग एकदम फ़्री थेयहाँ से सीधे बाजार की ओर चले गये। आठ बज गये थेभूख भी लग रही थीसोचा पहले कुछ पॆट पूजा कर ली जायेउसके बाद आगे का भ्रमण किया जाये। जल्द ही एक दुकान नजर आयीजिस पर काफ़ी मद्रासी लोगों की भीड लगी हुई थीजाकर देखा कि उसने सांभर-बडा बनाया हुआ थाजो कि मेरा पंसदीदा दक्षिण भारतीय व्यंजन है। सभी को दो-दो पीस ही मिल पाये थेक्योंकि दुकान पर भीड बहुत थीदुबारा दो-दो पीस के लिये कहा गयातो पता चलाकि अभी दस मिनट लगेंगे बडे बन रहे है। तब तक नमकीन हलुवा "उपमा" का स्वाद चखा गया। यहाँ पर हमारे सबसे हल्के पहलवान जी प्रेमसिंह को पता नहीं, किस बात पर गुस्सा आ गयाहम और सांभर-बडा ना सकेमजबूरन आगे बढ गयेमैंने कहा कि खाने को कभी भी बीच में छोड कर नहीं जाते है। लेकिन मेरी बात के जबाब में कहा गया कि यहाँ नहीं खाना हैआगे कहीं भी खा लेंगेमैंने कहा कि मुझे तो सांभर-बडा ही खाना हैआप किस्मत देखोतीनों को फ़िर शाम तक कुछ भी खाने को नसीब ना हुआ।

हम यहाँ से अपने कमरे पर गयेउससे हिसाब कियाचाबी सौंप सामान उठा करसंत रविदास मंदिर की ओर चल दियेइस मंदिर के पास एक बाबा रहते थेउनके शिष्यों ने आज के दिन दूध-मेवा मिला कर लोगों में बाँटने के लिये लगाया हुआ था। सबसे पहले हमारे जवान नरेश ने जाकर एक गिलास(कुल्हड) दूध गटक लियाऔर पीते ही तुरन्त दुबारा कुल्हड फ़िर से आगे कर दिया। जो महाराज दूध देने की व्यवस्था की देखभाल कर रहा थावो नरेश को ऐसे घूर रहा थाजैसे कोई खजाना माँग रहा होपर नरेश भी कुल्हड जब तक आगे किये रहाजब तक दूध फ़िर से भर ना दिया गया। अब बारी हमारी थीहम एक-एक कुल्हड दूध से भरवा कर एक तरफ़ जा कर बैठ गयेकि घूरने वाले महाराज ने हमको दॆशी घी से बनाहल्वे का प्रसाद भी दिया। दूध व हल्वा खा पी कर हम सारनाथ के लिये चल दिये।
ये विशाल मूर्ति अब तक दर्शकों के लिये खोल दी गयी होगी।

सारनाथ जाने के लियेहम संत रविदास मंदिर से गंगा की दिशा के विपरीत सामने सीधे नाक की सीध मेंएक तिराहे की ओर चल दिये। इस तिराहे पर जाकर पता चला कि सारनाथ अभी आठ किलोमीटर दूरी पर है। पहले सोचा कि पैदल चला जायेफ़िर समय का हिसाब लगाया तो पता लगा कि अभी 12 बजा हैगाडी से जाने में ही भलाई है। क्योंकि शाम 7 बजे की वापसी की ट्रेन से घर भी तो जाना है। एक थ्री व्हीलर को रुकने के लिये इशारा कियाउसने किराया माँगा पूरे सौ रुपयेजो हमें ज्यादा लगाकिसी ने कहा कि कुछ 500 मीटर आगे जाने पर तिराहे से आपको दस-पंद्रह रुपये प्रति सवारी के हिसाब से आटो मिल जायेंगे। हम उस अगले तिराहे से बताये किराये पर आटो में बैठ गये।
यहाँ जुर्माना पूरे पाँच हजार का है

ठीक एक बजे हम सारनाथ पहुँच चुके थे। सबसे पहले उल्टे हाथ पर बन रही (अब बन चुकी होगी) बुद्ध की महाविशाल मूर्ति को देखने जा पहुँचे। इसका अभी उदघाटन होना बाकि था। यहाँ से बाहर आये तो सामने ही एक दुकान से घरवाली के लिए सलवार-शूट खरीदाऔर बाहर वाली के लिये?
संग्रहालय का बाहर से खींचा गया फ़ोटो

खैर खरीदारी कर हम यहाँ पर बने संग्रहालय में 5 रुपये का टिकट ले जा पहुँचेलेकिन बडा गुस्सा आया, जब मोबाइल व कैमरा भी अंदर न ले जाने दिया गया। नहीं तोआपको भी कुछ दिखातेइस पूरे संग्रहालय में एक छ्त्र पत्थर का बना हुआजो कोई राजा अपने सिंघासन के ऊपर रखता थासबसे ज्यादा पसंद आया था। बाकि तो सैकडों की संख्या में मूर्तियाँ थी।
ऐतिहासिक अवशेष बाकि है

ये भी है, कुछ रहस्मयी सी दुनिया

नक्शा भी मौजूद है।

सुंदर-सुंदर मार्ग व बगीचा भी है।

स्तूप के बारे में सब कुछ लिखा है।

दूर से स्तूप का नजारा

पार्क में प्रेम सिंह

इसके बाद हम इस संग्रहालय के साथ ही सडक पार करपुन: दूसरा टिकट लेकर सारनाथ की पहचान बन चुकेस्तूप के दीदार करने जा पहुँचे। यहाँ काफ़ी पुराने खंडहर संभाल कर रखे हुए हैऐसे लगते हैजैसे कोई नक्शा बनाया हुआ हो। इस स्तूप में हजारों/लाखों नहीं करोडों ईटों का प्रयोग हुआ होगा। इस स्तूप की गोलाई व ऊँचाई नीचे लिखी हुई है। 
सब कुछ लिखा हुआ है, ध्यान से पढ लो

नजदीक से लिया गया फ़ोटो है

जब हम वापस आ रहे थे। तो इस स्तूप के एकदम पास में दो बेशर्म प्रेमी युग्ल आपस में इतने मग्न थे कि दूसरों का भी ध्यान नहीं कर रहे थे। एक भाई साहब उन्हें उनके पास खडे होकर देख रहे थेमैने बेशर्म प्रेमी युग्ल व उस दर्शक की यानी तीनों की फ़ोटो ली हैदेखो बेशर्मी की हद क्या होती है, खुले आम जनता के सामने। 
बेशर्म आशिक और उसकी माशुका।

पहला उपदेश स्थल

इस स्तूप को देखकरआगे जाकर हम उस जगह गये जहाँ पर बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था। वो पेड जिसके नीचे उपदेश दिया थाआज भी है। यहाँ एक विशाल घंटा या कहो कि घंटो का बाप भी देखा है।
ये है घंटों का भी बाप गुरु घंटाल

जब सब कुछ देख चुके तो, अब बारी थी, अपने प्यारे घर जाने की, अगले भाग में सारनाथ से घर वापसी व ट्रेन में घटी, देश के लिये एक शर्मनाक व मजेदार घटना के बारे में।

29 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अपनी यात्रा याद हो आयी, सुन्दर प्रस्तुतीकरण।

Bharat Bhushan ने कहा…

सारनाथ की यात्रा मैंने की है. तस्वीरों के माध्यम से आपका विवरण बहुत बढ़िया बन पड़ा है. प्रेमियों को तो कोई भी जगह मिल जाए. इन्हें जाने दो प्यारे. अगर ये हरियाणा से आए थे तो आपने उन्हें खाप की गोद में धुनाई के लिए डाल दिया है:))

S.N.Shukla ने कहा…

बहुत सुन्दर , आपने तो वास्तव में काशी, वाराणसी और सारनाथ की यात्रा ही करा दी , आनंद आ गया , बधाई

Rajesh Kumari ने कहा…

aapke varnan aur chitron ke aadhar par kashi se saarnath ki yatra humne bhi kar li.bahut achche chitr lage.

रविकर ने कहा…

शुक्रवार को आपकी रचना "चर्चा-मंच" पर है ||
आइये ----
http://charchamanch.blogspot.com/

vidhya ने कहा…

vah je keya kuma dala ,bahut badeya

vidhya ने कहा…

vah je keya kuma dala ,bahut badeya

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

मैं तो यहीं वाराणसी के पडोसी जिले मिर्जापुर का रहने वाला हूं। सैकडों बार सारनाथ जाना हुआ है। लेकिन सच कहूं तो आज लेख को पढने और तस्वीर देखने के बाद लग रहा है कि पहली बार सारनाथ आज गया हूं।
बहुत सुंदर

Suresh kumar ने कहा…

संदीप भाई बहुत अच्छा लगता है आपकी यात्राये पढ़कर और फोटो देखकर सच में बहुत मजा आता है चलते रहो भाई बस चलते रहो काशी घुमाने का बहुत -बहुत धन्यवाद्

रेखा ने कहा…

आपके द्वारा डाले गए सारे चित्र बहुत ही अच्छे लगे और हमारी यादें एक बार फिर से तजा हो गयीं धन्यवाद

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया घुमक्क्ड़ी रही। हम भी देख आए थे।

आभार

Unknown ने कहा…

वाह, पर थोड़ा ज्‍यादा लिख डाला.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत बढ़िया रही यह यात्रा .

Vaanbhatt ने कहा…

सस्पेंस छोड़ दिया बॉस...यात्रा दिलचस्प रही...मज़ा आ गया...

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

बेशर्म आशिक, बेशर्म फ़ोटोग्राफ़र और अगली बार शर्मनाक घटना - के इरादे सैं देवता?
घुमक्कड़ी का मस्त स्टाईल है संदीप भाई, carry on.

Rahul Singh ने कहा…

'ज्ञान व्‍यापी' जैसा मेरे ध्‍यान में है, वस्‍तुतः ज्ञान-वापी (वापी यानि कुंआ, जो अब भी वहां है) है.

Unknown ने कहा…

Sandeep ji. Bahut achha laga padh kar. Aur photo mein dates waali detail nahin dekh kar aur bhi achha laga :-) Waise Varanasi jaane ka mera bhi bahut man hai aur aapka vivaran padke aur bhi inspiration mila hai.

Keep traveling keep sharing.

Unknown ने कहा…

Waise main ye puchhna chahta hun ki kya aap Khajuraho bhi gaye the (ya jaoge)? Sanchi se kaafi karib hai aur ek World Heritage Site bhi hai.

Unknown ने कहा…

Oops Sandeep jee thoda confusion ho gaya ...maine sarnath ko sanchi samajh liye. Sorry for the mistake.

KK Yadav ने कहा…

सारनाथ में ही हमारी शादी हुई थी. काफी आत्मीय लगा वहाँ का चित्रण.

premlata ने कहा…

इसी जून में हम भी गए थे। रेलवे स्टेशन के पास से सारनाथ तक पचास रुपया एक सवारी आटो-रिक्शा का किराया दिया था।

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति,
अपनी यात्रा की यादें ताजा हो गयीं,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Sunny Dhanoe ने कहा…

Nice Description..
Keep Sharing your Experiences with us..thx :)

Regards,
Sunny Dhanoe
http://wolfariann.blogspot.com/
http://radiopunjab.blogspot.com/

virendra sharma ने कहा…

सार नाथ की यात्रा में तो कई सार -तत्व आपने दे दिए-खाना छोड़ के नहीं जा चाहिए ,बेशर्मी तेरा ही आसरा .....और वह रोमांस आपके द्वारे -.......और भैया घंटा -घड़ियाल को गुरु -घंटाल कैसे कह दिए -गुरु घंटाल कहतें हैं "छटे हुए बदमाश को ,आजकल के गुरुओं को ...........मज़ा आ गया .और गुरु का हाल बा ?हों कहां?

sm ने कहा…

nice info
like the line ghanto ka baap
they should allow camera inside

चन्द्रेश कुमार ने कहा…

मैं भी वाराणसी से 3० किमी की दुरी पर मिर्ज़ापुर जिले में रहता हूँ. भाई कुछ खासियत बनारस में और भी है.
१. यहाँ किसी से अगर फ़ोन पर बात करके उसे बुलाओगे तो वो यदि कहता है की १० मिनट में आऊंगा तो समझ लेना 2 घंटे में आएगा.
२. भाई आपने सारे घाट घुमा है तो अस्सी पर पप्पू के चाय के दुकान पर चाय जरुर पी होगी अगर नहीं पी है तो कोई बात नहीं अगली बार आना तो पीना. यहाँ की खासियत है की रोज़ शाम को बी. एच. यु. के प्रोफ़ेसर और तमाम लोग अपने दिमाग की खुजली मिटने आते हैं.
विनोद दुआ न्यूज़ पत्रकार पप्पू के दुकान की चाय पी कर ही चैनल तक पहुंचे.
अभी कुछ ही दिनों में सन्नी देओल की फिल्म 'मोहल्ला अस्सी' रिलीज होने वाली है ये फिल्म भी इसी दुकान पर आधारित है .
३. बी. एच. यु. गेट के पास एक टंडन जी की चाय की दुकान है.
इस दुकान की खासियत ये है की यहाँ कम से कम ३ प्रधानमंत्री और न जाने कितनी बड़ी बड़ी हस्तियाँ चाय पी चुके हैं और न जाने कितने बड़े लोग कर्जदार हैं.

चन्द्रकांत दीक्षित ने कहा…

मैं भी जब जुलाई २०१० में सारनाथ गया था तब भी कई बेशर्म आशिक देखे थे.

Teamgsquare ने कहा…

Very nice place to explore , thanks for sharing .

virendra sharma ने कहा…

लो जी दोबारा साक्षी बने इस यात्रा वृत्तांत के .हाजिरी लगानी थी .अटेंडेंस कम न हो जाएँ .

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