अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान स्थल के दर्शन करने के बाद हम इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर नहीं गये। हम सीधे आनन्द भवन की ओर चले आये। ये दोनों जगह मुश्किल से एक किलोमीटर से भी कम के फ़ासले पर है। आजाद पार्क से चलने पर एक चौराहा आता है, जहाँ से एक मार्ग सीधे हाथ संगम की ओर व उल्टे हाथ आनन्द भवन की ओर जाता है।
ये है आनन्द भवन, प्रयाग में
इसके बाहर घास के मैदान में मेरा भी
चौराहे से लगभग दो-तीन सौ मीटर चलने के बाद ही सीधे हाथ की ओर आनन्द भवन आ जाता है। ये सुबह साढे 9 बजे खुलता है। हम भी ठीक बिना जाने नौ पच्चीस पर यहाँ आ चुके थे। ज्यादा भीड-भाड तो नहीं थी, लेकिन फ़िर भी बीस के आसपास तो बंदे थे ही।
घर से प्रयाग>यमुना घाट>मिंटो पार्क>चन्द्रशेखर आजाद पार्क> की यात्रा के लिये यहाँ क्लिक करे
चौराहे से लगभग दो-तीन सौ मीटर चलने के बाद ही सीधे हाथ की ओर आनन्द भवन आ जाता है। ये सुबह साढे 9 बजे खुलता है। हम भी ठीक बिना जाने नौ पच्चीस पर यहाँ आ चुके थे। ज्यादा भीड-भाड तो नहीं थी, लेकिन फ़िर भी बीस के आसपास तो बंदे थे ही।
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लाल कमीज वाले नरेश, सफ़ेद कमीज वाले प्रेमसिंह
प्रयाग में सडकों का ऐसा जाल है जिससे आप कही के कही पहुँच सकते है। सभी मार्ग टेढे-मेढे है, मुश्किल से ही कोई मार्ग एक-दो किलोमीटर तक एक-दम सीधा है। हम पहली व शायद आखिरी बार इस आनन्द भवन में आये थे। जिस कारण से इसको तसल्ली से घूम-घूम कर सारा का सारा छान मारा कि कहीं कुछ रह ना जाये। इस भवन के भूतल को देखने का कोई शुल्क नहीं है, पर पहली मंजिल के देखने के दस रुपये लूटने के लिहाज से ही माने जायेंगे। बस थोडा बहुत सामान यहाँ पर रखा हुआ है, बिल्कुल वैसा, जैसा दिल्ली के तीनमूर्ती भवन में रखा हुआ है।
ये रहा खटपट कक्ष, यानी मंत्रणा कक्ष,
सन 1906 में मोतीलाल के पास कार थी। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि ये परिवार उस दौर में भी कितने पैसा वाला रहा होगा। पैसों वाले की हर दौर में तूती बोली है। ये कार का फ़ोटो इस आनन्द भवन के पीछे बनी फ़ोटो की झांकी में से खींचा था। जहाँ हजारों फ़ोटो लगे हुए है। इस के साथ इन की परिवारिक वंशावली का फ़ोटो भी लगा हुआ है। नेहरू की वसीयत नाम से भी एक फ़ोटो था जिसमें भी कुछ लिखा हुआ था।
देख लो 1906 में इन रईसों के पास कार थी, तो क्यों ना बनते प्रधानमंत्री?
इस भवन के एक किनारे पर तारामण्डल बना हुआ है, जो बिल्कुल ठीक वैसा ही है, जैसा कि दिल्ली में बना हुआ है। इस तारामण्डल का शुल्क पच्चीस रुपये है। इस भवन में सोमवार को अवकाश रहता है।इस आनन्द भवन के बारे में बहुत सी ऐसी बाते है, जो मुझे अपने ब्लाग पर बतानी ठीक नहीं रहेगी। जैसे कि ये किसने बनवाया, असली मालिक कौन था। इस भवन से किसी मुस्लिम का क्या सम्बंध है, आदि-आदि,
सफ़ेद फ़ूलों की बहार
प्रेमसिंह पीले फ़ूल के सामने
पवाँर भी पीले फ़ूल के सामने
प्रेमसिंह
अपुन भी
आनन्द भवन में रहने वाले नेहरु व अन्य नेता के कार्य-- आजादी से पहले एक बार नौसेना ने अंग्रेजों से मुक्ति संग्राम छेड दिया। जिसकी जिन्ना, नेहरु, गांधी, व कई नेताओं ने निन्दा की थी, सहयोग नहीं। अंग्रेजों ने गांधी के कारण नहीं, भारतीय सेना के सशस्त्र विद्रोह के डर से, ये देश छोडा। गांधी का अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन तो 1947 से बहुत पहले (1942 में) ही समाप्त हो चुका था।
इस विद्रोह के बारे में ज्यादा जानने के लिये यहाँ क्लिक करे इस परिवार की असलियत जानने के लिये ... यहाँ भी जाकर देखे। नेहरु खानदान की हकीकत के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहाँ क्लिक करे, ................ दूसरा ऐसा ही कुछ सच मिलेगा यहाँ भी देख लो,
आनन्द भवन में रहने वाले नेहरु व अन्य नेता के कार्य-- आजादी से पहले एक बार नौसेना ने अंग्रेजों से मुक्ति संग्राम छेड दिया। जिसकी जिन्ना, नेहरु, गांधी, व कई नेताओं ने निन्दा की थी, सहयोग नहीं। अंग्रेजों ने गांधी के कारण नहीं, भारतीय सेना के सशस्त्र विद्रोह के डर से, ये देश छोडा। गांधी का अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन तो 1947 से बहुत पहले (1942 में) ही समाप्त हो चुका था।
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पेड के नये-नये पत्ते
इस बोर्ड को जरा ध्यान दे पढ लो भाई
जब आनन्द भवन का जिक्र हो व गुलाब की बात ना चले तो लो जी यहाँ नीला व काला गुलाब छोडकर लाल, पीले, गुलाबी, गुलाब जरुर थे। एक फ़ोटो आपके लिये।
अरे हाँ ये तो रह ही गया था।
आनन्द भवन देखकर, हम तीनों बंदे बाहर उस तिराहे की ओर आ गये, जिस से हमें संगम की ओर जाना था, यहाँ पर प्रेमसिंह ने अपने एक दोस्त, जो कि प्रयाग के ही रहने वाले है, फ़ोन करके बुला लिया था वो भी काफ़ी देर तक हमारे साथ रहे। यहाँ पर मुझे छोडकर तीनों बंदों ने चाय का स्वाद चखा। मैंने चार लड्डू गटक लिये। हम लड्डू घर से लेकर आये थे। पूरे तीन किलो थे, तीन बंदों के लिये।
ये मंदिर संगम की ओर जाते समय चौराहे के पास आता है
यहाँ पर हमने कुछ अजीब तरह के तांगे देखे जिस पर तीन-चार लोग ही सवारी कर पाते है। हम भी इस तांगे पर सवार हो गये, जिसने हमें इस मंदिर के पास राष्ट्रीय मार्ग के किनारे पर लाकर पटक दिया। यहाँ से किला लगभग 2 किलोमीटर के आसपास रहा होगा। हम आराम से सुबह की तरह टहलते हुए किले के पास जा पहुँचे। यहाँ पर आकर हमने अपनी दाडी बनवायी, कुछ जरुरी सामान की खरीदारी की। अब हम चल पडे संगम की ओर...........
जहाँ से हमें अपनी पैदल यात्रा की शुरुआत करनी थी, गंगाजल को साथ लेकर काशी धाम की ओर
अगली किश्त में, पैदल यात्रा के बारे में, जिसमे मात्र साढ़े तीन दिन लगे, दूरी रही 125 किलोमीटर,
इलाहाबाद-काशी यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-इलाहाबाद आगमन, मिन्टो पार्क व चन्द्रशेखर आजाद शहीदी पार्क।
भाग-01-इलाहाबाद का आनन्द भवन।
भाग-02-इलाहाबाद गंगा-यमुना सरस्वती संगम स्थल।
भाग-03-संगम से बनारस काशी तक पद यात्रा।
भाग-04-काशी बनारस के शानदार घाट व काशी मन्दिर।
भाग-05-काशी से बुद्ध स्थल सारनाथ तक।
भाग-06-वाराणसी से दिल्ली तक का सफ़र।
भाग-01-इलाहाबाद का आनन्द भवन।
भाग-02-इलाहाबाद गंगा-यमुना सरस्वती संगम स्थल।
भाग-03-संगम से बनारस काशी तक पद यात्रा।
भाग-04-काशी बनारस के शानदार घाट व काशी मन्दिर।
भाग-05-काशी से बुद्ध स्थल सारनाथ तक।
भाग-06-वाराणसी से दिल्ली तक का सफ़र।
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प्रयाग काशी पद यात्रा-
40 टिप्पणियां:
मस्त जानकारी दी है भाई। कांग्रेसियों की अंग्रेज परायणता और भारत खिलाफी सदा से ही रही है। कांग्रेस भी भारत में केवल राज करने के इरादे से डटी है ठीक उसी तरह जिस तरह पहले मुसलमान और मुगल डटे थे।
और कई जगह आपने आनन्द को आन्नद लिखा गया है। इसे ठीक करो। और नेहरू खानदान की हकीकत के बारे में ज्यादा जानने के लिये कहां क्लिक करें- लिंक तो आपने दिया ही नहीं है।
आनंद भवन एक बार फिर से दिखाने के लिए धन्यवाद |
उत्तर भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक -ऐतिहासिक खूबसूरत शहर |
आभार ||
चलिये हम भी साथ रहेंगे बिना टिकट साथ ही कुछ व्यंजनो का उल्लेख रहे तो हमारा पेट भी भरता रहेगा और मन भी
आपने सुन्दर चित्रों के द्वारा आनंद भवन प्रयाग का सैर करा दिया! एक से बढ़कर एक तस्वीरें हैं जो बड़ा ही मनमोहक लगा! चित्रों के साथ साथ सुन्दर वर्णन किया है आपने ! उपयोगी एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई! बहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट!
बढिया यात्रा चल रही है,
जल-यात्रा तो हमने भी की है।
मिलते हैं अगली पोस्ट पर।
तस्वीरें इतनी सुन्दर हैं कि इस पोस्ट ने मन मोह लिया। अब तो देखने का मन हो आया। शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर चित्र एवं उम्दा जानकारी । मेरे सामान्य ज्ञान में वृद्धि हुयी।
आभार।
आनंद भवन का इंटीयर दिखाने के लिए धन्यवाद. पहली बार देखा है. आपकी टिप्पणी सही है कि मोती लाल नेहरू अपने समय के धनाड्य व्यक्ति थे और आनंद भवन उनकी जीवनशैली के अनुरूप था. इसका ऐतिहासिक महत्व भी है.
बहुत खूब ..प्रयाग पहुच गए ? आन्न्द भवन की सुन्दर फोटो देखी ..अच्छा लगा..लगता है आप के साथ हम भी प्रयाग धूम रहे हैं...धन्यवाद
जय हो जाट देवता की पहली बार पढ़ रहा हूँ और पढ़ते ही मुग्ध हो गया।
Good informative post and nice pics .
आपका यात्रा वृतांत मनमोहक और प्रेरणादायक होता है नीरज जी. पाठक आपके साथ साथ स्वयं को घूमता हुआ महसूस करता है यह सब आपके लेखन के कारण ही संभव हो पाता है.
रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार.
आनंद भवन से चलकर जाट देवता यहाँ पहुंच गये हैं।
स्वागत है।
बहुत ही बढ़िया फोटो और जानकारी.....
Nice place with beautiful garden. Great details.
वाह ...बहुत खूब ...बेहतरीन खूबसूरत जानकारी दी है
आनंद भवन ...आप ने पोल खोल दी बड - बोलो की ! जबरदस्त लगी १ बढ़ते रहे ...हम भी आपके साथ सफ़र पर है ! बधाई !
आनंद भवन दिखाने के लिए धन्यवाद |
तांगा कहाँ मिल गया...मुझे भी देखे काफी दिन हो गये...संगम के आस-पास चलता होगा...
बढिया यात्रा चल रही है,चित्रों के साथ साथ सुन्दर वर्णन किया है आपने !!!
पौलिटिक्स से हमें क्या लेना देना भाई ।
सचित्र बढ़िया जानकारीपूर्ण प्रस्तुति बहुत भायी ।
nice post
thanks for the pic of car.
दोस्त अब बचा ही क्या है इस वंश वेळ के बारे में जानने को जो अमर बेल बन चुकी है .एक बार फिर आपका आभार बहुत ही सार्थक उल्लेख संयमित भी तमाम घटनाओं और सन्दर्भों का .हम तो ज़नाब को दो दिन से ढूंढ रहे थे चलो . हाथ तो आये .कमी हमारी ही तलाश में रह गई होगी .
जानकारी भरा आलेख. आभार.
प्रभु हमार कमेंटवा...नहीं छापे...बहुत बेइंसाफी है...
वाह आपके साथ एक बार फिर आनंद भवन घूमने का मौक़ा मिला. धन्यवाद.
अन्तर सोहिल व एक अन्य के साथ नैनीताल व आसपास के ताल को देख कर आया हूँ। अब सबकी खबर लेते है, कि कौन क्या कर रहा है।
निसंदेह आनंद भवन प्रयाग का सैर करा दिया!आप का स्वागत है और आप मेरे ब्लॉग के समर्थक बने उसके लिए आप का बहुत-बहुत आभार !!
धन्यवाद...
आपने तो बैठ बिठाए प्रयाग दिखा दिया ! बहुत सुन्दर तसवीरें हैं |
दोस्त अंग्रेजी में एक मुहावरा है -थिंक ऑफ़ दी डेविल एंड डेविल इज देयर -इसका हिंदी के नाम पर अपनी बिन्दी चमकाने वालों ने शाब्दिक अनुवाद कर दिया है -शैतान को याद करो शैतान हाज़िर है .आप क्या समझतें हैं गोरे इतने पागल हैं .इसका भावानुवाद है -जिस अपने चहेते ,सुप्रिय पात्र को आप याद कर रहे थे वह हाज़िर है ।
आपको याद ही कर रहा था .अपना भाई साहब किधर गया कैमरे वाला घुमंतू ,ब्लॉग देखा तो वह चले आ रहें हैं .शुक्रिया संदीप भाई इस नेहा के लिए .नैनी से खाली हाथ नो नहीं आये होंगें .छायांकन की सौगात साथ लिए होंगें .अग्रिम धन्यवाद .ये इस्साला ओब्सेसन है ही ऐसा .
हमने तो इलाहाबाद जाकर भी आनन्द भवन न देखा, अल्फ़्रेड पार्क में माथा जरूर टेक आये थे। आज हिन्दी में इतिहास और पढ़ लिया।
नैनीताल वाली पोस्ट की इंतज़ार रहेगी भाई।
तो आप हमारे घर इलाहबाद भी घूम आये आनंद से आनद भवन -मान गए उस्ताद घुमक्कड़ी जी -बड़े हनुमान गए जो लेते हैं ??- किले और जमुना की फोटो नहीं ली ? अब कहाँ बनारस काशी विश्वनाथ जय भोले -गंगा जाना -हनुमान जी का दर्शन करना -वी यच यु में लेक्चर दे आना
शुक्ल भ्रमर ५
जोंक पाल की चिंता छोडो नैनी ताल की पोस्ट लगाओ .शुक्रिया !
We are also Congress men :-
इन दिनों दिल्ली में हलचल मची हुई है और सभी बदहवास हैं .खबर यह है कि वित्त -मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के मंत्रालय की जासूसी की गई है .यानी सरकार के अन्दर ही गृह -युद्ध छिड़ा है ।
शायद इसीलिए प्रणव मुखर्जी ने प्रधान मंत्री को एक साल पहले इस बाबत पत्र लिखा था .नियमानुसार उन्हें यह पत्र गृह मंत्री चिदंबरम को लिखना चाहिए था पर जो खुद शक के दायरों में हों ,उन्हें भारत सरकार का वरिष्ठ -तम मंत्री और वह भी वित्त मंत्री पत्र क्यों लिखता ।
भारत के गृह मंत्री चिदंबरम पर हाई -कोर्ट में दो साल से इस आशय का मुकदमा चल रहा है ,संसदीय चुनाव में जय ललिता की पार्टी के एक उम्मीदवार से हार जाने के बाद उन्होंने छल -बल से अपने पक्ष में चुनाव जीतने की घोषणा करवा दी थी .ये सब कुछ सरकार के नोटिस में है .पर सरकार बिचारी क्या करे ?
उसे तो किसी न किसी को गृह मंत्री बनाना था ,क्या पता चिदंबरम से भी ज्यादा बुरा व्यक्ति पद पर बैठ जाता तो सारी पोल खुल जाती .अब सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे ।
नैतिक दृष्टि से यह पद चिदंबरम को स्वीकार नहीं करना चाहिए था .पर कांग्रेस का नैतिकता से क्या सम्बन्ध ?
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा .जिस पर कोढ़ में खाज हो गई है .अब गृह मंत्री पर यह इलज़ाम जाने अनजाने चस्पां हो रहा है ,शायद उन्होंने ही जासूसी करवाई है .आगे खुदा जाने .और यह तो किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस का खुदा कौन है ।
(ज़ारी ...).
पृष्ठभूमि थोड़ी धुंधली होने के बावजूद,तस्वीरों को देख मन प्रसन्न हो गया।
शुक्रिया संदीप भाई .आपकी अगली किश्त प्रतीक्षा रत है .
Great building. Glad you posted the sign shot or I would never guess it's Nehru's Memorial. :-)
रेडिओ दूरबीन और इलेक्त्रों माइक्रो -स्कोप दोनों से लैस लगते हो संदीप भाई .इधर हमने लिखा ,उधर आपने बांचा और कह दी "कही "-जय च्युइंगम सरकार की .आनंद भवन की .
this is a great place and this is a very nice and thout
Dear sandeep bhai,there is a huge difference between facts & fiction. U have every right to criticise Nehrujee, gandhijee, Congress or whatever u like. But u need to know that after 1942 quit India movement, a dialogue among congress, Muslim league & British government began about how to transfer power in India. It was a complex exercise whose outcome was partition & independence. Lord Atlee came to the scene only after the end of 2nd world war, after the loss of Churchill in general election, till then so many things were finalised.
In 1946 undevided India was preparing for the election of constituent assembly when mutiny of royal Indian navy took place. That is why Congress kept distance from it. Not only gandhi nehru but vallabh bhai patel also. But the irony is this that in the same era Congress fought legal battle for subhash bose Indian national army(nehru went to court under the chairmanship of bhulabhai desai as a defence lawyer).
I salute those marteeyers of RNI but to abuse other is not judicious in my opinion. It is not expected from balanced personality like u.
U have provided link of a baised blogger. There r thousands of authentic pages r available on net. All of us should consult these before formalising any perception into facts.
Anyway sorry for preaching. I am a great fan of ur blogs. I wandered most parts of uttrakhand on my 100cc bike due to inspiration caused by ur blogs.
Again u r requested to be little bit care ful b4 mixing facts & fiction. Ur admirer friend-anand kumar jha, teacher
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