केदारनाथ से वापस आते समय ही बनारस का कार्यक्रम बना लिया था। कुल छ: बंदे जाने के लिये तैयार थे। बस यह रह गया था कि जाना कब है, अब शिव का घर हो और महाशिवरात्रि का मौका हो, इससे बडी बात और क्या हो सकती थी। वैसे तो अगस्त में ही ये कार्यक्रम बन गया था कि महाशिवरात्रि के मौके पर यहाँ जाना है, जो कि 2 मार्च 2011 को आनी थी अब यहाँ पर बाइक वाली बात मेरे अलावा किसी ने नहीं मानी। अत: मैं भी उनके साथ ही हो लिया।
लो जी अपुन भी आ गये प्रयाग
तय हुआ कि रेल से आना-जाना किया जायेगा। आजकल तो भीड-भाड इतनी रह्ती है कि दो महीने पहले ही सारी सीटॆ फ़ुल हो जाती है, जिस कारण पहले ही सीट आरक्षण करा लेना बेहतर लगा, जब टिकट के लिये पैसों की बात आयी तो एक बंदे का दिल्ली से इलाहाबाद तक दुरंतो से जाने का किराया, व बनारस/काशी/वाराणसी से नई दिल्ली तक शिव गंगा ट्रेन से आने का किराया कुल छ: सौ सोलह रुपये था। जब हमने टिकट के लिये कहा तो कई बोल्रे भाई आप टिकट ले लो, मैं आपको पैसे दे दूंगा। हम भी ऐसे धोखे पहले भी खा चुके थे, इसलिये मैने कहा जिसे जाना है वो आधे पैसों का अभी(२० दिसम्बर में) प्रबंध कर दे नहीं तो अपना टिकट खुद लाना होगा। केवल दो बंदों ने मेरे अलावा आधे पैसे मुझे टिकट के लिये दे दिये। मैंने तीन टिकट करवा दिये।
य़ू रा टेशन के बाहर का, यानि रेलवे स्टेशन के बाहर का
जनवरी आयी, फ़रवरी आयी, यात्रा की दिनांक २५ फ़रवरी भी आ गयी। हमारी यात्रा पर जाने की ट्रेन थी, रात में ११ बजे थी, जिसके लिये शाम को सात बजे एक बार मिलने की बात तय हुई, तब पता चला कि एक पहलवान (मामा) अखाडा (यात्रा) छोडने का मन बना चुका है, अब बचे हम दो बंदे, समय केवल तीन घंटे, सोचा यार अब क्या करे, लेकिन मेरे साथ प्रेमसिंह मजबूती से खडा हुआ था बोला यार क्यों चिंता करता है। मैं आधे घंटे में किसी ना किसी को मना लूंगा। अब क्या करता मान ली प्रेम की बात और कह दिया कि नौ बजे तक मेरे पास आ जाना है, चाहे कोई मिले या नहीं। जब सवा नौ बज गये तो ना प्रेम का पता, ना ही नये बन्दे के बारे में कोई खबर मिली, अपनी खोपडी खराब कि यार अच्छे दोस्त पल्ले पडे है जो वक्त पर धोखा देते है, फ़ोन मिलाया तो स्वीच आफ़, मैं अकेला तैयार होकर स्टेशन की ओर चल दिया, कि तभी प्रेमसिंह के साथ एक अन्य बंदा जिसका नाम नरेश है, आते हुए मिल गये मेरी जान में जान अयी कि चलो भाई अब ये यात्रा अकेले तो ना करनी पडेगी।
ये है, यमुना का घाट पुल व किले के बीच में
यहाँ जो पुल बना हुआ है ठीक ऐसा ही पुल दिल्ली के वजीराबाद में बनाया जा रहा है, तारों के सहारे झूलता हुआ।
हम काफ़ी लेट हो गये थे, इसलिये फ़टाफ़ट आटो पकड शाहदरा दिल्ली के मेट्रो स्टेशन पर रात के १० बजे तक आ गये थे। यहाँ से वाया कश्मीरी गेट होते हुए नई दिल्ली तक मेट्रो से जाना था, लेकिन कश्मीरी गेट पर जब तकनीकी समस्या के कारण बीस मिनट तक मेट्रो नहीं आयी तो लगा कि अब बीस मिनट शेष है,पहुँचना असम्भव है कि तभी उदघोषणा हुई कि मेट्रो में आयी तकनीकी समस्या दूर हो गयी है, ट्रेन दो मिनट में आ रही है। जैसे ही मेट्रो ट्रेन आयी हम भाग कर घुस गये लोग हमें ऐसे देख रहे थे जैसे पहली बार मेट्रो में बैठे हो। मन ही मन उपरवाले को याद किया, उसका आभार जताया। हम ठीक ११ बजे पर प्लेटफ़ार्म पर आ चुके थे, प्लेटफ़ार्म बिल्कुल खाली था. हम समझे कि ट्रेन जा चुकी है, जबकि ट्रेन अभी लगी ही नहीं थी।
हम हताश होकर बैठ गये कि यार सारी मेहनत बेकार गयी कि तभी किसी ने कहा कि इलाहाबाद दुरंतो सामने वाले प्लेटफ़ार्म पर लगायी जा रही है। यह सुनते ही हमारी खुशी कई गुणी हो गयी। ट्रेन आयी और हम अपने डिब्बे में अपनी-अपनी सीट पर जाकर लुढक गये। जब ट्रेन चली तो समय था, रात के ११ बज कर बीस मिनट, कब नींद आयी हमें नहीं पता, जब आख खुली तो, पता चला कि प्रयाग/इलाहाबाद आने वाला है, दिन निकल आया था, समय हुआ था ठीक छ: बजे, हम इलाहाबाद की धरती पर पाव रख चुके थे। ये धरती शहीद चन्द्रशेखर आजाद के कारण, गंगा व यमुना के मिलन संगम के कारण प्रसिद्द है।
इसे भी बताना पडॆगा के, लिख तो रहा है, पढ लो
सबसे पहले शुरु हुआ फ़ोटो सैसन का, अरे हाँ कैमरा इस हबड-तबड में घर पर ही रह गया था, अब काम चलाना था, मोबाइल से, आप भी देखो, मोबाइल की आँख से ये यात्रा, स्टेशन से बाहर आकर, हम सीधे पहुँचे यमुना किनारे नये पुल के पास मिन्टो पार्क के सामने इस पार्क को अन्दर से देखा जाये तो बहुत ही अच्छा बनाया हुआ है, लेकिन इसकी जो दुर्दशा आज बनाई हुई है, उसकी जितनी निन्दा की जाये, उतनी कम है। यहाँ पर पता नहीं किस का कब्जा है बोर्ड भी ऐसा लगा रखा है कि जैसे आम जनता की तो कुछ औकात नहीं होती है।
ये बना रखा है स्तम्भ
पार्क की एक पगडण्डी का नजारा
रास्ता ही बन्द कर रखा था तो आगे ना जाना, उल्टा मुड ले भाई
ये रहा आजाद पार्क का मुख्य द्दार
हम यहाँ से सीधे गये चन्द्रशेखर आजाद पार्क जिसको कम्पनी बाग के नाम से भी जाना जाता है। यही पर सन २७ फ़रवरी १९३१ को चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजो से लडते हुए शहीद हो गये थे, लेकिन यहाँ पर एक बात बतानी आवश्यक है कि आजाद ने ये कसम खायी थी कि वो जीते जी अंग्रेजो के पकड में नहीं आयेंगे। साथ ही उन्होने ये कसम भी खायी थी कि जब तक भारत आजाद नहीं हो जायेगा, तब तक पूरे शरीर पर कपडा धारण नहीं करेंगे। कहते है कि किसी देशद्रोही ने अंग्रेजों को खबर कर दी थी कि आजाद पार्क में किसी से मिलने वाले है। आखिरी समय उनके पास गोलियाँ भी खत्म हो गयी थी। जब आखिरी गोली बची तो आजाद ने उससे अपनी देह को आजाद करा दिया। अंग्रेज आजाद से इतने डरते थे कि आजाद के मरने के एक घंटा तक उन्होंने इन्तजार किया, कि कही आजाद चालाकी तो नहीं कर रहा है, जब अंग्रेज आजाद के पार्थिव शरीर के पास जाने लगे तो दूर से एक गोली मार कर पहले ये पक्का यकीन किया कि सचमुच आजाद अब जिंदा नहीं है। ये इस देश का दुर्भाग्य ही तो है कि ऐसे नौजवान असम्य मौत के आगौस में चले गये। अंग्रेजों ने वो पेड भी कटवा दिया था जिसके नीचे आजाद शहीद हुए थे।
ये रहा आजाद का शहीद स्थल
शहीद स्थल का सम्मान करे
एक ये भी है
आओ नमन करे
जारी रहेगी यात्रा अगले लेख में भी।
इलाहाबाद-काशी यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-इलाहाबाद आगमन, मिन्टो पार्क व चन्द्रशेखर आजाद शहीदी पार्क।
भाग-01-इलाहाबाद का आनन्द भवन।
भाग-02-इलाहाबाद गंगा-यमुना सरस्वती संगम स्थल।
भाग-03-संगम से बनारस काशी तक पद यात्रा।
भाग-04-काशी बनारस के शानदार घाट व काशी मन्दिर।
भाग-05-काशी से बुद्ध स्थल सारनाथ तक।
भाग-06-वाराणसी से दिल्ली तक का सफ़र।
भाग-01-इलाहाबाद आगमन, मिन्टो पार्क व चन्द्रशेखर आजाद शहीदी पार्क।
भाग-01-इलाहाबाद का आनन्द भवन।
भाग-02-इलाहाबाद गंगा-यमुना सरस्वती संगम स्थल।
भाग-03-संगम से बनारस काशी तक पद यात्रा।
भाग-04-काशी बनारस के शानदार घाट व काशी मन्दिर।
भाग-05-काशी से बुद्ध स्थल सारनाथ तक।
भाग-06-वाराणसी से दिल्ली तक का सफ़र।
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प्रयाग काशी पद यात्रा-
43 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर लगा ये आलेख । सुन्दर चित्रों की झांकियां भी । जीवन में एक बार प्रयाग जाने का अवसर मिला था , जब मैं NCC में थी। पूरे देश से तकरीबन १००० केडेट्स का कैंप 'फफामाऊ' एअरपोर्ट पर लगा था । उसी दौरान , संगम और हाई-कोर्ट आदि देखने का मौका मिला था।
संदीप जी बहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति है हमने तो मुफ्त में यात्रा करली लेखन शैली तो और भी अच्छी है |
इब आग्गे चलते हैं भाई.......:)
मुझे इलाहाबाद जाने का अवसर अभी तक नहीं मिला. आपके वर्णन का पूरा लाभ उठाया है.
बहुत लगाव है इलाहबाद से |
पार्क से चार किलोमीटर आगे
MNNIT इंजिनियरिंग कालेज में बेटा पढ़ा है.
जीवन्त हो उठे पिछले प्रवास ||
आभार
रोचक विवरण....
अगले भाग का इंतज़ार
बहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति| धन्यवाद|
देवता जी सुन्दर वर्णन ! इलाहाबाद की तरफ से पास हुआ हूँ पर सिटी अभी नहीं घुमा हूँ ! अच्छे दर्शन ...अगले अंक का इंतज़ार रहेगा !
बड़ा अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर। प्रयाग की यात्रा भी हो गयी और आजाद चन्द्रशेखर के बारे में भी जान लिया।
मै इलाहाबाद का बाशिंदा हूँ...पर आपकी नज़र से उसे देखना बहुत अच्छा लगा...अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा...
अरे ! संदीप भाई,
प्रयाग भी घूम आये, हमे बताया भी नहीं, ये नये बंदे कौन है, आगे की किश्त का इंतजार रहेगा।
हमारे यहाँ कब आ रहे हो,
बाइक से मुम्बई, गोवा, घूम कर आयेंगे।
विवरण जनोपयोगी है.
संदीप जी बहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति है |
मै इलाहाबाद का निवासी हूँ...पर आपकी नजर भी क्या चीज है मानना पडेगा आपको | किन्तु अब यंहा पहले जैसा सुरिक्षित माहौल नहीं रहा| पर आपकी नज़र से उसे देखना बहुत अच्छा लगा
कुछ बात है इलाहाबाद में कि दिल इमोशनल सा हो जाता है। कभी गया नहीं हूं।
once again a start of great journey
your mobile pics are beautiful
बहुत ही खूबसूरती से प्रयाग -दर्शन करा दिया आपने. हर फोटोग्राफ ने वर्णन को सजीव कर दिया है.वृत्तान्त पढ़ कर आज का दिन पवित्र हो गया.देवता के सानिध्य को सार्थक कर दिया.
यात्रा से पूर्व क्या कुछ चल रहा होता है दिमाग में और तैयारी के स्तर पर,विस्तार से जाना। इतिहास की यादों को ताज़ा करना भी अच्छा लगा।
प्रति -लोक -संघर्ष" का झंडा उठाकर चलने वालों के खून की जाँच करवाई जाए ,यह जय -चन्दों और मीर -जाफरों के वंशज निकलेंगें .इनके आनुवंशिक ह कुरेद दिया भाई संदीप आपने आहत मन को .इस देश में शहीदों के साथ यही व्यवहार है .इन दिनों एक "लोक -संघर्ष "नामी गिरामी वीरसावरकर के भी पीछे पड़ा है .राम देवजी और सावरकर दोनों को भगोड़ा और सरकारों से माफ़ी मांगने वाल बतला रहा है .इनका बस चले तो काला पानी से इनकी प्रतिमा उखड -वादे,इन्हीं से सीधी बात आपके इसयात्रा वृत्तांत पे आज मेरी टिपण्णी है : इन दिनों कुछ लोगों ने लोक
संघर्ष के नाम पर एक प्रति -संघर्ष चला रखा है .इन्हें स्वामी राम देव और वीर सावरकर एक ही केटेगरी के माफ़ी मांगने वाले लग रहें हैं सरकारों से क्रूर निजामों से .शम्स्शुल हक़ इस्लामों के पुजारी इन लोगों से सीधी बात को बहुत बे -चैन है ये मन -
ये वे लोग हैं जिन्हें देश से अंग्रेजी राज के चले जाने का दुःख सता रहा है ।
ये जितने भी गुलाम मानसिकता के लोग चन्द्र वे शेखर पार्क भी इसीलिएउपेक्षित है करना जानते ही नहीं .इनकी देह भले ही हिन्दुस्तान की मिटटी की बनी हो लेकिन इनके भीतर जो मन है वह उस मार्क्सवादी जूठन से बना है जिसकी हिन्दुस्तान के बारे में जानकारी बहुत ही निचले स्तर की थी .और जिसके दिए हुए फलसफे के तम्बू आज पूरे विश्व में उखड़ चुकें हैं .ये मार्क्स -वादी बौद्धिक गुलाम (भकुए )क्या जाने कि आज़ादी क्या होती है .और आज़ादी के लिए लड़ने वाले शहीद किस मिटटी के बने होतें हैं ।
अगर सावरकर ने सरकार से माफ़ी मांग कर अपनी जान बचाई थी ,दो जन्मों का कारावास मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामों के बाप ने दिया था ।?
हमारा मानना है इस'" स्ताक्षर लिए जाने चाहिए . वृत्तांत पे मेरी टिपण्णी है :chandra shekhar paark bhi isilie upekshit hai .
मोबाईल कैमरे से भी तस्वीरें अच्छी आ गई हैं...बढ़िया वृतांत...जारी रहें.
बहुत बढ़िया, इलहाबाद कई बार गया,पर आपका नजरिया खास है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सजीव प्रस्तुति. आपके नजरिये से मिंटो पार्क का वर्णन लगा मिनटों में इलाहाबाद जा आया, धन्यवाद
ख़ूबसूरत तस्वीरों के साथ शानदार और रोचक विवरण किया है आपने! ऐसा लगा जैसे बैठे बैठे आपके पोस्ट के दौरान इलाहाबाद का यात्रा करके आ गए! आपका हर एक पोस्ट बहुत ही शानदार होता है खासकर सुन्दर तस्वीरों से उसकी रौनक और भी बढ़ जाती है!
बहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति| धन्यवाद|
बहुत सुंदर चित्रमय प्रस्तुति| धन्यवाद|
आपका ब्लाग भी अच्छा लगा । बधाई
आपका ब्लाग भी अच्छा लगा । बधाई
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
वैरी गुड यात्रा वृतांत।
चन्द्रशेखर आजाद पर हमें भी बहुत श्रद्धा है। दुर्भाग्य ही है कि इनके जैसे वीरों पर इतिहास प्राय: मौन है।
अगली कड़ी के इंतजार में हैं।
allahabad se sambandhit chitra dil ko chhoo gaye. yaden taza ho gain.maine allahabad varsity se 1983 men B.A. aur 1985 men M.A. kiya tha. allahabad se dili lagaw hai.shukriya. laxmikant.
बहुत सुंदर जानकारी देती चित्रमयी पोस्ट......
शुक्रिया भाई संदीप !हम भी बस आपको ढूंढते ही रहतें हैं .मसाला धारावाहिक किश्तोंमे स्विस बेंक में '""गांधी एंड कम्पनी "के नाम से भी ला रहा हूँ .इंतज़ार मुझे भी है फिलवक्त आपकी सीख पे कायम हूँ एक दिन में एक पोस्ट ।
शुक्रिया मार्ग दर्शन के लिए .भारत लौटने पर बनारस और इलाहाबाद दोनों देखने का मन हैं .आपकी याद आएगी .
यादों में पानी दे दिया जाट देवता ने .........यानि हरी हो गई यादें!!
वैसे कंपनी बाग जवान लडके-लड़कियों के लिए आदर्श जगह है !
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत .... एक ऐतिहासिक नगरी ऐतिहासिक वर्णन तस्वीरें इस प्रस्तुति की जान हैं.
Jai Ho Jaat Devta ki ......
pata nahi kaha kaha ghar baithe ghuma dete hai badhai ke patra hai....
jai baba banaras......
घर बैठे प्रयाग की यात्रा करा दी आपने...चित्रों ने सभी रोचक स्थल दिखा दिए. ...आभार.
इस जानकारी के लिए आभार। इलाहाबाद तो कई बार जाना हुआ, पर कभी इस पार्क के दर्शन नहीं हुए। आगे से ध्यान रखूंगा।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
यहाँ खुदा है, वहाँ खुदा है...
It sure sounds like a wonderful trip with interesting shots.
आपका ब्लॉग देखा.चित्रों को देखकर पुरानी यादें ताज़ा हो गईं. १९८३ से १९८७ तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र रहा. उस दौर में अक्सर मैं कंपनी गार्डेन और संगम घूमने जाता था. हार्दिक धन्यवाद. लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी.
घर बैठे ही इलाहाबाद की यात्रा कराने के लिए शुक्रिया बहुत सुन्दर प्रस्तुति कभी प्रयाग जाने का अवसर नहीं मिला
बहुत बढ़िया | मैं तो यहाँ इस रंगीन रेल की फोटो देख के आई | पहले कभी नहीं देखा ऐसा |
बढ़िया लगी आपकी यात्रा और वर्षों बाद मैने भी फिर से यात्रा कर ली...
धन्यवाद...
Jai Bharat, Jai Hind,
Bahut hi rochak laga aapa aalek.
Interesting. The 1st photograph of Minto Park reveals a blunder about one of the greatest human beings of modern times - the Mahamana. In the display, 6th line from below states that the proposal for the Pillar in the park was passed in a meeting presided over by Pt. Madanmohan Malviya in November 1958. Malviya ji passed away more than a decade before this date. Declaration was made in 1858 by Lord Canning. Lord Minto wished to make it an event worth remembering in about 1909. Malviya ji did play a role in this context perhaps around 1918. Free India's Allahabad paints the Pillar ( one cannot read what is inscribed on the pillar) and the Display on the photographed board shows the apathy to the facts and historical importance of the place. What an irony!
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