लेह बाइक यात्रा-
सामने साँप की तरह ऊपर जाती हुई, बलखाती सडक दिखाई दे रही है, यहाँ से शुरु हुई फ़ोतूला टाप की वो चढाई, जिसे देख कर साँप सूंघ जाता है, जो सबका सब कुछ फ़ाड दे, अगाडी-पिछाडी, अंदर से बाहर से गाडी हो या इंसान सबका बुरा हाल था, इस चढाई को देखकर। ऐसी चढाई पर इंसान की बोलती तो बंद व गाडी की बोलती शुरु हो जाती है। लगे चढाई चढने बाईक का जोर एक बार फ़िर सारा लग गया, बाइक की स्पीड पूरे जोर लगाने पर भी 20 ज्यादा नहीं हो पा रही थी। खैर किसी तरह ये चढाई चढी, कुल तीन-चार किलोमीटर बाद कुछ हल्की चढाई का मार्ग आ गया, सबको बडी राहत मिली। ऊपर जा कर कई बार इस सडक का फ़ोटो खींचा, आप भी देखो। ये चढाई रोहतांग से भी भारी पडी(ज्यादा), लेकिन यहाँ बर्फ़ का नामोनिशान दूर तक भी नहीं था। इस 20-25 किलोमीटर के मार्ग में रंगबिरंगे सुनहरे स्वर्ण रंग रुप के पर्वत आते रहे हम फ़ोटो खींचते रहे, चलते रहे, आप भी देखो।
बस-बस-बस हम भी ऐसे ही देख रहे थे, फर्क इतना है, हम नीचे थे,
इस चढाई को देख कर कुछ-कुछ हो रहा है, या बहुत कुछ, देखी है ऐसी चढाई
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बिल्कुल वहीं से आये थे, जहाँ सामने नीचे से वो ट्रक आ रहे है,
आते जाओ अभी तो
ये नदी और ये रास्ता नीचे देखने में भी हालत ख़राब थी
अब आया आसान रास्ता,
सुनहरा पहाड़
तसल्ली से बैठ के देखा
एक ये भी
एक और भी
लो रास्ते के साथ भी,
हमारा एक फोटो हीरो ने खिंचा,
ये मैंने खिंचा, देखो कितने खुश है सारे के सारे,
एक तिडके का सोने की खान में,
लेह से श्रीनगर तक के बीच में ये फ़ोतूला टाप सबसे ऊँची जगह है, परन्तु बर्फ़ यहाँ नहीं मिलती है, बर्फ़ मिलती है जोजिला टाप(बालटाल के एकदम ऊपर) में जा कर। फ़ोतूला टाप से आगे कारगिल तक उतराई ही उतराई थी, कुछ किलोमीटर बाद जाकर पहाड का दुर्गम, मट्मैला, सुनहरा, बर्फ़ीला, डरावना, सुंदर, वीरान(अगर और शब्द मिले तो मुझे बता देना वो भी जोड दूँगा) रेगिस्तान समाप्त होने लगा, हरियाली के दीदार हुए, यहीं-कहीं किसी दुकान पर रुक कर मैगी की एक-एक प्लेट खायी गयी। सुबह पत्थर साहिब में ही थोडा सा प्रसादा खाया था। आज का रात्रि ठहराव कारगिल में होना था।
फोतूला टॉप पर मेरा,
मलिक का,
दोनों कुरुन्दा वासी, दो हिम्मत वाले नौजवान,
लो जी आखिर आ ही गयी हरियाली पूरे 500 किलोमीटर के बाद, हम तो तरस गए थे इसके लिए,
हम पाँच बजे के आसपास कारगिल आ गये थे। कारगिल बहुत बडा शहर है यहाँ हवाई अडडा भी है। शहर में नदी का पुल पार करके रुकना पडा, क्योंकि आगे बाजार था और हमारे पल्सर वालों का कोई पता नहीं चल रहा था, मोबाइल निकाला तो उसमें नेटवर्क ही नहीं था, नेटवर्क सर्च किया तो किसी का भी नेटवर्क नहीं मिला। अब क्या करना था ये सोच ही रहे थे, कि तभी एक और बाइक पर जाते हुए दिल्ली के दो बंदे हमें देख कर रुक गये और बोले आप लेह की ओर जा रहे हो या श्रीनगर की ओर हमने कहा "श्रीनगर" तो वे बोले कि अभी अंधेरा होने में समय है हम यहाँ से 55-56 किलोमीटर दूर द्रास(दुनिया का दूसरा सबसे ठन्डा स्थान जहाँ इंसान रहता है) तक आराम से जा सकते है।
हमने कहा कि ठीक है लेकिन हमारे साथ एक बाइक और भी है उन्हें भी साथ ले कर जाना है। तथा बाइक में प्लग भी बदलना है, बाइक से पटाखे छोडने की आवाज आ रही है। अपने औजार निकाल सडक किनारे ही प्लग बदला, तभी किसी ने कहा कि कहीं पल्सर वाले कमरा तलाश करते हुए आगे ना चले गये हो, हम भी उन्हे ढूंढते हुए आगे चले गये, लगभग तीन किलोमीटर बाद ये शहर भी समाप्त हो गया लेकिन पल्सर वालों का कहीं कोई पता नहीं चला।
हमें लगा हो सकता है, आज भी चाँग ला की तरह हमें छोड कर आगे ना निकल गये हो, ये बात जाट खोपडी में आते ही, खोपडी खराब, हम तुरन्त द्रास की ओर चल दिये। मार्ग में सीधे हाथ एक नदी आ रही थी जिसका पानी काफ़ी गंदा-काला सा था, इस मार्ग पर जगह-जगह एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा था "सावधान आप दुश्मन यानि पाकिस्तानी फ़ौज की फ़ायरिंग रेंज में है, रुकिए मत चलते रहिए। ये पढकर हमारी हवा खराब कि बेटे कहाँ आ फ़ंसे एक ओर पहाड दूसरी ओर नदी व ऊपर से गोली, बम का खतरा सब चुपचाप (अगर दुम होती तो उसे भी दबा कर भागते) भागम-भाग में लगे रहे, कुछ 20 किलोमीटर बाद एक फ़ौजी चेक पोस्ट आयी वहाँ लिखा था अब आप दुश्मन की पहुँच से बाहर हो, बडा सकून-चैन मिला, डर के मारे बोर्ड का भी फ़ोटो नहीं लिया।
यहाँ ये नदी ही सीमा का निर्धारण करती है, सामने के पहाड पर पाकिस्तानी सेना रहती है, जो हर समय इस राज मार्ग या कहे लेह की जीवन रेखा पर बुरी नजर रखती है। यहाँ कुछ देर रुके, पहला बोर्ड पढकर ही सू-सू का प्रेशर भी लग गया था, दूसरा बोर्ड पढकर ही वो हल्का किया। इस 20 किलोमीटर के मार्ग पर काफ़ी लोगों की जान पाकिस्तानी सेना की गोली व बम ले चुके है, हम इन फ़ौजी भाईयों का फ़ोटो भी लेना चाहते थे लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण मना कर दिया गया।
बम गोली के डर से बाइक बहुत तेजी से चलाई थी, द्रास उम्मीद से पहले ही पहुँच गये। बाजार से 500 मीटर पहले सडक पर पानी का जबरदस्त तेज बहाव था, जिसमें से निकलने में मेरे जूते भी भीग गये थे पानी पार करते हुए सब के पैर 180 डिग्री में आ गये थे। बाजार में एक मस्त शानदार कमरा लिया, जिसका किराया 600 रुपये छ बंदों का था। मौसम ठीक था ज्यादा ठन्ड नहीं थी। नहाने का विचार आया तो मलिक सबसे पहले नहा आया, अब बारी जाट देवता की थी, पानी इतना ठन्डा था, कि दो मग में ही नहाने के सारे अरमान पूरे हो गये, बडी मुश्किल से तौलिया पकडा गया। ये ताजा खबर सुन सब को साँप सूंघ गया व बाकि चारों का नहाना तो दूर मुँह हाथ धोना भी रद्द हो गया।
गुरुद्वारा श्री चरण कमल साहिब,
विवरण का सार मेरी खोपड़ी में ना आया,.
जय हो वाहे गुरु, सबको राखे,
सत नाम वाहेगुरु के घर, फौजी भाई के साथ
बाहर से नजारा, कारगिल के पुल के पास में ही है,
मोबाइल पर मैं घर पर बाते कर रहा था, कि तभी होटल वाले ने कहा वैज खाओगे या नोन वैज, उस समय ध्यान तो बाते करने में था, मोबाइल पर बात करते समय वैज कहा या नान वैज याद नहीं रहा जब खाना खाने बैठे तो प्लेट में झोटा(भैंसा) का मीट था या किसी और का, मीट देख कर खोपडी खराब हो गयी। उसे खूब सुनायी। वो कहता रहा कि आपने ही तो कहा था। मीट वापस किया, खाने में राजमा, दाल व कढी की सब्जी बनी थी, तीनों मंगवा ली गयी, सबने एक साथ भर पेट भोजन किया। और खाना खाते ही अपनी-अपनी रजाईयों में घुस कर सो गये। अगली सुबह फ़िर छ बजे जो चलना था कल की बारी अमरनाथ की थी जिसके लिये बर्फ़ीले जोजिला दर्रा से हो कर जाना था। जो कि बालटाल के एकदम ऊपर है।
एक नजर यहाँ भी
अगले लेख में जोजिला की बर्फ़, अमरनाथ की बालटाल से चढाई व उतराई और ढिल्लू जी उर्फ़ गजानन्द व संतोष तिडके जैसा जोश जो किसी में ना होगा।
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भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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29 टिप्पणियां:
अरे बाप रे... कहां कहां घुस जाते हो भाई, शुकर करो किसी पाकिस्तानी की नजर जाट गबरु पर नही पडी, वैसे ऎसे इलाको मे सोच समझ कर जाना चाहिये, क्योकि उन देशो दोस्ती हो तो अलग बात हे, जैसा कि हम यहां भटक कर भी पडोसी देश मे चले जाये तो कोई डर नही लेकिन आप तो मोत के मुंह मे ही घुस गये... बाकी आप की यात्रा बहुत रोमांचकारी लगी, ओर यह रेगिस्तान को हम यहां नंगे पर्वत कहते हे, जिन पर बारह महीने कुछ नही उगता, बेटे को ओर बिटिया को हमारी तरफ़ से जन्म दिन पर खुब आशिर्वाद दे, ढेरो शुभकांनाये
nice pictures!
jaat evta ko ram-ram, maza aa jata hai aapki rochak post ko padh kar...saath mein sair free...manika ko jandin ki hardik shubhkamnayein aur ashirvad...janbaaz pita ji ke liye shradhanjali...aap jaisa janbaaz paida karne ke liye dhanyavaad bhi...
Nice one..i liked it... Especially the Pictures...
अरे तेरा भला हो।
कारगिल से द्रास तक के सफर में क्या पाकिस्तानी बाइक की स्पीड नाप रहे थे? अगर एकाध पट-पट की आवाज आ जाती तो बाइक भी मूतने लग जाती।
जहां न गए हों, उस जगह के बारे में ऐसी पोस्ट मिल जाती है, तो एक तो मन मचलने लगता है उस जगह जाने का, दूसरे, खुशी भी होती है।
कितना मनोहारी चित्र लगाया है आपने और उसके वर्णन भी बहुत अच्छे हैं।
सच कह रही हूँ, इस बार का यात्रा विवरण और चित्र देखकर मन में बहुत डर लग रहा है। इश्वर से प्रार्थना है आपकी यात्रा शुभ एवं मंगलमय हो।
जिंदगी तो आपकी है, हम तो बस जिए जा रहे हैं. जात देवता की जय हो.
Happy B'day to your daughter
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
मिलिए हमारी गली के गधे से
Bahut shandar photo
ऐसी -ऐसी जगह की सैर कराते हो की सोचना ही मुश्किल है --सोने का पहाड़ देखकर रेगिस्थान की याद आ गई -- भला हो भगवान् का जहा से सकुशल आप लोट आते हो -- वरना पाक सीमा का वर्णन पढ़कर तो अच्छे -अच्छे को सु -सु आ जाए ..
कारगिल का गुरुद्वारा देख कर आत्मा तृप्त हुई --आगे की किस्त का इन्तजार रहेगा --
बेटी को अग्रिम शुभ कामनाए जन्म दिन की ! बधाई ..
रोचक यात्रा विवरण...
जीवन में एडवेंचर का भी अपना आनन्द होता है..
फिर भी Take Care!
यार आप भी गजब हैं..अगर थोड़ी और चढाई सीधी होती और बाइक पीछे आ जाती तो बड़ा गड़बड़ हो जाता..
ये लेख कैसे मिलता हमें...वैसे आप के हिम्मत का लोहा मान गया में..
आपके बिटिया बेटे को जन्मदिन की बधाई ...
चढ़ते रहें लिखते रहें..
आभार
Rahasya romaanch kee is yaatraa -phaad me ham bhi aapke hamsafar rahen hain -bhogaa aapne ,saakshi ham bhi rhen -anubhootiyon ke ,saanjhaa kee hain aapke saath hamne bhi chalti rukti fir chalti saansen . .
veerubhai .
nice pictures
and happy birthday to your kids
वाह! बहुत खूब ! आपके रोचक यात्रा संस्मरण पढ़ कर रोमांच और आनंद आगया.
आप भी गाजियाबाद के हैं जानकर खुशी मिली.
बेटे और बेटी के जन्म दिन पर हार्दिक शुभ कामनाएँ.
पिताश्री की पुण्यतिथि पर सादर नमन व हार्दिक श्रद्धांजलि.
आप मेरे ब्लॉग पर आये इसके लिए बहुत बहुत आभार.
विशालजी को धन्यवाद कि उन्होंने मुझे आपके बारे में बताया.
मेरे ब्लॉग पर पुनः आपका स्वागत है,रामजन्म की
दूसरी पोस्ट पर.
आप मेरे ब्लाग पर आये मुझॆ बहुत खुशी हुई..उससे भी ज्यादा कि आप ने सच को समझा....मॆ ब्लागिग से दूर था..पर ऎसे कई सच मिले कि मुझे आना पडा...बस आप देखते जाईये...अभी तो ये शुरूआत हॆ...
आप का ब्लाग देखा..सच कहू तो पहली बार आया हू पर लगा अरे वाह बिल्कुल सजीव चित्रण...इतने सजीव यात्रा कि लगा हम भी आप साथ हो लिये........
बैठे-बैठे हम भी तो घूम लिए...मजेदार..बधाई.
________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
बहुत हिम्मत और जज्बे का काम कर रहे हो भाई। सारे चित्र सुन्दर है।आगे की यात्रा के लिये शुभकामनायेँ।
तो आपको बहादुरी और साहस विरासत में मिला है।
जय हो जाट देवता जी
इब नीरज जाटजी नै भी मोटर साईकिल चलाना सिखा दो और दोनूं एक मजेदार घुमाई करके आओ :)
जै राम जी की
शहीद को एड्वांस में श्रद्धांजलि सुमन
दोनों बच्चों को खूब सारा प्यार
प्रणाम
sari waha'''''waha.samet li .are (..........}kuch hamare liye chodo.......... happy birth day to your doughter ......
लेख को तीसरी बार पढ़ा .....पढ़ कर मूड बन रहा है .
लेख को तीसरी बार पढ़ा .....पढ़ कर मूड बन रहा है .
TOP OF THE WAOLD GOOD
SAB SE BADHI KAMI HUM SATH NAHI
ye jo do sathi peeche choot guye the kahan pakad me aye ye tho bataya he nahi guruji?? kahan masti kar rahe the pulsar wale???
प्रदीप जी इस यात्रा का भाग 9 देखिये। जहाँ पल्सर वाले पटनी टॉप में आकर मिले।
संदीप भाई आपका ब्लॉग पढ़कर मेरा और मेरे मित्र नितिन का प्रोग्राम 15 जुलाई 2016 के लिए बना था पर मेरे पैर में चोट लग जाने के कारण अब वो अकेला हो गया है।
तो आपसे गुजारिश है कि अगर कोई आपका जानने वाला इस तारीख के आसपास जाने की इच्छा रखता हो तो नितिन और वो साथ में एडजस्ट हो सकते हैं??
कृपया बताने की कृपा करे क्योंकि मैंने आपको कॉल भी की थी पर आपने पिक नही कर पाये।।
आपकी यात्र बहुत ही रोमाचंक व साहसिक रही उम्मीद है कभी हम भी इस यात्रा के रोमांच व सुंदरता का अनुभव कर पायेंगे और उससे भी बढकर उम्मीद ये है कि यात्रा आपके साथ हो। यात्रा का वर्णन बहुत ही आकर्षक व चित्र खूबसूरत है।
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