गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

Trek to Satopanth Lake सतोपंथ झील का ट्रैक



महाभारत काल के 5 पाँडवों अंतिम यात्रा की गवाह, स्वर्गरोहिणी पर्वत व पवित्र झील सतोपंथ की पद यात्रा।

दोस्तों, अभी तक आपने पढा कि सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी के लिये हमारी यह यात्रा बन्द्रीनाथ, माणा, आनन्द वन, चमटोली बुग्याल, लक्ष्मी वन, सहस्रधारा होते हुए चक्रतीर्थ के ठीक सामने एक विशाल पहाडी धार तक पहुँच चुकी थी। अब चलते है उससे आगे। पोर्टर से पता लगा कि इसी धार को चढकर ही पार करना होगा तभी उस पार जाया जा सकता है। सामने वाली उस धार को दूर से देखकर वहाँ की ठंडी में ही पसीने आ रहे थे। कल सुबह उस पर चढेंगे तो पता लगेगा कि यह क्या हाल करती है? शाम को एक अन्य ग्रुप के दो-तीन पोर्टर आगे सतोपंथ की ओर जा रहे थे। मैं उन पोर्टर को उस धार पर चढने में लगने वाले समय को देखने लगा। उन पोर्टर ने हमारे टैंट से लेकर उस धार की चोटी तक जाने में 45 मिनट का समय लगाया। दूरी रही होगी, एक सवा किमी के आसपास। पोर्टर को सामान के साथ जितना समय लगा है। मैं मान रहा हूँ कि हमें अपने सामान के साथ उसके बराबर समय लग ही जायेगा। चलो, कल देखते है यह धार कितनों की नानी याद दिलायेगी। चक्र तीर्थ की धार तो कल सुबह देखी जायेगी। अभी तो दिन के तीन ही बजे है हल्की-हल्की बारिश भी शुरु हो। पहले इस बारिश से ही निपटते है। आज, जहाँ हम ठहरे हुए है, वहाँ बडे-बडे तिरछे पत्थर की कुदरती बनी हुई दो गुफा थी। एक गुफा में हमारे पोर्टर घुस गये। दूसरी गुफा पर जाट देवता व सुमित ने कब्जा जमा लिया। बीनू व कमल ने मेरी व सुमित की गुफा के सामने ही अपना टैंट लगा डाला। जिस गुफा में हम अपना ठिकाना बना रहे थे उसकी छत वैसे तो बहुत मोटे पत्थर की थी लेकिन उस मोटे पत्थर का गुफा के दरवाजे वाले किनारे वाला भाग भूरभूरा हो गया था। जिससे वह पकडते ही टूटने लग जाता था। 
ध्यान मग्न


सुमित को रात में कई बार बाहर निकल कर सू-सू करने की बीमारी थी। रात को बन्दा पानी पीने के लिये अपने थर्मस में गर्म पानी भरवा कर रखता था। कल रात मैंने गलती से उसके थर्मस से एक घूँट पानी पी लिया। पानी इतना ज्यादा गर्म था कि वो एक घूँट पानी, मैंने हलक के नीचे कैसे उतारा मैं ही जानता हूँ। मेरी आँखों में आँसू आ गये। आँसू पोंछ कर, सुमित को लताड लगायी कि इतना गर्म पानी भर क्या स्लिपिंग बग गर्म रखने का इरादा है। कल रात मैं सुमित के लाये टैंट में सोया था। रात में सुमित कम से कम तीन बार बाहर निकला होगा। रात को बाहर घुप अंधेरा देख कर उसे ज्यादा दूर जाकर सू-सू करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। कल रात तो मैं भी एक बार रात को करीब दो बजे स्लिपिंग बैग से तंग होकर उठ बैठा था। टैंट से बाहर झाँक कर देखा तो घनघोर अंधेरा होने से कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हम कहाँ पर है। टार्च निकाल कर रोशनी फैलायी तो याद आया कि हम रात को जहाँ सोये थे अभी भी वही पर ही है। अंधेरा सच में बडा डरावना होता है। 

रात में भी बारिश का खतरा था इसलिये मैंने अपनी तिरपाल टैंट में नीचे बिछा ली थी। जिस टैंट को सुमित लाया था उसकी सिर्फ एक ही परत थी उसकी ऊपर वाली दूसरी परत जो पानी रोकती है वो नहीं थी। रात को बारिश में न भीगे, इसलिये तिरपाल को आधी नीचे बिछायी थी व आधी तिरपाल को बारिश होने पर बचने के लिये सिर के नीचे मोड, तकिया बना लगा लिया था। शुक्र रहा कि कल की रात तो बारिश नहीं आयी। आज रात की बात बताऊँ तो रात को सुमित की बाहर निकलने की आदत से मुझे ज्यादा परेशान नहीं होना पडा। सोने के ठीक पहले एक बार बाहर निकलते समय सुमित गुफा की छत से रगड खा गया। गुफा की छत पहले से ही भूर-भूरी होने से ढेर सारा चूरा मेरे ऊपर आ गिरा। मैंने अपने स्लिपिंग बैग की चैन को पूरा बन्द भी नहीं किया था। जिससे वो पत्थर का सारा चूरा मेरे स्लिपिंग बैग में घुस गया। सुमित सू-सू जाना भूल कर स्लिपिंग बैग साफ करवाने में लग गया। 

रात को मैं स्लिपिंग बैग में तंग होने व गुफा की ऊँचाई कम होने के कारण परेशानी महसूस करता हूँ तो तंग आकर कुछ देर बैठ जाता हूँ। रात को सुमित की आँख खुली। मुझे बैठा देख सुमित बोला, आप बैठे क्यों हो? मैंने कहा देख भाई कुछ देर बैठ के देख। इस ऊँचाई पर कुछ तो साँस लेने की परेशानी है अगर वो भी दिक्कत न हो रही हो। लेकिन इस स्लिपिंग बैग ने सोना हराम कर रखा है। थोडी देर आराम से बैठने पर इससे छुटकारा मिल जाता है और ऐसा लग रहा है कि जैसे किसी कैद से बाहर निकल आये हो। सुमित मेरी बात सुनकर थोडी देर बैठ गया। कुछ देर बाद बोला अरे वाह, यह बैठने का आईडिया तो बडॆ काम का है। इससे बहुत अच्छा लगता है। उसी रात की बात है सुमित एक बार फिर उठा तो उसने देखा कि मैं अपने बैग के सहारे तिरछे लेट सो रहा हूँ। सुमित बोला ये कौन सा स्टाइल है? स्टाइल छोड, रात किसी तरह काटनी है, अब चाहे बैठ कर काटो या बैग के सहारे तिरछे होकर। दो दिन में सुमित को एक मस्त काम करते देखा। सुमित अपने साथ कम्बल लेकर आया था। स्लिपिंग बैग को उसने खोल कर नीचे बिस्तर बना लिया था। कम्बल को ओढ कर सोता था। उसका यह अंदाज मस्त लगा। इसमें कम से कम स्लिपिंग बैग में कैद होने वाले झंझट से छुटकारा तो मिल जाता है।

हम रोज शाम को गर्मा-गर्म सूप पीते थे उसके बाद खाना खाते थे। कल शाम को दाल-चावल बनाये गये थे। आज शाम को भी दाल चावल बनाये गये थे। शाम को दाल चावल वाली बात मुझे बडी अजीब लगी। ऊँचे पहाडों पर तो छोडो, मैदानों में भी रात के भोजन में दाल चावल का उपयोग नहीं करना चाहिए। दाल चावल सुबह या दोपहर के लिये सबसे बढिया भोजन है लेकिन रात में इसके समर्थन में नहीं हूँ। इसी साल अरुणाचल प्रदेश के तवांग में एक यात्रा पर गया था वहाँ भी हमें तीनों समय दे चावल, दे चावल, दे चावल, दे चावल, दे चावल, दे चावल, दे चावल ने बहुत सताया था। रात की एक बात याद आयी कि समय याद नहीं कि क्या बजा था? बारिश शुरु हो गयी। आज भी अपनी तिरपाल आधी नीचे तो आधी बारिश से बचने के लिये बचा कर रखी थी। रात को बारिश आयी तो आधी तिरपाल ने बारिश से बचा लिया। अगर गुफा के चक्कर में तिरपाल नीचे बिछायी होती तो रात को बारिश से बचने के लिये तंग होना पडता।

सुबह उठकर सतोपंथ की तैयारी करने लगे। सभी के मन में सतोपंथ से ज्यादा चक्रतीर्थ की सामने वाली धार की चढाई का खौफ था। चक्रतीर्थ की चढाई पार करने में हम एक घन्टा मान के बैठे थे। इसलिये मैं सबसे आगे हो लिया। धीरे-धीर हमारी पूरी टोली लाइन में लगती चली गयी। जैसे-जैसे ऊपर की ओर चढता जाता। वैसे-वैसे पीछे का नजारा शानदार होता जा रहा था। 15-20 मिनट बाद ऐसी स्थिति में जा पहुँचे, जहाँ पर हर दस कदम पर साँस सामान्य करने के लिये रुकना पड रहा था। आखिरी के दस मिनट ज्यादा भारी पडते दिखायी दिये। ऊपर पहुँचकर समय देखा तो अपने आप पर विश्वास नहीं हो पाया। जिस चढाई को पोर्टर लोग पौन घन्टे में चढ पा रहे थे। उस चढाई को मैने मात्र 30 मिनट में चढ लिया था। 

मेरे से पीछे बीनू लगा पडा था। मैं ऊपर बैठ बाकि साथियों की हालत का जायजा लगा रहा था कि कुछ देर पहले तक मेरी भी बैंड तक धिना-धिन ऐसी ही बजी पडी थी। पाँच मिनट बाद बीनू भी आ गया। ऊपर आते ही बीनू बोला। अरे भाई यहाँ कहाँ बैठो हो? यहाँ तो खडे होने की भी जगह नहीं है। धार के ठीक ऊपर बहुत कम जगह है जिस पर मुश्किल से ही बैठा जा सकता है लेटने की सोचोगे तो ईधर या उधर लुढकने का पूरा चांस रहेगा। बीनू धार पर ज्यादा देर न रुका, दूसरी ओर थोडा सा उतर कर एक जगह बैठ गया। यहाँ बीनू बोला शर्त लगाओ बिना रिपटे यहाँ से आगे नहीं जाओगे। यहाँ बीनू की बात सुन सभी ध्यान से उतरे। हमारा गाइड गज्जू यहाँ फिसल गया था। जिस जगह बीनू बैठा हुआ था वहाँ बरसाती नाले जैसी हालत थी। ऊपर चोटी से बहकर आये पानी या बर्फ ने उसकी वो हालत बनायी होगी।

चक्रतीर्थ से सतोपंथ तक पहुँचने में यही चक्रतीर्थ धार सबसे बडी रुकावट साबित होती है। जिसने यह धार चढ ली, समझो उसने सतोपंथ तक की यात्रा कर ली। चक्रतीर्थ वाली धार से सतोपंथ झील की दूरी दो-तीन किमी तो होगी। चक्रतीर्थ वाली धार से आगे चढाई तो नहीं के बराबर है अब ग्लेशियर का इलाका शुरु हो जाता है। यहाँ के ग्लेशियर के ऊपर पत्थर बिखरे हुए है। जिस कारण इन पर फिसलने का खतरा नहीं हुआ। हम पत्थरों के ऊपर आसानी से चलते गये। एक जगह भूस्खलन का सौ मीटर इलाका था। यह सावधानी से पार करना पडा। इस जगह ऊपर से पत्थर खिसकने का भय बना रहता है। दोपहर के समय जब बर्फ पिंघलती है तो बर्फ के ऊपर जमे हुए बडे पत्थर अपनी जगह से खिसकने लगते है जिससे बडा हादसा होने का खतरा बढ जाता है। भूस्खलन वाले भाग को ऊपर देखते हुए पार किया। आगे निकलकर आने वाले साथियों को ऊपर ध्यान रखकर पार करने को कहा। 

इसके बाद, अगले एक किमी तक कोई खतरा नहीं मिला। आखिर के आधा किमी में नीचे पत्थरों के बीच ग्लेशियर में ताजा-ताजा बनी दरार साफ देखी जा सकती थी। यहाँ ताजा बनी दरारों में नीच गलेशियर के बहते पानी की आवाज भी साफ-साफ सुनायी दे रही थी। ऐसी कुछ दरार बेहद असुरक्षित भी हो जाती है। यदि इन्हे पार करते समय कोई टैकर इनमें गिर जाये तो वह नीचे गहराई तक भी पहुँच सकता है। वैसे तो दरार चौडी होते ही, उनमें वहाँ पडे छोटे व बडे पत्थर धूप लगते ही खिसक कर अपने आप भरते जाते है। उन दरारों में पत्थर भले ही पडे हो लेकिन डर तो इन्सानी खून में हमेशा रहता है। उन दरारों में दो जगह तो पार करने में मुझे भी सोचना पडा कि पत्थर के ऊपर पैर रखकर निकलू या छलाँग मारनी ज्यादा सही रहेगी? ऐसी 8-10 दरार पार करनी ही पडती है। यदि कोई ऐसी दरारों में गिर जाये तो बिना रस्सी व कुल्हाडी के इनमें से निकलना असम्भव होता है।

ग्लेशियर पार होते ही चक्रतीर्थ की बेटी जैसी एक छोटी सी धार आती है इसे चढने में ज्यादा समय नहीं लगा। इसे पार करते ही सामने एक और लम्बी धार नाक की सीध में दिखायी देती है। इस पर थोडा सा चलते ही उल्टे हाथ सतोपंथ झील दिखाई देने लगी। सतोपंथ झील काफी विशाल है। सतोपंथ झील की समुन्द्र तल से ऊँचाई 4350 मीटर है। स्वर्गरोहिणी 4550 मीटर है। हमारे पोर्टर पहले ही यहाँ आ चुके थे उन्होने यहाँ आकर टैंट लगाने लायक जगह में अपना कब्जा जमा लिया था। पोर्टर ने सुबह ही बता दिया था कि सतोपंथ में टैंट लगाने के लिये जगह बहुत कम है और हमारे साथ चक्रतीर्थ में एक और पार्टी रुकी हुई थी जिसके साथ पोर्टर ही 23 थे। इसलिये उनकी संख्या देखते हुए हमारे गाइड को पहले आकर यहाँ कब्जा जमाना पडा। दूसरी टीम हमारे से बाद में आयी तो उन्हे टैंट लगाने के लिये पत्थरों को हटाकर टैंट लगाने लायक जगह तैयार करनी पडी। चक्रतीर्थ से सतोपंथ पहुँचने में सिर्फ दो घन्टे ही लगे। (Continue)





हमारे पोर्टर

मेरी कुटिया


चक्रतीर्थ धार वो रही




चक्रतीर्थ धार की चोटी

फिसल नहीं जाना





ग्लेशियर से सफर

सतोपंथ ताल आने वाला है।


सतोपंथ ताल/झील

पहाडी कौआ




8 टिप्‍पणियां:

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

आज की पोस्ट बहुत ही बढ़िया फोटो कैप्शन भी जोरदार

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

आज की पोस्ट बहुत ही बढ़िया फोटो कैप्शन भी जोरदार

अनिल दीक्षित ने कहा…

आज तो मजा आ गया पढ़ने मे सभी फोटो मे कैप्शन लगाया करो गुदगुदाते हुए।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-12-2016) को "महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना" (चर्चा अंक-2572) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sachin tyagi ने कहा…

सुन्दर पोस्ट

Unknown ने कहा…

अति सुंदर जीवंत विवरण।

लोकेन्द्र सिंह परिहार ने कहा…

यात्रा लेख बहुत ही अच्छा

Yogi Saraswat ने कहा…

फिर से यादें ताजा हो गई ! मजेदार यात्रा रही

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