बुधवार, 9 मार्च 2011

बाइक से लाल किला से लेह-लद्दाख यात्रा भाग 2 Manali to baralacha la

लेह बाइक यात्रा-
दूसरे दिन सुबह 5 बजे का अलार्म बजा तो सब उठ गये और आज क़ि यात्रा के लिए तैयार होने लगे। जब बात पहुंची नहाने तक, तब मामला 50/50 हो गया, 6 बन्दों में से तीन नहाये और तीन हाथ मुहं धो कर ठीक 6 बजे तक तैयार थे। पानी ज्यादा ठंडा था भाई, नहीं तो सब नहाते। हमारा एक नियम था कि जो छ बजे के बाद तैयार होगा वो 500 रुपए का जुर्माना देगा। इसलिए कभी सुबह देर होने कि आफत नहीं आई। सब जल्दी तैयार रहते थे।
  मनाली में ये नक्शा दीवार पर बना हुआ है



                                         इस यात्रा को शुरु से पढने के लिए यहाँ क्लिक करे 

मनाली से चलते ही ये बोर्ड आ जाता है।

सब अपनी अपनी बाइक पर सवार हो रोहतांग की ओर चल दिये, 15 किलोमीटर तक तो रास्ता ठीक था। इसके बाद रोहतांग टॉप तक बाइक का सारा जोर लग जाता है, आखिरी के 10 किलोमीटर रास्ता बेहद ही खराब है। मैं तीन साल पहले आया था, जब भी रास्ता इतना ही खराब था। रास्ता बनाने वाले भी क्या करे यहाँ बर्फ़ ही इतनी पड़ती है, कि तारकोल की बनी सड़क एक साल भी नहीं चल पाती है।            

रोहतांग जोत( ROHTAANG ) पर जाने के बाद लिया गया है।

रोहतांग दर्रा पार करने के बाद आगे के मार्ग का नजारा है।

रोहतांग टॉप पर पहुँच कर फोटो खीचे आप भी देखना। मैं रोहतांग से आगे नहीं गया था, लेकिन हमारा एक साथी यहाँ से आगे एक गाँव कोकसर तक गया हुआ था। रोहतांग जोत(दर्रा) को हिमाचली आम भाषा में मौत का दर्रा भी कहते है। आने वाले समय में 2015 में रोहतांग दर्रा लेह जाने वाले मार्ग पर नहीं होगा, क्योंकि रोहतांग से 30 किलोमीटर पहले ही उलटे हाथ पर एक सुरंग बनाने का काम चल रहा है, सुरंग की लम्बाई 10 किलोमीटर के आसपास रहेगी, इस सुरंग के बन जाने पर रोहतांग की चढाई की जरुरत ही नहीं रहेगी, लेह जाने के लिए 45 किलोमीटर की दूरी भी कम हो जायेगी। रोहतांग टॉप से आगे 15 किलोमीटर की जबरदस्त ढलान है, नदी का पुल पार करने पर भी ढलान जारी रहती है।
     
रोहतांग टॉप के आगे लेह की और जाने वाले मार्ग का नजारा।
ऊपर से नीचे कैसा दिखाई देता है?

चंद्रा रोहतांग से उतरते ही मिल जाती है, व भागा टांडी में लेह वाले मार्ग के साथ-साथ आती है। टांडी में चन्द्रा व भागा नदी का संगम होता है। तब वहां चन्द्र भागा कही जाती है, और आगे बढ़ने पर यही चेनाब कहलाती है। `चंद्रा व भागा दो नदी के संगम पर है, टांडी रास्ता मस्त कोई भीडभाड नहीं थी, लेकिन हम बहुत आराम से चल रहे थे, क्योंकि हमें पट्रोल लेना था और टांडी में ही पेट्रोल मिलता है, इसके बाद सीधा लेह में मिलेगा और लेह का पट्रोल पम्प यहाँ से केवल 350 किलोमीटर ही तो दूर है। सबने अपने टैंक एकदम ऊपर तक फुल करा लिया। रास्ते में मिले कुछ विदेशी बाइक वाले भी टंकी फुल करने के बाद अलग से 10 लीटर की कैन में भी पैट्रोल ले रहे थे, क्योंकि उनके पास बुलेट थी, जो पेट्रोल को घुटो-घुट पीती है। सब अपनी टंकी फुल करा आगे की यात्रा पर चल दिये।

ये पुल जो पीछे दिखाई से दिख रहा है, रोहतांग के बाद आता है, बर्फ पड़ने पर हटा दिया जाता था
  ये वाला नक्शा एक बोर्ड पर बना हुआ है

दोपहर का एक बजने वाला था, सबको जोर की भूख लगी थी, और हम लोग लाहुल-स्पीती के जिला मुख्यालय केलाँग पहुँच चुके थे। जिसको जो इच्छा थी, उसने वो खाया। इसके बाद हम आगे की ओर चल दिये। यहाँ से सड़क की हालात कुछ अच्छी नहीं थी, सड़क का काम अभी चल ही रहा था, हम लोग मस्ती में चले जा रहे थे।

   तांडी से 3 किलोमीटर पहले का फोटो है।

यहाँ से अगला पेट्रोल पम्प 350 किलोमीटर आगे है, अब एक लेह से 15 किलोमीटर पहले कारु में बन गया है।
ये है शानदार जगह लाहौल का प्रवेश द्धार।

कि तभी एक बाइक में पंचर हो गया। बाइक का टायर खोल कर दूसरी बाइक पर बैठ 3 किलोमीटर वापस आना पड़ा। हमारे पास एक-एक एक्स्ट्रा ट्यूब थी, लेकिन वो उसी सूरत के लिए थी जब पंचर वाला 15-20 किलोमीटर तक भी न हो। ऐसा होने पर यह पहले से तह था, कि समय ख़राब न करके पंचर में ही चलना ठीक होगा। पंचर लगवा कर आये तो हल्की-हल्की बूंदा-बांदी शुरु हो चुकी थी।  
            
नदी का पुल पार कर दारचा में एक दुकान पर रुक गए दिन के 3 बजे थे बारिस ने फिर एक घंटा खराब किया। ठीक 4 बजे वर्षा रानी ने मेहरबानी की रुक गयी। हम तो थे इसी ताक में फिर अपने अपने घोड़ो (बाइक) पर सवार हो गए। यहाँ से फिर 10 किलोमीटर की चढाई आ गयी। मैं चढाई उसे कहता हू, जहाँ बाइक की सारी जान लग जाती है, नहीं तो रास्ता आसान मानता हूँ, आगे मौसम व मार्ग दोनों ठीक थे।

एक पहाडी पहाड में आकर कितना खुश हो रहा है।
ये करो पैदल पार अब मार्ग ही ऐसा है।

चढ़ाई खत्म होने पर एक नई दुनिया का दीदार हुआ। राजस्थान का रेगिस्तान तो देखा था, आज पहाड़ का भी देख लिया, अजी देखा किया शुरु हुआ, अब देखेंगे की कब तक, कितने दिन बाद खत्म होगा। शाम के 6 बजे थे, मस्त रास्ता था, कि अचानक से कुछ ऐसा नजर आया की सबकी सांस ऊपर की ऊपर व तले की तले अटक गयी। सबकी बाइक जहाँ की तहां खडी रह गयी।
              
सामने नजारा था ही, इतना खतरनाक पहला खतरा सड़क पर 50 मीटर तक पानी ही पानी वो भी कई कई इंच और बेहद ठंडा दूसरा खतरा पानी पार करते ही जबरदस्त चढाई शुरु हो रही थी, तीसरा खतरा चारो और बर्फ़ ही बर्फ़ इतनी की हममे से किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था ,कि कभी इतनी बर्फ़ से भी पाला पड़ेगा, सड़क भी बर्फ़ काट कर निकाली गयी थी |

देखी है ऐसी सड़क बाइक पर अकेले ही पार करना पड़ती है |

सब सोच में पड गए, कि क्या करे, सड़क में कोई गड्डा तो नहीं, कुछ देर बाद एक जीप आयी जब वो ठीक ठाक पार हो गयी तो, हमने अपने अपने जूते उतार कर पानी को पार किया, जूते इसलिए उतारे थे, कि कही पानी में टायर स्लिप हो कर हमारे जूते भी भीग न जाए, पर एक महाराज नाम गजानंद ने बिना जूते उतारे ही वो पानी पार किया, वो भी पानी में घुस कर, पानी था बर्फ़ का, मात्र 100 मीटर की दूरी पर ग्लेसियर से आ रहा था।

मौसम कितना डरावना व सुहावना है।
बर्फ़ में मजा ही कुछ और आता है।
बर्फ़ में मजा व ठन्ड दोनों लगती है।
ये है अपना हाल।

ये है विशेष मलिक का हाल।

पानी पार करते समय बाईक पर सब अकेले थे। एक किलोमीटर चल कर फोटो सेसन चल ही रहा था, कि बर्फ़ पड़नी शुरु हो गयी, वो भी एकदम बहुत तेज किसी तरह बर्फबारी में चार किलोमीटर की दूरी पार कि लेकिन हमारी बाइक बरालाचा दर्रा कि टॉप चढाई पर चढ़ रही थी।  बाइक जबाब देने को तैयार थी, कि बस बहुत हुआ, लेकिन हम किसी तरह पहले गियर में पैरो का सहारा देते हुए बाइक को चढ़ा रहे थे, तभी संतोष तिडके ने आवाज़ दी, कि मेरी बाइक तो पहले गियर में भी नहीं चल रही है। मैंने कहा चल तो हमारी भी बड़ी मुश्किल से रही है, पैरों से धक्का लगाओ बाइक को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही है। बस सामने ढलान आने वाली है। ढलान का नाम सुनते ही बाइक के साथ साथ चालक को भी जोश आया और बेडा पार हो गया।

पांच किलोमीटर उतरने पर भरतपुर सिटी में आ पहुचे। नाम भरतपुर सिटी और यहाँ रात रुकने के लिए सिर्फ टेंट किराये पर मिल जाते है, किराया 100 रुपए पर बन्दा रात , आज की रात हमारी जिन्दगी की सबसे बुरी रात बनने वाली थी।


ये रहे मराठे संतोष तिडके व गजानन्द उर्फ़ ढिल्लू।


कितनी बुरी गुजरी ये रात अगले लेख में बताऊँगा।   


लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।

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14 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

वाह क्या बात है .....आपने तो रोहतांग का चित्र सहित वर्णन करके यादों को जीवंत कर दिया ....मुझे बहत प्रिये है रोहतांग की वादियों में हर साल घूमना ...आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए .....! आशा है आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा

OMDEV SHASTRI ने कहा…

जाट देवता जी राम राम, अबकी बार बाइक पर जाओ तो हमहे भी साथ ले चलना अगला टूर कहाँ का है |

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

जाट देवता आनन्द आ गया --रोहतांग को दुबारा देख कर --हम भी रोहतांग से आगे नही जा सके थे --काश की मै भी आपके समान जवान होती और लड़का होती तो जरुर एक मोटर साईकिल पर आपके साथ सवार होती--
बहुत सुन्दर जा रहे हो --अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा
यह मेरी मनपसन्द पोस्ट है --कविता और लेख पड़कर बोर हो चुकी हु --

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

अब आये आप लय में। इसी तरह लिखो। हां, लिखने में विराम चिन्हों और स्पेलिंग का ध्यान रखो। फोटो बहुत पसन्द आये हैं।

ZEAL ने कहा…

Lovely narration , enjoyed reading .

शिवा ने कहा…

जाट देवता आनन्द आ गया --रोहतांग देख कर --

अन्तर सोहिल ने कहा…

एक पैर बजा कै जोरदार सैल्यूट जाट देवता को

जै राम जी की

Patali-The-Village ने कहा…

आनन्द आ गया रोहतांग देख कर| धन्यवाद|

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर एक नीरज जाट था, दुसरे आप मिल गये, अब तो पुरा भारत ही घुमेगे आप लोगो के सहारे, अरे जब बाईक से दुर दुर जाते हो तो पंचर लगना भी सीख लो , हम यहां अपने अपने साईकिल का पंचर खुद ही लगाते हे, क्योकि बाजार से पंचर १०,१५€ मे लगेगा, ओर ४ € मै नयी टयूब आ जाती हे, ओर पुरानी निकालनी ओर नयी डलानी भी अपने आप पडती हे, अब अगर तुम लोगो को पंचर लगना आता तो तुम्हारे ३० कि मी बच जाते...
यात्रा का विवरण ओर चित्र बहुत सुंदर लगे, धन्यवाद

hamarivani ने कहा…

nice

Udan Tashtari ने कहा…

गजब भाई गजब!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

जाट देवता आनन्द आ गया रोहतांग देख कर......धन्यवाद|

SANDEEP PANWAR ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
विवेक रस्तोगी ने कहा…

पढ़ते जा रहे हैं... अब तो बर्फ़ के कारण हमको भी ठंड लगने लगी है ।

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