LTC- SOUTH INDIA TOUR 02 SANDEEP PANWAR
ठीक 10 बजे स्टेशन पहुँचने के लिये
हम घर से घन्टा भर पहले ही एक ऑटो से निकल पड़े थे। दिल्ली के ट्रेफ़िक जाम का कोई भरोसा
नहीं होता। इसलिये समय पहले घर से निकलना ही सही रहता है। सुनील रावत का घर तो स्टेशन
के सामने भोगल में ही था जिस कारण वह तो ट्रेन चलने से मात्र 15-20 मिनट पहले ही आया था। इस यात्रा के समय मेरे पास रील वाला कैमरा था। सुनील
ने कहा कि वह अपने साले का नया डिजीटल कैमरा लेकर आयेगा। सुनील के चक्कर में मैं अपना
कैमरा घर पर ही छोड़कर आया था। सुनील के आने से पहले ही हम दोनों अपना समान अपनी सीट
पर रख चुके थे। मुझे बराबर वाली दो सीट सबसे अच्छी लगती है सोने में थोड़ी सी परेशानी
तो आती है लेकिन दिन भर बाहर के नजारे देखने में इससे बेहतर स्थान कोई दूसरा नहीं होता
है।
सुनील की सीट हमारे डिब्बे के पीछे वाले दो
डिब्बे छोड़ने के बाद वाले डिब्बे में ही थी। दिन भर तो ज्यादातर समय हम सभी साथ ही
बैठे रहे। सुनील के साथ उसकी माताजी भी हमारे साथ यात्रा कर रही थी। सुनील के पिताजी
सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त है उन्हें पेंशन मिलती है जिस कारण सुनील की माता के
टिकट LTC
सुविधा के अन्तर्गत नही लिये गये थे। ठीक 11 बजे
ट्रेन चल पड़ी। आज पहली बार वातानुलूकित ट्रेन में यात्रा करने का अवसर हाथ लगा था।
इससे पहले ट्रेन में लम्बी-लम्बी कई हजार किमी की यात्रा कर चुका था लेकिन कंजूस आदत
होने के चक्कर में कभी वातानुकूलित डिब्बे की यात्रा नहीं की थी।
ट्रेन चलने के थोड़ी देर बाद ही एक बन्दा पानी
की एक-एक बोतल पीने के लिये देकर चला गया। राजधानी ट्रेन के किराये में ही खाने-पीने
का शुल्क टिकट में ही ले लिया जाता है उस हिसाब से यात्रा अवधि में खीने-पीने की चिंता
नहीं रहती है। थोड़ी देर बाद तकिया चददर वाला बन्दा एक तकिया व दो चददर व एक-एक हल्का
कम्बल देकर चला गया। डिब्बे में मुझे सिर्फ़ भोजन मिलने की जानकारी थी। कम्बल आदि के
बारे में तो कुछ पता ही नहीं था। दिल्ली से चलने के बाद ट्रेन सीधी कोटा जाकर रुकी।
कोटा से पहले किसी सिग्नल पर भी ट्रेन पल भर के लिये नहीं रुकी थी।
दिल्ली से चलते ही पानी की बोतल आ गयी थी।
मथुरा पार करने के बाद दोपहर का भोजन भी आ गया था। राजधानी ट्रेन में यात्रा करते समय
यह बात बढिया लगी थी कि यात्रियों को हर घन्टे दो घन्टे में कुछ ना कुछ खाने के लिये
आता रहता था। आमतौर पर हम जैसे मध्यवर्गीय परिवार के प्राणी जीव-जन्तु खाने से पहले
टमाटर सूप नहीं पिया करते है। यदि कोई बन्धु नियमित इसका सेवन करता हो तो अवश्य इस
बात को जाहिर करे। खाना आने से पहले एक वेटर प्रत्येक सीट पर आकर यह पता करके जाता
था कि वेज/शाकाहारी खाओगे या नान वेज/मांसाहारी। अपुन ठहरे शाकाहारियों के भी ताऊ अत:
हमसे शाकाहार के अलावा किसी और भोजन की उम्मीद सपने में भी करनी बेकार है।
मेरे साथ जो दोस्त गया था वह खाना खाने में
इतना सुपरफ़ास्ट था कि वेटर शायद पूरे डिब्बे में खाना परोस भी नहीं पाते होंगे कि वह
खाना चटकर प्लेट सीट के नीचे रख देता था। उसकी इस भयानक तेजी से मैं विस्मय से भौचक्का
रह गया था। जब वह खाना खाकर मेरे पास आया तो मैं उस समय तक खाने के लिये बैठ ही रह
था कि वह आ गया, मैंने कहा खाना खा लो भाई। उसने कहा कि वह खाना खा कर ही तो इधर आया
है। गजब है यार इतनी तेजी। बन्दा ओलम्पिक मेड़ल में आसानी से विजयी हो सकता है।
ट्रेन में समय-समय पर खाना-पीना चलता रहा,
जिससे अगले भी कब पार हुआ पता हे नहीं लगा? जब हमारी ट्रेन मड़गाँव स्टेशन पर
पहुँची तो यहाँ हमारे पास वाली सीट पर बैठा हुआ एक बन्दा मोबाइल पर बात करता हुआ
प्लेटफ़ार्म पर उतर गया। राजधानी ट्रेन का ठहराव मुश्किल से दस मिनट से अधिक का
होता नहीं है। जब हमारे पास बैठे बन्दे का फ़ोन आया था तो ट्रेन को रुके हुए 6-7 मिनट
तो हो ही चुके थे। वह बन्दा डिब्बे से बाहर जाकर फ़ोन में बात करने में ऐसा व्यस्त
हुआ कि उसे यह भी पता नहीं लगा कि कब ट्रेन चल पड़ी। उसका ध्यान जब तक ट्रेन पर
जाता, तब तक ट्रेन की गति इतनी तेज हो गयी थी उसके बसकी बात नहीं थी कि दौड़ती
ट्रेन पकड़ सके। उस बन्दे की बीबी उसे गोवा में प्लेटफ़ार्म पर छूटता देख बिलबिला
उठी। सबने मिलकर उसे हिम्मत दी कि आपको जहाँ उतरना है वहाँ उतार देंगे। वह बोली कि
टिकट तो उनके पास ही है, कोई बात नहीं टीटी यदि दुबारा आयेगा तो उसे सब मिलकर बता
देंगे। मड़गाँव से कोई तीन-चार घन्टे की यात्रा के बाद उसका स्टेशन आया और वह महिला
वही उतर गयी। उसके पति के मोबाइल पर किसी ने उसकी बात करा दी थी कि उसकी घरवाली व
बच्चा स्टेशन पर सही सलामत उतार दिये है तुम उन्हे लेने कैसे भी वहाँ पहुँच जाना।
सुबह जब त्रिवेन्द्रम आने को हुआ तो दिन
निकलने में अभी देर थी लेकिन समय बता रहा था कि सुबह के पौने 6 बजने
जा रहे है। थोड़ी देर में ही ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर पहुँच गयी। अपना-अपना सामान उठाकर
हम पाँचों भी अन्य सवारियों की तरह स्टेशन से बाहर निकल आये। त्रिवेन्द्रम के
स्टेशन से बाहर आने के लिये उल्टे हाथ वाली दिशा में बाहर निकलना होता है। स्टेशन
से बाहर आते ही कई ऑटो वाले पीछे पड़ गये। वे ज्यादातर अपनी स्थानीय बोली/भाषा
मलयालम में बात कर रहे थे। जब मैंने कहा जिसे हिन्दी आती हो सिर्फ़ वह बात करे।
मेरी बात सुनकर दो-तीन ऑटो वाले हिन्दी में बोले पड़े, बोलो सर कहाँ जाना है? उनमें
से एक के साथ स्टेशन से सीधे कोवलम बीच छोड़ने के लिये 150 रुपये
में बात तय हो गयी।
ऑटो वाला हमें लेकर कुछ दूर तक तो रेलवे
लाईन के साथ चला उसके बाद रेलवे लाईन के ऊपर से होता हुआ आगे बढ़ने लगा। यहाँ से
आगे बढ़ते ही कोवलम का मार्ग बताने वाले बोर्ड़ दिखायी देने लगे। स्टेशन से कोवलम
बीच लगभग 15 किमी के करीब तो रहा होगा। सुबह का समय होने के कारण सड़क
एकदम सुनसान पड़ी हुई थी ऐसा लगता था जैसे शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ हो। थोड़ी देर में
ही शहर पार हो गया और हमारा ऑटो नारियल के पेड़/जंगल ने बीच से होकर समुन्द्र की ओर
बढ़ता रहा। लगभग आधे घन्टे में ही ऑटो ने हमें कोवलम में बस स्टैन्ड़ पर जाकर उतार
दिया। वहाँ पहुँचकर ऑटो वाले ने कहा कि यहाँ से दोनों ओर सुन्दर-सुन्दर बीच है आप
बारी-बारी से दोनों बीच देख लेना। ऑटो वाले को उसको किराया देकर हम अपना सामान
उठाकर लाईटहाऊस बीच की ओर चल दिये।
बीच किनारे की रेत आते ही मैंने अपना बैग
खोला और उसमें से चप्पल निकाल ली जूते बैग में रख दिये। मुझे चप्पल निकालते देख,
सुनील बोला, अरे मेरे नये जूते तो ट्रेन के डिब्बे में सीट के नीचे ही रह गये है।
सुनील लापरवाही के मामले में कमाल का निकला। उसने दो धमाकेदार समाचार सुनाये। पहले
जूते के बारे में बताया कि कल ही 1100 के जूते खरीद कर लाया था मुश्किल से 11
घन्टे भी नहीं पहने थे कि जूते गुम कर दिये। अगर स्टेशब से बाहर
निकलते ही जूते याद आ जाते तो जूते मिल जाते लेकिन अब 15 किमी
दूर ना के बाद जूते लेने जाये और मिलने की सम्भावना तो वैसे भी समाप्त हो जाती है
सफ़ाई वाले जूते हटा चुके होंगे।
जूते का गम भूलाकर सुनील से कहा, सुनील
जरा अपना कैमरा तो निकालना। बीच के कुछ फ़ोटो ले लेते है। यहाँ सुनील ने दूसरी खबर
सुनाकर जबरदस्त धमाका कर दिया कि कैमरा वाला बैग तो मैं घर पर ही भूल आया हूँ।
मुझे कैमरे वाली बात सुनकर सुनील पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वो तो शुक्र था कि उसकी
माताजी उसके साथ थी नहीं तो उसकी जोरदार मरम्मत वही कर देनी थी। सुनील की कैमरे
वाली व जूते वाली लापरवाही के कारण उसकी पत्नी भी उससे बेहद नाराज हो गयी। उन
दोनों की जोरदार कहासुनी भी हो गयी। किसी तरह मामला शाँत हुआ। एक चाय की दुकान पर
बैठकर मुझे छोड़कर चारों ने चाय पान किया।
अब अपना सामान किनारे रख हम समुन्द्र में
नहाने के लिये पानी में कूद पड़े। लगभग दो घन्टे तक समुन्द्र के पानी में घुसे रहे।
पहली बार समुन्द्र के पानी का स्वाद चखा। स्वाद इतना कडुवा था कि उल्टी होने से
मुश्किल से बच पाये। यहाँ हमारे पास हरियाणा का एक परिवार भी नहाने के लिये पहुँच
गया। 3000
किमी दूर हरियाणा के बन्दे देखकर ऐसा लगा कि जैसे कोई घर परिवार का
मिल गया हो। लाइट हाऊस बीच पर नहाकर साफ़ पानी से नहाना जरुरी थी। साफ़ पानी से
नहाने के लिये बस स्टैन्ड से सीधे हाथ जाने वाले पर एक मस्जिद के साथ साफ़ का
प्रबन्ध बताया गया। हमने अपना सामान उठाकर उस जगह जा पहुँचे।
यह पता करने के बाद कि साफ़ पानी से नहाने
का इन्तजाम है। हम एक बार फ़िर समुन्द्र में जा घुसे। यहाँ इस नये बीच पर समुन्द्र
का पानी एकदम गहराई लिये हुए था जिससे हम आगे जाने से बस रहे थे। जबकि लाइटहाऊस
वाले बीच पर पानी में धीरे-धीरे गहराई हो रही थी। समुन्द्र में नहाकर साफ़ पानी से
नहाये, साफ़ पानी से नहाने का शुल्क प्रति बन्दा मात्र 10 रुपये
लिया गया था। हम चार थे इस तरह कुल चालीस में चारों नहाकर फ़्रेस हो गये थे। उसके
बाद कपड़े सूखने तक समुन्द्र किनारे बैठ गये। यहाँ सामने ही एक बुढिया नारियल बेच
रही थी उससे लेकर नारियल खाये गये। बुढिया का मिजाज जरा तुनक मिजाज था, हिन्दी
मुश्किल से समझ पा रही थी।
अब समय दोपहर के तीन बजने वाले थे। अब
हमारा इरादा कन्याकुमारी जाने का था जो यहाँ से मुश्किल से 90 किमी
दूरी पर ही था। बस स्टैन्ड़ पहुँचते ही एक वातानुकुलित बस त्रिवेन्द्रम जाने के
लिये तैयार खड़ी मिल गयी। इस बस में 25 रुपये प्रति सवारी के
हिसाब से टिकट लगा। इस बस ने हमें त्रिवेन्द्रम के मशहूर मन्दिर के सामने उतार
दिया। यहाँ मन्दिर में जाने के लिये आदमी को कमर से ऊपर का भाग बिना कपड़े के व पेट
से नीचे के भाग पर धोती लपेट कर ही जाने दिया जाता है। मन्दिर के दर्शन कर, मुख्य
बस अड़ड़ा जा पहुँचे, जो कि रेलवे स्टेशन के सामने ही है। यहाँ पहुँचते ही
कन्याकुमारी जाने वाली बस भी तैयार मिली। (क्रमश:)
दिल्ली-त्रिवेन्द्रम-कन्याकुमारी-मदुरै-रामेश्वरम-त्रिरुपति बालाजी-शिर्ड़ी-दिल्ली की पहली LTC यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
यह सुनील रावत व उसकी जोड़ीदार है। |
इसे बताना जरुरी नहीं है। |
अब चले कन्याकुमारी।, सुनील की माताजी का फ़ोटो। |
12 टिप्पणियां:
वाह ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार।
सप्ताह मंगलमय हो।
इससे बढ़िया शूट और क्या हो सकता है किसी चित्रकार की तुलिका सा ,शायर की कल्पना सा सटीक छायांकन .ॐ शान्ति
४ ३ ,३ ० ९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन (मिशिगन )
संदीप भाई अभी हाल फिलाल ही पीस विलेज ,पीस विलेज लर्निंग एंड रीट्रीट सेंटर ,रूट नम्बर २ ३ ए ,Haines Falls ,Hunter Mountain
New York 124 36
से लौटा हूँ .उस परम पावन शिव धाम से भगवान् के घर से .वही हमारे होस्ट थे .प्रकृति की ऐसी गोद जिसे देख आपका कैमरा भी चुप हूँ जाए आँखों में समाले उस सात्विक सौन्दर्य को .
इससे बढ़िया शूट और क्या हो सकता है किसी चित्रकार की तूलिका सा ,शायर की कल्पना सा सटीक छायांकन .ॐ शान्ति
४ ३ ,३ ० ९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन (मिशिगन )
संदीप भाई अभी हाल फिलाल ही पीस विलेज ,पीस विलेज लर्निंग एंड रीट्रीट सेंटर ,रूट नम्बर २ ३ ए ,Haines Falls ,Hunter Mountain
New York 124 36
से लौटा हूँ .उस परम पावन शिव धाम से भगवान् के घर से .वही हमारे होस्ट थे .प्रकृति की ऐसी गोद जिसे देख आपका कैमरा भी चुप हूँ जाए आँखों में समाले उस सात्विक सौन्दर्य को .
इससे बढ़िया शूट और क्या हो सकता है किसी चित्रकार की तूलिका सा ,शायर की कल्पना सा सटीक छायांकन .ॐ शान्ति
४ ३ ,३ ० ९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन (मिशिगन )
संदीप भाई अभी हाल फिलाल ही पीस विलेज ,पीस विलेज लर्निंग एंड रीट्रीट सेंटर ,रूट नम्बर २ ३ ए ,Haines Falls ,Hunter Mountain
New York 124 36
से लौटा हूँ .उस परम पावन शिव धाम से भगवान् के घर से .वही हमारे होस्ट थे .प्रकृति की ऐसी गोद जिसे देख आपका कैमरा भी चुप हूँ जाए आँखों में समाले उस सात्विक सौन्दर्य को .
PL CHECK SPAM BOX .
संदीप भाई,
आप अपना कैमरा लेकर नहीं गए थे, सुनील अपना डिजिटल कैमरा घर भूल आया था तो फिर ये फोटो कहाँ से आये ? बहुत मज़ा आ रहा है आपकी इस यात्रा में भी। सुनील बेचारा 1100 रु. के जुते 11 घंटे भी नहीं पहन पाया, अब ऐसे में पत्नीजी का क्रोध तो जायज ही है ना।
आगाज़ पढ़कर लग रहा है अंजाम बहुत ही ख़ूबसूरत होगा। इस श्रंखला की हर एक कड़ी में हम आपके साथ रहेंगे।
वाह ,बहुत सुंदर भावपूर्ण आलेख . बधाई
मुकेश भाई ये फ़ोटो मोबाईल के है। आप यात्रा में साथ है तो फ़िर क्या चिंता?
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
इतना सूना कोवलम देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है, हमारे समय तक बहुत भीड़ हो चुकी थी।
तीन चार दिन बाद हम भी वहीं होंगे । फिर दुबारा वहीं से टिप्पणी करेगें
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