सोमवार, 24 जून 2013

Neral to Matheran Journey by Toy Train नेरल से माथेरान तक ट्राय ट्रेन की सवारी

EAST COAST TO WEST COAST-21                                                                   SANDEEP PANWAR
नेरल स्टेशन पर पहले पहुँचने की जल्दबाजी में मैं और विशाल बिना प्लेटफ़ार्म वाली दिशा में कूद गये और सबसे पहले टिकट काऊँटर पर पहुँच गये। नेरल से माथेरान वाली पहाड़ी पर जाने वाली ट्राय ट्रेन के टिकट नेरल के प्लेटफ़ार्म पर एक कोने में बने काऊँटर पर ही मिलते है। नेरल से माथेरान के लिये वैसे तो कई ट्रेन है लेकिन सबसे पहली ट्रेन के चलने का समय सुबह 6:45 मिनट का बताया गया था जिस पहली ट्रेन से हम यहाँ पहुँचे थे उसके यहाँ पहुँचने का समय सुबह 6:25 का है। इसलिये हम टिकट की जल्दबाजी कर रहे थे कि कही टिकट की लम्बी लाईन लग गयी तो फ़िर अगली ट्रेन से जाना होगा। यहाँ इस ट्रेन में टिकट अग्रिम आरक्षित नहीं कराये जा सकते है। ऊटी (उदगमण्ड़लम) शिमला, व दार्जीलिंग वाली कुछ ट्रेनों में आरक्षण की व्यवस्था दी हुई है जिससे दूर से आने वाले यात्री पहले से ही अपने टिकट बुक करा कर ही आते है।

शनिवार, 22 जून 2013

Train Journey- Nanded to Mumbai/Bombay (Neral) नान्देड़ से नेरल (मुम्बई/बोम्बे) तक ट्रेन यात्रा

EAST COAST TO WEST COAST-20                                                                   SANDEEP PANWAR
मैंने एक मौका लेने की सोचकर ट्रेन के साथ भागना आरम्भ किया, मुझे ट्रेन के साथ भागते देख कई लोग बोले छोड़ दे, अगली ट्रेन से चले जाना, पूरी ताकत लगाकर मैं भागा था मुझे दरवाजे के नजदीक आते देख, दरवाजे पर खड़े बन्दे वहाँ से पीछे हट गये। भागते-भागते मेरा ध्यान दरवाजे के पाइप के साथ सुरक्षा पर भी था। एक हाथ से खिड़की का पाइप पकड़कर मैंने कुछ कदम तय किये जब यह उम्मीद हुई कि अब सुरक्षित रुप से दरवाजे में प्रवेश किया जा सकता है तो मैंने अपने आप को दरवाजे से अन्दर धकेल दिया। दरवाजे से अन्दर घुसते समय मेरे सामने आगरा कैन्ट की एक घटना घूम गयी थी मुझे याद है जब मैं पहली बार ताजमहल देखने गया था तो वहाँ स्टेशन पर एक दुर्घटना घटित हुई थी जिसमें एक महिला ग्वालियर या झांसी नौकरी करने जाया करती थी, एक दिन ठीक मेरी तरह उसकी ट्रेन चल चुकी थी उस औरत ने ट्रेन पकड़ने के लिये ट्रेन के साथ दौड़कर दरवाजे का पाइप तो पकड़ लिया था लेकिन बदकिस्मती से वह दरवाजे में पैर रखते समय चूक गयी, जैसे ही उसने दरवाजे में पैर रखा तो उसका पैर फ़िसल गया। अगर उसने उसी समय दरवाजे पर पकड़ा हुआ पाइप छोड़ दिया होता तो वह प्लेटफ़ार्म पर गिर जाती लेकिन होनी-अनहोनी के आगे किसी की नहीं चलती। पाइप पकड़ने के कारण वह महिला ट्रेन के साथ घिसटती चली गयी जिससे वह ट्रेन व प्लेटफ़ार्म के बीच पिसती चली गयी। जब तक ट्रेन ने प्लेटफ़ार्म पार किया उस महिला की दर्दनाक दयनीय हालत हो चुकी थी। खैर ट्रेन कोई बस तो है नहीं जो चिल्लाने से रुक जाये जब गार्ड़ ने दुर्घटना देखी तो उसने ट्रेन रुकवायी लेकिन उस औरत की इतनी बुरी हालत हो चुकी थे कि वह कुछ देर में ही दम तोड़ गयी।




शुक्रवार, 21 जून 2013

NANDED GURUDWARA नान्देड़ गुरुद्धारा श्री सचखन्ड़ नानक धाम

EAST COAST TO WEST COAST-19                                                                   SANDEEP PANWAR
नान्देड़ निवासी मदन वाघमारे (मैं उन्हे बाघमारे ही कहकर बुलाता हूँ) अपनी बाइक पर मुझे लेकर पहले अपने ठिकाने पर पहुँचे, यहाँ इनका कार्यस्थल उसी फ़्लाईओवर के किनारे है जो फ़्लाईओवर नान्देड़ बस अड़ड़े के ऊपर से होकर गुरुद्धारे की ओर जाता है। इनकी कार्यस्थली में जाते ही वहाँ की गर्मी से कुछ देर के लिये राहत मिली, क्योंकि उन्होंने वातानुकूलित यंत्र चलाया हुआ था। पानी पीने के उपराँत अपना बैग वही छोड़कर मैं एक बार मदन की बाइक पर सवार हो गया। बस अड़ड़े से सचखन्ड़ गुरुद्धारा मुश्किल से एक सवा किमी के बीच ही है इसलिये हमें वहाँ पहुँचने में तीन-चार मिनट ही लगें होंगे। गुरुद्धारे पहुँचने से पहले हम गुरु गोविन्द सिंह अस्पताल के बाहर से होकर गये थे। यहाँ अस्पताल के पास एक चौराहे से सीधे हाथ मुड़ते ही अस्पताल आया था। सड़कों पर गुरुद्धारे का मार्ग बताने के लिये मार्गदर्शक निशान बनाये गये है। सड़क पर लगाये गये दिशा सूचक बोर्ड़ से बाहर से आने वाली जनता को बहुत लाभ होता है बार-बार स्थानीय बन्दों से पता करने का झंझट ही नहीं रहता है।


गुरुवार, 20 जून 2013

Orange Garden and back to Nanded संतरे के बगीचे में भ्रमण व नान्देड़ रवानगी

EAST COAST TO WEST COAST-18                                                                   SANDEEP PANWAR
हम वापिस बाइक के पास आये तो संतोष की माताजी व पिताजी जो कि खेत में ही निवास करते है। दोपहर के भोजन की तैयारी में संतोष की माताजी तैयार बैठी थी, जब हम उनके पास पहुँचे तो चूल्हे पर बनी ताजी रोटियाँ देखकर हम अपने आप को रोक ना सके। रोटियाँ खाते समय बसन्ता की बात का भी ध्यान रख रहे थे उसने कहा था कि दोपहर का खाना उसके घर पर खाना है। माताजी के हाथ व चूल्हे पर रोटियाँ का स्वाद बेहद ही स्वादिष्ट था। हमने कब तीन-तीन रोटियाँ चट कर डाली, पता ही नहीं लगा। हम रोटी खाकर उठे भी नहीं थे कि बसन्ता वहाँ आ पहुँचा। उसने हमें रोटी खाते देखकर कहाँ मैं आपके लिये दोपहर का भोजन बनवा कर तैयार करवा रखा है और आपने यही पेट फ़ुल कर लिया, अब हमारे घर क्या खाओगे? मैंने कहा देख भाई तेरा पाला अब से पहले जाट से नहीं पड़ा है जाट वो बला है जिससे मुगल तो मुगल अंग्रेज भी थर्राते थे।



Village journey with Ape and Imali खेतों में लहलहाती फ़सल के बीच इमली व लंगूर

EAST COAST TO WEST COAST-17                                                                   SANDEEP PANWAR
शाम का समय था कैमरा मेरी जेब में ही था सोचा चलो सूर्यास्त के दो चार फ़ोटो ले लिये जाये। गाँव से खेत मुश्किल से एक किमी दूरी पर भी नहीं है जब घर से निकले तो सूर्य देवता आसमान में काफ़ी ऊपर लटके हुए अपनी सेब जैसी लाली बिखेर रहे थे। लेकिन पता नहीं क्या नाराजगी थी कि दो-तीन मिनट में हम खेत में पहुँच ही गये थे लेकिन सूर्य महाराज कहाँ गायब हो गये, आसमान से गिरकर कही नीचे खेतों में घुस चुके थे। मजबूरन उसी हालत में एक फ़ोटो लेकर अपना काम चलाना पड़ा। खेत में बाबूराव की गाय-भैसे बंधी रहती है गाँव के नजदीक खेत होने का लाभ खेत में ही पालतु पशु बाँध कर लिया जा रहा है। जब तक बाबू राव के छोटे भाई ने गाय व भैंस का दूध निकाला तब तक मैंने आसपास घूमते हुए फ़ोटो लेने जारी रखे। खेत में जहाँ पालतु पशु बंधे हुए थे उनके ठीक ऊपर इमली का एक विशाल पेड़ था जिसमें बहुत सारी इमली लटकी पड़ी थी। महाराष्ट्र में इमली के बडे-बड़े पेड़ जगह-जगह दिखाई देते रहते है। इमली के पेड़ के फ़ोटो लेकर आगे बढ़ा।




बुधवार, 19 जून 2013

Marriage Ceremony in Maharashtrian Village महाराष्ट्र में ग्रामीण शादी समारोह का चित्रमय विवरण

EAST COAST TO WEST COAST-16                                                                   SANDEEP PANWAR
लड़की के घर पर हमें कुछ काम-धाम तो था नहीं इसलिये हम सीधे गाँव के मन्दिर पहुँचे वहाँ से दुल्हा और दुल्हन की गाड़ी के साथ-साथ बाइक चलाते हुए कुरुन्दा पहुँच गये। कुरुन्दा में शादी के लिये स्थानीय लोगों की भीड़ उमड़ना आरम्भ हो चुकी थी। यहाँ पन्ड़ाल में औरतों यानि महिलाओं के बैठने के लिये अलग स्थान बनाया गया था। जबकि पुरुषों के बैठने के लिये अलग स्थान बनाया गया था। मैं सोच रहा था कि हमारी तरह यहाँ भी शादी में सीमित संख्या में ही आमंत्रित लोग आते होंगे, लेकिन मेरा यह भ्रम उस समय चकनाचूर हो गया जब वहाँ मौजूद लोगों की संख्या हजार से भी ज्यादा हो गयी। शादी में इतने सारे स्त्री-पुरुष एक साथ महसूस होता है कि गाँव की संस्कृति में आज भी अपनापन बना हुआ है।


Maharashtrian Marriage rituals (preparation) महाराष्ट्रियन गाँव में शादी की तैयारियाँ

EAST COAST TO WEST COAST-15                                                                   SANDEEP PANWAR
रात को करीब आठ बजे जाकर कुरुन्दा गाँव में पहुँचना हो सका। वहाँ जाकर देखा कि अधिकतर लोग कल होने वाली शादी के कार्य की तैयारी में लगे पड़े थे। मेरे लिये यह पहला मौका था जब मैं किसी महाराष्ट्रियन शादी में शामिल होने जा रहा था अभी तक मैंने उत्तर भारतीय हिन्दी भाषी राज्यों की शादियाँ ही देखी थी। रात को कोई नौ बजे के आसपास बाबूराव (जिनके यहाँ शादी थी) की इकलौती व सबसे छोटी लड़की की कुछ रस्म करने के लिये पन्ड़ाल में लाया गया। इस प्रकार रस्म हमारे यहाँ घर की चार दीवारी के अन्दर ही समपन्न करायी जाती है। इस रस्म के तुरन्त बाद लड़की घर के अन्दर चली गयी। रात में मैंने बाबूराव से पता किया कि आपके तो छोटे लड़के की भी कल इसी पन्ड़ाल में ही शादी होने वाली है ना, लेकिन वो कही नजर नहीं आ रहा है। मेरी बात का जवाब मिला कि हमारे यहाँ लड़का शादी से पहली रात ससुराल में बिताता है जहाँ उसको हल्दी आदि लगाने की रस्म निभानी होती है। ऐसा गजब कैसे?


शनिवार, 15 जून 2013

Parli Vaijnath to Basmat Train journey परली वैजनाथ से बसमत तक रेल यात्रा।

EAST COAST TO WEST COAST-14                                                                   SANDEEP PANWAR
ट्रेन के मामले में अक्सर ऐसा होता आया है कि जब हम स्टेशन पहुँचने में लेट हो जाते है तो ट्रेन समय से आ जाती है इसके विपरीत यदि हम समय से पहले स्टेशन पहुँच जाये तो ट्रेन लेट हो जाती है ऐसा क्यों होता है? जब उदघोषणा हुई थी कि ट्रेन एक घन्टा देरी से आयेगी तो कुछ खास परेशानी नहीं हुई क्योंकि अपुन को उस ट्रेन से सिर्फ़ 103 किमी की ही यात्रा करनी थी। जिसको तय करने में अधिक से अधिक दो-सवा दो घन्टे का समय लग जाता। लेकिन एक घन्टा प्रतीक्षा करने के बाद हम मन ही मन सोच ही रहे थे कि कही दुबारा से यह उदघोषणा ना हो जाये कि ट्रेन अभी भी एक घन्टा और देर से आयेगी। जिसका ड़र था वही हो गया। जब उदघोषणा करने वाले ने दुबारा यह सूचना प्रसारित करायी कि ट्रेन अभी पौना घन्टा देरी से आने की उम्मीद है तो उसकी यह सूचना सुनकर हमारी उम्मीदों को जोर का झटका लग गया। लेकिन अपुन ठहरे जिददी जाट, जब पहाड़ की भयंकर चढ़ाई से नहीं घबराते तो फ़िर ट्रेन के दो चार घन्टे देरी से चलने से क्या फ़र्क पड़ने वाला था। ट्रेन से लेट होने से स्टेशन पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। एक बार खंडवा स्टेशन पर 6 घन्टे मीटर गेज वाली रेल की प्रतीक्षा कर चुका हूँ।


Parli Vaijnath परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर

EAST COAST TO WEST COAST-13                                                                   SANDEEP PANWAR
श्रीशैल से हैदराबाद जाने वाली बस आधा घन्टा पहले ही गयी थी दूसरी बस के बारे में पता लगा कि सामने वाली बस कुछ समय बाद हैदराबाद के लिये प्रस्थान करेगी। बस परिचालक से हैदराबाद के टिकट के बारे में व सीट के बारे में पता कर, सबसे आखिरी वाली सीट पर जाकर अपना डेरा जमा दिया। यहाँ की बसों में सबसे पहली/आगे वाली सीटों पर बैठने की मनाही है जिस कारण अपुन को सबसे आखिर की सीट पर जाकर बैठने में ही अच्छा लगा। बस में बैठने के लिये सबसे आगे या सबसे आखिर की सीट ही अपनी पसन्द आती है। श्रीशैल से चलते ही बस उसी कस्बे से होकर आयी व गयी जहाँ गलती से मैं श्रीशैल समझ कर उतर गया था। यहाँ से आगे बढ़ने के कुछ किमी बाद हमारी बस यहाँ के बाँध के किनारे से होकर चलती रही। बाँध के कई फ़ोटो लेने का मन था लेकिन सत्यानाश हो बस के सफ़र का, जो बाँध के फ़ोटो नहीं ले पाया। बस बाँध वाली नदी के किनारे पर कुछ आगे जाने के बाद एक पुल के जरिये नदी को पार करती है उसके बाद फ़िर से बाँध की ओर दूसरे किनारे पर लौटने लगती है। यहाँ बाँध के ठीक ऊपर आने के बाद बस बाँध को पीछे छोड़ मैदान की ओर मुड़ जाती है।

Sri Sailam Mallikaarjun Swami Jyotirlinga Temple श्रीशैल मल्लिकार्जुन स्वामी ज्योतिर्लिंग मन्दिर

EAST COAST TO WEST COAST-12                                                                   SANDEEP PANWAR
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मन्दिर पहुँचने से पहले सभी बसे मुख्य मार्ग से हटकर बने एक नगर से होकर वापिस आती है। जब हमारी बस मन्दिर के नजदीक पहुँची तो मेरे सामने वाली सीट पर बैठा बन्दा बोला कि अब जैसे ही बस मुडेगी तो हमें यही उतरना होगा, क्योंकि यहाँ से मन्दिर की पैदल दूरी सबसे नजदीक रहती है। जैसे ही वह मोड़ आया और बस चालक ने बस रोकी तो मैं भी उसी व्यक्ति के साथ वहीं उतर गया। बस से बाहर आते ही वहाँ का माहौल देखकर समझ आने लगा कि यह वीराना सा दिखायी देने वाला कस्बा ज्यादा भीड़भाड़ लिये हुए नहीं है। मैंने अपने साथ वाले बन्दे से मालूम किया कि बस अड़ड़ा यहाँ से कितनी दूरी पर है तो उसने बताया कि बस अड़्ड़ा यहाँ से लगभग पौने किमी के आसपास है। वह व्यक्ति भी मन्दिर में ही दर्शन करने के इरादे से ही जा रहा था, चूंकि वह स्थानीय व्यक्ति था इसलिये उसके पास सामान आदि के नाम पर मन्दिर में भगवान को अर्पित करने वाली पूजा सामग्री के अलावा और कुछ नहीं था।


मंगलवार, 11 जून 2013

Narsingh Temple नरसिंह मन्दिर

EAST COAST TO WEST COAST-11                                                                   SANDEEP PANWAR
अरकू घाटी की बोरा गुफ़ा देखने के बाद इस यात्रा में विशाखापट्टनम की ओर लौटते समय नारायण जी बोले, "अभी हमारे पास एक घन्टा अतिरिक्त है अगर सम्भव हुआ तो नरसिंह भगवान वाला मन्दिर भी देखते हुए घर चलते है। मन्दिर देखने के बाद श्री शैल मल्लिकार्जुन जो कि भगवान भोले नाथ को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है, के लिये प्रस्थान किया जायेगा। विशाखापट्टनम शहर की आबादी में घुसने के बाद उल्टे हाथ पर एक मार्ग पहाड़ के ऊपर चढ़ता जाता है यह मार्ग नरसिंह मन्दिर पहुँचकर ही समाप्त होता है। यह नरसिंह मन्दिर वही मन्दिर है जो हिन्दू धर्म में होलिका दहन और भक्त प्रहलाद के कारण प्रहलाद के पिता को मारने के लिये आधे नर व आधे सिंह वाले अवतार रुप में इस पृथ्वी पर अवतरित हुए और प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप का साँयकाल के समय संहार किया। हिरण्यकश्यप भी कमाल का प्राणी था जो भगवान से ऐसा वरदान ले आया था कि वह ना दिन में मरेगा, ना रात में, ना आदमी से मरेगा, ना जानवर/पशु से। इस अत्याचारी पिता को मौत के हाथों में सौपने के लिये भगवान को आधा शरीर मानव का व आधा शरीर शेर का धारण करना पड़ा, वरदान अनुसार दिन छिपते समय का चुनाव किया गया था ताकि अंधेरा होने से पहले ही उसका काम तमाम हो सके।


शुक्रवार, 7 जून 2013

Borra Caves, Araku Valley बोरा गुफ़ा, अरकू घाटी,

EAST COAST TO WEST COAST-10                                                                   SANDEEP PANWAR
अरकू घाटी का रेलवे स्टेशन देखने के बाद हम वहाँ से बोरा गुफ़ा देखने के लिये चल दिये। बोरा गुफ़ा विशाखापट्टनम से लगभग 90 किमी दूरी पर है अरकू यहाँ से 37 किमी दूरी पर पड़ता है जो रेल अरकू घाटी होकर जाती है वही रेल बोरा गुफ़ा के ठीक ऊपर होकर चलती है। सड़क मार्ग से यहाँ जाने पर मुख्य सड़क से कई किमी हटकर बोरा गुफ़ा के लिये जाना पड़ता है। हम अरकू पहाड़ी स्थल से वापसी में विशाखापट्टनम की ओर लौटते समय मस्ती से आ रहे थे। नारायण जी को कार का जीपीएस यंत्र चालू करने को कहा, जब नारायण जी ने कार का जीपीएस यंत्र चालू किया तो यंत्र के कुछ देर बाद ही अंतरिक्ष में सेटलाइट के जरिये हमारी ऊँचाई बतानी आरम्भ कर दी। जब हमने यंत्र आरम्भ किया था तो उस समय हमारी ऊँचाई हजार मीटर से भी काफ़ी ज्यादा थी। जैसे-जैसे हम विशाखापट्टनम की ओर बढ़ते जा रहे थे हमारी ऊँचाई लगातार घटती जा रही थी।




गुरुवार, 6 जून 2013

Araku Railway Station अरकू रेलवे स्टेशन

EAST COAST TO WEST COAST-09                                                                   SANDEEP PANWAR
अरकू घाटी में अरकू का अपना रेलवे स्टेशन है यह अलग बात है कि यहाँ पर दिन भर में विशाखापट्टनम से एक ही ट्रेन आती है व यही ट्रेन आगे किसी स्टेशन तक पहुँचने के बाद यही से होकर वापिस भी जाती है इसके एकमात्र ट्रेन के अलावा यहाँ कोई अन्य रेल नहीं आती है। यह एकमात्र रेल एक्सप्रेस रेल सेवा ना होकर पैसेंजर गाड़ी है लेकिन सबसे बड़ा शुक्र यह है कि इसमें दो डिब्बे में सीट आरक्षित होती है ताकि बाहर से आने वाले पर्यटक/घुमक्कड़ भीड़ से बचते हुए आसानी से यहाँ पहुँच सके। यही ट्रेन विशाखापट्टनम से बोरा गुफ़ा होकर आती है। बोरा गुफ़ा के ठीक ऊपर वहाँ का स्टेशन बना हुआ है उसके लिये भी ज्यादा नहीं चलना पड़ता है। कार पार्किंग में लगाकर मैंने कैमरा उठाया और स्टेशन के अन्दर जाकर फ़ोटो लेने लगा। यहाँ के स्टेशन पर भीड़ की ज्यादा मारामारी नहीं थी, साफ़ सुथरा स्टेशन था जिस कारण देखने में भी अच्छा लग रहा था। स्टेशन के बाहर निकलते ही एक दीवार पर अरकू घाटी में देखने लायक स्थलों का एक नक्शा बनाया हुआ है नीचे दिये गये फ़ोटो में दो हिस्से में वह नक्शा दिखाया गया है। अरकू स्टेशन देखकर हमें बोरा गुफ़ा निकलना था।

बुधवार, 5 जून 2013

Araku Valley- Chaaparai fall अरकू वैली का छापाराई झरना

EAST COAST TO WEST COAST-08                                                                   SANDEEP PANWAR
अरकू घाटी का पदमपुरम गार्ड़न देखने के बाद हम वहाँ से 15 किमी आगे छापाराई नामक एक झरने तक चलने की तैयारी करने लगे। गार्ड़न से बाहर आकर मुख्य सड़क पर आने के बाद सीधे हाथ उसी दिशा में चलते रहे जहाँ पर विशाखापट्टनम से आते समय जा रहे थे। अरकू गाँव से आगे निकलते ही एक बन्दे से उस झरने के बारे में पता किया तो उसने कहा कि आगे जाने पर उल्टे हाथ एक मार्ग आयेगा जो उस झरने के आगे से होकर जायेगा। यह झरना अरकू से 25 किमी दूरी पर है इसलिये हमारी कार उस दिशा में तेजी से दौड़ती चली गयी। अरकू वाली सड़क से जब हमारी कार उल्टे हाथ वाले मार्ग पर मुड़ी तो मार्ग की चौड़ाई कम होने के कारण कार की गति सीमित करनी पड़ी। यह सड़क मात्र एक वाहन चलने लायक ही बनायी गयी है। दो कार एक साथ आ जाये तो उन्हें एक-एक पहिया सड़क से नीचे उतारना पड़ जाता है।




Padampuram Garden- Araku valley (Hill station) पदमपुरम गार्ड़न, अरकू वैली/घाटी, विशाखापट्टनम

EAST COAST TO WEST COAST-07                                                                   SANDEEP PANWAR
घर पहुँचते-पहुँचते घनघोर अंधेरा हो गया था इसलिये सड़कों गलियों में बिजली की लाईटे अपनी भरपूर रोशनी से शहर को जगमगा रही थी। रात में नारायण जी के घर पहुंचे, नारायण जी का घर हाईवे से ज्यादा दूरी पर नहीं है लेकिन बाई पास उनके घर से कई किमी दूरी पर है। अपने यहाँ उत्तर भारत में एक परम्परा है कि किसी दोस्त-जान पहचान वाले के यहाँ पहली बार जाते समय कुछ मीठा साथ ले जाना अच्छा माना जाता है ताकि मेजबान और जजमान में मिठास बढ़ती रहे। शायद आंध्रप्रदेश में मीठे की रस्म थोड़ा हटकर है इसलिये नारायण जी से घर घुसने से पहले ही इस बात को बता दिया गया था अब नारायण जी ने एक नई मुश्किल बता दी कि उन्हें उनकी अर्धांगिनी को मधुमेह है जिससे वे मीठे से परहेज करते है। खैर रस्म अदायगी रुप में वहां की थोड़ी सी मिठाई लेकर नारायण जी के घर पहुँचे। अगली सुबह अरकू घाटी देखने जाना था।



सोमवार, 3 जून 2013

Kursura Submarine, Kali temple, Ramakrishna mission Ashrama कुरसुरा पनडुब्बी, काली मन्दिर, रामाकृष्णा मिशन आश्रम,

EAST COAST TO WEST COAST-06                                                                   SANDEEP PANWAR
भीमली से विशाखापट्टनम लौटते समय हमने एक पनडुब्बी देखने की कोशिश की थी लेकिन जाते समय भी यह बन्द थी तो वापसी में भी हमें यह बन्द ही मिली। जहाँ इस सबमेरीन देखने के टिकट मिलते है वहाँ एक छोटे से बोर्ड़ पर नजर गयी, जिस पर लिखा था कि सोमवार को पनडुब्बी दर्शकों के लिये बन्द रहती है। अरे आज तो सोमवार ही तो है कल मंगलवार को पूरा दिन वोरा गुफ़ा व अरकू वैली देखने में लग जायेगा। इसलिये कल भी इसे देखने का मौका हाथ नहीं आने वाला। वैसे कल रात की बस पकड कर श्री शैल के लिये निकल जाना है अत: इस पनडुब्बी को देखने का मौका इस बार तो गया काम से। खैर कोई बात नहीं, यहाँ दुबारा आने के लिये कोई ना कोई तो बहाना चाहिए ना, इसलिये कुछ ना कुछ तो देखने से छूटना ही चाहिए। इसलिये यह पनडुब्बी हमसे रह गयी।


Bheemili, Visakhapatnam, Andhra Pradesh भीमली, विशाखापटनम, आंध्रप्रदेश (भीम-बकासुर युद्ध-स्थल)

EAST COAST TO WEST COAST-05                                                                   SANDEEP PANWAR
भीमली का कब्रगाह देखने के बाद सामने ही समुन्द्र किनारे दिखायी दे रहे शानदार नजारे हमें अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। हम भी उनके आकर्षण में बंधकर समुन्द्र किनारे खिचे चले गये। कुछ देर तक समुन्द्र किनारे टहलते रहे। आगे जाने पर कई मूर्तियाँ दिखायी दे गयी। समुन्द्र को उसके हाल पर छोड़कर मूर्तियाँ देखने निकल पड़े। समुन्द्र किनारे जो मूर्तियाँ थी वो बेहद ही बुरी अवस्था में थी किसी का हाथ किसी की मुन्ड़ी, किसी की टाँग, और किसी की कुछ ना कुछ टूटी हुई थी। यहाँ एक दो दुकाने भी लगी हुई थी जहाँ समुन्द्र किनारे मिलने वाली वस्तुएँ से बनने वाली सामग्री बिक्री के लिये उपलब्ध थी। इसके बाद हम लाइट हाऊस की ओर बढ़ चले। वैसे तो यह लाइट हाउस अब बन्द हो चुका है लेकिन इस लाइट हाउस ने सैकड़ों वर्षों तक अपनी सेवा पानी के जहाजों को दी होगी। लाइट हाउस के आगे से होते हुए हम आगे चलते रहे।


Bheemili, Visakhapatnam- Dutch cemetery विशाखापट्टनम के भीमली का डच कब्रिस्तान

EAST COAST TO WEST COAST-04                                                                   SANDEEP PANWAR
फ़िल्म सिटी देखने के बाद नारायण जी की सवारी एक बार फ़िर हवा से बाते करने लगी। नारायण को जोश-खरोश से कार दौड़ाते देखकर दिल खुश हो गया। उम्र का घुमक्कड़ी पर कोई असर नहीं होना चाहिए, यह बात हमारे नारायण जी भली भांति सिद्ध कर चुके है। जिस कस्बे में हम पहुँच रहे थे वह अंग्रेजों (डच) के समय में मुख्य पड़ाव/स्थान हुआ करता था। इस बात का सबूत यहाँ मिलने वाली सैकडों वर्ष पुरानी इसाई कब्र देखने से पता लग जाता है। यहाँ आने से पहले मुख्य सड़क पर एक पुराना घन्टाघर भी देखने को मिला। वैसे तो यह घन्टाघर आजकल बन्द है लेकिन फ़िर भी धरोहर के रुप में अपने युग की याद दिलाता है। घन्टाघर के सम्मुख होते हुए हम आगे बढ़ते रहे। जैसे ही समुन्द्र किनारे पहुँचे तो ईसाई कब्रगाह दिखाई दे गयी। चलिये आप भी सैकड़ों वर्ष पुरानी कब्र गाह की सैर करिये।


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