गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

Gujarat- Somnath Temple सोमनाथ मन्दिर, जो कई बार तहस नहस हुआ।

गुजरात यात्रा-10

आज आपको सोमनाथ मन्दिर में महाशिवरात्रि वाले दिन दर्शन करने की मजेदार घटना के बारे में बताता हूँ-

महाशिवरात्रि वाले दिन हम सुबह चार बजे ही उठ गये थे, नहा धोकर मन्दिर की ओर चल पड़े। वैसे हमारा कमरा मन्दिर से मात्र 100 मी की दूरी पर ही था, लेकिन हम बनारस में महाशिवरात्रि के दिन होने वाली भीड़ देख चुके थे इसलिये हम दिन निकलने से पहले ही मन्दिर में प्रवेश कर लेना चाहते थे। बनारस वाली यात्रा में मेरे साथ प्रेम सिंह था जो इस यात्रा व गौमुख से केदारनाथ पद यात्रा में साथ ही चला था। जैसे ही हम मन्दिर के बाहरी प्रवेश दरवाजे पर पहुँचे तो देखा कि अरे बाप रे इतनी सुबह-सुबह 5 बजे भी लोग लाईन में लग गये है। जब तक हम लाईन में पहुँचे तो हमारे से पहले लगभग 100 लोग वहाँ पहले से ही मौजूद थे। हमने पहले वहाँ का जायजा लिया उसके बाद पता लगा कि अभी लाईन वाइन नहीं लगी हुई है। गेट खुलने का समय सुबह ठीक साढ़े पाँच बजे का था। इसलिये हमें ज्यादा देर वहाँ खड़ा भी नहीं रहना था। यहाँ पर मन्दिर का बाहरी दरवाजा शिवलिंग से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है। शिवलिंग से कोई 50 मीटर पहले एक और दरवाजा है वहाँ से आगे सभी को नंगे पैर जाना पड़ता है। हम कल शाम को यहाँ के तौर तरीके देख आये थे कि कहाँ चप्पल निकालनी है। किधर से जाना है किधर से आना है। चूंकि हमारा कमरा मन्दिर के सामने ही था इसलिये हम चारों बिना चप्पल के ही मन्दिर तक चले आये थे। 
सूर्योदय वाले स्थान से मन्दिर

सोमनाथ का नवनिर्मित मन्दिर

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

Somnath Temple's beach सोमनाथ मन्दिर के पास चौपाटी

गुजरात यात्रा-09
जूनागढ़ से सुबह 5 बजे वाली बस में सवार होकर हम चारों सोमनाथ के लिये चल दिये। बस पीछे कही और से आ रही थी इस कारण बस में बहुत भीड़ होने की वजह से हम चारों को सीट नहीं मिल पायी थी। प्रेम व रावत पहाड़ी को बस में घुसते ही सीट मिल गयी जिस कारण वे दोनों आराम से सोते हुए सोमनाथ तक पहुँच गये। अब बचे दो मैं और अनिल, हम दोनों ने खड़े-खड़े ही यह सफ़र पूरा किया था। अनिल पैदल यात्रा में काफ़ी थक गया था जिस कारण वह कुछ देर बस में बीच में आने-जाने वाले मार्ग में ही बैठ भी गया था। वेरावल बस अड़ड़े पर आकर जब बस रुकी तो अधिकतर सवारी बस से उतर गयी, हमने सोचा कि शायद सोमनाथ के लिये यही उतरना होता है। इसलिये पहले हमने बस कंडैक्टर से पता किया जब उसने कहा कि अरे सोमनाथ अभी कई किमी बाकि है और वहाँ जाने पर तो बस पूरी ही खाली हो जायेगी। कुछ देर बाद ही बस वहाँ से सोमनाथ के लिये चल पड़ी। यहाँ से आगे जाने पर सीधे हाथ समुन्द्र के दर्शन हो गये थे जिससे लगा कि बस अब सोमनाथ आने ही वाला है। सड़क किनारे एक बहुत बड़ा कब्रिस्तान दिखाई दिया। यहाँ से लगभग एक किमी आगे जाने के बाद आखिरकार सोमनाथ भी आ ही गया। सभी सवारियों के साथ हम भी सोमनाथ के बस अड़डे पर उतर गये। सुबह का सात बजे का समय हुआ था। सबसे पहले हमने मन्दिर की दिशा के बारे में पता किया। बस अड़डे से मन्दिर पश्चिम दिशा में मुश्किल से 100-150 मीटर की दूरी पर ही है। सोमनाथ आने के लिये सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल Veraval Railway Station से Somanath लगभग 6 किमी दूरी पर है।

सवारी की जा रही है।

पहली बार समुन्द्र स्नान हो रहा है।

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

Junagarh fair and climbing to Girnar mountain जूनागढ़ का महाशिवरात्रि मेला और गिरनार पर्वत की भयंकर चढ़ाई

गुजरात यात्रा-08

पोरबन्दर से आते समय जो बस हमें मिली थी उसने हमें जूनागढ़ के बस अड़ड़े पर उतार दिया था। यहाँ से गिरनार पर्वत की तलहटी तक जाने के लिये हमें अभी लगभग 6-7 किमी यात्रा और करनी थी। जिस बस में हम यहाँ तक आये थे उसी बस के कई यात्री गिरनार मेले में भागीदारी करने जा रहे थे। उन्हीं से हमें पता लग गया था कि जूनागढ़ के बस अड़डे से ही आपको गिरनार पर्वत के आधार तक जाने के लिये दूसरी बस मिल जायेगी। हम पोरबन्दर वाली बस से उतर कर बस अड़ड़े में ही गिरनार जाने वाली बस के बारे में पता कर, उसकी और बढ़ चले। मेले के दिनों में गिरनार जाने के लिये बहुत भीड़ रहती है जिस कारण यहाँ पर गिरनार वाली बस के लिये एक अलग से काऊँटर बनाया गया होता है। पहले जाकर टिकट लेनी होती है उसके बाद बस में बैठने वाली लाईन में लगना होता है। जैसे ही बस की सीट फ़ुल हो जाती है वैसे ही वह बस चल देती है उसकी जगह दूसरी बस आ जाती है। हम चारों भी एक बस में सवार होकर जूनागढ़ के गिरनार पर्वत के लिये चल दिये। जब हम गिरनार की ओर बढ़ रहे थे तो मार्ग में मिलने वाली भीड़ देखकर हम समझ गये कि यहाँ रात रुकने के लिये आसानी से जगह मिलने वाली नहीं है। बस से उतर कर हमने रात ठहरने के लिये कई जगह कोशिश की लेकिन कही भी जगह नहीं मिल पायी। रात के साढ़े सात बज चुके थे इसलिये पहले हमने पेट पूजा करने के लिये एक ढ़ाबे के यहाँ ड़ेरा ड़ाल दिया था।

भीड़ की मारामारी

चारों और बुरा हाल

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

Mahatma Gandhi Birth Place महात्मा गाँधी का जन्म स्थान

गुजरात यात्रा-07
सुदामा मन्दिर देखने के बाद जैसे ही बाहर आये तो वहाँ पर काफ़ी विशाल खुला स्थान नुमा मैदान देखकर अच्छा लगा था। यहाँ से हमें पहले तो इसी मैदान नुमा जगह से होकर बाजार वाली सड़क पर जाना था, उसके बाद वहाँ से हम सीधे हाथ की ओर मुड़ गये। यदि यहाँ से उल्टे हाथ मुड़ जाये तो फ़िर से उसी सड़क पर पहुँच जाते जहाँ से हम यहाँ तक आये थे। सुदामा मन्दिर से लगभग आधा किमी चलने के बाद एक चौराहा जैसा स्थान आता है। वैसे तो यह चौराहा बड़े-बड़े घरों से घिरा हुआ है। यहाँ आकर यहाँ की सैकड़ों साल पुरानी मकान देखकर लगता है कि पोरबन्दर हमेशा से ही वैभवशाली रहा है इसमें गाँधी का कोई योगदान नहीं है। मैं तो भारत की आजादी में भी गाँधी का योगदान नहीं मानता हूँ। अंग्रेज भारत छोड़ कर गये, इसका सिर्फ़ एक कारण था कि उस समय की भारतीय सेना और पुलिस में अंग्रेजी सम्राज्य के खिलाफ़ आवाज बुलन्द हो रही थी। एक बार बम्बई में नौसेना ने तो विद्रोह कर वहाँ के सभी अंग्रेजों को मार दिया था। उसके बाद आज की आतंकवादी घटनाओं की तरह उस समय के आतंकवादी (अंग्रेजों के अनुसार) जो सिर्फ़ अंग्रेजों को मारते थे। उनके कारण अंग्रेज बहुत ज्यादा ड़रे हुए थे। अरे-अरे छोड़ो यह आजादी का चक्कर, हम सिर्फ़ नाम के आजाद है मुझे तो अंग्रेजी राज ही ज्यादा अच्छा लगता था।

यह गाँधी के घर का संग्रहालय है।

गाँधी के माता-पिता

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

Sudama temple Porbandar gujarat गुजरात के पोरबन्दर में है श्रीकृष्ण दोस्त सुदामा मन्दिर

गुजरात यात्रा-06

द्धारका से बस तो हमें मिली नहीं इस कारण हमने कई ट्रकों को रुकने का इशारा किया लेकिन जूनागढ़ कोई नहीं जा रहा था। तभी एक मैजिक वाहन वाला आया हमने उसे हाथ का इशारा भी नहीं किया  था उसने पोरबन्दर की आवाज लगायी तो हमने कहा कि हम तो जूनागढ़ जायेंगे। हमारी बात सुनकर वो बोला कि आपको पोरबन्दर तक मैं छोड़ दूँगा, वहाँ सुदामा मन्दिर गाँधी की जन्म भूमि देखकर आप लोग अंधेरा होने से पहले आराम तक जूना गढ़ पहुँच जाओगे। उसकी बात सुनकर अपने दिमाग का घन्टा टन-टना-टन बोला कि चल जाट देवता चल लगता है श्रीकृष्ण का ही कारनामा है कि मेरा मन्दिर तो देख लिया है मेरे दोस्त सुदामा के मन्दिर को देखे बिना जा रहे हो। हम उस सामान ढ़ोने वाली मैजिक में सवार हो गये। मैं सबसे आगे बैठ गया जबकि बाकि तीनों पीछे पैर फ़ैला कर बैठ गये थे। द्धारका से पोरबन्दर की दूरी 115 किमी के पास है। गुजरात की चकाचक भीड़ रहित सड़कों पर हम मात्र दो घन्टे में ही पोरबन्दर पहुँच गये। मैजिक वाले ने हमें सुदामा मन्दिर के ठीक सामने छोड़ दिया। साथ ही यह भी समझा दिया था कि गाँधी का जन्म स्थान कहाँ है? सुदामा मन्दिर के बाहर एक नारियल वाला बैठा था सबसे पहले हमने एक-एक नारियल पर हाथ साफ़ किया उसके बाद उसकी गिरी खायी, तब कही जाकर हम सुदामा मन्दिर देखने के तैयार हुए।


यही श्री कृष्ण के दोस्त सुदामा का मन्दिर है।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

Nageshwar jyotirlinga temple dwarka द्धारका का नागेश्वर ज्योतिलिंग मन्दिर

गुजरात यात्रा-5
द्धारकाधीश मन्दिर से रुक्मिणी देवी मन्दिर देखते हुए हम सौराष्ट्र के दारुकावन स्थित नागेश्वर Nageshwara Jyotirlinga ज्योतिर्लिंग पहुँच चुके थे। इस मन्दिर में घुसने से पहले ही दूर से भोलेनाथ की एक विशाल मूर्ति  दिखायी दे रही थी जैसे ही हम चारों ने मन्दिर के प्रांगन में प्रवेश किया तो हम सबसे पहले इस मूर्ति के पास ही जा पहुँचे। मूर्ति के पास जाकर पाया कि यह मूर्ति तो लगभग 40-50 फ़ीट ऊंचाई लिये हुए है।  इतनी विशाल मूर्ति बनाने में बड़ी समस्या पेश आती है।  मूर्ति देखकर हम मन्दिर के अन्दर प्रवेश करने के लिये आगे बढ़े ही थे कि गेट पर मौजूद कर्मचारी ने हमें चेताया कि मन्दिर में फ़ोटो लेना मना है। अपने कैमरा व मोबाइल अपनी जेब में घुसेड़ कर अन्दर की चल पडे।  मैं मन्दिर में कभी भी पूजा-पाठ करने के चक्कर में नहीं जाता हूँ। मैं तो मूर्ति को एक पल देखकर ही संतुष्ट होने वाला प्राणी हूँ। दुनिया में आपको ऐसे-ऐसे लोग मिलेंगे जो मूर्ति से चिपक जायेंगे। मैं तो मानता हूँ कि जो जितना बड़ा पापी होता है उतना ज्यादा ढ़ोंग करता है। असली भक्त तो पहाड़ों में गुफ़ाओं में निवास करते है हम जैसे किस खेत की मूली है?

जय हो भोले नाथ

मन्दिर का प्रवेश द्धार

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

Dwarka- Lord Sri Krishna's wife Rukmini Devi temple श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी रुकमणी देवी का मन्दिर

गुजरात यात्रा-4
द्धारका dwarka में हम जिस तीन बत्ती नामक चौराहे के पास रुके थे उससे कुछ दूरी पर ही यहाँ की नगर पालिका Dwarka Nagar Palika की उस बस का कार्यालय है जो उस समय मात्र 60 रुपये में ही वहाँ के कई स्थानों के दर्शन कराया करती थी। आज हो सकता है कि यह किराया कुछ बढ़ गया हो। यह बस सुबह 8 बजे चलकर दोपहर  2 बजे वापस आती है। इसके रुट में Nageshwar Jyotirlinga, Gopi Talab, Bet Dwarka, Rukmani Devi Temple जैसे स्थान आते है। भद्रकाली रोड़ पर ही भद्रकाली मन्दिर में इसका कार्यालय है। हमें केवल रुकमणी देवी मन्दिर व नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ही देखने थे जिस कारण हम इस बस में नहींण गये थे। हाँ पहले दिन ही इसकी बुकिंग करवा लेनी सही रहेगी। नहीं तो पता लगा कि टिकट है ही नहीं, फ़िर क्या करोगे?

यह रुकमणी देवी मन्दिर है, कुछ इसे राधा मन्दिर भी कहते है।

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

Dwarkadheesh temple and Gomti Ghat (Shri Krishna) Gujarat. गुजरात का द्धारकाधीश मन्दिर व गोमती घाट

गुजरात यात्रा-3

बेट/भेट द्वारका/द्धारका के द्धीप पर भगवान श्रीकृष्ण का घर देखकर वापिस वही आ गये जहाँ हमें ट्रेन ने छोड़ा था। ओखा के स्टेशन के पास से ही द्धारकाधीश मन्दिर तक जाने के लिये निजी बसे थोड़े-थोड़े समय के अन्तराल पर चलती रहती है। ऐसी ही एक बस में सवार होकर हम चारों भी द्धारका की ओर रवाना हो गये। इस बस ने मुश्किल से आधा घन्टे में हमें उस स्थान पर उतार दिया था जहाँ से एक सीधा मार्ग मन्दिर की ओर जाता है। चूंकि हमें अंधेरा तो बस में सवार होते समय ही हो गया था इसलिए यहाँ पहुँचते समय रात जवान हो चुकी थी। हमने रात में यहाँ ठहरने का पहले से ही सोचा हुआ था। इसलिये सबसे पहले एक ठीक-ठाक (साधारण) सा कमरा सोने के तलाश करना शुरु कर दिया। पहले दो तीन धर्मशाला देखी गयी, लेकिन किसी में कमरा खाली नहीं मिला। एक जगह गये वहाँ बताया गया कि हम मुस्टंड़ों को कमरा नहीं देते है। लेकिन हमें जल्द ही मन्दिर से पहले भद्रकाली रोड़ पर तीन बत्ती नामक चौराहे के किनारे ही एक उचित दर वाला कमरा मिल गया था। यह भद्रकाली सड़क हाईवे से सीधी मन्दिर की ओर जाती है। कहने को तो सड़क है लेकिन देखने में एक कालोनी की गली जैसी ही है।

यही  मुख्य मन्दिर है।

ठीक सामने से लिया गया चित्र

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

OKHA- (Beyt Dwarka islands) The residence of lord Sri Krishna ओखा के भेंट/बेट द्धारका में श्रीकृष्ण का निवास स्थान

गुजरात यात्रा-2

जामनगर का बस स्थानक स्टेशन से दो किमी दूरी पर है। बस स्थानक जाकर पता लगा कि द्धारका जाने वाली बस थोडी देर पहले गयी है अगली बस तीन घन्टे बाद जायेगी। ट्रेन का तो पहले ही पता था कि चार घन्टे बाद जायेगी। बस में वहाँ से एक बन्दे के 165 रुपये लग रहे थे, वही रेल से मात्र 51 रुपये प्रति बन्दे लग रहे थे। इस कारण हमने कंजूसी दिखाते हुए ट्रेन से ओखा तक जाने का निश्चय किया था। ट्रेन में साधारण डिब्बे में ठीक-ठाक भीड़ थी। लेकिन हमें फ़िर भी सीट मिल गयी थी। जामनगर से द्वारका तक ही  भीड़ का डेरा था। द्वारका से ओखा तक ट्रेन लगभग खाली ही गयी थी। ओखा स्टेशन समुन्द्र तल से मात्रमीटर की ऊँचाई पर है। समुन्द्र तट यहाँ से मुश्किल से 100 की दूरी पर है। स्टेशन से बाहर निकलते ही हमने भेट द्धारका जाने के बारे में पता किया। भेट द्धारका जाने के लिये जहाँ से बोट/नाव मिलती है वह बोट जेटी स्टॆशन से आधे किमी की दूरी पर ही है। इसलिये हम पैदल ही वहाँ तक चले गये।

चलो भेट द्धारका चले

पक्षी भूखे है

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

आओ महान नेता नरेन्द्र मोदी के प्रदेश गुजरात चले। Let's go to Great Narendera Modi's Gujrat

गुजरात यात्रा-01
कल गोवा यात्रा समाप्त हो चुकी है, इसलिये आज गुजरात यात्रा की शुरुआत करते है। यात्रा शुरु करने से पहले यात्रा की तैयारी के बारे में बताना बेहद जरुरी रहता है। जिससे यह पता लग जाता है कि यात्रा करने से ज्यादा परॆशानी यात्रा पर जाने की तैयारी करने में आती है। बनारस पद यात्रा से आने के बाद हमने गुजरात जाने की योजना बनायी थी। इस यात्रा में गंगौत्री से केदारनाथ यात्रा व बनारस यात्रा के साथी प्रेम सिंह ने मेरे साथ जाने की हाँ पहले से ही की हुई थी। मैं तो वैसे भी प्रत्येक महाशिवरात्रि पर बारह में से किसी एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाता ही हूँ। अब सिर्फ़ दो ज्योतिर्लिंग ही देखने को बचे हुए है। जो है बिहार/झारखण्ड़ में बाबा देवघर व दूसरा श्रीशैल्लम मल्लिका अर्जुन आंध्रप्रदेश में है। वैसे जिस दिन यह लेख प्रकाशित होगा उस दिन तक तो मैं श्रीशैल मल्लिका अर्जुन के दर्शन कर घर आ भी चुका होंगा। अत: आप यह मान लेना कि अब सिर्फ़ बाबा देवघर वाले ही बचे है देखते है वो भी जाटदेवता संदीप पवाँर (आर्य) से बचते है और कब तक बचते है? वैसे यहाँ यह भी स्पष्ट कर दे रहा हूँ कि आने वाले सावन में बाबा देवघर वाले भी बचकर नहीं जाने वाले है।

चंड़ाल चौकड़ी। या स्वर्णिम चतुर्भज

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग धाम दर्शन Kedarnath jyotirling

गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा-8
केदारनाथ जाकर दर्शन करने के बाद, वापिस भी आज ही आना था। हम दोनों ठीक सुबह 4 बजे उठ गये थे, केदार जाने से पहले गौरीकुन्ड में गर्मागर्म पानी का स्नान किया जाता है। हमने भी खूब स्नान किया था उस समय अंधेरा था, हमारे अलावा दो बन्दे और थे। महिलाओं व पुरुषों के लिए यहां पर अलग-अलग स्नानकुन्ड बनाए गए है। यहां गौरीकुंड के अलावा नजदीक में ही दो कुंड और बने हुए हैं, ब्रह्मकुंड और सूर्यकुंड। लेकिन मुझे तलाशने पर भी नहीं मिले। बताते है कि गौरी कुंड का जल रामेश्वरम् में चढ़ाया जाता है तथा रामेश्वरम् से जल लाकर बद्रीनाथ पर चढ़ाते हैं। गौरी कुंड में सेतुबंध(लंका पुल) की मिट्टी समर्पित की जाती है। आराम से नहा धो कर वापिस कमरे पर आये थे। अपना सारा सामान हमने एक थैले में कर दिया था अपने साथ सिर्फ़ गौमुख से पैदल यात्रा करके लाया गया गंगा जल व वर्षा से बचने के लिये छतरी ले ली थी। हमारे साथ वाले बन्दे आराम से सो रहे थे उनसे पूछा तो जवाब मिला हम आज की रात केदारनाथ में ही रुकेंगे, अत: हम 9-10 बजे यहाँ से जायेंगे। 
केदारनाथ के द्धार पर आ पहुँचे है।



रविवार, 17 फ़रवरी 2013

Tiryuginarain to Gaurikund trekking त्रियुगीनारायण से गौरीकुन्ड ट्रेकिंग

गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा-7
सोनप्रयाग में पुल के पास ही कावँर यात्रियों के लिये एक लंगर/भण्डारा चल रहा था हमने यहाँ भी दो-दो पूरी का प्रसाद ग्रहण किया व कुछ देर आराम करने के बाद आगे की यात्रा पर चल दिये। यहाँ सोनप्रयाग के पुल के पास कुछ देर तक खडे होकर नदी की अनवरत बहती धारा का कभी ना भूलने वाला यादगार पल बिताया गया था। यहाँ से आगे सडक पर हल्की-हल्की चढाई भी शुरु हो गयी थी लेकिन हम तो एक सप्ताह से ऐसी-ऐसी खतरनाक पैदल उतराई व चढाई से होकर आये थे कि अब कैसी भी चढाई से हमारा कुछ नहीं बिगडता था।
 भगवान गणेश का सिर शिव शंकर जी ने धड से अलग कर  दिया था।


शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

पवाँली से त्रियुगीनाराय़ण तक, Panwali to Tiryuginarin, trekking

गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा-6


पवाँली कांठा बुग्याल में रात को रुकने में कोई खास परेशानी नहीं है बस आपको शहरों वाली सुख सुविधा नहीं मिलेगी एकदम गाँव का माहौल है रहन-सहन से लेकर खान-पान तक सब कुछ, यहाँ तक कि इतनी ऊँचाई पर तो मोबाइल भी कभी-कभार ही काम करता है वह भी किसी एक खास कोने में जाने के बाद ही। यहाँ से किसी भी दिशा में जाने पर पहला गाँव कम से कम 17-18 किमी से ज्यादा दूरी पर है इसका मतलब साफ़ है कि बीच का सारा इलाका एकदम सुनसान मानव तो कभी-कभार ही नजर आते है, हम वैसे तो दो ही थे। मैं और मेरे मामा का छोरा। लेकिन इतने लम्बे सफ़र में साथ चलते-चलते सभी अपने से लगने लगे थे। सभी अच्छे दोस्त बन गये थे। ज्यादातर दिल्ली के आसपास के रहने वाले थे। रात को चूल्हे के समने बैठ कर गर्मागर्म रोटी खायी थी। कुछ ने शुद्ध देशी घी से बने हुए आलू के परांठे बनवाये थे। यहाँ पर पवाँली में खाने में देशी घी का प्रयोग किया जाता है। उसके दाम कुछ ज्यादा लेते है जो आम भोजन से 10-15 रुपये ज्यादा है। रात में दस बजे तक खा पी कर सोने की तैयारी होने लगी। यहाँ पर रात में कभी-कभार भालू आने का खतरा होता है। अत: सबको यह चेतावनी दे दी गयी कि रात में हो सके तो झोपडीनुमा घर से अकेले बाहर ना निकले। निकलना जरुरी हो तो पहले बाहर का माहौल देख ले व टार्च जला कर दूर तक एक नजर जरुर घुमा ले ताकि किसी किस्म का खतरा ना रहे। अब बात सोने की आयी तो एक झोपडीनुमा घर में आराम से 10-12 लोग सो सकते है। जानवरों के लिये अलग झोपडे होते है। सोने के लिये कोई पलंग या चारपाई नहीं होती है, सबको जमीन पर बिछे लकडी के फ़टटों पर या दीवार पर बने टांड नुमा दुछत्ती पर सोना होता है ओढने व बिछाने के लिये कम्बल की कोई कमी नहीं होती है। हमने भी दो-दो कम्बल लिये व आराम से लकडी के फ़टटों पर बिछा कर सो गये।
ये भोले के भक्तों की कावंड झूलती हुई।


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