गुरुवार, 27 सितंबर 2012

हर्षिल सेब का बाग व गंगौत्री से दिल्ली तक लगातार बस यात्रा Harsil Apple Garden, Bus journey from Gangautri to Delhi


सीरिज गंगौत्री-गौमुख
     4.  TREKKING TO GANGOTRI-BHOJBASA-CHEEDBASA भाग 4 गंगौत्री-भोजबासा-चीडबासा तक ट्रेकिंग


आज के लेख में हर्षिल में बगौरी गाँव जाकर सेब के बाग से सेब खरीदना व बस में लगातार चौबीस घन्टे सफ़र कर घर वापसी तक का वर्णन किया है। चलो बताता हूँ, मुझे गंगौत्री में आये हुए लगभग एक सप्ताह पूरा हो रहा था, घर पर मम्मी से फ़ोन पर बात की तो उन्होंने कुछ जरुरी काम बता दिया था जिस कारण घर जाना पड रहा था। वैसे तो गंगौत्री से दिल्ली जाने का मन बिल्कुल भी नहीं हो रहा था लेकिन क्या करे? काम-धाम भी जरुरी है, जिसके बिना जीवन निर्वाह नहीं हो सकता है। जिस समय मैंने यह यात्रा की थी उस समय मैं कक्षा 10 के बच्चों को गणित का ट्यूशन अपने घर पर दिया करता था। बच्चों की पहली परीक्षा तो हो गयी थी। उनकी चिंता नहीं थी। घर पर मम्मी अकेली रह गयी थी। बिजली का बिल मैंने एक साल से भरा नहीं था। जिस कारण बिजली विभाग का एक कर्मचारी घर आया था और बोला था कि जल्दी बिल भर दो नहीं तो घर-घर औचक निरीक्षण अभियान में आपका बिजली का केबिल उतार दिया जायेगा। यह अचानक की मुसीबत जानने के बाद मुझे एक दो दिन में ही घर पहुँचना था।


सेब के बाग में लिया गया फ़ोटो।

सोमवार, 24 सितंबर 2012

Trekking to Gaumukh Glacier-Gangotri गौमुख ग्लेशियर तक सफ़ल ट्रेकिंग व गंगौत्री तक किसी तरह लौट कर आना (पैर का बुरा हाल)

सीरिज गंगौत्री-गौमुख
     4.  TREKKING TO GANGOTRI-BHOJBASA-CHEEDBASA भाग 4 गंगौत्री-भोजबासा-चीडबासा तक ट्रेकिंग


भोजबासा में एक दुकान पर मैगी खाकर, हमारी पुलिस चौकडी फ़िर से गौमुख यात्रा के लिये आगे बढ चली। सामने ही गौमुख गलेशियर तक हमें एकदम सीधा दिखाई दे रहा था। यहाँ से आगे का ट्रेकिंग मार्ग ज्यादा कठिन नही है। भोजवासा से आगे चलते हुए हम एकदम सीधे घाटी में नहीं उतरे थे, क्योंकि घाटी में उतर कर दुबारा ऊपर चढना पडता जो उस थकावट में बहुत तकलीफ़ देय होता। इस कारण हमने थोडा सा लम्बा मगर आसान मार्ग अपनाया था जो पहाड के समानान्तर दिखाई दे रहा था। कोई एक किमी चलने के बाद इस मार्ग पर पर कच्ची पगडन्डी के स्थान पर पत्थरों का बना हुआ मार्ग आ जाता है यह मार्ग लगभग एक-डेढ किमी से ज्यादा का था। जिसपर पैदल चलने में बहुत परॆशानी आ रही थी। पत्थर मार्ग में बिछाये जरुर गये थे लेकिन उनमें कुछ भरा नहीं गया था जिससे उनके बीच में मेरा पैर कई बार अटक गया था। जिससे मुझे कई बार झटका सा लगा था। फ़िर भी ज्यादा परेशान हुए बिना, हम वह पथरीला मार्ग भी पार कर गये। पथरीले मार्ग के बाद कुछ दूर तक मार्ग बहुत ही आसान था।

जैसे ही आसान मार्ग समाप्त हुआ तो हमें पता लग गया कि अब आफ़त आने वाली है। देखने में तो मार्ग बहुत आसान था लेकिन वहाँ उल्टे हाथ वाला पहाड बहुत ही कच्चा था। कच्चे पहाड पर ढलान भी बेहद तीखी थी जिससे हर पल यह डर बना रहता था कि कहीं यह पहाड खिसक ही ना जाये। यह कच्चा पहाड मुश्किल से एक किमी ही था बल्कि उससे भी कम ही होगा, लेकिन यात्रा का यह छोटा सा टुकडा आज भी बेहद ही डरावना बीतता है। इस कच्चे पहाड पर पगडन्डी के एकदम किनारे पर कुतुबमीनार की तरह दिखने वाली मिट्टी व गोल-गोल पत्थर से बनी हुई कच्ची मीनारे थी, ये मीनारे देखने में जितनी हसीन लग रही थी उसके उलट यह उतनी ही डरावनी खूंखार साबित हो सकती थी। यहाँ वापसी में एक जगह बहुत बुरी तरह फ़ँस गये थे। जाते समय तो फ़िर भी हम आसानी से इसे पार कर गये थे लेकिन वापसी में इसने हमारी जान पर बना दी थी।

गौमुख ग्लेशियर के ठीक सामने कुछ देर आराम करते हुए।

सोमवार, 17 सितंबर 2012

TREKKING TO GANGOTRI-BHOJBASA-CHEEDBASA भाग 4 गंगौत्री-भोजबासा-चीडबासा तक ट्रेकिंग


सीरिज गंगौत्री-गौमुख


गंगौत्री मन्दिर देखने के बाद, अगले दिन आसपास के स्थल देखने की चाह मन में उठ रही थी। मैंने भाई को कहा कि कल मैं यहाँ घूम लेता हूँ, उसके बाद परसो गौमुख चले चलेंगे। हमारी बाते भाई के स्टाफ़ के दो अन्य साथी पुलिसवाले भी सुन रहे थे। उन्होंने कहा कि गौमुख तो हम भी जाना चाहते है। मैंने कहा ठीक है चलना है तो कल तो नहीं, परसो तो पक्का चलना ही है। क्योंकि मैं कल यहाँ घूमना चाहता हूँ। इस तरह हमारी गौमुख यात्रा के लिये चार मस्त-मलंग की मस्त चौकडी जाने के लिये तैयार हो गयी थी। अगले दिन मैं सुबह-सुबह उठकर पुलिस चौकी के ठीक सामने सूर्य कुन्ड नाम की जगह जा पहुँचा, मुझे भाई ने बताया गया था कि यहाँ सुबह-सुबह इस झरने नुमा पानी की धार पर जब सूर्य की किरणे पडती है तो यह शानदार इन्द्गधनुष बनाती है। मुझे वह इन्द्रधनुष आज भी अच्छी तरह याद है कि कैसे सूरज की रोशनी पडते ही वहाँ उस झरने नुमा भागीरथी की तेज पानी की धार में  उठते पानी की फ़ुहार में सात रंग अलग-अलग दिखाई पड रहे थे। मैं वहाँ सात-आठ दिन रहा था और शायद ही मैंने कोई दिन उसे देखे बिना जाने दिया हो। इसको देखने के बाद मैं आसपास के बाकि स्थल देखने के लिये चल पडा।

शनिवार, 8 सितंबर 2012

HARSHIL-LANKA-BHAIRO GHATI-GANGOTRI, भाग 3 (हर्षिल-लंका-भैरों घाटी-गंगौत्री)

सीरिज गंगौत्री-गौमुख
गंगनानी से थोडा सा आगे चलते ही एक जगह पहाड से छोटे-छोटे पत्थर सडक पर गिर रहे थे। ड्राईवर को जैसे ही ऊपर से पत्थर आते दिखाई दिये, उसने तुरन्त बस के ब्रेक लगा दिये। चूंकि मैं आगे वाली सीट पर ही बैठा हुआ था अत: मुझे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था कि पत्थर कहाँ से आ रहे है? साफ़ दिखाई दे रहा था कि पत्थर सामने वाली पहाडी के ऊपर से आ रहे थे। मैंने ड्राईवर से कहा, “क्या इन छोटे-छोटे से पत्थर के कारण गाडी रोकी है? चालक ने कहा हाँ, गाडी तो रोकी है लेकिन इन छोटे-छोटे पत्थर के कारण नहीं, बल्कि बडे-बडे पत्थर के कारण, मैंने कहा बडा पत्थर है कहाँ? चालक ने कहा लगता है कि तुम पहाड में पहली बार यात्रा कर रहे हो। जब मैंने उसे कहा कि हाँ कर तो रहा हूँ लेकिन उससे क्या हुआ? अब चालक ने मुझे बताया कि जब भी पहाड से छोटे-छोटे पत्थर या रेत आदि कुछ भी गिर रहा हो तो उसके नीचे से कभी नहीं निकलना चाहिए। क्योंकि बडे पत्थर से पहले हमेशा ऐसे ही छोटे मोटे पत्थर आते है उसके बाद बडा पत्थर आता है और बडा पत्थर जानलेवा व विनाशकारी होता है। जो एक बडी बस को भी अपने साथ खाई में धकेल सकता है। चालक की ये बाते सुनकर मेरी बोलती बन्द हो गयी। लेकिन ड्राईवर ने बहुत काम की बात बता दी थी जो मुझे आज तक भी याद है बाइक यात्रा में कई बार मेरे काम भी आयी है। खैर कुछ देर के इन्तजार के बाद, जब छोटे-मोटे सभी पत्थर आने बन्द हो गये तो हमारी बस आगे बढ चली। आगे-आगे जैसे ही हमारी बस बढती जा रही थी वैसे ही मार्ग भी खतरनाक होता जा रहा था। उस पर चढाई भी जबरदस्त आ गयी थी। एक तरह ऐसे पहाड जहाँ से पत्थर गिरने का भय, दूसरी ओर गहरी खाई जिसमें भागीरथी अपनी तूफ़ानी रफ़तार से नीचे की ओर शोर मचाती हुई लुढकती जा रही थी।


देख लो

सोमवार, 3 सितंबर 2012

FIRST GAUMUKH TREKKING पहली गौमुख ट्रेकिंग/यात्रा, भाग 2 (टिहरी-उत्तरकाशी-गंगनानी)


टैम्पो में हल्का सा झटका, सडक पर आये छोटे से गडडे में पहिया आने के कारण महसूस हुआ था। जैसे ही झटका लगा, मैंने पीछॆ मुडकर देखा तो काली सायी रात में ठीक से यह भी दिखाई नहीं दिया था। कि असली में वह गडडा था या कोई छोटा सा पत्थर पडा हुआ था। जब हमारा टैम्पो उस पुलिया से आधे किमी से भी ज्यादा दूरी पार कर गया तो टैम्पो चालक बोला “अब कोई खतरा नहीं है।” यह सुनकर सबकी जान, जो पता नहीं कहाँ अटकी पडी थी? वापस शरीर में आ गयी, जिससे सबके चेहरे चहकने लगे। मैंने व कई सवारियों ने उससे पूछा कि आखिर वहाँ उस पुलिया पर भूत वाली कहानी क्या है? तब चालक ने बताया था कि कुछ दिन पहले एक औरत सडक पार करते हुए किसी गाडी की चपेट में आ गयी थी। जिसके बाद अक्सर यहाँ पर उसी पुलिया के आसपास, जहाँ उसकी मौत हुई थी, वह भूत के रुप में अचानक गाडी के सामने आ जाती है जिस कारण कई वाहन चालक उसको असली औरत समझते हुए उसको बचाने के चक्कर में अपना वाहन दुर्घटनाग्रस्त कर बैठते है। वैसे मैं दिन में कई बार उस पुलिया के पास थोडी देर रुककर गया हूँ, लेकिन मुझे दिन में वहाँ ऐसा-वैसा कुछ दिखाई नहीं दिया। अब भूत की सच्चाई का भी मैं कुछ नहीं कह सकता कि वहाँ सच में भूत था या फ़िर ऐसे ही डराने के लिये अफ़वाह उडायी हुई थी।

पहाड में एक गांव।

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