रविवार, 31 जुलाई 2011

श्रीखण्ड महादेव की ओर (पिंजौर गार्डन) भाग 2

तीन-तीन खीरे जैसे केले खा कर हम इस गार्डन के टिकट घर पर जा पहुँचे। पिंजौर गार्डन के मुख्य द्धार पर ही हम खडे थे। यहाँ अंदर जाने के लिये बीस रुपये का टिकट लेना पडता है। हमनें चार लिये, चंडाल चौकडी के लिये चार ही चाहिए थे। अन्दर जाने का और रास्ता नहीं था। यह गार्डन चंडीगढ़ से मात्र 22, पंचकूला से 15 किलोमीटर दूर है। यह अम्बाला जिरकपुर से कालका जाने वाले मार्ग पर आता है। चंडी मंदिर भी इसी रास्ते में आता है।
लो जी कर लो आप भी इस गार्डन के दर्शन जी।

इस गार्डन के बारे में                      इस यात्रा को शुरु से पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।

इस गार्डन को यदविन्दर गार्डन भी कहा जाता है, नवाब फ़िदैल खान द्धारा इसका नमूना बनाया गया था। कई अंग्रेज अफ़सर भी यहाँ रहे थे। जो लोग कश्मीर का मुगल गार्डन नहीं देख सकते है, उनके लिये ये उसकी लगभग वैसी ही नकल है। इसे भी कभी मुगल गार्डन कहा जाता था। यह लगभग एक सौ एकड जमीन पर बना हुआ है, चारों तरफ़ ऊंची-ऊंची दीवार है, यह आयताकार बना हुआ है, हर दीवार में दरवाजा है, हर कोने में एक सीढियों वाला जीना बना हुआ है, हम भी उस जीने पर जा पहुँचे थे। जीने से ऊपर जाकर एक अलग नजारा नजर आता है। इस गार्डन का अपना एक छोटा सा नन्हा सा चिड़ियाघर, पौधों की नर्सरी, जापानी बगीचा और पिकनिक लॉन आदि-आदि है।
ऐसा ही शानदार है ये गार्डन

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

श्रीखण्ड महादेव की ओर भाग 1, SRIKHAND MAHADEV

चंडाल चौकडी का सबसे पहला फ़ोटो यहाँ पर जाकर हुआ।

मैं श्रीखण्ड जाना चाहता था, सोच रहा था कि कोई और भी साथ हो जाये तो, ज्यादा अच्छा रहेगा, इसलिए मैंने अपने ब्लॉग पर आगामी भ्रमण में लिख दिया था कि कोई और जाने का इच्छुक हो तो बता दे। नीरज जाट से तो हाँ पहले ही हो गयी थी, अब मेरी बाइक व उस पर सवारी भी साथ में, देखना ये था कि कोई और भी जायेगा कि नहीं, कि चलने से दस दिन पहले एक ईमेल मेरे पास आया जिसमें लिखा था कि संदीप भाई क्या मैं भी आपके साथ इस यात्रा पर चल सकता हूँ। मैंने कहा कि भाई पहले अपने बारे में थोडा विस्तार से बताओ कि अब तक कहाँ-कहाँ घूम चुके हो क्योंकि मेरे साथ अगर कोई पहली बार जाता है तो उसे मेरी कुछ बाते ऊँट-पटाँग लगती है, जैसे सुबह जल्दी उठना-चलना, खाना सुबह आठ बजे के बाद ही खाना, व शाम को जल्दी रुक जाना।
ईमेल भेजने वाले बंदे का नाम है पण्डित विपिन जी, इन्होंने अपने बारे में विस्तार से बताया कि मैं यहाँ-वहाँ तक घूम चुका हूँ, सुन कर बडी खुशी हूई, व इन्हे साथ चलने की हरी झण्डी दे दी। लेकिन विपिन को बाइक चलानी नहीं आती थी, अत: ऐसा बंदा चाहिए था जिसके पास बाइक हो व हमारे जैसा सिरफ़िरा हो, दो बाइक वालों ने मुझसे सम्पर्क किया व तीसरे ने नीरज के साथ, पहले संतोष तिडके नांदेड वाले, दूसरे सिद्धांत नीरज के जानने वाले, व तीसरे नितिन जाट।
पीठ पीछे ढाबा है, नीरज बिस्कुट से काम चला रहा है। सफ़ेद कमीज वाला नितिन व गुलाबी वाला विपिन है

शनिवार, 16 जुलाई 2011

CIVIC CENTRE सिविक सेन्टर

दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय "सिविक सेन्टर" मात्र नाम नहीं है, बल्कि एक पहचान है, जिस पर दिल्ली को इसकी शानौ-शौकत पर नाज है, ये दिल्ली की सबसे विशाल व ऊंची इमारत है। यह इमारत मात्र अठाईस मंजिल जमीन से ऊपर है, व तीन मंजिल जमीन के नीचे भी है, जिसमें जमीन के नीचे केवल पार्किंग है, 101 मी ऊँची इमारत है। यह इमारत नई दिल्ली रेलवे व मेट्रो स्टेशन के पास ही है। 


सडक से लिया गया फ़ोटो है।

ये कहना तो बेकार है कि ये कहाँ-कहाँ से दिखाई दे जाती है, अगर मौसम साफ़ है तो आप दिल्ली के लगभग सौ किलोमीटर लम्बे रिंग रोड पर, बनी किसी भी ऊंची बिल्डिंग से इसे देख सकते हो, ये इमारत पूरे पाँच साल में बन कर तैयार हुई है, और इसका बजट था, केवल 600 सौ करोड रुपये बनाने का, दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित करने का कार्य प्रगति पर है, उसके बाद देखते है, कि यह स्थल किसका कार्यालय बना रहता है।  इस इमारत पर दिल्ली सरकार की नजर लगी हुई है, और भविष्य में सम्भव भी है, कि यह दिल्ली सरकार के मुख्यालय में बदल जाये।

 इस ईमारत में छोटे-छोटे कमरे ना होकर, बडॆ-बडे विशाल हॉल है, जिनमें बैंक की तरह, कार्य करने के स्थल बनाये हुए है। पूरी इमारत ही पूर्णतय: वातानुकूलित है, चाहे लिफ़्ट हो या गैलरी, हर कही मौसम की मार से बचे रहते है। दिल्ली नगर निगम में कुल सवा लाख कर्मचारी कार्य करते है, जिस कारण यह विश्व का सबसे बडा नगर निगम भी है।


ये वाला भी,

रविवार, 10 जुलाई 2011

काशी (बनारस)/ सारनाथ से घर वापसी,SARNATH, VARANASHI TO DELHI

प्रयाग काशी पद यात्रा-
इस सफ़र में सारा कुछ जो भी घर से सोच कर आये थे, प्रयाग, शहीद चन्द्रशेखर पार्क, आनन्द भवन, संगम तट, व काशी तक का पैदल मार्ग, काशी के सारे घाट, सारनाथ अब कुछ नहीं बचा था। दोनों खत्म समय भी, व देखने लायक जगह भी, अत: अब बारी थी घर की ओर कूच करने की,
इसके बाद हम यहाँ से एकदम फ़्री हो गये थे। शाम के चार बजने वाले थे। पता चला, कि यहाँ का रेलवे स्टेशन आधा किलोमीटर दूरी पर ही हैतो रेलवे स्टेशन देखने के लिये चल दिये। जब स्टेशन पहुँचे, तो देखा कि एक ट्रेन खडी थीपता किया तो मालूम हुआ कि कि ये ट्रेन काशी/बनारस/वाराणसी, हण्डिया होते हुएइलाहाबाद तक जायेगी। बस फ़िर क्या थाले लिये तीन-तीन रुपये के तीन टिकट और जा बैठे ट्रेन के अंदर डिब्बे मेंडिब्बे के अंदर से ही स्टेशन के नाम वाला फ़ोटो भी खींचा था। दस पंद्रह मिनट बाद ही ट्रेन चल पडी। कोई आधा घंटा लिया होगाहमें वाराणसी सिटी तक लाने मेंवाराणसी सिटी पर जब ट्रेन को खडे हुए डेढ घंटा हो गया तो सब्र खत्म होने लगा, बातों बातों में मालूम हुआ कि यह ट्रेन यहाँ पर तीन-चार घंटे तक खडी रहती है, फ़िर भी हम छ: बजे तक इस ट्रेन के चलने का इंतजार कियाइसके बाद हम आटो से अगले स्टेशन जो कि वाराणसी कैण्ट के नाम से हैजा पहुँचे।
ये फ़ोटो ट्रेन के डिब्बे के अन्दर से लिया था

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

KASHI काशी (BANARAS बनारस) से SARNATH सारनाथ तक

प्रयाग काशी पद यात्रा-
आज आखिरी दिन हम सुबह ठीक चार बजे उठ खडे हुएआज पैदल तो नहीं जाना थालेकिन हमें डर था, कि अगर हम ज्यादा देर करेंगे, तो लम्बी लाईन में लगना पडॆगाइसलिये सुबह छबजे लाईन में लगने के लिये मंदिर के द्धार पर जा पहुँचेलेकिन द्धार पर जाकर हमें जोर का झटका धीरे से लगा, क्योंकि जिस द्धार से हम कल अंदर गये थे आज महाशिवरात्रि के दिन सारी व्यवस्था पूरी तरह बदली हुई थी।

ये वाला बोर्ड लोहे के पुल की ओर से आ रहे मार्ग पर है।

सोमवार, 4 जुलाई 2011

संगम (प्रयाग) से काशी(बनारस) तक पद यात्रा भाग 3, VARANSAHI, BANARAS KE GHAT, GANGA

प्रयाग काशी पद यात्रा-
कमरा किराये पर लेकर,उसमें सामान रख, ताला लगा कर, हम गंगा किनारे घूमने के लिये आ गये कि तभी मन में ख्याल आया कि कल तो महाशिवरात्रि है भीड का बुरा हाल रहेगा, मंदिर में तसल्ली से दर्शन होने सम्भव नहीं है, अत: आज तसल्ली पूर्वक दर्शन किये जाये। अपना कमरा जिस जगह पर था उस गली से एक रास्ता सीधा मंदिर में जाता था, दूरी लगभग 150 मीटर ही थी। 

लो जी यहाँ से करो घाट के दर्शन, पूरे दो किलोमीटर तक घाट ही घाट है,

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