रविवार, 31 मार्च 2013

Anjaneri mountain/parvat-Birth place of Hanuman ji अंजनेरी पर्वत-रुद्र अवतार हनुमान जी का जन्म स्थान

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-06                                                                   SANDEEP PANWAR


हम त्रयम्बक जाने वाली बस से अन्जनेरी पर्वत के मोड़ पर उतर गये। यहाँ बस से उतरते ही उल्टे हाथ सड़क किनारे एक दुकान दिखायी दी। हम सीधे उस दुकान में घुस गये। दुकान वाले से अन्जनेरी पर्वत पर आने-जाने के बारे में पता किया। उसने बताया कि अन्जनेरी यहाँ से लगभग 6-7 किमी दूरी पर है जिसमें से आखिरी के 3 किमी ही ज्यादा चढ़ाई वाले है। मैंने सोचा चलो आना-जाना कुल 14-15 किमी है तो है। कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन 14-15 किमी वाली बात पर विशाल के मन में एनर्जी बचाने वाली बात घर गयी थी। उसने कहा कि पहले 4 किमी तो लगभग साधारण सड़क का मार्ग है इसलिये शुरु के चार किमी चलने में क्यों शारीरिक ऊर्जा बर्बाद की जाये। अब साथ जाने वाले का कुछ तो मान रखना ही पड़ता है। साथ वाले की बेईज्जती करना मेरा उसूल नहीं है। लेकिन मैं यदि ऐसे लोगों के साथ यात्रा पर गया हूँ जो दूसरे लोगों के मान सम्मान का ख्याल नहीं रखते है तो मैं दुबारा ऐसे लोगों के साथ जाने से हर सम्भव बचता हूँ। मेरे साथ पहले भी कई बार एक दो जिददी लोग चले गये थे, लेकिन बाद में मैं उनके साथ दुबारा नहीं गया। चलिये अब इस यात्रा की बात हो जाये। विशाल के कहा तो मैंने भी कहा ठीक है भाई 4 किमी किसी वाहन से चल देते है। विशाल ने एक मैजिक वाले से बात की लेकिन उसका जवाब सुनकर विशाल का मुँह फ़टा का फ़टा रह गया। उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुरा रहा था। चलिये आप को भी बता देते है कि उस वाहन वाले ने कहा क्या कहा था? मैजिक वाले ने 4 किमी की दूरी तक, दो बन्दों को छोड़ने के लिये हमसे 500 रुपये की माँग कर ड़ाली। हमने कुछ क्षण उसके जवाब को पचाने में लगाये, लेकिन उसकी बात हजम होने वाली नहीं थी। उसके बाद एक लम्बा साँस लेकर उसे कहा कि दोनों मिलाकर 200 रुपये से ज्यादा नहीं देंगे। यह कहकर मैंने अपना सामान उठा कर चल दिया। 

सड़क से चलते ही यह जैन मूर्ति दिखायी देती है।

शनिवार, 30 मार्च 2013

Bhimashankar Jyotirlinga Temple भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मन्दिर

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-05                                                                 SANDEEP PANWAR

मन्दिर के पास वाली दुकानों से मावे की बनी मिठाई खरीदने के बाद हमने मन्दिर प्रांगण में प्रवेश किया। हमने पहले वहाँ एक परिक्रमा रुपी भ्रमण किया ताकि वहाँ के माहौल का जायजा लिया जा सके। उसके बाद वहाँ नहाने के लिये एक कुन्ड़ तलाश लिया। कुंड़ के सामने ही एक सामान बेचने वाली मराठी महिला बैठी हुई थी। पहले मैंने कुंड़ में घुस कर स्नान किया उसके बाद सामान के पास खड़ा होने की मेरी बारी थी तब तक विशाल भी कुंड़ में स्नान कर आया। लोगों ने अंधी श्रद्धा के चक्कर में स्नान करने के कुंड़ में भी फ़ूल आदि ड़ाले हुए थे। स्नान करने के उपराँत हमने अपना सामान बैग, चप्पल आदि वही उसी मराठी महिला मौसी के हवाले कर दिया। उस महिला ने कहा कि क्या तुम फ़ूल नहीं ले जाओगे? मैंने कहा कि क्या बिना फ़ूल के पूजा नहीं हो सकती है। मैं पूजा पाठ के चक्कर में कभी पड़ता ही नहीं हूँ मैं सिर्फ़ मूर्ति के दर्शन करने जाता हूँ। खैर उस महिला ने मुझसे ज्यादा मग्जमारी नहीं की। हम दोनों दर्शन करने वाली लाइन में लगने चल दिये।

यही भीमाशंकर का मुख्य मन्दिर है।

हमने यहाँ स्नान नहीं किया था।


शुक्रवार, 29 मार्च 2013

Nagfani to Bhimashankar Temple नागफ़नी पहाड़ से भीमाशंकर मन्दिर तक

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-04                                                                  SANDEEP PANWAR


पहाड़ की चढ़ाइ समाप्त करने के बाद जैसे ही मैदान आया था वहाँ कुछ देर बैठने के बाद हम नागफ़नी पहाड़ी देखने के लिये चल दिये। यह पहाड़ी मुख्य मार्ग से थोड़ा हटकर है इसलिये यहाँ आने के लिये सीधे हाथ की ओर लगभग आधा किमी चलना पड़ता है। जब हम नागफ़नी के लिये जा रहे थे तो हमें पढ़े लिखे लोगों की करतूत का ढ़ेर दिखायी दिया था। पढ़े लिखे लोग क्या करते है, बोतल बन्द पानी पिया और खाली बोतल होते ही फ़ैंक दी बोतल, बिस्कुट टॉफ़ी खाया, और फ़ैंक दिया उसका रेपर। ये पढ़े लिखे लोग अपना कीमती सामान तो कही नहीं फ़ैंकते है। फ़िर इन पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने वाली वस्तुओं को किसी कूड़ेदान में ड़ालने में इन्हें शर्म क्यों आती है। पढ़े लिखे लोगों की हालत पैदल मार्गों के अलावा, रेल, बस आदि सार्वजनिक स्थलों पर भी आसानी से दिखायी दे जाती है। जिस पगड़न्ड़ी से हम नागफ़नी के लिये जा रहे थे वहाँ पर पीले रंग के बहुत सारे फ़ूल खिले हुए थे। फ़ूलों के कारण वहाँ बहार आयी हुई थी।

सामने जो पहाड़ दिख रहा है वही नागफ़नी है।

गुरुवार, 28 मार्च 2013

Shidi Ghat Danger Trekking सीढ़ी घाट की खतरनाक चढ़ाई

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-03
जब हम सीढ़ियों के बेहद करीब आये तो वहाँ की हालत देखकर एक बार तो आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी। मन में सोचा कि यार जान ज्यादा कीमती है या यह खतरनाक मार्ग पार करना ज्यादा अहमितय रखता है। विशाल ने एक बार फ़िर कहा संदीप भाई चप्पल की जगह जूते पहन लो अब मार्ग ज्यादा डेंजर लग रहा है। मैं अब तक दो बार विशाल को जूते में परॆशान होते हुए देखा था इसलिये मैंने जूते पहनने का विचार त्याग दिया था। एक कहावत तो सबने सुनी ही होगी कि जब सिर ओखली में रख दिया तो फ़िर मुसल की मार से कैसा ड़रना? अगर ऐसी खतरनाक चढ़ाई से ड़र गये तो फ़िर आम और खास में फ़र्क कैसे पता लगेगा। शायद विशाल ने एक बार बोला भी था कि संदीप भाई यहाँ से वापिस चलते है। गणेस घाट से चले जायेंगे। मैंने कहा ठीक है वापसी जरुर चलेंगे पहले थोड़ा सा आगे जाकर देखते है यदि आगे इससे भी ज्यादा खतरनाक मार्ग मिला तो वापिस लौट आयेंगे। इतना कहकर मैं सीढ़ियों पर चढ़ने लगा। जैसे-जैसे मैं कदम रखता जाता वैसे ही सीढ़ी हिलती जा रही थी। ध्यान से देखा तो पाया कि सीढ़ी रस्सी के सहारे पहाड़ पर बाँधी हुई है।

यहाँ से सीढ़ी घाट की पहली नजदीकी झलक मिलती है।

अब तो चढ़ना ही पडेगा।

बुधवार, 27 मार्च 2013

Shidi Ghat Trek to Bhimashankar Jyotirlinga सीढ़ी घाट से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की खतरनाक ट्रेकिंग

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-02
जैसे ही हमने सड़क छोड़कर सीढ़ी घाट की ओर जाने के लिये चावल के खेतों में बनी हुई पगड़न्ड़ी पर चलना शुरु किया तो वहाँ पर खेत की मेंढ (ड़ोल) में बड़े-बड़े सुराख दिखायी दे रहे थे। हमने अंदाजा लगाया कि यह सुराख चूहों के बिल ही होंगे, लेकिन उनमें से एक आध-सुराख साँप के बिल का भी तो हो सकता था। मैं पहले ही चप्पल में चल रहा था, इसलिये साँप का विचार मन में आते ही सोचा कि क्यों ना जूते पहन लिये जाये। क्या पता कहाँ साँप टकरा जाये, लेकिन इस ट्रेक में बार-बार मिलने वाले झरने व नदियों के पानी में भीगने की आशंका के कारण मैंने सोच लिया था कि जहाँ तक हो सकेगा मैं यह यात्रा चप्पल में ही करुँगा। थोड़ा सा आगे चलते ही खेतों के बीच एक कुँआ मिला। यह पहला ऐसा कुँआ मिला जो ऊपर तक लबालब भरा हुआ था। ऊपर तक भरने का एक ही कारण था कि यह नदी किनारे बना हुआ था। यहाँ पर दो स्थानीय महिला अपने वस्त्रों से उनका मैल अलग करने की मेहनत में लगी हुई थी।

यह कुआ और पीछे वो गाँव व उसकी पगड़न्ड़ी जहाँ से होकर हम यहाँ तक आये है।

मस्त पगड़न्ड़ी।
हमने कपड़े धोने वाली महिलाओं से भी एक बार मालूम कर ही लिया था कि सीढ़ी घाट वाला मार्ग यही है या कोई दूसरा? उनकी हाँ होते ही हम आगे चल पड़े। हमें खंड़स में एक युवक मिला था उसने कहा कि यदि आपको गाईड़ चाहिए तो मैं आपके लिये गाईड़ का काम करुँगा। विशाल ने खंड़स में रुककर एक कप चाय पी थी तभी वह युवक हमारे पास आया था। विशाल ने बताया था कि जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैंने खंड़स से एक आदमी को गाईड़ के रुप में साथ ले लिया था। लेकिन वो आदमी गणेश घाट से कुछ आगे जाकर दूर से यह बताकर कि बस अब भीमाशंकर आने वाला है, अपने पैसे लेकर भाग आया था जबकि भीमाशंकर वहाँ से कई किमी दूर है। कपड़े धोने वाली महिलाओं से कुछ आगे जाने पर हमें Y आकार में दो पगड़न्ड़ी दिखाई दी। यहाँ एक बार परेशानी में पड़ गये कि किधर जाये। फ़िर सोचा कि चलो पहले सीधे हाथ वाले मार्ग पर चलकर देखते है। हम उस मार्ग पर लगभग 200-300 मीटर तक चले गये, लेकिन आगे जाकर यह मार्ग समाप्त हो गया तो हमें मजबूरन वापिस उसी जगह आना पड़ा जहाँ से यह मार्ग Y आकार में हुआ था।

तु छुपा है कहाँ, जरा बाहर तो आ।

मंगलवार, 26 मार्च 2013

Delhi-Bombay(Dadar)-Narel-Khandas दिल्ली-दादर-नेरल-खंड़स तक।

महाराष्ट्र के भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद की यात्रा-01                                            SANDEEP PANWAR


बीते साल 2012 में जुलाई माह की बात है मुम्बई में रहने वाला दोस्त विशाल राठौर कई बार भीमाशंकर ट्रेकिंग की बात करता रहता था। पहले तो मन में वहाँ जाने का विचार ही नहीं बन रहा था लेकिन विशाल के बार-बार बुलाने के कारण मैंने रेल से बोम्बे जाने के लिये गोल्ड़न टेम्पल मेल से अपना टिकट बुक कर ही दिया था। दिल्ली से बोम्बे तक पहुँचने में कोई खास घटना नहीं घटी थी इसलिये उसका कोई विवरण नहीं दे रहा हूँ। यह ट्रेन सुबह 5 बजे दादर रेलवे स्टेशन पहुँच जाती है। यहाँ पर जैसे ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकी तो विशाल अपने कोच के ठीक सामने खड़ा दिखायी दिया। पहले तो गले मिलकर एक दूसरे का स्वागत किया गया। इसके तुरन्त बाद हम दोनों वहाँ से बम्बई लोकल ट्रेन में बैठने के लिये फ़ुटओवर ब्रिज पार कर दूसरी ओर लोकल वाली लाईन पर पहुँच गये। यहाँ पर विशाल ने अपने कार्ड़ से हम दोनों का दादर से नेरल तक जाने का टिकट ले लिया था। 
जाटदेवता के कदम बोम्बे में पड़ ही गये।

बोम्बे लोकल अपनी गति से दौड़ी जा रही है।

इस यात्रा के समय ही मेरे पहली बार बोम्बे की भूमि पर कदम पड़े थे। तो जाहिर है कि बोम्बे लोकल में भी पहली बार सवारी हो रही थी। सुबह का समय होने के कारण बम्बई की जीवन रेखा/ life line कही जाने वाली लोकल रेल में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। एक दिन पहले ही बोम्बे का गणपति उत्सव समाप्त हुआ था जिस कारण थोड़ी बहुत भीड़ भी 10-15 किमी तक ही दिखायी दी थी। शुरु में हमें दादर स्टेशन से सीट नहीं मिल सकी थी, लेकिन इस रुट पर नजारे देखने की इच्छा के कारण सीट मिलने का लालच भी नहीं हो रहा था। शुरु-शुरु में विशाल ने मुझे कई बार टोका कि तुम दरवाजे पर खड़े हो, सावधानी से खड़े रहो। गिर जाओगे। बैग को सम्भाल कर पकड़ो। मुझे कई बार विशाल पर आश्चर्य भी हुआ कि अरे यह बन्दा क्या मुझे अनाड़ी समझ रहा है। लेकिन विशाल की चिंता अपनी जगह सही थी, बोम्बे में गेट पर लटकने के कारण हर साल सैंकड़ों हादसे होते रहते है। बिना किसी परेशानी के अपना सफ़र चलता रहा।

कोई बात नहीं इस बार ना सही अगली बार यात्रा करनी ही है।

सोमवार, 25 मार्च 2013

Katra to Vaishno Devi to Delhi कटरा से वैष्णों देवी से दिल्ली यात्रा वर्णन

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-06                                                     SANDEEP PANWAR


वैष्णों देवी यात्रा पर जाने के लिये सबसे जरुरी चीज वो पर्ची होती है जिसके बिना आपको यात्रा से वापिस लौटना पड़ जायेगा। हम सुबह ठीक साढ़े 5 बजे पर्ची की लाइन में गये थे, जिस कारण सुबह 6 बजे हमारे हाथ में वैष्णों देवी यात्रा पर ऊपर जाने के लिये कटरा के पर्ची केन्द्र से पर्ची मिल चुकी थी। अगर हम शाम को यहाँ आते तो रात में ही यह पद यात्रा आसानी से हो जाती। हम कुल मिलाकर 6 लोग थे। सभी के सभी जवान ही थे जो एक दो बुजुर्ग की श्रेणी में आते थे उन्होंने कल ही हमारा साथ छोड़ दिया था। यह भी अच्छा ही हुआ कि वे हमारा साथ छोड़ गये। नहीं तो वे हमें इस यात्रा में तंग करते। चूंकि यह मेरी पहली वैष्णों देवी यात्रा थी इसलिये मैं मजबूरी में सबके साथ चल रहा था। मैंने मजबूरी इसलिये कही है कि पहाड़ की उतराई हो या चढ़ाई उससे अपनी गति पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। अपनी प्रतिदिन साईकिल चलाने की आदत के कारण पहाड़ की उतराई व चढ़ाई से अपुन को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता है। हमारे ग्रुप में यह अच्छा रहा कि सभी जवान ही थे जिस कारण सभी की सोच भी मेल खा रही थी। 
यह फ़ोटो इस यात्रा का नहीं है।

रविवार, 24 मार्च 2013

Kashmir- Dal Lake, Shalimar Bagh, Nishat Bagh कश्मीर- ड़लझील, शालीमार बाग व निशात बाग की सैर

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-05                                                   SANDEEP PANWAR


सूमो वाले ने हमें श्रीनगर ड़लझील के सामने नत्थू मिठाई वाले के नाम से मशहूर दुकान के सामने उतार दिया था। मेरे साथ दिल्ली के चार लोग और भी थे। रात में रुकने के लिये सभी की यही राय थी कि रात तो ड़लझील के किसी हाउस बोट में ही बितायी जायेगी। झील में हाउस बोट सड़क से काफ़ी हटकर पानी ने बीचोबीच बनाये गये है। इसलिये हाउस बोट तक पहुँचने के लिये पहले तो एक शिकारे की आवश्यकता थी। सड़क किनारे को छोड़कर जब हम झील की ओर आये तो देखा कि वहाँ पर झील में आने-जाने के लिये बहुत सारे शिकारे तैयार खड़े है। हमने शिकारे वाले से कहा कि हमें रात में ठहरने के लिये एक हाउस बोट पर रुकना है इसलिये तुम हमें चार-पाँच हाउसबोट पर ले चलो। शिकारे वाला हमें अपनी नाव पर लाधकर झील में अन्दर चल पड़ा। यह ड़लझील में मेरी पहली सैर थी। कुछ ही देर में शिकारे वाला हमें बहुत सारे हाउस बोटों के बीच से होता हुआ एक खाली सी जगह पर खड़े हुए हाउस बोट तक पहुँचा कर बोला कि इनमें से जिसमें आपका मन करे उस हाउस बोट में रात ठहरने की कीमत तय कर लीजिए। यहाँ काफ़ी सौदेबाजी के बाद भी हाउसबोट Houseboat वाला हम 5 बन्दों के 1500 रुपये से कम पर नहीं मान रहा था। हमने उसे 1250 कह कर वापिस शिकारे में बैठकर चलने लगे तो हाउसबोट मालिक के हमें आवाज देकर कहा ठीक है आ जाओ, 1250 रुपये ही दे देना। हमारे शिकारे वाले ने हमें फ़िर से उस हाउसबोट पर उतार दिया। हमने शिकारे वाले से कहा कि हमें ड़लझील में घूमना है इसलिये एक घन्टा रात में आ जाना और एक घन्टा सुबह के समय ड़लझील में घुमा देना।

संदीप आर्य श्रीनगर की ड़लझील में शिकारे की सैर करते हुए।

शनिवार, 23 मार्च 2013

Amarnath Cave yatra अमरनाथ गुफ़ा तक व बालटाल तक यात्रा वर्णन

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-04                                                     SANDEEP PANWAR

रात को पंचतरणी में मजबूरी में रुकना पड़ा था। हम रात में जहाँ ठहरे थे वहाँ पर हमें सोने के लिये मोटे-मोटे कम्बल दिये गये थे। मैं रात में नौ बजे सू-सू करने के लिये टैन्ट से बाहर आया, बाहर आकर पाया कि वहाँ का तापमान माइनस में चला गया था। मैं फ़टाफ़ट जरुरी काम कर वापिस टैंट की ओर भागा। इतनी देर में ही मुझे ठन्ड़ ने जबरदस्त झटका दे दिया था। मेरी कम्बल में घुसते समय ऐसी हालत हो गयी थी जैसे मैं अभी-अभी ठन्ड़े पानी के कुंड़ से नहाकर बाहर निकला हूँ। किसी तरह कम्बल में घुसकर राहत की साँस पायी। जब मैं घुसा था तो मेरे दाँत दे दना-दन बजते जा रहे थे। मेरे साथी ने मुझसे पूछा क्या हुआ? मैंने उससे कहा, बेटे एक बार बाहर जाकर घूम फ़िर पूछना क्या हुआ? खैर थोड़ी देर बाद जाकर कम्बल में गर्मायी गयी थी। रात में ठीक-ठाक नीन्द गयी थी। सुबह अपने सही समय 5 बजे उठकर अमरनाथ गुफ़ा जाने की तैयारी शुरु कर दी। यहाँ पर मुझे भण्ड़ारे वालों ने आधी बाल्टी गर्म पानी दे दिया था। जिससे मैंने नहाने में प्रयोग कर दिया था। मेरा साथी यहाँ पर बहने वाली पाँच धाराओं में जाकर नहाकर आया था। नहा-धोकर हम उस जगह पहुँच गये थे जहाँ पर सेना के जवान पगड़न्ड़ी वाले मार्ग की अत्याधुनिक औजारों से तलाशी ले रहे थे। आतंकवादियों कच्चे मार्ग में रात को माइन्स दबा देते है। जिससे कि सुबह यदि जिस यात्री का पैर उस पर पड़ जाये तो वह माइन्स के साथ उड़ जायेगा। जब सेना के जवान मार्ग के सही सलामत होने की हरी झन्ड़ी हिलाते है तो यात्रियों को आगे जाने की अनुमति दे दी जाती है। यात्रियों को बताया जाता है कि मार्ग से हटकर ना चले।

कर लो अमरनाथ गुफ़ा के दर्शन

गुरुवार, 21 मार्च 2013

Pahal gaon to Sheshnag lake पहलगाँव, चन्दनवाड़ी से शेषनाग झील होकर अमरनाथ गुफ़ा की ओर

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-03                                                    SANDEEP PANWAR

जब एक फ़ौजी ने हमारी बस को रोका तो हमें लगा कि रात में कोई आतंकवादी वारदात हुई है जिस कारण सेना के जवान वाहन चैंकिग कर रहे है। हमारी बस सड़क के एक तरफ़ लगा दी गयी थी। एक फ़ौजी ने हमारी बस के चालक से कहा कि आपने आगे वाले शीशे पर जो  पेपर चस्पा किया हुआ है। वह केवल अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले वाहनों पर ही लगाया जाता है। बस चालक ने बताया कि हमारी बस पिछले सप्ताह अमरनाथ यात्रा पर होकर आयी थी। इसलिये हमारी बस पर यह स्टीकर लगा हुआ है। सेना के जवान ने हमारी बस से वह स्टीकर उतरवा दिया। जम्मू से अमरनाथ यात्रा के दिनों में सेना की छत्रछाया में प्रतिदिन सुबह वाहनों का काफ़िला पहलगाँव व बालटाल के लिये चलता है। सेना प्रतिदिन वाहनों के शीशे पर पहचान का एक पेपर लगाती है ताकि कोई अवांछित वाहन अमरनाथ यात्रा के समूह में मिल कोई आतंकवादी गतिविधि ना दोहरा जाये। इसके बाद हमारी बस अपनी मंजिल पहलगाँव की ओर बढ़ चली। हमारे मार्ग में पत्नीटॉप नामक सुन्दर व शानदार जगह भी आयी। चूंकि हमारे ग्रुप की यह पहली अमरनाथ यात्रा थी इस कारण सभी बन्धु मार्ग में आने वाले प्रत्येक नजारे का लुत्फ़ उठाते जा रहे थे। मार्ग में बहुत सारे शानदार लुभावने नजारे थे, मैं उनका ज्यादा जिक्र नहीं कर रहा हूँ नहीं तो यात्रा ज्यादा लम्बी हो जायेगी। मैं आपको सीधे अमरनाथ यात्रा पर लिये चलता हूँ। 
यही तालाब/झील शेषनाग कहलाती है।

सोमवार, 18 मार्च 2013

Jalliyanwala Bagh and Wagha border जलियाँवालाबाग व वाघा बार्ड़र

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-02                                                      SANDEEP PANWAR

स्वर्ण मन्दिर से जलियावाला बाग पहुँचने में हमें मुश्किल से एक मिनट का समय भी नहीं लगा होगा। जहाँ से इस बाग में प्रवेश किया जाता है। वहाँ पर बहुत छोटा सा प्रवेश मार्ग है। इस बाग में आने जाने के लिये केवल और केवल यही एकमात्र मार्ग आज भी उपलब्ध है। 13 April सन 1919 में जिस दिन यहाँ पर अंग्रेजों के अफ़सर ड़ायर ने भारतीय पर गोली चलवाकर सैंकड़ों निहत्थे लोगों की हत्या करवायी थी उस दिन भी यही एकमात्र मार्ग हुआ करता था। उस दिन ज्यादा मौत होने की असली वजह भी यह एकमात्र दरवाजा बना था। अंग्रेजों ने इसी दरवाजे के पास खड़े होकर इस बाग में गोलियाँ चलवायी थी। गोलियों से बचने के लिये लोग कही नहीं भाग सके थे। आज इतने सालों बाद भी इस बाग की चारदीवारी में बने घरों की दीवारों पर गोलियों के निशान साफ़ देखे जा सकते है। इस बाग में एक कुआँ भी हुआ करता था। वैसे कुआ तो आज भी है लेकिन उस दिन के बाद उस कुएँ का पानी पीने लायक नहीं रहा था। यह कुआँ आज पूरी तरह ढ़क दिया गया है। गोलियों से बचने के लिये लोग इस कुएँ में कूदते चले गये थे। इस यात्रा में मेरे पास रील वाला कैमरा था। इसलिये फ़ोटो सीमित ही मिलेंगे।

जलिया वाला बाग


रविवार, 17 मार्च 2013

Golden Temple स्वर्ण मन्दिर परिसर

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-01                                                     SANDEEP PANWAR


इस यात्रा की रुप रेखा भी अपने कार्यालय में ही खींची गयी थी सन 2007 के जुलाई माह की बात है मैं दिल्ली में शाहदरा में कड़कड़ डूमा कोर्ट/अदालत में कुछ काम से गया था। वहाँ से वापिस लौटते समय शाहदरा के बाबू राव स्कूल के सामने से होकर मैं शाहदरा बस टर्मिनल की ओर रहा था। जब मैं शाहदरा फ़्लाईओवर के नीचे पहुँचा तो मेरी नजर एक इश्तिहार पर पड़ी, मैं उस इश्तिहार/विज्ञापन को देखता ही चला गया। उस विज्ञापन पर लिखा हुआ था। मात्र 2500 रुपये में दोनों समय के भोजन सहित अमृतसर, जलियाँवाला, वाघा बार्ड़र, अमरनाथ श्रीनगर वैष्णों देवी यात्रा कराने के सम्बन्ध में लिखा हुआ था। ऐसा मौका मैं भला कहाँ छोड़ने वाला था। मैंने उसी दिन कार्यालय आकर अमरनाथ जाने की योजना पर अमल कर दिया। मेरी अमरनाथ यात्रा पर जाने की सुनकर अपने दो साथी भी अपने साथ जाने की कहने लगे। मैंने उन्हे यात्रा के विज्ञापन के बारे मॆं विस्तार से बताया। उन्हें उस विज्ञापन का मोबाइल नम्बर भी दिया। मेरे कार्यालय के साथियों ने उस नम्बर पर बात कर तीन सीट बुक करने के लिये कह दिया। यात्रा पर जाने में अभी 20 दिन बाकि इसलिये हमारे पास कोई जल्दे नहीं थी। हमने यात्रा पर जाने से 15 दिन पहले पैसे जमाकर अपनी सीट बुक कर दी। जिस दिन यात्रा की शुरुआत होनी थी उस दिन हम शाम को बाबू राव स्कूल के पास वाली गली में पहुँच गये। यहाँ हमे एक 16 सीटर बस लेने के लिये आयी थी। इस  बस में सवार होकर हम अमृतसर की ओर रवाना हो गये।

सत श्री अकाल, जो बोले सो निहाल

शनिवार, 16 मार्च 2013

Jammu to Vaishno Devi and back to delhi जम्मू से वैष्णों देवी तक, व दिल्ली तक की यात्रा का विवरण

पहली हिमाचल बाइक यात्रा-05                                                                              SANDEEP PANWAR


जहाँ पठानकोट तक आते-आते हम भीगे हुए थे, उसके विपरीत जम्मू आते-आते हमारे कपड़े पूरी तरह सूख चुके थे। जम्मू में सतावरी चौक के पास ही विशेष मलिक के चाचा सपरिवार रहते थे। अगले तीन दिन तक हम इन्ही के यहाँ ठहरने वाले थे। जिस दिन हम जम्मू पहुँचे उस दिन हमने घर से बाहर कदम नहीं रखा था। अरे हाँ घर की छत पर ताजे-ताजे कच्चे-पक्के आम लगे हुए थे। हम छत पर जाकर आम खाने में मशगूल हो चुके थे। शाम को खाना खा पीकर हमने टीवी पर समाचार देखकर कई दिनों बाद दीन दुनिया का सूरते हाल जाना था। हमने अगले दिन अमरनाथ जाने की योजना बनानी चाही थी लेकिन जहाँ से अमरनाथ यात्रा आरम्भ होती है वहाँ पर लगे काऊँटर से हमने अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिये पता किया, उन्होंने बताया कि बिना यात्रा पर्ची के आप बालटाल व पहलगाँव से आगे नहीं जा सकते है। हमने कहा कि पर्ची बना दो, उन्होंने कहा अपने पहचान पत्र दिखाओ, हमने वो भी दिखा दिये। लेकिन इसके बाद उन्होंने कहा कि हमारे पास 20 दिन बाद की पर्ची बची हुई है। बीस दिन हम वहाँ क्या करते? इसलिये हमने अमरनाथ AMARNATH YATRA जाने की योजना बन्द कर वैष्णों देवी दर्शन करने की योजना बना ड़ाली थी। इसके बाद हम वापिस जम्मू विशेष के चाचा के घर लौट आये। वैष्णों देवी जाने के लिये हमने अगले दिन सुबह 4:30 मिनट पर अपनी बाइक पर सवार होकर हवा से बाते करना शुरु किया।

ये मौसम भीगा-भीगा है।

हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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भैरों मन्दिर में

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

Kangra-Chamunda-Dharamshala-Jammu-vaishno Devi temple कांगड़ा ब्रजेश्वरी देवी, चामुन्ड़ा माता, धर्मशाला व जम्मू से वैष्णों माता दर्शन का वर्णन

हिमाचल की पहली बाइक यात्रा-04


ज्वाला मुखी को बहुत से भक्त ज्वाला माई के नाम से भी पुकारते है। यहाँ से अपनी बाइक ब्रजेशवरी मन्दिर की ओर दौड़ चली। हमें कांगड़ा शहर में स्थित इस मन्दिर तक पहुँचने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। अगर हमारे पास बाइक ना होती तो हमें काफ़ी पैदल चलना पड़ता, लेकिन बाइक साथ होने के कारण हम मन्दिर के काफ़ी नजदीक तक पहुँच गये थे। हमने मन्दिर के पास मिलने वाली दुकाने देखते ही एक खाली जगह देखकर अपनी बाइक वहाँ लगायी उसके बाद इस मन्दिर में मूर्ति दर्शन करने के लिये मन्दिर प्रांगण में प्रविष्ट हुए। मन्दिर में भयंकर भीड़ होने के कारण हमने मुख्य मन्दिर के ठीक सामने जहाँ से मूर्ति दिखायी दे जाती है, कम से कम 40 फ़ुट दूर से ही माता की मूर्ति को प्रणाम कर वहाँ से आगे चामुण्ड़ा मन्दिर के लिये निकल पड़े।

जाट के ठाट

गुरुवार, 14 मार्च 2013

Rivalsar lake, Chintpurni and Jwalamukhi ji Temple रिवाल्सर झील, चिंतपूर्णी माता व ज्वालामुखी जी मन्दिर

हिमाचल की पहली बाइक यात्रा-03


हिमाचल प्रदेश Himachal Pardesh में मणिकर्ण Manikaran  कुल्लू Kullu मनाली Manali रोहतांग Rohtaang देखकर वापसी में फ़िर से मन्ड़ी आना पड़ा यहाँ से हम रिवालसर झील देखने के लिए चल दिये। मन्ड़ी कस्बे में रिवाल्सर जाने के लिये मुख्य चौराहे से एक मार्ग ऊपर शहर की आबादी से होता हुआ चला जाता है। इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई मिलती रहती है। इस कारण बाइक व अन्य गाड़ियाँ ज्यादा तेज गति से नहीं चढ़ पाती है। इस मार्ग की दूरी लगभग 25-30 किमी के करीब तो रही ही होगी। हम अपनी बाइक लेकर सीधे रिवाल्सर झील पहुँच गये थे। उस समय तक यहाँ बहुत ज्यादा होटल नहीं बने हुए थे। एक और तिब्बती बौद्ध धर्म वाले छाये हुए है यहाँ पर एक गुरुद्धारा भी है। हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ यह झील देखनी थी इसलिये हमने पहले तो झील का एक चक्कर लगाया उसके बाद झील किनारे एक साफ़ जगह देखकर बैठ गये। यहाँ पर झील के पानी में बहुत सारी मछलियाँ है। पानी में खाने को ड़ालते ही ये उस खाने के लिये ऊपर दिखायी देने लगती है।  यहाँ पर हमने ठीक उस जगह से फ़ोटो लिया था जहाँ से पहाड़ के ऊपर सुनहरे महात्मा बुद्ध की मूर्ति भी फ़ोटो में दिखायी दे रही है। यह मूर्ति बहुत बड़ी है।

RIWALSAR LAKE

बुधवार, 13 मार्च 2013

Rohtaang Pass रोहतांग जोत/दर्रा से मस्ती करने के बाद वापसी

हिमाचल की पहली बाइक यात्रा-02

किसी तरह उस दो किमी लम्बे जाम को पार कर हम रोहतांग के करीब पहुँच पाये थे। रोहतांग से कोई 7-8 किमी पहले से सड़क की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गयी थी। यहाँ सड़क के नाम पर गढ़्ढ़े ज्यादा थे। सड़क भी कही-कही दिखायी दे जाती थी। चूंकि हम बाइक पर दो बन्दे थे और चढ़ाई भी जबरदस्त थी इस कारण बाइक को ऊपर चढ़ाई में खूब जोर लगाना पड़ रहा था। इस मार्ग अगले ही साल मैंने इसी साथी व इसी बाइक के साथ लेह तक की यात्रा की थी। वो यात्रा तो मैं बहुत पहले दो साल पहले ही लिख चुका हूँ वह यात्रा मेरे ब्लॉग की पहली सीरिज थी। हम रोहतांग तक पहुँचते उससे पहले ही बर्फ़ ने चारों ओर से सड़क को घेर लिया था। हम चलते रहे। हमारी मंजिल इस जगह की सबसे ऊपर की चोटी थी। जहाँ तक चढ़ाई थी हमें चलते जाना था। आखिरकार वो स्थान भी आ ही गया जहाँ से आगे ढ़लान दिखायी देने लगी थी। हमने अपनी बाइक सड़क के किनारे लगा दी थी। बाइक खड़ी करने के बाद हमने कुछ देर तक आसपास के बर्फ़ पर धमाल चौकड़ी की, उसके बाद हमने वहाँ पर फ़ोटो-फ़ाटू लिये थे। यहाँ पर उस समय यह रोहतांग दर्रा नाम का पत्थर/चबूतरा बनाया हुआ था। लेकिन जब मैं अगले साल यहाँ गया तो यह चबूतरा गायब मिला। पहली वाली यात्रा के समय यहाँ पर बर्फ़ भी बहुत ज्यादा मिली थी लेकिन दूसरी यात्रा में बर्फ़ बहुत ही कम मिली थी।

अब यह दीवार नुमा चबूतरा वहाँ नहीं है।

हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।


मंगलवार, 12 मार्च 2013

Delhi-Mandi-Kullu-Manikaran Gurudwara दिल्ली-मन्डी-कुल्लू-मणिकर्ण-मनाली होकर रोहतांग दर्रे तक।

पहली हिमाचल बाइक यात्रा-01

हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रा के नाम से शायद ही कोई अछूता हो? बात सन 2009 के जुलाई माह की बात है, मैंने और गुजरात व गौमुख-केदार यात्रा में साथ जाने वाले अनिल ने बाइक से लेह-लद्धाख जाने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। वैसे मुझे घुमक्कड़ी करते हुए 22 साल से ज्यादा का समय हो गया है। इस यात्रा से पहले मैंने दिल्ली से गंगौत्री व यमुनौत्री तक कई बार बाइक पर आना-जाना किया हुआ था। हिमाचल में इससे पहले मैं एक बार शिमला तक ही गया था। शिमला वाली उस यात्रा में मैं दिल्ली से कालका तक पैसेंजर रेल से गया था। उसके बाद कालका से सुबह 4:30 मिनट पर चलने वाली छोटी रेल/खिलौना रेल toy train से कालका से शिमला तक की यात्रा की थी। उस यात्रा में ज्यादा फ़ोटो नहीं लिये थे। इस यात्रा के समय भी रील वाला कैमरा मेरे पास था। रील वाले कैमरे को प्रयोग करते समय बहुत ज्यादा कंजूसी दिखानी पड़ती थी। इसलिये आज मैं आपको ज्यादा फ़ोटो नहीं दिखा पाऊँगा। चलिये यात्रा पर चलते है....
कुल्लू से पहले एक बाँध पर यह नजारा है।

हम चार बन्दे दो बाइक पर तय समय लेह यात्रा के लिये चल दिये। हमारी यात्रा की शुरुआत तो हमेशा से ही दिल्ली बार्ड़र के घर से ही हुआ करती है, इसलिये मैं और विशेष मलिक मेरी सदाबहार ambition बाइक पर सवार होकर लेह के लिये चल दिये। अनिल और उसका छोटा भाई जो उत्तर प्रदेश पुलिस UP POLICE में कार्यरत है। इस यात्रा के लिये पन्द्रह दिन का अवकाश लेकर आया था। अनिल और उसके भाई को हमें बागपत शहर के चौराहे पर मिलना था। जब हम बागपत पहुँचे तो वे दोनों वहाँ पहले से ही मौजूद थे। हमारे आते ही वे भी तुरन्त चल दिये। अभी हम बड़ौत पार करने के बाद रमाला नामक गाँव में पहुँचे ही थे कि यहाँ अनिल मुझसे आगे चल रहा था, अनिल के आगे एक भैसा-बुग्गी आने के कारण उसने अपनी बाइक रोक दी, जबकि मुझे आगे निकलने की जगह मिलने के कारण मैं आगे बढ़ गया। जब मैंने थोड़ा सा आगे जाने पर महसूस किया कि अनिल पीछे नहीं आ रहा है तो बाइक सड़क के किनारे रोक दी। अनिल लगभग 5 मिनट के बाद बाइक पर आता हुआ दिखायी दिया। जब वे हमारे पास आये तो उन्होंने अपने लहुलूहान पैर खून से लथपथ पैर मुझे दिखाये तो मैं आश्चर्यचकित रह गया कि अरे अभी तो मैं तुम्हे सही सलामत छोड़ कर आया था और अब तुम खून से लथपथ हो। आखिर तुम्हे हुआ क्या?  इतनी चोट लगी कैसे?

रोहतांग अभी 11 किमी दूर है।

सोमवार, 11 मार्च 2013

Kedarnath (12 Jyotirlinga) Temple केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में सर्वाधिक ऊँचाई वाला ज्योतिर्लिंग

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-06


रुद्रप्रयाग से अपना साथी मुझे अकेला छोड़कर दिल्ली के लिये रवाना हो गया। मैंने अपनी बाइक गौरीकुंड़ के लिये दौड़ा दी। बाइक पर अकेले सवारी करते हुए मैंने महसूस किया कि बाइक पर अकेला होने के कारण बाइक आसानी से पहाड़ पर चढ़ती जा रही है। पीछे किसी के बैठने पर बाइक का संतुलन बनाने में सावधानी रखनी पड़ती थी। अकेला होने पर जो आराम मिला, उसका मुझे बहुत लाभ हुआ। मैं मुश्किल से दो घन्टे से पहले ही गौरीकुंड़ पहुँच चुका था। गौरीकुंड़ पहुँचते ही घड़ी में समय देखा तो दोपहर के 11 बजने जा रहे थे। सबसे पहले तो बाइक को किसी सुरक्षित स्थान पर खड़ा करना था उसके बाद आगे जाने की कार्यवाही पर अमल करना था। मैं गौरीकुंड़ में घुसते ही सबसे पहले सीधे हाथ की ओर दिखायी देने वाले कमरों में जगह देखने के लिये बात बात की, वहाँ पर मौजूद एक कर्मचारी बोला कितने आदमी हो, मैंने कहा कि मैं तो अकेला हूँ उस आदमी ने मुझे किराया मात्र 50 रुपये बताया था। मैंने तुरन्त 50 रुपये उसको दे दिये। उसने मुझे सबसे नीचे का सड़क किनारे वाला कमरा दिया था मेरी बाइक उसने मेरे कमरे के अन्दर ही खड़ी करवा दी थी। मैंने बाइक खड़ी कर अपने बैग से फ़ालतू सामान निकाल कर सिर्फ़ एक जोड़ी कपड़े व नहाने का सामान व बरसात से बचने की पन्नी वाला बुर्का लेकर गौरीकुंड़ के गर्म पानी में स्नान करने के लिये चला गया। 

केदारनाथ मन्दिर


रविवार, 10 मार्च 2013

Hemkunth Sahib to Kedar Nath highest Jyotirlinga गोविदघाट से रुद्रप्रयाग/गौरीकुंड़ तक

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-05


हम दोनों गोविन्दघाट से अपनी बाइक पर सवार होकर जोशीमठ की ओर चल दिये। आगे बढ़ने से पहले हम जोशीमठ का वह मठ देखना चाहते थे, जिसके कारण इस जगह का नाम जोशीमठ पड़ा। यहाँ पर बद्रीनाथ भगवान (विष्णु के अवतार) के भारत में चार धाम में से सर्वोत्तम धाम बद्रीनाथ के कारण इसका महत्व कुछ ज्यादा हो जाता है। जैसा कि भारत के चार कोनों में चार मठ व चार धाम बनाये गये है। पहला तो उत्तर भारत में यह बद्रीनाथ धाम है ही, इसके अलावा पश्चिम में द्धारकाधीश गुजरात में समुन्द्र किनारे, पूर्वी भारत में उड़ीसा में समुन्द्र किनारे जगन्नाथ पुरी और दक्षिण में समुन्द्र किनारे रामेश्वरम धाम है। रामेश्वरम धाम ऐसा धाम है जो 4 धाम में भी गिना जाता है और 12 ज्योतिर्लिंग में भी शामिल होता है। मैंने इनमें से सिर्फ़ पुरी के दर्शन नहीं किये है लेकिन आगामी 14 व 15 मार्च को पुरी में उपस्थित रहने के कारण यह कार्य भी सम्पन्न हो जायेगा। 11 ज्योतिर्लिंग पहले ही पूरे हो चुके है। जल्द ही 12 के 12 भी पूरे हो जायेंगे। हमने अपनी बाइक जोशीमठ के मठ के ठीक सामने खड़ी कर, पैदल ही मठ में भ्रमण करने के लिये चल दिये। वहाँ हमने बहुत सारे साधु महात्मा देखे। उस समय वहाँ के बगीचे के पेड़ पर नाशापाति लगी हुई थी। एक साधु ने एक नाशपाति खाने के लिये मुझे भी दी। मेरा इस मठ में आने का असली कारण यहाँ पर शहतूत का वह पेड़ देखना था जिसको कल्पवृक्ष के नाम से पुकारा जाता है। इस पेड़ का तना एक कमरे के आकार के बराबर है। इसकी पेड़ की उम्र लगभग 2000-2500 वर्ष बातयी जाती है। असलियत क्या है? मैं नहीं जानता। लेकिन इसके तने का आकार देखकर यह अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि इतना मोटा पेड़ होने के लिये हजार साल का समय तो लगता ही है।

अब चलते है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पहली बाइक यात्रा पर।

शनिवार, 9 मार्च 2013

Hemkund/Hemkunth Sahib-World highest Gurudwara दुनिया में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित हेमकुंठ साहिब गुरुद्धारा

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-04

सुबह ठीक चार बजे उठने का अलार्म लगाया था, जैसे ही अलार्म बजा, बाहर उठकर देखा तो लोगों की खूब चहलपहल हो चुकी थी। हम भी फ़टाफ़ट फ़्रेश होकर हेमकुन्ठ साहिब की यात्रा करने के लिये सब लोगों के साथ चलने लगे। आगे जाकर जहाँ से फ़ूलों की घाटी का मार्ग अलग हो जाता है, वहाँ पर काफ़ी लोग एकत्र हो चुके थे। ठीक साढ़े 5 बजे जो बोले सो निहाल, बोलो सत श्री अकाल का जयकारा लगाकर सभी लोग ऊपर पहाड़ की ओर चल दिये। धीरे-धीरे पहाड़ की चढ़ाई बढ़ती ही जा रही थी। हमने कल दोपहर ही देख लिया था कि हमें कितनी भयंकर चढ़ाई चढ़कर ऊपर तक पहुँचना पड़ेगा। पहले से जी सख्त कर दिया था इसलिये चढ़ाई का खौफ़ तो मन में बिल्कुल नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ती जाती थी। मार्ग की हालत भी तंग होने लगी थी। हमने अपनी राजधानी एक्सप्रेस वाला गति बनाकर सबको पीछे छोड़ना शुरु कर दिया था। हम जितना आगे जाते हमें उतने आगे भी लोग-बाग मिलते जा रहे थे। मैं आश्चर्यचकित था कि यार हम तो पहले ही दे दना-दन गति से चढ़ते जा रहे है। फ़िर भी लोग-बाग हमें ऊपर पहले से ही सुस्ताते हुए मिल रहे है। आखिर मामला क्या है? मैंने अपनी शंका का समाधान करने के लिये एक बन्दे से पूछ ही लिया कि किस समय नीचे से चले थे। उन्होंने कहा कि हम 4 बजे चले थे तो मेरी समझ में आया कि क्यों बन्दे हमें आगे भी मिल रहे है।? पैदल चलने में मजा आ रहा था। सुबह जब चले थे तो हल्का-हल्का अंधेरा था। लेकिन कुछ समय बाद अंधेरा तो चला गया, बदले में अपनी मौसी कोहरा को छोड़ गया। वहाँ मार्ग में बेहद ही कोहरा छा गया था। जिससे हमें सिर्फ़ 10-15 मीटर से ज्यादा दिखायी नहीं दे रहा था।  

पहला फ़ोटो हेमकुन्ठ साहिब का

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

Vally of flowers फ़ूलों की घाटी में एक दिन (हेमकुंठ के पास)

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-03

गोविन्द घाट से घांघरिया तक कुल 13-14 तेरह/चौदह किमी की दूरी है। वैसे तो यह दूरी कोई ज्यादा लम्बी नहीं है लेकिन इसमें लगातार चढ़ाई चढ़ते जाने के कारण इतनी कठिन लगने लगती है कि नानी याद आने लगती है। अगर कोई बन्दा बिना तैयारी के यहाँ आ जाये तो उसकी हालत पतली होनी तय है। घांघरिया यहाँ  मुख्य आधार कैम्प का कार्य करता है क्योंकि फ़ूलों की घाटी व हेमकुंठ साहिब के साथ ही तिप्राम्बक नामक ग्लेशियर में रुकने का कोई प्रबन्ध ना होने के कारण रात को आकर यही ठहरना पड़ता है। हमें यह दूरी पार पाने में 5  घन्टे का समय लग गया था। चढ़ाई पर विजय पाने का अपना हमेशा से एक जूनून जैसा रहा है। इसलिये मैं अपनी फ़िटनेस बनाये रखने के लिये लोकल में बाइक का प्रयोग 30-40 किमी तक की दूरी के लिये कभी नहीं करता हूँ। गोविन्दघाट से घांघरिया तक का मार्ग एक नदी के किनारे-किनारे बनाया गया है। नदी का जल देखने में ऐसा लगता है जैसे यह पानी नहीं, दूध की धारा हो। चूंकि हम दोपहर के एक बजे घांघरिया पहुँच गये थे इसलिये हमने हेमकुन्ठ साहिब जाने के लिये चलना शुरु कर दिया था। घांघरिया पार करने के करीब एक किमी आगे जाने के बाद हमें पता लगा कि इस समय हेमकुन्ठ साहिब नहीं जाया जा सकता है।

फ़ूलों की घाटी में घुसते ही यह फ़ोटो लिया गया था।

गुरुवार, 7 मार्च 2013

Mana-Bheem Pul to Ghangaria (Base of Vally of flower) भारत के अंतिम गाँव माणा में भीम पुल से घांघरिया तक

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-02

बद्रीनाथ मन्दिर के नजदीक कमरा लेने के बाद दर्शन करने के उपराँत हम भारत की सीमा का अंतिम गाँव माणा देखने के लिये निकल पड़े। होटल वाले से माणा के मार्ग की थोड़ी भी ले ली थी। उसने बताया था कि माणा यहाँ से केवल 3 किमी दूरी पर स्थित है। बाइक से जाने में वहाँ कोई समस्या नहीं है लेकिन बीच-बीच में कई झरने आते है जहाँ पर बिना भीगे वे नाले पार नहीं किये जा सकते है। हमने जूते पहने हुए थे पहले सोचा कि चलो बैग से चप्पल निकाल कर पहन ली जाये। लेकिन वहाँ की ठन्ड़ को देखते हुए यही फ़ैसला हुआ कि चलो देखा जायेगा अगर जरुरत पड़ी तो जूते निकाल कर नाला पार कर लिया जायेगा। तीन किमी के मार्ग में कुल चार नाले मिले थे जिनमे से दो नाले तो थोड़े से शरीफ़ निकले, जिन्होंने हमें बिना किसी परेशानी के आगे जाने दिया। आखिरी के दो नाले तो जबरदस्त थे जिन्हे पार करने से पहले बाइक रोककर यह तय किया गया था कि इन्हे पार कैसे करना है? मैंने अपने साथी को इन दोनों नालों पर बाइक से उतार दिया था। बाइक इन पर पार करते समय बेहद सावधानी से पार करनी पड़ती थी। जब मैं पहले नाले को पार कर रहा था तो अगले पहिया के आगे एक पत्थर आ गया, जिसके कारण पहिया हिलने से बाइक का संतुलन बिगड़ने से मुझे अपना एक पैर पानी में रखना पड़ गया था। यह सब इतनी  तेजी से हुआ था कि कब बाइक अटकी, कब पार हुई और कब जूते को पानी ने छु लिया, तेजी से बदलते घटनाक्रम ने बाइक यात्रा के रोमांच से हमें सरोबार कर दिया था। नाला पर करके पहले तो अपना पैर देखा कि कितना भीगा है जब लगा कि अरे बस इतना ही गीला हुआ, तो जान में जान आयी। जूता सिर्फ़ पंजे की ओर से भीगा था। इसके बास एक और नाला आया, यहाँ पर दुबारा से जूते गीले ना हो इस बात पर विचार किया गया। इसका सिर्फ़ एक ही समाधान निकला कि.......

यह माणा गाँव से आगे भीम पुल नाम की जगह है।

बुधवार, 6 मार्च 2013

Badrinath 4 Dham Temple बद्रीनाथ मन्दिर- हिन्दुओं के चार 4 धाम में से एक

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-01

सन 2006 में अगस्त माह की शुरुआत ही हुई थी कि मन में विचार आया कि चलो काफ़ी दिन हो गये है बाइक उठाकर कही घूम आया जाये। इसलिये मैंने अपनी नई बाइक Ambition 135 cc से पहाड़ की एक यात्रा करने का प्लान बनाया। मेरे कार्यालय के सभी सहकर्मी जानते थे कि यह बन्दा हर दूसरे-तीसरे माह कही ना कही घूमने निकल जाता है। मेरी बद्रीनाथ, फ़ूलों की घाटी, हेमकुन्ठ साहिब, केदारनाथ यात्रा के बारे में जैसे ही कार्यालय वालों को पता लगा तो साथ में काम करने वाला एक बन्दा बाइक यात्रा के बारे में सुनकर मेरे साथ जाने की कहने लगा। पहले तो मैंने उसे समझाया कि देख भाई हम बाइक पर जा रहे है। बाइक यात्रा के बारे सुनते ही आधे लोगों की फ़ूँक तो वैसे ही सरक जाती है, और जिसकी थोड़ी बहुत हवा निकले बिना रह जाती है उसकी कसर उसके घरवाले/घरवाली उसकी वालबोड़ी खोल कर रही सही कसर पूरी कर देते है। अत: भाई अगर तुम्हे बाइक पर जाना है तो पहले अपनी हवा के बारे में पक्का प्रबन्ध कर ले, कही तुम उसी दिन, जिस दिन हम जाने वाले होंगे, मुझे कहोगे कि मम्मी नी मान रही है, बहिन को लेकर जाना है, भाई को छुट्टी नहीं मिली घर पर रहने वाला कोई नहीं है। आदि-आदि बहाने लोग बनाते है मुझे इन बहानों की आदत पड़ गयी है। इसलिये पहले अपने घर से हाँ करवा लो तब मुझे हाँ करना।

Jatdevta Sandeep Arya (Panwar) बद्रीनाथ मन्दिर में

मंगलवार, 5 मार्च 2013

MHOW Railway पातालपानी से कालाकुंड PATALPANI TO KALAKUND


दोस्तों आज आपको रतलाम, उज्जैन, इन्दौर, महू, पातालपानी, कालाकुन्ड होकर अकोला, Ratlam, MHOW, Patalpani, Kalakund, Akola Railway Trek तक जाने वाली मीटर गेज वाली रेल यात्रा के बारे में बताया जायेगा। मैंने इस पूरे ट्रेक पर सिर्फ़ दो बार ही यात्रा की है, लेकिन इन्दौर से पातालपानी होते हुए कालाकुन्ड़ तक कई बार यात्रा कर चुका हूँ इस रुट में पातालपानी से कालाकुन्ड स्टेशनों के बीच की ही यात्रा सबसे यादगार यात्रा रहती है इस कारण मैं मौका लगने पर इन दो स्टॆशन के बीच की यात्रा अवश्य कर लेता हूँ अभी आखिरी यात्रा मैंने जून 2012 में की थी। जब मैं सिर्फ़ इन्ही दो स्टॆशन के बीच यात्रा कर वापिस चला आया था। आप सोच रहे होंगे कि इन्ही दो स्टेशन की बीच यात्रा करने की कोई खास वजह तो होगी ही, चलिये बताता हूँ 

अपनी गाड़ी का फ़ोटो

सुरंग में घुसने की तैयारी

पातालपानी स्टॆशन

सोमवार, 4 मार्च 2013

First Manimahesh Kailash trekking yatra पहली मणिमहेश कैलाश ट्रेकिंग यात्रा

सन 2006 के जुलाई माह की बात है मैं अपनी ड़यूटी पर बैठा अपने कार्य से फ़्री होने पर कही जाने की योजना बना रहा था कि तभी हमारे कार्यालय में काम करने वाली दो महिलाएँ कुछ काम से मेरी सीट पर आ धमकी। मैं अपना नक्शा और पेपर वही छोड़ उनका काम करने लगा तो उनमें से एक की नजर मेरे नक्शे की पुस्तिका व योजना बनाने वाले सादे पेपर पर चली गयी। जब उनका कार्य समाप्त हो गया तो वे अपनी सीट पर चली गयी। उन्हे वहाँ से गया एक-आध मिनट ही हुआ था कि वे दोनों पुन: वहाँ आ धमकी। मैं उनके जाते ही फ़िर से अपनी योजना को अमल में लाने के लिये जुट चुका था। उन्होंने मेरी घूमने की योजना के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि मैं आगामी सप्ताह होने वाली मणिमहेश यात्रा पर जाने की सोच रहा हूँ। इस पर उन्होंने भी मेरे साथ मणिमहेश यात्रा पर चलने की बात कही। मुझे वैसे तो किसी के साथ जाने पर कभी आपत्ति नहीं होती है। लेकिन मेरे साथ पहली बार दो ऐसी महिला जाने के लिये कह रही थी, जिन्हें मैं सिर्फ़ कार्यालय के काम से जानता था। पारिवारिक या रिश्तेदार महिलाएँ होती तो कोई बात नहीं थी। यात्रा में किसी प्रकार की कोई उल्टी-सीधी ऊँच-नीच वाली घटना घटित हो, इससे पहले मैंने उन्हें टालने के लिये बहाना बनाते हुए कहा कि मैं वापसी में सीधे दिल्ली नहीं आऊँगा। वे दोनों भी पक्की घुमक्कड़ (बहुत घूम चुकी है।) रह चुकी थी, इसलिये उन्होंने कह दिया कि कोई बात नहीं, हम दोनों अकेली वापिस आ जायेंगी। वे दोनों महिलाएँ उम्र में मुझसे कई साल बड़ी थी। इसलिये ज्यादा खतरे वाली बात भी नहीं थी। जब मुझे यह पक्का यकीन हो गया कि ये दोनों इस यात्रा में हर हालत में जायेगी ही तो मैंने भी अपने अनमने मन से उनको हाँ कहना ही पड़ा कि ठीक है चलो जो होगा देखा जायेगा। 


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